मुख्यमंत्री शिवराज पर ही भारी पड़ गया एक निलंबित अधिकारी, कोर्ट से ले आया स्टे

यहां दिलचस्प बात यह है कि छिंदवाड़ा जिले में सीएमएचओ के पद पर पदस्थ डॉक्टर जीसी चौरसिया को मुख्यमंत्री ने एक बार नहीं बल्कि दो बार मंच से सस्पेंड किया था, लेकिन दोनों बार डॉक्टर चौरसिया हाई कोर्ट से स्थगन ले आए

Deshbandhu
गजेन्द्र इंगले
Updated on : 2022-12-22 04:26:04

गजेन्द्र इंगले

भोपाल/ जबलपुर: मध्य प्रदेश में इन दिनों मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान मंच से ही अधिकारियों को सस्पेंड करने का फरमान सुना रहे हैं और सुर्खिया भी बटोर रहे हैं। उनके द्वारा इस तरह से सस्पेंड एक अधिकारी उनपर भारी पड़ गया। शिवराज द्वारा सस्पेंड छिंदवाड़ा जिले के मुख्य चिकित्सा और स्वास्थ्य अधिकारी जीसी चौरसिया ने अपने सस्पेंशन आदेश को हाई कोर्ट में चुनौती दी। जबलपुर हाई कोर्ट ने सुनवाई के बाद आज बुधवार को चौरसिया के सस्पेंशन पर रोक लगा दी है।

यहां दिलचस्प बात यह है कि छिंदवाड़ा जिले में सीएमएचओ के पद पर पदस्थ डॉक्टर जीसी चौरसिया को मुख्यमंत्री ने एक बार नहीं बल्कि दो बार मंच से सस्पेंड किया था, लेकिन दोनों बार डॉक्टर चौरसिया हाई कोर्ट से स्थगन ले आए। पहली बार 22 सितंबर को एक जनसभा के दौरान मुख्यमंत्री को शिकायत मिली कि जिले में आयुष्मान कार्ड नहीं बनाए जा रहे हैं। इससे नाराज होकर सीएम ने सीएमएचओ जीसी चौरसिया को सस्पेंड कर दिया था। डॉक्टर चौरसिया ने सीएम के आदेश को हाई कोर्ट में चुनौती दी। इस पर सुनवाई के बाद हाई कोर्ट ने सीएम के इस आदेश पर रोक लगा दी।

दूसरी बार 9 दिसंबर को फिर से मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने छिंदवाड़ा में आयोजित जन सेवा अभियान के दौरान मंच से सीएमएचओ डॉक्टर चौरसिया को सस्पेंड करने का फरमान सुना दिया। इस बार भी सीएमएचओ ने मुख्यमंत्री के आदेश को हाई कोर्ट में चुनौती दी। सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता डी के त्रिपाठी ने हाई कोर्ट में कहा कि विभाग ने उनके निलंबन पर किसी भी तरह का ठोस तर्क नहीं दिया है। मुख्यमंत्री द्वारा भी निलंबन करने की यह प्रक्रिया उचित नहीं है। उन्हें बेवजह निलंबित किया जा रहा है।

इस घटना में दो बार निलंबित अधिकारी के पक्ष में दिए न्यायालय के फैंसले से बड़ा प्रश्न खड़ा हो रहा है। मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान मंच से जिस तरह अधिकारियों-कर्मचारियों को सस्पेंड कर रहे है क्या वह नियम विरुद्ध हैं? जबलपुर हाई कोर्ट द्वारा इस मामले में स्थगन देने से यह सवाल खड़ा हुआ है। अब यदि कोर्ट में शासन कोई ठोस आधार नहीं रख पाया तो मुख्यमंत्री कैसे इन अधिकारियों को भ्रस्टाचार में लिप्त बता रहे हैं ।

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