• विज्ञापनों में हिन्दी

    विश्वभाषा हिन्दी का व्यापक प्रयोग, जनसंचार-माध्यमों की आज अनिवार्य आवश्यकता बन गई है।

    Share:

    facebook
    twitter
    google plus
    दर्शनसिंह रावत
    विश्वभाषा हिन्दी का व्यापक प्रयोग, जनसंचार-माध्यमों की आज अनिवार्य आवश्यकता बन गई है। हिन्दी के बिना हिन्दुस्तान में जन-जन तक पहुंचना संभव नहीं है। शब्द भण्डार, व्याकरण और साहित्य सभी दृष्टियों से अत्यन्त समृध्द, प्राचीन भाषा हिन्दी का आज के इस अर्थप्रधान युग में महत्वपूर्ण स्थान है।
    आधुनिक जनसंचार के प्रमुख माध्यम आकाशवाणी, दूरदर्शन, फिल्में, समाचार-पत्र, पत्रिकाएं एवं इंटरनेट हैं। इन माध्यमों में विज्ञापन का विशेष स्थान है, हिन्दी में विज्ञापनों ने इन माध्यमों को नई जीवन्तता प्रदान की है।
    हिन्दी में हर वर्ष सैकड़ों फिल्में मुम्बई, चैन्नई एवं कोलकाता में बनती हैं एवं टेलीविजन हेतु सैकड़ों हिन्दी धारावाहिकों का निरंतर निर्माण किया जा रहा है। उपग्रह चैनलों एवं इंटरनेट पर भी हिन्दी का निरंतर व्यापक प्रयोग हो रहा है। अंग्रेजी के कई चैनल भी अब हिन्दी का प्रयोग बड़े पैमाने पर करके सम्पन्न हो रहे हैं।
    विज्ञापन जनसंपर्क की सर्वोत्तम विधा है। विज्ञापन अंग्रेजी शब्द 'एडवरटाईजिंग' लैटिन शब्द 'एडभर' पर आधारित है, जिसका अर्थ है मस्तिष्क को अपनी तरफ आकर्षिक करना। विज्ञापन किसी संस्थान की छवि-निर्माण में सहायक होता है। उसके उत्पाद के विषय में जनसमर्थन जुटाने में भी योगदान करता है। विज्ञापन वही सफल माना जाता है, जो ग्राहक के मन में आकर्षण तथा वस्तु को खरीदने की अदम्य आकांक्षा तथा भावना जगा देता है।
    जनसंचार के माध्यम में हिन्दी
    जनसंचार के माध्यम के रूप में हिन्दी का प्रयोग कोई नई बात नहीं है, परन्तु स्वतन्त्रता के बाद हिन्दी भाषा का प्रयोग राजभाषा तथा प्रयोजनमूलक हिन्दी के रूप में निरन्तर विकासमान है। जनसामान्य को उपयोगी सूचनाएं एवं खबरेें देने के लिए सदियों से सरकार एवं व्यापारी वर्ग इसी भाषा का प्रयोग करते हैं। आमजन तक सन्देश हिन्दी में प्रसारित किए जाते हैं।
    विज्ञापन में शब्द की भूमिका
    विज्ञापन की सफलता के लिए उसकी भाषा रोचक, स्पष्ट, सरल तथा आम बोलचाल की भाषा-जैसी हो, ताकि सामान्यजन एवं सम्बन्धित ग्राहक उसे समझ सकें। विज्ञापन में वस्तु का विवरण, उपयोग-विधि, अन्य उत्पाद के मुकाबले श्रेष्ठता, खरीद पर मिलनेवाली रियायतें, उचित मूल्य का विवरण स्पष्ट शब्दों में दिया जाना चाहिए।
    विज्ञापन की भाषा अलग-अलग माध्यम के लिए भिन्न हो सकती है, जैसे अखबार, पत्रिकाओं, आकाशवाणी व दूरदर्शन के लिए अलग-अलग तरह से लिखा जाता है।
    आकाशवाणी पर मौखिक विज्ञापन
    वाणी पर आश्रित होते हैं, जिसमें स्वरों का आरोह-अवरोह, शब्दों की विभिन्न भंगिमाएं, भाषा का लचीला गठन आवश्यक उपकरण हैं। दृश्य-श्रव्य माध्यम ने विज्ञापनों को अत्यधिक कलात्मक बना दिया है। इसकी आकर्षण प्रस्तुतिकरण ने विज्ञापन-कला को नये धरातल दिये हैं। सबसे बड़ी विशेषता यह है कि हिन्दी की व्यापकता, सरलता ने विज्ञापन-व्यवसाय को नई-नई ऊंचाइयां प्रदान की है।
    विज्ञापन लेखन-कला और साहित्य
    विज्ञापन-लेखन एक कला है। विज्ञापन-लेखक को उपभोक्ताओं की आर्थिक, सामाजिक सांस्कृतिक पृष्ठभूमि की जानकारी आवश्यक है।  कौन -सा उत्पाद किस सामाजिक वर्ग के लिए है, उसकी शैक्षिक, राजनैतिक, धार्मिक, आर्थिक स्थिति क्या है? आदि बातें ध्यान में रखकर विज्ञापन लिखा जाता है।
