• DAP खाद की हर साल क़िल्लत - लाईनों में लगा किसान झेले ज़िल्लत

    रबी सीजन में सरसों, गेहूं, आलू, चना, मटर, मसूर की बुवाई के लिए डाई अमोनियम फॉस्फेट (DAP) और एनपीके (NPK), सिंगल सुपर फॉस्फेट (SSP) और एमओपी की जरुरत होती है. इनमें सबसे ज्यादा जरूरत डीएपी की होती है, जो किसानों को बुवाई के वक्त जमीन में ही देना होता है

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    ग्वालियर: खरीफ और रबी दोनों ही फसलों के लिये DAP खाद अत्यन्त अनिवार्य है, लेकिन पिछले कई वर्षों में मध्यप्रदेश की BJP सरकार का इतिहास है कि इसके लिये हर साल किसानों को दर-दर भटकना, कई-कई दिनों तक लम्बी कतारों में लगना पड़ता है. यहाँ तक कि अन्नदाता को पुलिस के डण्डे ही नहीं, गोलियां तक खानी पड़ी हैं. अशोक नगर जिले में एक किसान ने 29 अक्टूबर 2021 को खाद की किल्लत के चलते आत्महत्या कर ली थी. ये और बात है कि प्रशासन ने आत्महत्या की वजह खाद की क़िल्लत को नहीं माना था. गौरतलब है कि मध्य प्रदेश के 51 जिलों में 70 फ़ीसदी से ज्यादा विधानसभा सीटें ग्रामीण क्षेत्रों से आती है. 230 में से 161 सीटों पर किसानों का प्रभाव है. किसान जिस पार्टी के पक्ष में वोट दे दे, उस पार्टी को सत्ता में आने से कोई नहीं रोक सकता है। य़ह कहना है कॉंग्रेस प्रवक्ता सुरेंद्र राजपूत का।  

    घोषणावीर की घोषणायें बनाम सच्चाई

    जून 2023 में मध्यप्रदेश सरकार के एक और बड़बोले कृषि मंत्री कमल पटेल (Kamal Patel) की ओर से दावा किया गया था कि किसानों को डीएपी यूरिया के लिए भटकना नहीं पड़ेगा, क्योंकि सरकार ने इस बार 25 से 30% अधिक भंडारण किया है. कमल पटेल जी के उस बयान के मुताबिक खरीफ और रबी की फसल में यूरिया डीएपी के लिए किसानों को हर साल दिक्कत का सामना करना पड़ता था, इसलिये उन्होंने यह निर्णय लिया कि डीएपी यूरिया को प्रदेश के अलग-अलग स्थानों पर भंडारित कर रखा जाए. इसके तहत सरकार द्वारा पूरी व्यवस्था के लिए सोसाइटी के माध्यम से खाद का वितरण कराया जाएगा और उनका ये दावा भी था किसी किसान को 20 किलोमीटर से अधिक दूरी भी तय नहीं करना पड़ेगी, क्योंकि उन्होंने मध्यप्रदेश में 250 से ज्यादा खाद वितरण केंद्र बना दिये हैं. 
     
    घोषणावीर मामाजी, जिन्हें अपनी लाड़ली बहनों की तरह ही इन 18 सालों में चार महीने पहले ही किसान भाईयों की याद आई है, और उनके बड़बोले मंत्री जी की घोषणा के बावजूद, सरसों की बुआई के साथ ही खाद के संकट ने एक बार फिर किसानों के माथे पर चिन्ता की गहरी लकीरें बना डाली हैं. हर साल की तरह, किसानों को फिर खाद के लिये इस बार भी बुरी तरह परेशान होना पड़ रहा है. टोकन मिलने के बावजूद, खाद नहीं मिल पा रही है. अब भी किसान सरसों की फसल के लिए डीएपी खाद नहीं मिलने से काफी परेशान हैं. कई किसान लाइन में लग रहे थे. उन्हें टोकन भी मिल जाता था, लेकिन जब वे खाद लेने जाते हैं तो बहाने बनाकर खाद वितरण केंद्र को बंद कर दिया जाता है.
     
