• लीक से हटकर मनाएं दीपावली

    वैसे तो दीवाली हिंदुओं का पर्व है और इसे अपने ही तरीकों रीति-रिवाजों और संस्कृति के अनुसार मनाने के लिए स्वतंत्र हैं उनके लिए राम का लौटना आज के दिन का बड़ा महत्व है

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    - घनश्याम बादल

    वैसे तो दीवाली हिंदुओं का पर्व है और इसे अपने ही तरीकों रीति-रिवाजों और संस्कृति के अनुसार मनाने के लिए स्वतंत्र हैं उनके लिए राम का लौटना आज के दिन का बड़ा महत्व है, रावण का वध करके जहां दशरथ पुत्र राम अयोध्या वापस आते हैं और बाद में उसे अपने राम राज्य से चमकाते धमकाते हैं  उसी तरह हम भी दीवाली के पर्व पर राम को महज दशरथ पुत्र राम की वापसी में नए जोड़कर कुछ इस तरह मनाएं की सत्य न्याय मर्यादा संस्कृति और अच्छाइयों का रामराज्य स्थापित हो सके।

    इस दिवाली पर क्यों ना हम मिट्टी के दीए जलाकर गरीब कुम्हारों के घर में दीवाली का प्रकाश भेजें जो बड़ी आशा से सड़कों पर बैठकर चाइनीस लड़ियों और दूसरे लकदक सामानों के बीच हमारी ओर आशा भरी निगाहों से निहारते रहते हैं । संपन्नता  का प्रदर्शन करना भारत में कभी भी अच्छा नहीं माना गया है । हम संपन्न हो लक्ष्मी पुत्र बनें इसमें कोई बुराई नहीं है क्योंकि संपन्नता, प्रगति और विकास की निशानी है। मगर, अगर हम अपने अड़ोस-पड़ोस की गंदी बस्तियों में रहने वाले गरीबों के चेहरों पर मुस्कान ले आएं, उनके कुछ बच्चों की फीस अपनी ओर से स्कूलों में जमा करा दें, उन्हें स्कूल यूनिफॉर्म दिलवा दें या उनकी बेटियों की शादी के लिए कुछ धन मुहैया करा दें अथवा उनकी औरतों के लिए घर में बैठकर करने लायक कोई काम दिलवा सकें तो शायद यह दीवाली, पिछली दीवालीं से कहीं अधिक चमकदार और चमत्कारी दीवाली बन जाएगी। 

    दीपमाला, दीपपर्व, दीपावली, दीवाली या कोई और नाम दें लें पर दीयों के प्रकाश का यह ऐसा पर्व है कहते न कहते बहुत कुछ कह जाता है। सच में देखें तो हर दीया यही तो संदेश देता है कि जीवन में सबके साथ हिलमिल कर रहने, खुशियों की रोशनी बांटने, सबके साथ, सबके जीवन में, सुख का  उजास भरने और सबको मधुरता का अहसास कराने का दूसरा नाम है दीवाली। अकेले आप कितना चमकें, कितना जलें पर दीवाली नहीं बन सकते। 

    यह समष्टि व व्यष्टि और देश व समाज तथा व्यक्ति की खुशहाली के उत्सव का महापर्व है। दीवाली का पर्व संदेश देता है कि जैसे हर व्यक्ति समाज के लिये है और समाज व्यक्ति के लिये वैसे ही दीया प्रकाश के लिए है और यदि वह प्रकाश बांटने में कोंई अवदान नहीं करता है तो महज मिट्टी का आग पका पिंड मात्र है, उसकी कोई अहमियत नहीं है।  इतना ही नही हिल-मिलकर रहने के संदेश के रूप में  दीया यह भी इंगित करता है कि उसकी महत्ता महज उसकी वजह से नहीं वरन बाती व तेल के कारण ही है। जब तक यें तीनों हिल-मिल कर रहते व कार्य करते हैं तभी तक समाज को रोशन कर सकते हैं तीनों एक दूसरे के बिना अपूर्ण और अधूरे हैं। साथ-साथ हों तब भी बात नहीं बनती उसके लिए भी अग्नि चाहिए तूलिका चाहिए यानि प्रकाश अपने आप में जीवन के पांच तत्वों को समेटे है जो प्रतीक रूप में जल, अग्नि, वायु, पृथ्वी व आकाश का  प्रतिनिधित्व करते हैं। 

