जर्मनी के कार उद्योग के लिए तो चीन बड़ा खतरा बन ही गया है. इसके अलावा, वह जर्मनी के केमिकल और इंजीनियरिंग सेक्टर के सामने भी चुनौती पेश कर रहा है.
जर्मनी का पूरा इंडस्ट्रियल सेक्टर एक बड़ी चुनौती का सामना कर रहा है. हाई-टेक निर्माण में दुनिया भर में सबसे आगे रहने वाला जर्मनी पिछले पांच साल से लगातार गिरावट देख रहा है. लंदन के सेंटर फॉर यूरोपियन रिफॉर्म (सीईआर) की एक रिपोर्ट के अनुसार यह गिरावट 55 लाख नौकरियों और देश की 20 फीसदी जीडीपी को खतरे में डाल सकती है.
रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण जर्मनी को रूसी तेल और गैस पर अपनी निर्भरता कम करनी पड़ी. जिससे ऊर्जा कीमतें बढ़ गई और केमिकल और स्टील जैसे उद्योगों को भारी नुकसान हुआ. इसके अलावा, कोरोना महामारी की वजह से जर्मनी के निर्यात की मांग भी कम हो गई.
इसका एक बड़ा कारण चीन का तेजी से टेक्नोलॉजी और हाई-टेक मैन्युफैक्चरिंग में आगे बढ़ना भी है. चीनी सरकार ‘मेड इन चीन 2025' योजना के तहत दुनिया में एडवांस मैन्युफैक्चरिंग और टेक्नोलॉजी लीडर बनना चाहता है.
उच्च-गुणवत्ता उद्योग में बढ़ते चीनी कदमों से जर्मनी को नुकसान
साल 2000 के शुरुआत में जब चीन ने छोटी-टेक्नोलॉजी वाले उत्पाद जैसे इलेक्ट्रॉनिक्स, घरेलू उपकरण और कपड़ा उद्योग के विकास पर ध्यान केंद्रित किया था, तब इसका जर्मनी पर ज्यादा असर नहीं पड़ा था. लेकिन अब चीन की औद्योगिक नीति जर्मनी के मुख्य क्षेत्रों जैसे ऑटोमोबाइल, स्वच्छ ऊर्जा और मैकेनिकल इंजीनियरिंग पर भारी पड़ रही है.
जेडी वैंसः यूरोप को चीन और रूस नहीं अपनी नीतियां से खतरा
कील इंस्टिट्यूट फॉर वर्ल्ड इकॉनमी के अंतरराष्ट्रीय व्यापार और निवेश शोध समूह के प्रमुख होल्गर ग्यॉर्ग ने डीडब्ल्यू को बताया, "चीन कई उद्योगों में जर्मनी के बराबर आ चुका है... वह इन क्षेत्रों में बहुत मजबूत हो गए हैं.. और यह जर्मनी की पिछड़ती अर्थव्यवस्था का एक बड़ा कारण है."
जर्मनी और चीन की बढ़ती प्रतिस्पर्धा कार उद्योग में साफ देखी जा सकती है. जर्मन कार कंपनियों की आलोचना हो रही है कि वह नई तकनीकों पर तेजी से काम नहीं कर रही, इलेक्ट्रिक वाहनों की ओर धीमी गति से बढ़ रही हैं और एसएआईसी मोटर कॉर्पोरेशन और बीवायडी जैसी चीनी कंपनियां की वजह से बढ़ते खतरे को वह भाप नहीं पाई. जिस कारण जर्मनी में हजारों नौकरियों और कई घरेलू कारखानों पर खतरा मंडरा रहा है.
जर्मनी के केमिकल और इंजीनियरिंग सेक्टर पर भारी दबाव
चीन केमिकल सेक्टर में भी तेजी से आगे बढ़ रहा है. चीन की बड़ी केमिकल कंपनियों ने हाल के वर्षो में पॉलीइथाइलीन और पॉलीप्रोपाइलीन जैसे उत्पादों का उत्पादन इतना बढ़ा दिया है कि पूरी दुनिया में केमिकल सप्लाई बढ़ गई है और बीएएसफ जैसी जर्मन कंपनियों के मुनाफे की दर घट गई है.
जर्मनी के सबसे महत्वपूर्ण बाजार, यूरोपीय संघ में भी चीन की केमिकल कंपनियों का दबदबा बढ़ रहा है. हान्डेल्सब्लाट रिसर्च इंस्टिट्यूट के अनुसार 2013 से 2023 के बीच यूरोप में चीन का केमिकल निर्यात 60 फीसदी बढ़ा जबकि इसी दौरान जर्मनी का निर्यात 14 फीसदी गिर गया.