    प्रदेश में डीएपी खाद का संकट मुरैना और भिंड जिले में सबसे ज्यादा है. जो कि केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के गृह क्षेत्र के ज़िले हैं. प्रशासन दावा कर रहा है कि पर्याप्त मात्रा में खाद आ रही है, लेकिन हकीकत यह है कि खाद के लिए किसानों में मारामारी मची है. जिस किसान को 10 बोरे डीएपी की जरूरत है, उसे दो बोरे मिल रहे हैं. डीएपी खाद के इस संकट के पीछे दो प्रमुख कारण सामने आए हैं - पहला, मांग की तुलना में मात्र 40 फीसद खाद जिले को मिलना. दूसरा, सरसों पर आई महंगाई. मुरैना व भिंड में सरसों की फसल बहुतायत में होती है. अभी सरसों की बोवनी का समय है, इसीलिए खाद के लिए किसान टूट पड़े हैं.
     
    सरसों की फसल की बोवनी का समय 10 से 30 अक्टूबर तक रहता है. जिला प्रशासन व कृषि विभाग ने सरकार को मुरैना के लिए 24500 टन डीएपी खाद की मांग भेजी गई थी. इसमें से अब तक मात्र नौ हजार 38 टन खाद ही मिली है. जिले के लिए यूरिया की मांग 54000 मीट्रिक टन भेजी है, जिसमें से केवल नौ हजार 865 टन यूरिया खाद ही मुरैना को मिली है. माँग और आपूर्ति में कमोबेश यही अंतर भिंड ज़िले में भी है, जहाँ जिले भर के किसानों के लिए डीएपी की पूर्ति करने के लिए 10000 मीट्रिक टन डीएपी की डिमांड जिला कलेक्टर की तरफ से उच्च अधिकारियों को भेजी गई है, लेकिन अब तक यह माँग पूरी नहीं हो सकी है.

    सरकार के मिस-मैनेजमेंट

    अमेरिकी व्यापार और वित्तीय सेवा कंपनी की मूडीज की सहायक कंपनी आईसीआरए (ICRA) की रिपोर्ट और आंकड़ों को देखने पर पता चलता है कि पिछले काफी समय से अंतरराष्ट्रीय मार्केट में फास्फेटिक उर्वरकों और उनके रॉ मैटेरियल की ज्यादा मांग और महंगे होने से भारत का गणित गड़बड़ाया हुआ है. उर्वरक मंत्रालय के अगस्त 2021 बुलेटिन के अनुसार साल 2020 में डीएपी का प्रति मीट्रिक टन रेट 336 यूएसडी (अमेरिकी डॉलर) था जो अगस्त 2021 में बढ़कर 641 मीट्रिक टन यूएसडी हो गया था। जो एक साल में 90.77 फीसदी की बढ़त दिखाता है. वहीं यूरिया 281 यूएसडी मीट्रिक टन से बढ़कर 513 यूएसडी हो गया जो 82.56 फीसदी की बढ़त थी. इसी अनुपात में पिछले दो - तीन वित्त वर्षों से भारत में DAP का स्टॉक कम होता गया है. सितंबर 2018 में देश में डीएपी का (systematic inventory) सुचारु भंडारण 4.8 मिलियन मीट्रिक टन था जो सितंबर 2019 में 6.6 एमएमटी था, सितंबर 2020 में ये 5.0 एमएमटी हुआ लेकिन सितंबर 2021 में ये महज 2.1 मिलियन मीट्रिक टन बचा, जो 2020 की अपेक्षा 58.69 फीसदी कम था और ये
    कमी तभी से निरंतर बनी हुई है.
     