    दीए, तेल बाती आग व तूलिका के रूप में। उसी तरह  हर तरह से सक्षम होने पर भी, समर्थ होने व प्रभा मंडल के बाद भी अगर हम देश समाज व जरूरत मंदो के लिए कुछ नहीं करते तो सब व्यर्थ है अर्थ होने पर भी अर्थ हीन है। पर क्या आज इस छिपे संदेश को हम पढ़ समझ पा रहे हैं? अगर समझते तो पटाखों पर धन फूंकते, खुशी अच्छी है पर किस कीमत पर ? जब एक तरफ भूख हो दरिद्रता हो, अशिक्षा हो तब लकदक रोशनी कर हम क्या सिद्ध करना चाहते हैं। बंधक पोटाश का धुआं फैलाकर पहले से ही खतरनाक स्तर पर पहुंच चुके प्रदूषण को और बढ़ा कर क्या दीवाली हो सकती है ? 

    दीपावली में 'पांच' का बड़ा महत्व है यह सृष्टि के पंचतत्वों, पंच पुण्यों, पंच विकारों, मिष्ठान्नों  व पांच दीयों से शुरू होने वाला पर्व है। कार्तिक मास की अमावस्या को हम समष्टि के प्रकाश का पर्व बना सकते हैं, मिल जुलकर पंचों के साथ रहने का संदेश दे सकते हैं। जैसे प्रकाश पर्व अकेला नहीं आता बल्कि अपने साथ पांच पर्व धनतेरस, रूपचतुर्दशी, दीपावली, गोवर्धन पूजा, तथा यमद्वितीया लेकर आता है। वैसे ही हम भी पांच सात सात्विक विचारों व गुणों को जोड़ कर, खुद दीए से बनकर दीवाली की रोशनी को कहीं ज्यादा सार्थक व चमकदार बना सकते हैं।  मिथकों में कहा जाता है कि इन पांचों पर्वों की पूजा से चंचला लक्ष्मी स्थिर रूप से उस घर में विराजती हैं जहां कम से कम पांच लोग मिलकर पूजा करते हैं। धन, यश, वैभव, ज्ञान व बुद्धि की प्राप्ति के लिए दीवाली मनाने का उल्लेख वेदों में मिलना बताया जाता है तो इससे भी सबक लें हम धर्म, मजहब, जातिवाद, संप्रदायवाद, क्षेत्रियतावाद, राजनीतिक संकीर्णता व सामाजिक कुरीतियों नष्ट कर अपनी लक्ष्मी को स्थिर करने का प्रण लें इस बार दीवाली पर और ऐसा कर लें तो यह दीवाली बरसों याद रहने वाले पर्व में बदल सकतीं है।

    वैसे तो दीवाली हिंदुओं का पर्व है और इसे अपने ही तरीकों रीति-रिवाजों और संस्कृति के अनुसार मनाने के लिए स्वतंत्र हैं उनके लिए राम का लौटना आज के दिन का बड़ा महत्व है, रावण का वध करके जहां दशरथ पुत्र राम अयोध्या वापस आते हैं और बाद में उसे अपने राम राज्य से चमकाते धमकाते हैं  उसी तरह हम भी दीवाली के पर्व पर राम को महज दशरथ पुत्र राम की वापसी में नए जोड़कर कुछ इस तरह मनाएं की सत्य न्याय मर्यादा संस्कृति और अच्छाइयों का रामराज्य स्थापित हो सके। इसके लिए हमें पहले तो अपने अंदर के ही उन रावण को मारना होगा जो लगातार हमारी नैतिकता उज्ज्वल चरित्र और अच्छे उन अच्छे विचारों को मार रहे हैं जिनकी आज बड़़ी जरूरत है उसके बाद हमें अपने मन की अयोध्या को ऐसे दीपों से उजियारना होगा जो न केवल हमारे अपने मन यानी व्यष्टि को ही जगमग करें अपितु अपनी तरह से दुनियाभर को इस भूमंडल को यानी समष्टि को भी आलोकित और चमकदार बना सके। 

