• छत्तीसगढ़ में सुरक्षाबलों की कार्रवाई से लगातार सिमट रहा है नक्सलियों का प्रभाव

    छत्तीसगढ़ में भारतीय सुरक्षा बलों के साथ मुठभेड़ में कम से कम 16 माओवादियों की मौत हुई है. बीते कुछ महीनों में सुरक्षा बलों ने माओवादियों के खिलाफ अभियान तेज कर दिया है. इसके नतीजे में सैकड़ों माओवादियों की मौत हुई है

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    छत्तीसगढ़ में भारतीय सुरक्षा बलों के साथ मुठभेड़ में कम से कम 16 माओवादियों की मौत हुई है. बीते कुछ महीनों में सुरक्षा बलों ने माओवादियों के खिलाफ अभियान तेज कर दिया है. इसके नतीजे में सैकड़ों माओवादियों की मौत हुई है.
    पुलिस ने बताया है कि शनिवार को छत्तीसगढ़ के सुकमा जिले के जंगलों में शनिवार को हुई मुठभेड़ में माओवादियों की मौत हुई है. सुरक्षाबलों ने जंगलों में माओविदियों के छिपे होने की खबर पाने के बाद वहां छापा मारा था. समाचार एजेंसी एएफपी को सुकमा जिले के पुलिस प्रमुख पी सुंदरराज ने बताया, "हमें अब तक 16 माओवादियों के शव मिले हैं." उनका कहना है कि यह संख्या बढ़ सकती है. सुंदरराज के मुताबिक खबर लिखे जाने तक मुठभेड़ जारी थी. सुरक्षाबलों ने माओवादियों के पास से बड़ी संख्या में रॉकेट और ग्रेनेड लॉन्चर, असॉल्ट राइफल और दूसरे हथियार बरामद किए हैं.

    पिछले साल माओवादियों के खिलाफ सुरक्षाबलों के अभियान में 287 माओवादी मारे गए. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक इनमें सबसे ज्यादा माओवादियों की मौत छत्तीसगढ़ में हुई थी. दशकों से चले आ रहे नक्सल आंदोलन में अब तक 10,000 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है. नक्सली इसे समाज में हाशिए पर मौजूद गरीब लोगों की लड़ाई बताते हैं. माओवादी यहां जमीन, रोजगार और इलाके के प्राकृतिक संसाधनों में स्थानीय लोगों की हिस्सेदारी के लिए हिंसक आंदोलन चला रहे हैं.

    "लाल गलियारा"
    भारत के पूर्वी और दक्षिण हिस्से में उन्होंने काफी अंदर तक समुदायों में अपनी पहुंच बना ली है. 21वीं सदी के पहले दशक में खासतौर से उनकी ताकत बहुत तेजी से बढ़ी और इसके साथ ही हिंसा और समस्या की गंभीरता और बढ़ती चली गई. जब यह आंदोलन अपने शीर्ष पर था तब माना जाता है कि विद्रोहियों की संख्या15-20 हजार तक पहुंच गई थी, माना जाता है कि छत्तीसगढ़ में कुल मिलाकर सक्रिय माओवादियों की संख्या अब 3-4 हजार तक रह गई है. भारत के करीब एक तिहाई जिलों के बराबर की जमीन पर ये सक्रिय थे. इनकी प्रभाव वाले इलाके को "लाल गलियारा" के नाम से जाना जाता था.

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    बीते सालों में भारत सरकार ने दसियों हजार सुरक्षाबलों को इस "लाल गलियारे" में तैनात किया है. जगह जगह पुलिस थाने बनाए गए हैं और इनके खिलाफ कार्रवाई के साथ ही स्थानीय स्तर पर विकास के कामों में भी तेजी आई है. सड़क, बिजली और स्वास्थ्य केंद्रों के साथ ही सुरक्षाबलों की मौजूदगी ने स्थानीय लोगों को इनके प्रभाव क्षेत्रों से बाहर निकाला है.

    सुरक्षाबलों की कार्रवाई में सैकड़ों माओवादियों की मौत हुई है और इनके प्रभाव क्षेत्र बीते सालों में काफी सिमटा है. बहुत से इलाकों में लोगों नेचुनावों में हिस्सा लेकर वहां राजनीतिक प्रक्रिया को भी मजबूत करने में योगदान दिया है.

    गृहमंत्री की डेडलाइन
    गृहमंत्री अमित शाह ने 31 मार्च 2026 तक नक्सलियों का पूरी तरह सफाया करने की बात कही है और इसके लिए बीते कुछ सालों में सुरक्षाबलों का अभियान तेज किया गया है. स्थानीय पत्रकार और लंबे समय से नक्सल आंदोलन को कवर कर रहे नरेश मिश्रा बताते हैं कि सरकारी अभियानों का काफी असर हुआ है. उन्होंने डीडब्ल्यू से कहा, "अब इसे भय कहिए या फिर सरकार के प्रति भरोसा लेकिन स्थानीय लोग भी नक्सलियों के प्रभाव से कुछ मुक्त हुए हैं. पुलिस से भी उन्हें सहयोग मिल रहा है.“

    बीते ढाई सालों में ही छत्तीसगढ़ में सुरक्षाबलों के 40 से ज्यादा कैंप स्थापित किए गए हैं. इनकी वजह से स्थानीय लोगों में सुरक्षा का अहसास बढ़ा और नक्सलियों का प्रभाव सिमटा है. सुरक्षाबलों की कार्रवाई के चलते इलाके की अर्थव्यवस्था पर भी जो माओवादियों का नियंत्रण था वह भी अब खत्म हो चुका है. पुलिस यह सुनिश्चित करती है कि उनके बाजार लगें और लोगों के रोजमर्रा के जरूरी काम सामान्य रूप से चलते रहें.

    मिश्रा ने बताया, "सुकमा, नारायणपुर और बीजापुर इन तीन जिलों में ही नक्सलियों का अब ज्यादा प्रभाव है, बाकी कांकेर, दंतेवाड़ा, गरियाबंद और राजनंदगांव में उनका कुछ असर है जबकि कोंडागांव और बस्तर उनके प्रभाव से पूरी तरह मुक्त हो चुके हैं.“ उन्होंने यह भी कहा कि बीते वर्षों फेक इनकाउंटर जैसी घटनाओं में कमी आई है और पुलिस अभियानों में मरने वाले ज्यादातर लोग हार्डकोर नक्सली हैं, "यह बात तो अब माओवादी कैडर भी मान रहे हैं कि पुलिस का निशाना बने लोग नक्सली ही हैं."

    प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के तीसरी बार सत्ता संभालने के बाद माओवादियों के खिलाफ सरकार की कार्रवाई में और तेजी आई है. इस साल अब तक 110 से ज्यादा माओवादी मारे जा चुके हैं. इसी महीने दो अलग अलग मुठभेड़ों में 30 माओवादियों की मौत हुई.

    इससे पहले फरवरी में भी एक ही दिन 32 माओवादी सुरक्षाबलों की कार्रवाई में मारे गए. माओवादियों के हमले में सुरक्षाबलों ने भी नुकसान उठाया है. जनवरी में सड़क किनारे हुए एक बम धमाके में सुरक्षाबल के 9 जवानों की मौत हुई थी. इसी तरह 2010 में छत्तीसगढ़ के जंगल में घात लगा करक किए हमले में 76 अर्धसैनिक बल के जवानों की मौत हुई थी. यह भारतीय सुरक्षाबलों की माओवादियों के किसी एक हमले में हुई अब तक की सबसे ज्यादा सुरक्षाबलों की मौत की संख्या है.

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