• शिक्षिका स्लेस्टीना गरीब बच्चों की अभिभावक भी

    पेण्ड्रा ! गांव की गरीबी तथा अभाव में पली-बढ़ी गांव की लडक़ी को शिक्षिका की नौकरी मिली तो उसने अपने परिवार सहित गांव के गरीब बच्चों को पढ़ाने लिखाने की मुहिम ही छेड़ दी।

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    अक्षय नामदेव
    खुद गरीबी में पली-पढ़ीं, अब वेतन से उठाती हैं गरीब बच्चों की पढ़ाई का खर्च

    पेण्ड्रा !  गांव की गरीबी तथा अभाव में पली-बढ़ी गांव की लडक़ी को शिक्षिका की नौकरी मिली तो उसने अपने परिवार सहित गांव के गरीब बच्चों को पढ़ाने लिखाने की मुहिम ही छेड़ दी। अपने वेतन का ज्यादातर हिस्सा वह गरीब आदिवासी बच्चों के पढ़ाई लिखाई रहन-सहन, खान-पान में खर्च कर देती हैं। वह गरीबों की मसीहा तो नहीं पर मसीहा से कम भी नहीं। न जाने कितने ही आदिवासी बच्चों को अपने खर्चे पर पढ़ाया-लिखाया और उनकी नौकरी लगाने में मदद की। सरकार और समाज आज भले ही उन्हें कोई पुरस्कार न दें, परंतु आदिवासियों के बीच शिक्षा की अलख जगाने में उनके योगदान की चर्चा सभी करते हैं।
    उनका नाम स्लेस्टीना एक्का है, जिन्हे आदिवासी बच्चों के बीच में एक्का मैडम के नाम से जाना-पहचाना जाता है। स्लेस्टीना एक्का पेण्ड्रा विकासखण्ड के आदिम जाति कल्याण विभाग कन्या मा.शाला कुडक़ई में प्रधान पाठक के पद पर पदस्थ हैं। छ.ग. के दूरस्थ आदिवासी अंचल जशपुर जिले के फरसाबहार विकासखण्ड के पोकपानी गांव में एक गरीब आदिवासी किसान अगस्तुस एक्का की बेटी स्लेस्टीना एक्का पांच भाई-बहनों में सबसे बड़ी है। गांव की गरीबी और अभाव वाले वातावरण में प्राथमिक एवं मिडिल स्कूल की शिक्षा पूरी करने के बाद तपकरा स्थित स्कूल से हायर सेकेण्डरी की परीक्षा उत्तीर्ण कर जशपुर के कॉलेज से बी.ए. की परीक्षा की तैयारी कर ही रही थी, कि अचानक 1980 में सहायक शिक्षक के पद के लिये आदिम जाति कल्याण विभाग में भर्ती निकली और वे सहायक शिक्षक के पद पर विकासखण्ड पेण्ड्रा के गांव में पदस्थ हुई। जिन दिनों स्लेस्टीना एक्का की सहायक शिक्षक की पद पर नौकरी लगी, उन दिनों घर में गरीबी चरम पर थी। किसान परिवार में पली-बढ़ी स्लेस्टीना एक्का ने नौकरी मिलने के साथ ही भाई-बहनों को पढ़ाना-लिखाना शुरू किया, और एक-एक करके उन्होंने अपने परिवार एवं गांव के अनेक गरीब आदिवासी लडक़े-लड़कियों को अपने घर में लाकर पढ़ाना-लिखाना षुरू किया। उनके मार्गदर्शन में अनेक गरीब आदिवासी बच्चे शिक्षा की मुख्यधारा से जुडक़र अपने पैर पर खड़े हुये। गांव के गरीब बच्चों को उनके घर से लाकर अपने घर में रखना उनके भोजन वस्त्र इत्यादि में अपने वेतन की ज्यादातर राशि खर्च कर देना, स्लेस्टीना एक्का तथा स्वयं अभावों में भी शांत धीर गम्भीर बने रहना तथा अपने कार्यो के लिये किसी की कोई मदद न लेते हुये स्वयं तकलीफ का सामना करते हुये भी इसे व्यक्त न करना उनकी अपनी खासियत रही।
    अपने 36 साल केे सेवा कार्य के दौरान उन्होंने स्कूली एवं छात्रावास के बच्चों के अलावा दर्जनों आदिवासी बच्चों का मार्गदर्शन एवं संरक्षण देकर उन्हें पुलिस, नर्स, शिक्षक, ग्रामसेवक जैसे शासकीय नौकरी तक पहुंचाने में उल्लेखनीय योगदान रहा। गरीब आदिवासी बच्चों के लिये काम करने के लिये उन्होंने अविवाहित ही रहने का निश्चय किया तथा लगातार उनके लिये कार्य में जुटी हुई हैं। एक व्यक्ति के तौर पे उन्होंने अपने आदिवासी समाज के लिये जो कुछ भी व्यक्तिगत योगदान दिया है, वह किसी बड़ी संस्था की योगदान से कम नहीं है मदद की। शिक्षक एवं आदिवासी समाज में स्लेस्टीना एक्का का बड़ा सम्मान है। भविष्य में अनाथ बच्चों एवं बुजुर्ग महिलाओं के लिये आश्रम चलाना चाहती है, ताकि उनका सही ढंग से पालन-पोषण एवं शिक्षा-दीक्षा हो सके।

     

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