अमेरिका में हुए एक अध्ययन में सामने आया है कि घरेलू कामों में पुरुषों की हिस्सेदारी कुछ बढ़ी है. हालांकि महिलाएं अब भी पुरुषों से कहीं ज्यादा काम कर रही हैं.
समाजविज्ञानी लंबे समय से यह समझने की कोशिश कर रहे हैं कि घर के कामों में महिलाओं और पुरुषों की हिस्सेदारी कितनी बदली है. 2003-2023 के अमेरिकी टाइम यूज सर्वे के नए आंकड़े बताते हैं कि घरेलू कामों में महिलाओं और पुरुषों के बीच का अंतर कम हुआ है, लेकिन अब भी बड़ा फासला बना हुआ है.
अमेरिका में शादीशुदा महिलाएं हमेशा से खाना बनाने, सफाई करने और कपड़े धोने जैसे कामों में ज्यादा समय लगाती रही हैं. एटीयूएस के आंकड़े बताते हैं कि अब यह स्थिति बदल रही है. 2003-2005 में शादीशुदा महिलाएं हर हफ्ते औसतन 18.5 घंटे घर के कामों में लगाती थीं, जबकि पुरुष सिर्फ 10.1 घंटे. 2022-2023 तक यह अंतर थोड़ा घटा. महिलाएं अब 17.7 घंटे और पुरुष 11.2 घंटे घर के काम कर रहे हैं. अंतर कम हुआ है, लेकिन महिलाएं अब भी पुरुषों से 1.6 गुना ज्यादा घरेलू काम कर रही हैं. टोरांटो यूनिवर्सिटी में समाजशास्त्री मेलिसा मिल्की और यूनिवर्सिटी ऑफ वेस्टर्न ओंटारियो की समाजशास्त्री मिला कोल्पाशनिकोवा ने अपनी टीम के साथ मिलकर इन आंकड़ों का विश्लेषण किया है.
पुरुषों की बढ़ती भागीदारी
खाना बनाना, सफाई करना और कपड़े धोना पारंपरिक रूप से महिलाओं के काम माने जाते हैं. लेकिन इसमें बदलाव दिख रहा है. 2003-2005 में शादीशुदा महिलाएं इन कामों में 4.2 घंटे लगाती थीं, जबकि पुरुष सिर्फ एक घंटा. 2022-2023 तक यह अनुपात घटकर 2.5:1 हो गया. यानी अब पुरुष पहले से ज्यादा इन कामों में हाथ बंटा रहे हैं.
खाना बनाने में दोनों की भागीदारी बढ़ी है. महिलाएं 2003-2005 में हर हफ्ते 4.9 घंटे खाना बनाती थीं, जो 2022-2023 तक 5.5 घंटे हो गया. पुरुषों का खाना बनाने का समय 1.6 घंटे से बढ़कर 2.5 घंटे हो गया. कपड़े धोना अब भी महिलाओं के जिम्मे ज्यादा है, लेकिन बदलाव यहां भी दिखा. पहले महिलाएं हफ्ते में 3 घंटे कपड़े धोती थीं, अब यह घटकर 2.2 घंटे हो गया है. वहीं, पुरुषों का समय 0.3 घंटे से दोगुना बढ़कर 0.6 घंटे हो गया.
बच्चों की देखभाल में अब भी बड़ा अंतर
घर की जरूरतों की खरीदारी कभी महिलाओं की जिम्मेदारी मानी जाती थी. लेकिन अब इसमें महिला-पुरुष की भागीदारी लगभग बराबर हो गई है. 2003-2005 में महिलाएं 6 घंटे हर हफ्ते खरीदारी में लगाती थीं, जो 2022-2023 तक घटकर 4.4 घंटे हो गया. पुरुषों का खरीदारी का समय ज्यादा नहीं बदला. वे औसतन 3.6 से 3.8 घंटे हर हफ्ते इसमें लगाते रहे हैं.
बच्चों की देखभाल में हालांकि अब भी बड़ा अंतर है. 2003 में महिलाएं पुरुषों से दोगुना समय बच्चों की देखभाल में लगाती थीं. 2023 तक यह अंतर थोड़ा घटा, लेकिन अब भी महिलाएं 1.8 गुना ज्यादा समय बच्चों को देती हैं. दिलचस्प बात यह है कि पिछले दो दशकों में महिलाएं और पुरुष, दोनों ही अपने बच्चों के साथ ज्यादा समय बिताने लगे हैं.
