• जिनकी फिल्मों ने पढ़ाया दर्शकों को देशभक्ति का पाठ

    बीती सदी के छठे—सातवें दशक के अहम अदाकार मनोज कुमार ने सत्तासी साल की उम्र में हमसे अपनी आख़िरी विदाई ले ली

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    - ज़ाहिद ख़ान

    बीती सदी के छठे—सातवें दशक के अहम अदाकार मनोज कुमार ने सत्तासी साल की उम्र में हमसे अपनी आख़िरी विदाई ले ली। 4 अप्रैल को वे हमसे हमेशा के लिए जुदा हो गए। पिछले काफी समय से वह बीमार थे। फिल्मी दुनिया में मनोज कुमार को एक ऐसी हरफनमौला शख़्सियत के तौर पर जाना जाता है, जिन्होंने अपने बेजोड़ अभिनय के साथ-साथ निर्देशन, लेखन, संपादन और फिल्म निर्माण की काबिलियत से दर्शकों के दिल में अपनी ख़ास पहचान बनायी।

    'शहीद', 'उपकार', 'शोर', 'यादगार', 'क्रांति', 'पूरब और पश्चिम', 'रोटी-कपड़ा और मकान' जैसी लाजवाब और कभी न भुलाए जाने वाली फिल्में उन्होंने अपने चाहने वालों को दीं। उनके द्वारा निर्देशित ज़्यादातर फिल्में भारतीयता और देशभक्ति की भावना से ओत-पोत हैं। इन फिल्मों और उनके गाने सुनकर कई पीढ़ियों ने देशभक्ति का पाठ सीखा है। आज़ादी की वर्षगांठ हो, गणतंत्र दिवस हो या फिर स्वतंत्रता सेनानियों की जयंती-पुण्यतिथि के आयोजन मनोज कुमार की फिल्मों के गाने मसलन 'ऐ वतन-ऐ वतन हमको तेरी कसम', 'सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है', 'मेरा रंग दे बसंती चोला', 'अब के बरस तुझे धरती की रानी', 'मेरे देश की धरती सोना उगले', 'भारत का रहने वाला हूॅं' ज़रूर बजते हैं। इन गानों के बिना यह आयोजन मानो अधूरे होते हैं।

    अविभाजित भारत के एबटाबाद में 24 जुलाई, 1937 को जन्मे मनोज कुमार का परिवार बंटवारे के बाद, नई दिल्ली में आकर बस गया। यहीं उनकी तालीम हुई। उनका असली नाम हरिकृष्ण गिरी गोस्वामी है, फिल्मों में आकर वह मनोज कुमार हो गए। अपने बचपन में वे अभिनय सम्राट दिलीप कुमार से बेहद प्रभावित थे और उन्हीं की तरह हीरो बनना चाहते थे। अपने इस ख़्वाब को लेकर वे मायानगरी मुंबई पहुॅंचे। फिल्मों में काम की तलाश में उन्होंने काफी संघर्ष किया। छोटी-छोटी भूमिकाओं से शुरुआत करने के बाद, साल 1961 में निर्देशक एचएस रवैल ने उन्हें अपनी फिल्म 'कांच की गुड़िया' में हीरो का रोल दिया। फिल्म नाकाम रही। इसके बाद उन्हें और भी कई फिल्में मिलीं, लेकिन यह सभी फिल्में टिकिट खिड़की पर नाकामयाब साबित हुईं। साल 1962 में आई निर्देशक विजय भट्ट की 'हरियाली और रास्ता' वह फिल्म थी, जिसमें मनोज कुमार को कामयाबी का पहला स्वाद मिला। एक बार उन्होंने जो कामयाबी का दामन थामा, तो फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा। 60 और 70 के दशक में मनोज कुमार ने एक के बाद एक कई सुपर हिट फिल्में लाईन से दीं। 'वो कौन थी', 'गुमनाम', 'हरियाली और रास्ता', 'हिमालय की गोद में', 'दो बदन', 'पत्थर के सनम', 'नील कमल', 'शोर', 'साजन', 'बेईमान', 'दस नंबरी', 'सन्यासी' और 'पहचान' जैसी अनेक फिल्में इस लंबी फेहरिस्त में शामिल हैं। आगे चलकर मनोज कुमार फिल्म निर्देशक के तौर पर भी बेहद कामयाब रहे। उनकी फिल्मों का एक अलग ही स्कूल है, जो आज भी कई नये निर्देशकों को अपनी ओर आकर्षित करता है।

