एक नई रिपोर्ट में दावा किया गया है कि मेटा, गूगल, एमेजॉन जैसी बड़ी टेक कंपनियां महिलाओं के यौन एवं प्रजनन स्वास्थ्य से जुड़ी जानकारियों और विज्ञापनों को या तो अस्वीकार कर देता है या फिर उनकी पहुंच सीमित कर देता है.
मेनोपॉज, पीरियड्स, गर्भपात, पीरियड के दौरान इस्तेमाल होने वाले प्रोडक्ट या फिर महिला स्वास्थ्य से जुड़े कई दूसरे शब्द, विज्ञापन और पोस्ट अब मेटा, गूगल, एमेजॉन जैसे प्लैटफॉर्म पर बेहद कम नजर आने लगे हैं. एक नई रिपोर्ट दिखाती है कि इन सभी बड़ी टेक कंपनियों ने इन्हें धीरे धीरे सेंसर करना शुरू कर दिया है, खासकर उन बीमारियों और जानकारियों को जो महिलाओं के यौन और प्रजनन स्वास्थ्य से जुड़ी हैं.
यौन और प्रजनन अधिकारों पर काम करने वाली संस्था 'सेंटर फॉर इंटिमेसी जस्टिस' की हालिया में यह बात सामने आई है. अमेरिका की यह संस्था इस मुद्दे से जुड़ी जानकारियों को इंटरनेट पर सेंसर किए जाने के खिलाफ लड़ रही है.
क्या कहती है रिपोर्ट
रिपोर्ट इन मुद्दों पर काम कर रही 159 गैर सरकारी संस्थाओं और 180 देशों के कॉन्टेंट क्रिएटरों के अनुभवों के आधार पर तैयार की गई है. इसमें उन क्रिएटरों को शामिल किया गया जो सोशल मीडिया के जरिए यौन और प्रजनन स्वास्थ्य पर जागरूकता फैलाते हैं.
रिपोर्ट में सामने आया कि मेटा ने इन गैर सरकारी संस्थाओं के 63 फीसदी ऐसे कॉन्टेंट को हटा दिया. वहीं 76 फीसदी संस्थाओं के विज्ञापनों को स्वीकार नहीं किया.
वहीं, एमेजॉन ने 64 फीसदी ऐसे प्रॉडक्ट को अपनी लिस्ट में शामिल नहीं किया और 34 फीसदी अकाउंट को बंद कर दिया. बात अगर गूगल की करें तो उसने 66 फीसदी विज्ञापनों को मंजूरी नहीं दी और 58 फीसदी ऐसे ही विज्ञापनों पर उम्र का हवाला देते हुए रोक लगा दी.
सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म टिकटॉक पर भी कुछ ऐसे ही हालात देखने को मिले. जहां 55 फीसदी ऐसे कॉन्टेंट को हटाया गया और 48 फीसदी विज्ञापनों को अस्वीकृति मिली.
मेटा ने फैक्ट-चेकिंग प्रोग्राम बंद किया, 'मुक्त अभिव्यक्ति' को बताया मकसद
जागरूकता विज्ञापनों पर रोक लेकिन सेक्सवर्धक दवाओं के विज्ञापनों को बढ़ावा
हैरानी की बात यह है कि इन बड़ी टेक कंपनियों ने स्तन कैंसर और यौन हिंसा से जुड़े जागरूकता विज्ञापनों तक को शामिल नहीं किया. लेकिन एक चौंकाने वाला तथ्य इस रिपोर्ट में यह भी सामने आया कि पुरुषों के लिए सेक्सवर्धक दवाओं के विज्ञापन पर रोक नहीं लगाई गई.
खासकर तब जब अकसर इन विज्ञापनों को भ्रामक माना जाता रहा है. साथ ही इनमें से कई पोस्ट और विज्ञापनों में महिलाएं भी थीं लेकिन इन्हें मंजूरी दे दी गई.
रिपोर्ट में शामिल गैर सरकारी संस्थाओं के कर्मचारियों ने बताया कि उन्हें बिना किसी अग्रिम सूचना दिए ये प्लैटफॉर्म या तो उनकी पोस्ट हटा देते हैं या सीधा उनके अकाउंट ही बंद कर देते हैं. कई बार उनकी जानकारी को वयस्कों के लिए बनी श्रेणी में डाल दिया जाता है जिससे उनकी पहुंच सीमित हो जाती है.
वहीं, मेटा पीरियड में इस्तेमाल होने वाले प्रोडक्ट जैसे टैंपन, मेंस्ट्रुअल कप जैसी चीजों को सेक्सुअल की श्रेणी में डाल देता. यहां तक कि ब्रेस्ट पंप को भी इसी श्रेणी में शामिल किया गया है.