    विज्ञापन-लेखक की भाषा पर पूर्ण अधिकार होता है एवं विज्ञापन में भाषा ही प्रमुख तत्व है। भाषा ही हमारे चिन्तन, भावबोध तथा सम्प्रेषण का अंतिम साधन है। हम न केवल भाषा के सहारे सोचते हैं, अपितु समझते-समझाते भी हैं। भाषा ही हमारे स्मृतिकोश का एक मुख्य आधार है।
     हिन्दी भाषा का इस क्षेत्र में एक नये सिरे से प्रयोग हो रहा है, इससे हिन्दी के शब्दों का सामर्थ्य बढ़ा है। उन्हें अपूर्व आयाम भी दिये हैं। साहित्यिक प्रयोगों से विज्ञापन में एक नवीनता, एक आकर्षक समावेश हो रहा है। हिन्दी अब साहित्य के दायरे से निकलकर व्यवहार-मूलक क्षेत्रों में भी अपनी विजय पताका फहरा रही है।
    विज्ञापनों में हिन्दी
    आजकल हिन्दी विज्ञापन-जगत् पर छाई हुई। हिन्दी, मीडिया के बल पर धीरे-धीरे समृद्ध होकर विश्वभाषा बनने जा रही है। आज टेलीविजन पर कई धारावाहिक मनोरंजनप्रधान हैं। टेलीविजन कम्पनियों में मनोरंजनप्रधान और सूचनाप्रधान कार्यक्रम दिखाने की होड़ मची हुई है तथा सभी व्यावसायिक कम्पनियां अपने उत्पदों का विज्ञापन हिन्दी में देने को आतुर हैं। विश्व के सुप्रसिद्ध रेडियो स्टेशन बी बी सी, लन्दन, वायस ऑफ अमेरिका, रेडियो सिलोन, जर्मन रेडियो स्टेशन एवं विश्व के अन्य रेडियो स्टेशनों एफएम पर हिन्दी में विज्ञापनों का निरन्तर प्रसारण किया जाता रहा है।
    हिन्दी में विज्ञापन रचनात्मक एवं शैली प्रधान होते हैं, विज्ञापन की भाषा सुगम, सरल एवं पठनीय होती है, वाक्य छोटे एवं बोलचाल की भाषा में आमतौर पर प्रचलित होते हैं।
    भाषा के पद तुकान्त, चुस्त, संक्षिप्त होते हैं। शब्दों के उच्चारण द्वारा नाटकीयता उभारी जाती है, इसके द्वारा थोड़े से शब्दों में श्रोता, पाठक तक अपना सन्देश पहुंचाया जाता है। विज्ञापनों में हिन्दी का प्रयोग, हिन्दी समाचार-पत्रों की स्थापना के समय से होने लगा था, अत: अब इनकी भाषा में स्थिरीकरण, शुद्धता एवं निखार आता गया है।
    विज्ञापनों की हिन्दी में प्राय: लोकप्रिय उपमाओं, अंलकारों, मुहावरों, कहावतों, तुकबन्दियों का पर्याप्त प्रयोग कर आकर्षक बनाया जाता है।
    विज्ञापनों की भाषा में संवादात्मकता, नाटकीयता आदि का प्रचुर मात्रा में प्रयोग होने लगा है। पद्यात्मक तुकान्त एवं लयात्मक भाषा से विज्ञापन आकर्षक लगते हैं। उपभोक्ता को तरह-तरह के प्रलोभनों द्वारा आकर्षित किया जाता है।
    हिन्दी में प्राय: मौलिक लेखन के बजाय अंग्रेजी-विज्ञापन के अनुवाद का कार्य अधिक होता था, इसी लिए कई बार अटपटे विज्ञापन भी देखने को मिलते हैं, परन्तु अब आर्थिक दबाव के कारण हिन्दी को ज्यादा-से-ज्यादा महत्व मिल रहा है।
     हिन्दी में अंग्रेजी का मिश्रण कर घोला जा रहा है। भाषा के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है। हिन्दी भाषा को जहां तोड़ा-मरोड़ा जा रहा है, वहीं उसे संवारा भी जा रहा है। अब ये विज्ञापन हिन्दी का पश्चिमी जगत् से परिचय करा रहे हैं। विज्ञापन की भाषा आकर्षक, प्रभावोत्पादक एवं जीवन्त होती है, इसलिए इससे उपभोक्ता आकृष्ट होता है। इसमें स्मरणयोग्य वाक्यांश, पद-बन्ध, सूत्र-निबद्ध वाक्य के कारण हिन्दी का व्यापक प्रचार-प्रसार व विकास किया जा रहा है, इससे हिन्दी की सम्प्रेषणीयता बढ़ती जा रही है, यह विश्वभाषा बनने जा रही है।
    (साभार :राष्ट्रभाषा संदेश)

    Share:

    facebook
    twitter
    google plus

बड़ी ख़बरें

अपनी राय दें