    दिलीप कुमार जिन्हें मनोज कुमार फिल्मी दुनिया में अपना आदर्श मानते थे, आगे चलकर उन्होंने उनके साथ दो फिल्में 'आदमी' और 'क्रांति' की। सिने पर्दे पर इन दोनों बेमिसाल अभिनेताओं की जोड़ी को दर्शकों ने बेहद पसंद किया। मनोज कुमार ने कई सुपर हिट फिल्मों में काम किया, लेकिन उन्हें असली पहचान देशभक्ति वाली फिल्मों से मिली। देश प्रेम, साम्प्रदायिक सद्भावना, एकता और भाईचारे का संदेश देने वाली फिल्में उनका ट्रेडमार्क बन गईं। इन फिल्मों में उन्होंनें न सिर्फ अभिनय किया, बल्कि फिल्म निर्माण से संबंधित अनेक विभाग भी एक साथ संभाले। इन सभी महकमों में वे कामयाब भी साबित हुए। साल 1965 में प्रदर्शित फिल्म 'शहीद', मनोज कुमार के सिने करियर की अहमतरीन फिल्मों में शुमार की जाती है। देशभक्ति के जज़्बे से सराबोर इस फिल्म में उन्होंने शहीद—ए—आज़म भगत सिंह के किरदार को रुपहले पर्दे पर जि़ंदा कर दिया था। भगत सिंह के साथी बटुकेश्वर दत्त की कहानी पर आधारित इस फिल्म की पटकथा पंडित दीनदयाल शर्मा ने लिखी थी। ब्रिटिश निर्देशक-अभिनेता रिचर्ड एटनबरो की फिल्म 'गांधी' के बाद, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम पर आज भी इसके मुकाबले कोई दूसरी फिल्म नहीं है। क्रांतिकारी भगत सिंह की जि़ंदगी पर आगे चलकर और भी कई फिल्में बनीं, लेकिन उन्हें 'शहीद' जैसी कामयाबी नहीं मिली।

    साल 1965 में भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध की समाप्ति के बाद, तत्कालीन प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री ने देश में किसान और जवान की महत्वपूर्ण भूमिका को देखते हुये 'जय जवान, जय किसान' का नारा दिया और मनोज कुमार से इस पर केन्द्रित एक फिल्म बनाने को कहा। प्रधानमंत्री का यह ख़याल मनोज कुमार को बेहद पसंद आया और उन्होंने फिल्म 'उपकार' शुरू की। साल 1967 में यह फिल्म प्रदर्शित हुई। फिल्म में मनोज कुमार ने किसान के साथ-साथ जवान का किरदार निभाया। इस फिल्म में पहली बार उनके किरदार का नाम 'भारत' था। उसके बाद तो यह नाम, मनोज कुमार की शख़्सियत पर हमेशा के लिए चस्पा हो गया। अपने प्रशंसकों के बीच वे 'भारत कुमार' के नाम से ही मशहूर हो गए। 'उपकार' देश भर के दर्शकों को ख़ूब पसंद आई। फिल्म न सिर्फ टिकिट खिड़की पर कामयाब रही, बल्कि उसे उस साल सर्वश्रेष्ठ फिल्म, सर्वश्रेष्ठ निर्देशक, सर्वश्रेष्ठ कथा और सर्वश्रेष्ठ संवाद श्रेणी में फिल्मफेयर पुरस्कार भी मिले। मनोज कुमार की एक नहीं, कई ऐसी फिल्में हैं, जिनमें जनता के लिए कोई न कोई संदेश है।

