आपने कभी यह सोचा है कि अंतरिक्ष से पृथ्वी को देखने पर पृथ्वी हमें नीली क्यों दिखाई देती है। आपने कभी न कभी यह सोचा होगा और आपको इसका जवाब मिला होगा कि पृथ्वी का दो तिहाई भाग समुद्र का है इसलिए हमें पृथ्वी नीली दिखाई देती है। यह जानने के लिए सबसे पहले हमें पृथ्वी पर सूर्य से आने वाली किरणों को जाना पड़ेगा और उन किरणों को फैलाव को भी समझना पड़ेगा। जैसा कि आप जानते होंगे कि सूर्य की किरणें सात रंगों से मिलकर बनी हुई है वह रंग है बैंगनी, नीला, आसमानी, हरा, पीला, नारंगी, लाल। इनमें से छोटी तरंगदैर्ध्य किरणों का फैलाव वातावरण में ज्यादा होता है जैसे बैंगनी, नीला, आसमानी। वही बड़ी तरंगदैर्ध्य किरणों का वातावरण में फैलाव कम होता है, जैसे लाल नारंगी पीला। अब आप यहां तक सूर्य की किरणों को समझ गए होंगे। हमारा प्रश्न है कि पृथ्वी अंतरिक्ष से हमें नीली क्यों दिखाई देती है।
अब ध्यान दीजिए सूर्य की किरणें जब पृथ्वी के वातावरण में आते हैं तब पृथ्वी के वातावरण में मौजूद छोटे कण सूर्य की किरणों को सात रंगों में बांटकर वातावरण में फैला देते हैं। यानी सूर्य की किरणें इन कणों से टकराकर वातावरण में फैल जाते हैं। पृथ्वी के वातावरण में 78 प्रतिशत नाइट्रोजन, 21 प्रतिशत ऑक्सीजन, और बाकी के 1त्न में बाकी के गैस हैं। जो कि बहुत ही छोटे पार्टिकल्स हैं और यह सनलाइट को फैलाने में बहुत ज्यादा मदद करते हैं। तो इस प्रकार सूर्य की किरणें सात रंगों में बांट कर वातावरण में फैल जाती है।
अब आप यह जानते होंगे कि पृथ्वी का 71 प्रतिशत भाग पानी से ढका हुआ है और पानी का रंग यानी कलर रंगहीन होता है। लेकिन वाटर की एक प्रॉपर्टी होती है कि वह बड़ी तरंग दैर्ध्य की किरणों को समाहित कर लेता है जैसे लाल नारंगी पीला रंग की प्रकाश किरणें और नीली प्रकाश की किरणों को रिफ्लेक्ट करता है। पर यहां ध्यान रहे कि पानी अगर गंदा होगा यानी उस में कीचड़ या काई जैसी चीजें लगी होंगी तो उसके कलर रिफ्लेक्शन में अंतर हो सकता है। नीली प्रकाश की किरणों का रिफ्लेक्शन केवल साफ पानी में ही होता है।