उच्च गुणवत्ता और सटीकता के लिए मशहूर जर्मनी के मैकेनिकल इंजीनियरिंग सेक्टर को भी चीन कड़ी टक्कर दे रहा है. 2013 से 2023 के बीच जर्मनी के औद्योगिक मशीनों के निर्यात 15.2 फीसदी तक गिर गया, जबकि चीन का हिस्सा 14.3 फीसदी से बढ़कर 22.1 फीसदी हो गया.
सब्सिडी से चीनी कंपनियों को होता है फायदा
जर्मनी के उद्योगों के लिए मुश्किलें इसलिए भी बढ़ रही हैं क्योंकि चीनी सरकार अपनी कंपनियों को भारी सब्सिडी देती है. जिससे चीनी कंपनियां कम लागत में बड़े पैमाने पर उत्पादन कर पाती हैं. लेकिन इस कारण पश्चिमी कंपनियों के लिए उनके साथ प्रतिस्पर्धा करना मुश्किल हो जाता है.
एक अनुमान के अनुसार, 2019 में चीन ने अपने उद्योगों को करीब 242 अरब डॉलर की सब्सिडी दी थी. अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष की 2022 की रिपोर्ट के अनुसार चीन ने यह सहायता मुख्य रूप से केमिकल, मशीनरी, ऑटोमोबाइल और मेटल उद्योगों को दी गई थी.
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जर्मन इंजीनियरिंग फेडरेशन की चीन मैनेजिंग डायरेक्टर क्लाउडिया बारकोव्स्की ने जर्मन अखबार हान्डेल्सब्लाट को बताया कि जर्मन मशीनरी कंपनियों के लिए चीन से मुकाबला करना कठिन है. उन्होंने कहा, "चीनी कंपनियां बहुत कम दामों पर मशीनें बेच रही हैं, कभी-कभी 50 फीसदी या उससे भी सस्ती."
जर्मन चैंबर ऑफ कॉमर्स इन चाइना के एक सर्वे के अनुसार चीन में काम करने वाली आधे से ज्यादा जर्मन कंपनियां मानती हैं कि अगले पांच सालों में चीनी कंपनियां इनोवेशन में उनसे आगे निकल जाएंगी.
क्या जर्मनी ने चीन की महत्वाकांक्षाओं को हल्के में लिया?
सीईआर रिपोर्ट के सह-लेखक ब्रैड जेत्सर ने डीडब्ल्यू से कहा कि चीन के हाई-टेक निर्यात "एक दिन में विकसित नहीं हो गए." उन्होंने कहा, "जर्मन उद्योग चीन के दिए झटके से कैसे बचेगा? जर्मनी की सरकारों ने यह पहले क्यों नहीं देखा और अपनी नीतियों में बदलाव क्यों नहीं किया?"
अर्थशास्त्रियों का कहना है कि जर्मनी को अपने व्यापार, औद्योग और वित्तीय नीतियों को नए आर्थिक हालात के अनुसार ढालना होगा. अगर ऐसा नहीं किया गया तो जर्मनी वैश्विक मैन्युफैक्चरिंग शक्ति में अपना नेतृत्व खो सकता है.
ग्यॉर्ग का मानना है, "आर्थिक दृष्टिकोण से देखे तो इन उद्योगों में फिर से दबदबा बनाने की कोशिश करना फायदेमंद नहीं है. बल्कि जर्मनी को उन क्षेत्रों पर ध्यान देना चाहिए जहां वह अभी भी मजबूत है जैसे दवाइयां और बायोटेक्नोलॉजी इत्यादि.”
टैरिफ से चीन को रोका जा सकता है
सीईआर रिपोर्ट में सुझाव दिया गया कि जर्मनी की अगली सरकार को चीन पर दबाव बनाना चाहिए कि वह अपनी अर्थव्यवस्था को बढ़ाने के लिए बाहरी निर्यात के बजाय घरेलू उपभोग पर केंद्रित करे. रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि जर्मनी को यूरोपीय संघ के व्यापारिक सुरक्षा उपायों का इस्तेमाल करके भारी सब्सिडी वाले चीनी उत्पाद जैसे इलेक्ट्रिक वाहन और विंड टरबाइन पर टैरिफ बढ़ाना चाहिए.