    यूं तो दीवाली हर साल आती है, आती भी रहेगी और जाती भी रहेगी लेकिन हमें यह सोचना होगा कि क्यों उच्चतम न्यायालय को पटाखे जलाने की समय सीमा तय करनी पड़ती है या सरकार को उसे यह निर्देश देना पड़ता है कि वह प्रदूषण के स्तर को नियंत्रित करे।  इस दिवाली पर क्यों ना हम मिट्टी के दीए जलाकर गरीब कुम्हारों के घर में दीवाली का प्रकाश भेजें जो बड़ी आशा से सड़कों पर बैठकर चाइनीस लड़ियों और दूसरे लकदक सामानों के बीच हमारी ओर आशा भरी निगाहों से निहारते रहते हैं । संपन्नता  का प्रदर्शन करना भारत में कभी भी अच्छा नहीं माना गया है । हम संपन्न हो लक्ष्मी पुत्र बनें इसमें कोई बुराई नहीं है क्योंकि संपन्नता, प्रगति और विकास की निशानी है। मगर, अगर हम अपने अड़ोस-पड़ोस की गंदी बस्तियों में रहने वाले गरीबों के चेहरों पर मुस्कान ले आएं, उनके कुछ बच्चों की फीस अपनी ओर से स्कूलों में जमा करा दें, उन्हें स्कूल यूनिफॉर्म दिलवा दें या उनकी बेटियों की शादी के लिए कुछ धन मुहैया करा दें अथवा उनकी औरतों के लिए घर में बैठकर करने लायक कोई काम दिलवा सकें तो शायद यह दीवाली, पिछली दीवालीं से कहीं अधिक चमकदार और चमत्कारी दीवाली बन जाएगी। 

    हमें यह उम्मीद नहीं करनी चाहिए कि हर काम सरकार ही करेगी या स्वयंसेवी संस्थाएं ही सब कुछ बदल डालेंगे बल्कि जैसे एक छोटा सा दिया बिना इस बात की परवाह किए घनघोर अंधेरे में जलता है और थोड़ा बहुत जितना भी हो सकता है प्रकाश कर अंधकार को लगातार चुनौती देता है उसी तरह हम भी अपनी जिजीविषा और नेक कमाई के जरिए इस घने अंधेरे में एक दीपक बनकर चमक सकते हैं। सूरज ना सही जुगनू तो बन ही सकते हैं अब यह सोचना कि मेरे अकेले के कुछ कर लेने से भला क्या होने वाला है उचित नहीं है क्योंकि अगर हर दीया या लड़ी में लगा हुआ हर बल्ब, हर एक बल्ब यह सोचने लगे कि उस अकेले के जलने से क्या होगा तो फिर पूरी लड़ी भी नहीं जलेगी। उसी तरह एक मानव के रूप में, एक इकाई के रूप में, एक मनुष्य के रूप में हम जितना हमसे जितना बन पड़े उतना करें तो सचमुच यह दिवाली सफ़ल और सार्थक दिवाली बन जाएगी।

    दीवाली केवल प्रकाश पर्व ही नहीं अपितु मोक्ष एवं मुक्ति का पर्व भी है। आज के दिन जैन धर्म के 24 वें तीर्थंकर स्वामी महावीर जैन ने महानिर्वाण प्राप्त किया तो वहीं सिखों के दसवें गुरु गोविंद सिंह ने बंदी राजाओं को छुड़वा कर उन्हें मुक्ति दिलवाई यानी दीवाली मुक्ति पर्व भी है। आज के संदर्भ में क्यों न हम अपने अंदर के पांच विकारों काम, क्रोध, लोभ मद और मोह से मुक्ति पा लें और इनकी जगह पर अस्तेय और अपरिग्रह तथा दूसरे अच्छे गुणों को अपने अंदर समाविष्ट कर लें। अगर हम ऐसा कर पाए तो दीवाली इस तरह भी बहुत सार्थक दिवाली बन जाएगी।

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