- डॉ श्यामबाबू शर्मा
चना गुड़ चढ़ावा और प्रसाद मां औसान बीवी का। चील्हा अजिया ने कथा सुनाई। सबअपने हिस्से से पांच पांच चने भोग लगाने के लिए कलश के पास जातीं। चढातीं और हाथ जोड़तीं। चील्हा अजिया सबको अशीषतीं। पूरा आंगन भरा था।
इकलौता बेटा। संध्या ने सभी रीति रिवाज विधि विधान से किये। जहां समझ न आता गांव से आई परिवार की बुजुर्गों से पूछ पूछ कर। अम्मा होतीं तो किसी से क्यों पूछना पड़ता। कुल देवता और मातृ पूजन की जिम्मेदारी देवरानी पूर्णिमा और देवर चतुर्भुज पर। 'निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्व कार्येषु सर्वदा..।' वर यात्रा, द्वार चार, विवाह और बहू की सकुशल विदाई। बारात वापिस आई।
बिटिया बहनें उत्सुक। 'दुलहिन कैसी है?' परदे में ढके के प्रति कौतूहल और जिज्ञासा मानव स्वभाव है। संध्या ने समधिन की भेजी बहंड़ौर (साड़ी) पहनी और बहू की परछन के लिए बाहर आईं। सबसे पहले कन्याओं ने परछन की फिर बड़ी बूढ़ी काकी, भौजी दिद्दा ने। बहू की छोटी ननद भाभी का मार्गदर्शन करती। 'ये मौसी, ये चील्हा आजिया, ये बढ़का चाची, ये हैं सुत्ता बुआ।
अब मम्मी आ रही हैं। पल्लवी सचेत हो गई। 'अच्छा तो यही हैं..।' संध्या ने परछन की। बहू को उतारा गया। धार दी गई। सीधे देव घर में। कुल देवता को प्रणाम, गौरा पार्वती और भगवान शिव को दण्डवत किया। पैं लगना हुआ। मुंह दिखाई। दो दिन बाद सोमवार संगठा मां के लड्डू खिलाए गये। अम्मा हर शुभ काम सोमवार को ही करती थीं। महिलाओं का कीर्तन, लोकगीत। पूरा घर परिवार उत्सवमय। दुरदुरिया गुरुवार को ही होती हैं। मोहल्ले भर में बुलावा दे दिया गया।
चना गुड़ चढ़ावा और प्रसाद मां औसान बीवी का। चील्हा अजिया ने कथा सुनाई। सबअपने हिस्से से पांच पांच चने भोग लगाने के लिए कलश के पास जातीं। चढातीं और हाथ जोड़तीं। चील्हा अजिया सबको अशीषतीं। पूरा आंगन भरा था।
'अरे अरे..। अपशगुन। यह तो काम वाली! किसने बुलाया इसे? यह सुहागिनों की पूजा है।'
संध्या ने इशारा किया और बहू ने शगुन अपशगुन से ऊपर उठकर काम वाली आंटी का आशीर्वाद लिया।