अमेरिकी "काउंसिल ऑन फॉरन रिलेशंस” (सीएफआर) के वरिष्ठ विशेषज्ञ ब्रैड जेत्सर के अनुसार, "जर्मनी को अपने ऑटोमोबाइल और हाई-टेक मशीनों के लिए नए बाजार की जरूरत है और यूरोप इसका सबसे बड़ा बाजार हो सकता है.”
जर्मनी में नीति-निर्माताओं और उद्योग जगत के रणनीतिकारों के बीच इस पर गंभीर मंथन चल रहा है कि आखिर जर्मनी अपनी औद्योगिक बढ़त कैसे खो बैठा और अब आगे क्या किया जाना चाहिए.
जर्मनी को ‘माइंडसेट शिफ्ट' की जरूरत
ओटो बाइसहाइम स्कूल ऑफ मैनेजमेंट में इनोवेशन और कॉरपोरेट ट्रांसफॉर्मेशन के अध्यक्ष सेरडान ओसकान का मानना है कि जर्मनी के नेताओं और बिजनेस सेक्टर को तेजी से बदलती दुनिया के साथ तालमेल बिठाने के लिए अपनी सोचने के तरीके में बदलाव लाने की जरूरत है.
ओसकान का कहना है कि जर्मन सरकार गंभीर प्रतिस्पर्धा से डरती है और कई बार ऐसी कंपनियों को जरूरत से ज्यादा समर्थन देती है, जो अब प्रतिस्पर्धा में टिकने लायक भी नहीं हैं.
ओसकान ने डीडब्ल्यू को बताया कि जबकि चीन का तरीका इससे बिल्कुल अलग है. वह "डार्विनियन अप्रोच" पर चलते है. जिसमें नई कंपनियों को खुलकर बाजार में उतारा जाता है, भले ही वह फेल हो जाएं. इसमें जो कंपनियां टिक पाती हैं, वह बहुत मजबूत होकर उभरती हैं.
उम्मीद की जा रही है कि जर्मनी की बुनियादी ढांचे पर एक ट्रिलियन यूरो खर्च करने की निवेश योजना, धीमी अर्थव्यवस्था को गति देगा और सरकार की ऋण सीमा को भी संतुलित करने में मदद करेगा.
कुछ विशेषज्ञों को चिंता है कि डिफेन्स और बुनियादी ढांचे पर खर्च करने के कारण जर्मनी तेजी से बढ़ते उद्योगों में निवेश करने का मौका गंवा सकता है.
ग्यॉर्ग ने डीडब्ल्यू को बताया कि इस बजट का एक बड़ा हिस्सा सैन्य खर्च के लिए है. लेकिन अगर सही तरीके से इस पैसे का निवेश किया जाए, तो जर्मनी रक्षा क्षेत्र में निवेश के जरिए अन्य उद्योगों, जैसे एडवांस टेक्नोलॉजी और अनुसंधान को भी आगे बढ़ावा दे सकता है.
जर्मनी अन्य क्षेत्रों में अभी भी मजबूत
ग्यॉर्ग का मानना है कि "जर्मनी रिसर्च एंड डेवलपमेंट, पेटेंट और नई तकनीकों के विकास में बहुत आगे है. जर्मनी इसे विकसित करके बेचने में अभी भी सबसे आगे है, उसे इस क्षेत्र में और निवेश करना चाहिए.” वहीं ओसकान का मानना है कि नई पीढ़ी के सीईओ मौजूदा उद्योग की चुनौतियों को ज्यादा अच्छी तरह समझते हैं और वह तेजी से बदलाव कर सकते हैं. उन्होंने एसएपी के 44 वर्षीय सीईओ क्रिश्चियन क्लेन का उदाहरण दिया, जिन्होंने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस को जल्द अपनाकर अपनी कंपनी के मूल्य को 70 फीसदी तक बढ़ा दिया.
ओसकान ने बताया कि अब कार निर्माता सिर्फ अन्य कार कंपनियों से प्रतिस्पर्धा नहीं कर रहे हैं, बल्कि वह टेनसेंट (चीनी वीडियो गेम कंपनी) से मुकाबला कर रहे हैं. उन्होंने इस उदाहरण से टेक कंपनी की ओर इशारा किया, जो ईवी तकनीक में भी निवेश कर रही है. उनका मानना है कि भविष्य में कैंसर जैसी बीमारियों का इलाज पारंपरिक दवा कंपनियों की बजाय एआई कंपनियां खोज सकती हैं.