    भाजपा केंद्र सरकार की औंचक नीतियों से उत्पन्न कारण

    DAP की कमी के कुछ महत्वपूर्ण केंद्रीय कारण हैं, जो भाजपा सरकार की असंतुलित और औंचक ढुलमुल जनविरोधी नीतियों से उपजे हैं, जो इस प्रकार हैं:

    • पहला कारण रेल ट्रांसपोटेशन है. देश में सबसे ज्यादा सबसे ज्यादा फर्टिलाइजर ट्रेन से जाता है, (कुल सप्लाई का करीब 80 फीसदी) लेकिन पिछले दिनों ज्यादातर ट्रेनें प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना का अनाज पहुंचाने में लग जाती हैं और फिर ऊपर से कोयले की किल्लत भी बनी रही है.

    • दूसरा कारण है कालाबाज़ारी. चूँकि भारत में उर्वरक दो तरह से सप्लाई किए जाते हैं - सोयासटी या कॉपरेटिव के माध्यम से दूसरा खुले मार्केट के हवाले. हालांकि दोनों ही जगहों पर किसानों को डीएपी-एनपीके लेने के लिए आधार कार्ड आदि काग़ज़ी कार्रवाई करनी पड़ती है, लेकिन कालाबाज़ारी भी इसका स्याह सच है. उर्वरक का मार्केट 2020-21 वित्त वर्ष से ही उठापटक वाला है. सरकार रबी और खरीफ सीजन के लिए कंपनियों को कोटा आवंटित करती है, फिर सप्लाई होती है. इसी कालाबाज़ारी के कारण एक तो रबी सीजन में माल समय पर नहीं पहुंचता है, दूसरा जहां पहुंचे भी, तो वहां मार्केट वाले हिस्से में माल दबाकर रख लिया जाता है और फिर उसकी कालाबाजारी होती है.

    • तीसरी वजह वो डीजल की कीमतों में बढ़ोतरी के चलते ट्रक ट्रांसपोटेशन है. देश में ज्यादातर माल ट्रेन से तो जाता है लेकिन रैक से उसे ट्रक ही ले जाते हैं. कई जगह तो आज भी रैक उतरने की सुविधा नहीं है. डीजल महंगा हुआ तो ट्रांसपोटर्स ने सस्ती ढुलाई की तरफ रुख किया क्योंकि ट्रक चलाने में जो खर्च आता है, उसमें 70 फीसदी डीजल होता है. बाकी में टोल टैक्स (मध्यप्रदेश में ‘मामा टैक्स’) और रास्ते का करप्शन होता है, जो इन दिनों बेतहाशा बढ़ा है. ट्रांसपोर्ट सेक्टर डिमांड और सप्लाई पर चलता है.

     
    शोचनीय बात तो ये है कि पिछले कुछ सालों से DAP की बढ़ती हुई माँग के पैटर्न से पूरी तरह वाक़िफ़ होते हुए भी सरकार किसानों की इस समस्या का स्थायी समाधान नहीं ढूँढ सकी है.
     