समाजशास्त्रियों का मानना है कि यह सब सोच में बदलाव के कारण हुआ है. इस स्टडी में पाया गया कि कम घरेलू काम करने वाली महिलाओं की संख्या बढ़ी है, खासतौर पर पढ़ी-लिखी और युवा महिलाओं में. लेकिन पुरुषों की हिस्सेदारी बढ़ने का कारण सिर्फ यह नहीं है. अब समाज में ‘महिलाओं के काम' का मतलब बदलने लगा है. हालांकि वर्क-लाइफ बैलेंस में महिलाओं की हिस्सेदारी अब भी बहुत कम है.
कोरोना महामारी का असर
कोरोना महामारी ने भी घरेलू कामों के बंटवारे को प्रभावित किया. लॉकडाउन के दौरान पुरुष और महिलाएं, दोनों ही घर के कामों और बच्चों की देखभाल में ज्यादा समय देने लगे. 2023 तक महिलाएं फिर से पहले जैसी स्थिति में आ गईं, लेकिन पुरुषों की भागीदारी पहले से ज्यादा बनी रही. यह बताता है कि कई पुरुषों ने घरेलू कामों की आदत डाल ली है और उसे बनाए रखा है.
हालांकि घरेलू कामों में अब भी बड़ा अंतर है, लेकिन कई समाजशास्त्री इसे सकारात्मक बदलाव मानते हैं. टोरंटो विश्वविद्यालय की समाजशास्त्री मेलिसा मिल्की कहती हैं, "पुरुष अब महिलाओं के काम कर रहे हैं. यह उम्मीद देने वाली बात है."
यूनिवर्सिटी ऑफ वेस्टर्न ओंटारियो की समाजशास्त्री मिला कोल्पाशनिकोवा का मानना है कि भले ही बदलाव धीमा हो, लेकिन इससे समाज में गहरी सांस्कृतिक बदलाव की झलक मिलती है. वे कहती हैं, "आप इसे धीमी प्रगति के रूप में देख सकते हैं, लेकिन इसे एक सकारात्मक बदलाव के रूप में भी देखा जा सकता है."
एटीयूएस डेटा दिखाता है कि शादीशुदा पुरुष घरेलू कामों में पहले से ज्यादा भाग ले रहे हैं. खासकर खाना बनाने और सफाई करने जैसे कामों में उनकी हिस्सेदारी बढ़ी है. लेकिन अब भी बड़ा अंतर बाकी है, खासकर बच्चों की देखभाल और कपड़े धोने जैसे कामों में. 2023 में संयुक्त राष्ट्र ने एक रिपोर्ट जारी की थी जिसके मुताबिक 5 से 14 बरस की लड़कियां अपनी उम्र के लड़कों के मुकाबले घर के कामों में 40 फीसदी ज्यादा वक्त गुजारती हैं. इसका सीधा असर उनकी खेल कूद और पढ़ाई आदि उन गतिविधियों पर पड़ता है जो शारीरिक और मानसिक विकास के लिए जरूरी हैं. संयुक्त राष्ट्र की ओर से जारी एक रिपोर्ट में कहा गया है कि घर के कामों में लड़कियां लड़कों से 16 करोड़ घंटे ज्यादा बिताती हैं.
यह बदलाव महिलाओं की बढ़ती शिक्षा, सामाजिक सोच में बदलाव और कामकाजी महिलाओं की संख्या बढ़ने के कारण हुआ है. हालांकि अगर घरेलू कामों में बराबरी चाहिए, तो सिर्फ सामाजिक सोच ही नहीं, कार्यस्थलों की नीतियों और परिवारों की भूमिका भी बदलनी होगी. बदलाव धीरे-धीरे हो रहा है, लेकिन यह रुक नहीं रहा है. भविष्य में पुरुषों की भागीदारी और बढ़ सकती है और घरेलू जिम्मेदारियां सिर्फ महिलाओं की जिम्मेदारी नहीं रह जाएंगी.