- प्रेमपाल शर्मा
हिमाचल बाल साहित्य के गौरव प्रिय पवन चौहान की सद्य प्रकाशित कृति ।हिमाचल का बाल साहित्य। मिली। प्रस्तुत पुस्तक में कुछ नवोदित, कुछ स्थापित 29 बाल कहानीकारों की कहानियां तथा 12 रचनाकारों की बाल कविता, गीत संकलित हैं। धुन के पक्के पवन जी ने यह करिश्मा ऐसे समय में कर दिखाया, जब पूरा देश लॉकडाउन में अपने घरों में बंद था ; किसी के भी पास जाने-आने का निषेध था। उन दिनों लेखकों से रचनाएं मंगाना, उन्हें संकलित-व्यवस्थित करना कितना दुरुह था।
बाल साहित्य की रचना करना सहज नहीं है। बच्चों के कोमल मनोभावों को उनके स्तर पर महसूस कर लिखना होता है, तब ही वह रचना जीवंत होकर बाल-पाठकों के मन में अपना स्थान बना पाती है। इस संकलन की हर रचना में कोई न कोई सीख या उपदेश अवश्य है। अदिति गुलेरी की बाल कहानी 'लॉकडाउन' में कोरोना संक्रमण से बचने के लिए जरूरी नियमों को सहज ग्राह्य बना दिया गया है। अमर सिंह शॉल की 'चीनी और शक्कर' कहानी बताती है कि आपकी चमक, आपकी सफलता में किसी दूसरे का कितना योगदान होता है। अमरदेव अंगिरस की कहानी 'हंस और उल्लू' का संदेश है कि बुजुर्ग जो कुछ हमें कहते, रोकते-टोकते हैं, उसके पीछे उनका गहरा अनुभव होता है।
हरदेव सिंह दीवान की कहानी 'जादू-टोना' बच्चों को पढ़ाई के प्रति सजग बना, सही राह पर लाने, उत्तरोत्तर पढ़ाई के प्रति रुचि पैदा करने के तरीके बताती है। इस तरह इस संकलन की हर कहानी अपने आप में कोई न कोई प्रेरणादायक सीख लिए हुए हैं। इससे इतर हेमकांत कात्यायन की 'महाठग' तो एक चर्चित लोककथा है, जो बच्चों के मानस से थोड़ा ऊपर है, परंतु संदेश साफ है-जो दूसरों का बुरा चाहता है, वह खुद ही उस दलदल में फंसता है।
पद्य खंड की बाल रचनाएं एक से बढ़कर एक हैं। कविताएं रोचक, मनोरंजक एवं पाठकों के हृदय में उतर जाने वाली हैं।
स्वनामधन्य पवन जी ने 'अपनी बात' में यह खुलासा किया है कि किस प्रकार इस पुस्तक की भूमिका बनी और इस कृत्य के प्रसव में किन-किन महानुभाव का सहयोग रहा। साथ ही पवन जी ने हिमाचल के बाल साहित्य की विकास यात्रा को सुस्पष्टता से काल-उत्तरोत्तर बताने का सफल प्रयास किया है। पवन जी द्वारा संपादित इस कृति से हिमाचल के बाल साहित्य को समझने में मदद तो मिलेगी ही, यह आगे इस क्षेत्र में काम करने वाले कलमकारों का मार्गदर्शन कर उनका उत्साहवर्धन करेगी; साथ ही
इस विषय पर शोधार्थियों को प्रेरित करेगी।
पवन चौहान जी स्वयं तो बाल साहित्य के आधिकारिक लेखक हैं ही, अन्य बाल साहित्यकारों की नाना रचनाओं को प्रकाश में लाकर उन्होंने सराहनीय कार्य किया है। इस श्रमसाध्य कार्य के लिए पवन जी निश्चित ही बधाई के पात्र हैं।