    ख़रीफ़ के समय बिजली की कटौती - बनी किसान के लिए पनौती

    बिजली कम्पनी के अधिकारियों के पिछले वर्ष से ज़्यादा बिजली देने के दावों से परे हक़ीक़त यह है कि मध्यप्रदेश के कई ज़िलों के किसानों के सामने पहली बार ये हालात बने, कि ख़रीफ़ की फसलों को बचा पाने की जद्दोजहद करते समय हुई बिजली की कटौतियों के कारण वे अपनी आंखों के सामने फसल बर्बाद होते देखते रहे, लेकिन कुछ कर भी नहीं पाये. खेतों के नलकूपों में पानी तो था, लेकिन बिजली नहीं मिलने के कारण सिंचाई नहीं कर पाये. किसानों का कहना है कि सिंचाई की बिजली में कटौती कर सरकार ने उन्हें बर्बाद करने का काम किया है. सितम्बर 2023 की खबरों के अनुसार मध्य प्रदेश के रुठे मानसून और कम बारिश के बाद ऊर्जा विभाग ने बिजली सप्लाई में कटौती का प्लान जारी कर के किसानों का टेंशन बढ़ा दिया और इसके तहत किसानों को जहाँ सिंचाई के लिए केवल 7 घंटे बिजली मिली, वही 24 घंटे के अंतराल में 17 घंटे कटौती की गयी, जबकि उस से पहले 10 घंटे बिजली मिलती थी। यानि बमुश्किल तीन से चार घंटे बिजली मिली थी और इतने कम समय में एक बीघा खेत की सिंचाई भी मुश्किल से हो पाई थी. बिजली और पानी की किल्लत के चलते जिले की जनता त्राहिमाम करने लगी लेकिन न तो जिले के अधिकारियों ने उनकी समस्याओं पर ध्यान दिया और न ही जनप्रतिनिधियों ने उन्हें इस संकट से उबारने में मदद की! किसानों की बिजली की समस्या की गम्भीरता और पीड़ा को देखते हुए कमलनाथ जी ने तब शिवराज सरकार के लिये ट्वीट कर लिखा था कि:
     
    “प्रदेश में इस बार भीषण सूखे की स्थिति बन रही है.प्रदेश के अधिकांश हिस्से में कम वर्षा हुई है. जलाशयों में पानी पूरी तरह से नहीं भर पाया है. फसलें सूख रही हैं. प्रदेश की अधिकांश किसान आबादी इससे सीधी प्रभावित हो रही है. मैं मुख्यमंत्री से मांग करता हूं कि वह ‘उत्सव मोड’ से बाहर आएं और तत्काल सर्वे कार्य शुरू कर किसानों को राहत देने की व्यवस्था शुरू करें. कल मुख्यमंत्री का जो बयान सामने आया, वह चुनौती का सामना करने से अधिक आपदा को अवसर में बदलने की चालबाजी जैसा प्रतीत हुआ. प्रदेश की जनता ने पूर्व में भी देखा है कि शिवराज सरकार आपदा को अपने हित में अवसर में बदल लेती है, और जनता के लिए संत्रास पैदा करती है. जनता को झूठे वादों की नहीं, सच्चे इरादों की जरूरत है”.
     

    शिवराज सरकार की लापरवाहियों के कारण मध्यप्रदेश में हमारे अन्नदाताओं की परिस्थितियाँ कुछ ऐसी हैं कि

    • पिछले पांच सालों में मध्य प्रदेश में 1226 किसानों ने आत्महत्या की है.

    • मध्य प्रदेश में हर तीसरे दिन एक किसान आत्महत्या कर रहा है. किसानों की आत्महत्या के ये आंकड़े बता रहे हैं कि मध्य प्रदेश में किसानों की स्थिति चिंताजनक है।

    • मध्यप्रदेश के 8,97,208 किसानों को किसान सम्मान निधि से वंचित कर दिया गया है

     
    इधर काँग्रेस अपने वचन पत्र में किसानों के गेहूँ और धान की अधिक MSP, ऋण माफ़ी के अलावा 5 हॉर्स पॉवर तक के सिंचाई के पम्प का बिजली बिल पूरी तरह माफ़ करने का और 12 घंटे सिंचाई की बिजली और सिंचाई के लिए निशुल्क बिजली - पानी उपलब्ध कराने, ‘मेरा - खेत मेरा ट्रांसफ़ॉर्मर’ योजना को दोबारा चालू कर ख़राब ट्रांसफ़ॉर्मर्स बदलने के अभियान को वरीयता का वचन दे रही है और उधर किसानों से जुड़े गम्भीर मुद्दों पर भी भाजपा राजनीति से बाज़ नहीं आ रही है. मीडिया वीर मोदीजी की तस्वीरें अब खाद की बोरियों पर भी थोप दी गई हैं, जो आचार संहिता का सीधा उल्लंघन है।

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