अमृतसर। अंतरराष्ट्रीय संगठन यूनेस्को ने पीतल और तांबे की धातुओं के हाथों से बर्तन बनाने की सदियों से चली आ रही कला को लुप्त होने से बचाने का बीड़ा उठाया है। अमृतसर के जिला जंडियाला गुरु में ठठेरे सदियों से पीतल और तांबे के बर्तनों को हाथों से तैयार करते हैं।
यह कला अब विलुप्त होने के कगार पर है जिसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने के लिए यूनेस्को ख़ास परियोजना ‘यूनेस्को इंटैनजिबल कल्चरल हेरिटेज लसिट’ द्वारा जंडियाला गुरु की बर्तन बनाने की इस कला को उत्साहित करने के साथ अंतरराष्ट्ररीय स्तर पर इसका प्रचार और प्रसार करेगा। विलुप्त हो रही कलाओं और विरासत को सँभालने के प्रोजेक्ट तहत काम करने वाले दिल्ली के श्रीराम काॅलेज और यूनाइटेड सिख संस्था से जुड़ी डाली सिंह, कीर्ति गोयल और उनके अन्य साथी कल जिला उपायुक्त कमलदीप सिंह संघा से मिले। बैठक के दौरान उन्होंने जंडियाला गुरु की परियोजना बारे विस्तार से चर्चा की । डाॅली ने बताया कि यूनेस्को द्वारा विरासतों और लुप्त हो रही कलाओं को सँभालने के लिए जो प्रयत्न किये जा रहे हैं उसमें जंडियाला गुरु के ठठेरों की कला को भी शामिल किया गया है।
यूनेस्को की तरफ से जंडियाला गुरू में ठठेरों द्वारा हाथों से तांबे और पीतल के बर्तन बनाने की कला को उत्साहित किया जायेगा जिससे यह कला और भी अागे बढ़ सके। उन्होंने जिला प्रशासन से इस कार्य के लिए सहयोग की मांग की।
संघा ने प्रोजैक्ट टीम को हर तरह की मदद का भरोसा दिलाते हुए कहा कि यह बहुत सम्मान वाली बात है कि अमृतसर जिले की कला को अंतरराष्ट्ररी स्तर पर उत्साहित करने के लिए यूनेस्को की तरफ से प्रयत्न किये जा रहे हैं।
उन्होंने कहा कि प्रसासन की तरफ से इस परियोजना में हर तरह की सहायता और सहयोग किया जायेगा। श्री संघा ने कहा कि इस कला को प्रोत्साहित करने से ठठेरों के परिवारों के जीवन स्तर में सुधार होगा। इस कार्य में लगे ठठेरों को पुरातन कला से माँग अनुसार पाँच सितारा होटलों आदि के बर्तनों और सजावटी समान तैयार करने के लिए उत्साहित किया जायेगा। जिससे उनकी आय में बढ़ोतरी होगी। खरीददारों द्वारा कच्चा माल उपलव्ध करवा कर आर्डर पर माल तैयार करवाने के प्रयास किए जाएंगे।
संघा ने कहा कि चाहे इस कला से जुड़े ठठेरों के कुछ ही परिवार रह गए है लेकिन ऐसी कोशिशों के कारण यह परिवार अपनी कला को पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ा सकेंगे। उल्लेखनीय है कि जंडियाला गुरु पूरे देश में पीतल और तांबे के हाथों से तैयार किए बर्तनों के लिए अपनी अलग पहचान रखता है। यहाँ हाथ से बर्तन बनाने वाले बहुत ही बढ़िया कारीगर हैं और इनका यह काम पीढ़ियों से चलता आ रहा है।
कारीगर पानी की गागर, परात, डोंघे, पतीले, तांबे की बड़ी देग और अन्य पीतल और तांबे के बर्तन बडे ही आकर्षक तरीके से बनाते हैं। समय की मार इस कला पर भी पड़ी है और अब बहुत कम परिवार इस कला में हैं।