    उन्होंने अपनी फिल्मों के ज़रिए हमेशा यह कोशिश की कि जनता को एक विचार, एक दिशा मिले। मनोरंजन के अलावा दर्शक उनकी फिल्मों से एक पैगाम लेकर जाएं। मनोज कुमार के निर्माण और निर्देशन में बनी फिल्म 'पूरब और पश्चिम' अपने देश की मिट्टी और भारतीय संस्कारों से प्रेम करने का प्रभावी संदेश देती है, तो फिल्म 'शोर', 'रोटी, कपड़ा और मकान' और 'क्लर्क' के ज़रिए वे जि़ंदगी के बुनियादी सवालों से जूझते आम लोगों की कहानी कहते हैं। 'क्रांति' फिल्म में उन्होंने 1857 की क्रांति के दौर को जि़ंदा किया है। मनोज कुमार के तमाम सियासी लीडरों से अच्छे संबंध रहे हैं। प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के अलावा इंदिरा गांधी और अटल बिहारी वाजपेई भी उनकी फिल्में पसंद करते थे।

    एक दौर था, जब दर्शक मनोज कुमार की हर अदा के दीवाने थे। उनकी स्टाइल, तमाम फिल्म स्टारों से जुदा है। चाहे वह उनका ड्रेस सेंस हो। मसलन बंदगले वाले कपड़े या फिर अभिनय का अनूठा अंदाज़। चेहरे पर जब वे अपना हाथ लाकर, एक स्पेशल पोज बनाते, तो सिनेप्रेमियों को वह बेहद लुभाता। डायलॉग को आहिस्ता-आहिस्ता बुदबुदाते हुए, ऊॅंची आवाज़ तक ले जाना भी उनकी अदाकारी का लाजि़मी हिस्सा था। यही नहीं उनकी निर्देशित फिल्मों में कैमरा वर्क भी अलग ही दिखलाई देता है।

    बेहतरीन गीत-संगीत उनकी फिल्मों का आकर्षण रहता था। गायक मुकेश ने उनकी फिल्मों में कई शानदार गीत गाए हैं। राज कपूर के बाद मनोज कुमार ही वे अदाकार थे, जिनके लिए मुकेश की आवाज सौ फीसदी सटीक बैठी। भारतीय सिनेमा में मनोज कुमार के विशेष योगदान के लिए उन्हें अनेक पुरस्कारों और सम्मानों से नवाज़ा गया। भारतीय सिनेमा के सबसे बड़े सम्मान 'दादा साहब फाल्के अवार्ड' के साथ-साथ, मनोज कुमार को उनके सिने करियर में सात बार फिल्मफेयर अवार्ड से सम्मानित किया गया। जिसमें साल 1973 में आई फिल्म 'बेईमान' के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का पुरस्कार शामिल है। राष्ट्रीय एकता पर बनी सर्वश्रेष्ठ फिल्म के लिये 'शहीद' को 'नर्गिस दत्त पुरस्कार', तो 'उपकार' के लिए उन्हें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार मिला। यही नहीं फिल्मों में उत्कृष्ट योगदान के लिए भारत सरकार ने मनोज कुमार को साल 1992 में 'पद्मश्री सम्मान' से भी नवाज़ा था। बढ़ती उम्र और शारीरिक अस्वस्थता के चलते, मनोज कुमार एक लंबे अरसे से फिल्मों से दूर थे, लेकिन उनकी पुरानी फिल्में और सदाबहार गाने देशवासियों को आज भी रोमांचित करते हैं। उनमें देशभक्ति का जज़्बा जगाते हैं। और आइंदा भी उनकी फिल्में भारतीय दर्शकों को देश प्रेम का पाठ पढ़ाती रहेंगी।

    महल कॉलोनी, शिवपुरी म.प्र.
    मो. 94254 89944

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