नीले ड्रम की व्यथा
कहावत है कि गेहूं के साथ घुन भी पिस जाता है। अपराध कोई करता है, कसूरवार कोई ठहराया जाता है

- सुधाकर आशावादी
कहावत है कि गेहूं के साथ घुन भी पिस जाता है। अपराध कोई करता है, कसूरवार कोई ठहराया जाता है। ऐसे में न जाने कब किसके बुरे दिन आ जाएं। कौन सा व्यक्ति या वस्तु लाभ हानि जीवन मरण यश अपयश विधि हाथ के आध्यात्मिक सत्य का शिकार हो जाए। पहले से निर्धारित नहीं होता। कभी कभी ऐसी घटना घटित हो जाती है, जो किसी भी व्यक्ति या वस्तु को कलंकित करने आधार बनती है।
कहीं कोई आपराधिक वारदात घटित हुई और नीले ड्रम को खलनायक के रूप में प्रचारित कर दिया गया। किसी घटना में फ्रिज को हत्यारे के साथ षड्यंत्र में शामिल होने का इल्जाम सहना पड़ा। करता कोई है और अपराध के षड्यंत्र में अनेक ऐसे लोग शामिल कर लिए जाते हैं, जिनका घटना से कोई प्रत्यक्ष संबंध नहीं होता। मसलन घटना में प्रयुक्त हथियार किसने बेचे। किस डॉक्टर ने नींद की गोली खाने की सलाह दी, किस मेडिकल स्टोर ने अपराधियों को नशे की दवाइयां बेची। ऐसा नहीं है कि कोई वारदात पहली बार हुई हो। वारदात पहले भी होती रही हैं ।
हिंसक वारदातों में चाकू, छुरे, रिवाल्वर, बंदूक, तमंचे मुख्य भूमिका का निर्वाह करते रहे हैं, किंतु किसी ने भी चाकू या तमंचे को बदनाम नही किया। कौन नहीं जानता कि हिंसक वारदात में हाथ जोड़कर अनुनय विनय की कोई गुंजाईश नहीं होती।
हाथापाई भी खून खराबे में सक्रिय भूमिका नही निभा सकती। हाथापाई हल्की फुल्की गुम चोट तो दे सकती है, मगर मरहम पट्टी या इहलोक से परलोक का मार्ग तैयार करने में कारगर भूमिका तो धारदार हथियार ही निभाते हैं। वैसे भी मिलावटी खानपान के चलते पहले जैसे योद्धा अब नही रहे, जो शरीर की शक्ति से दुश्मन को छठी का दूध याद दिलाया करते थे। अब न दूध शुद्ध है और न शक्ति अटूट । सो चाकू छुरी और तमंचों पर निर्भरता अधिक बढ़ गई है।
अपराधी भी विश्वसनीय हथियारों पर ही भरोसा करता है। वह नए नए हथियार आजमाना नहीं चाहता। बहरहाल किस पर विश्वास करें, किस पर नहीं, यह समझना मुश्किल है। समाज में जिस प्रकार से अपराधों को अंजाम दिया जा रहा है। उससे लगता है कि दंपत्ति और परिवार में ही विश्वास करना आसान नहीं रह गया है। अब आस्तीन में सांप की अवधारणा समाप्त हो चुकी है। नाग नागिन और जहर भरा आचरण एक ही बिस्तर पर शयन करते हैं। डाइनिंग टेबल पर बैठकर अपनी अपनी पसंद के व्यंजनों का सेवन करते हैं।
संग संग रेस्तरां में जाकर वीडियो बनाकर सोशल मीडिया पर प्रसारित करके यह गीत गाते हैं कि जनम जनम का साथ है हमारा तुम्हारा, मगर उनके दिमाग में क्या चल रहा होता है, इसका अनुमान तप बड़े बड़े ज्योतिषाचार्य भी नहीं लगा सकते। कहीं किसी ने अपने किसी रिश्ते का $कत्ल किया और रिश्ते से जुड़ी देह को टुकड़ों में बांटकर ड्रम में भर दिया।
बात ड्रम में भरने तक ही सीमित रहती, तब भी गनीमत थी, ड्रम को सीमेंट के घोल से भर दिया गया। वारदात इससे भी अधिक नृशंस होती रही हैं, मगर जिस वारदात का खुलासा जितने अधिक भयावह ढंग से किया जाता है, उससे समाज में अलग संदेश जाता ही है , इस वारदात में जिस ड्रम में देह के टुकड़ों को जमाया गया, उस ड्रम नीला था। इसी प्रकार कुछ बड़े फ्रिज इस प्रकार की वारदात के उपरांत प्रयोग में लाए गए, किसी ने अपने लिव इन साझीदार को टुकड़े टुकड़े करके फ्रिज में जमाया, तो किसी ने अन्य किसी प्रकार से टुकड़ों का निस्तारण किया।
फ्रिज हो या नीले रंग का ड्रम, इन बेजान वस्तुओं की वारदात में भागीदारी भला कैसे संभव है, मगर बदनाम यही होते हैं। करनी कोई करे, बदनामी बेजान वस्तुओं की होती है। जब से किसी नीले ड्रम का प्रयोग देह के टुकड़ों को शरण देने में हुआ है, तब से बेचारे नीले ड्रम की जितनी अधिक मानहानि हो रही है, उतनी शायद ही किसी अन्य वस्तु की हुई हो। सवाल यह भी है कि यदि ड्रम का रंग नीला न होकर कुछ और होता, तब क्या उसकी भी इतनी मानहानि की जाती? वैसे भी नीले ड्रम का कसूर क्या है? यह भी चिंतन का विषय है।
बेचारा नीला ड्रम और फ्रिज अपनी मानहानि की शिकायत करे भी तो कैसे, उसके पास तो मानहानि की शिकायत करने का अधिकार भी नहीं है। फिर भी बात बात में सड़कों पर उतरने वालों से यह अपेक्षा की जानी ही चाहिए, कि वे बेजान वस्तुओं की मानहानि करने वालों के विरूद्ध भी अभियान चलाएं, ताकि कोई भी अपराधी निरीह बेजान वस्तुओं को अपने षड्यंत्र में शामिल करके उनकी भावनाओं को आहत करने का दुस्साहस न कर सके।