मेनोपॉज पर सामाजिक वर्जना तोड़ने चलीं जर्मन महिला सांसद
सेंसरशिप के खिलाफ यूरोपीय संघ पहुंची फेमटेक कंपनियों
महिलाओं के यौन और प्रजनन स्वास्थ्य से जुड़ी जानकारियों पर सेंसरशिप ना सिर्फ सामाजिक नुकसान कर रही है बल्कि इसके कारण फेम टेक कंपनियों को आर्थिक नुकसान भी उठाना पड़ रहा है. इसलिए हाल ही में यूरोप की छह ऐसी कंपनियों ने इस सेंसरशिप के खिलाफ यूरोपीय संघ में शिकायत दर्ज की है.
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक फेमटेक स्टार्टअप कंपनियों ने अपनी शिकायत में कहा है कि मेटा, गूगल, ऐमजॉन और लिंक्डइन जैसी बड़ी कंपनियां महिला स्वास्थ्य से जुड़ी जानकारियों को सेंसर कर जन स्वास्थ्य, महिला उद्यमियों को नुकसान पहुंचा रही हैं.
यह सेंसरशिप इतनी गंभीर हो चुकी है कि इससे निपटने के लिए ब्रिटेन में 'सेनहरशिप/Cenhership' नाम की एक अलग संस्था ही बना दी गई है. इस संस्था ने 2024 में अपना अभियान शुरू किया था.
खुद से गर्भपात की कोशिश कर रही हैं अमेरिका की औरतें
यूरोपीय संघ में शिकायत दर्ज करने वाली कंपनियों में यह संस्था भी शामिल है. इनका कहना है कि वे कंपनियां जो यौन स्वास्थ्य और महिलाओं के स्वास्थ्य पर काम कर रही हैं उन्हें इसकी आर्थिक सजा दी जा रही है. अगर उनके काम पर रोक जा रही तो महिला स्वास्थ्य के क्षेत्र को बेहतर बनाना उनके लिए मुमकिन नहीं होगा.
फेमटेक कंपनियों ने जांच की मांग करते हुए कहा है कि यूरोपीय संघ इन कंपनियों की जवाबदेही तय करे और उनकी जिम्मेदारी भी कि वे कॉन्टेंट के मामले में पारदर्शिता बनाए रखें. टेक कंपनियों पर यह भी आरोप लगाया गया है कि फेमटेक कंपनियों के प्रति उनकी नीतिया भेदभावपूर्ण हैं. इन नीतियों, विज्ञापनों पर प्रतिबंध या उन्हें वयस्क श्रेणी (एडल्ट कैटेगरी) में डालने के कारण ये संस्थाएं अपनी पूंजी गंवा रही हैं.
बदलते राजनीतिक नेतृत्व के कारण बढ़ रहे हैं प्रतिबंध?
यौन और प्रजनन स्वास्थ्य पर काम करने वाली अंतरराष्ट्रीय संस्था इप्सॉस की कम्यूनिकेशन निदेशक ने इस रिपोर्ट में कहा है कि टेक कंपनियां सेंसरशिप के जरिये यह जताना चाहती हैं कि उनकी संस्था जागरूकता नहीं बल्कि भ्रम फैला रही है, और ऐसा करके वे लोगों को उनके शारीरिक और स्वास्थ्य अधिकारों से दूर कर रही हैं.
कई संस्थाओं के कर्मचारियों ने यह भी कहा कि कई बार गूगल मैप से उनके संस्थान का पता ही हटा दिया गया. विशेषकर वे कंपनियां जो गर्भपात संबंधी सेवाएं देती हैं. 'केयरफेम' नाम की संस्था के साथ ऐसा ही हुआ. यहां की कर्मचारी स्टेसी कावाकामी ने बताया कि वॉशिंगटन में मौजूद उनके हेल्थकेयर सिस्टम का पता गूगल मैप से हटा दिया गया. इससे जरूरतमंद लोगों को अपॉइंटमेंट लेने या उन तक पहुंचने में काफी मशक्कत करनी पड़ी.
कई संस्थाएं इसे बदलते वैश्विक राजनीतिक परिदृश्य से जोड़कर भी देख रही हैं. उदाहरण के तौर पर, अमेरिका में राष्ट्रपति ट्रंप ने कई ऐसे विभागों को बंद करने का आदेश दिया जो लैंगिक समानता और विविधता पर काम कर रही थीं. इन आदेशों का असर सोशल मीडिया कंपनियों की नीतियों पर भी देखने को मिला जब एप्पल और गूगल कैलेंडर से इन मुद्दों से जुड़े विशेष दिनों को हटाया गया.
कंपनियों का कहना है कि वे इस डर से कि कब एमेजॉन उनका अकाउंट बंद कर ये या सोशल मीडिया पर उनकी पहुंच प्रतिबंधित कर दी जाए, वे अपनी कंपनियों का विस्तार करने से बचती हैं.