• औकात, वजूद, हैसियत

    औकात शब्द है तो उर्दू का पर हिन्दी में भी इसका बहुत उपयोग होता है। बात-बात में कहा जाता है कि उसकी औकात ही क्या है या अपनी औकात देखो फिर बोलो।

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    के.एल.बानी
    वास्तुविद

    औकात शब्द है तो उर्दू का पर हिन्दी में भी इसका बहुत उपयोग होता है। बात-बात में कहा जाता है कि उसकी औकात ही क्या है या अपनी औकात देखो फिर बोलो। आदमी यह सुनकर अंदर से हिल जाता है उसके पूरे वजूद को हिला देता है वजूद क्या है। आपके व्यक्तित्व का वह हिस्सा जो लोगों के सम्पर्क में आता है। आपको मान या अपमान दिलाता है। आपकी हैसियत भी बयान करता है। इात भी बताता है। हैसियत और इात दोनों अलग-अलग है। हैसियत होती है- आपकी आर्थिक स्थिति मजबूती सामाजिक प्रतिष्ठा सब मिलकर हैसियत का निर्माण करते हैं। इात का हैसियत से संबंध है भी और नहीं भी है। कोई जरूरी नहीं है कि आपकी हैसियत याने संपदा बहुत हो तो आपकी इात भी हो। इात का संबंध आपके व्यवहार से है। आप लोगों से कैसे बात करते हैं। कितना काम आते हैं वक्त जरूरत पर या बिना जरूरत भी। सेवा, दया, परहित की भावना इात बढ़ाती है। सिर्फ हैसियत होना इात के लिए काफी नहीं है। इात दी जाती है तो हमें भी कोई इात बख्शता है। इात का एक अर्थ आबरू भी है वह आदमी औरत किसी की भी हो सकती है। बहुत से संदर्भों में इसका इस्तेमाल होता है। कहा जाता है फलां की इात ही क्या है उसे चाहे जो बेइात कर देता है। सब शब्द मिलकर हमारे चरित्र की तरफ इशारा करते हैं। औकात, वजूद, हैसियत और इात। उर्दू एक नफासत और नजाकत वाली भाषा है। हमारी संस्कृति में इतनी मिलजुल गई है सदियों से यह चल रहा है यह सिलसिला। हिन्दी उर्दू एक रूप हो गए हैं। दूध में पानी की तरह मिल गए हैं। आम बोलने में घरों बाहर दोनों भाषाओं का मिलाजुला रूप देखने में आता है। हमारी भारतीय संस्कृति बहुभाषी बहुधर्म रीतिरिवाजों, त्यौहारों, पहनावें पूजा पध्दतियों से बनी हुई और इसे अलग करना बहुत मुश्किल है और जरूरत भी नहीं। विभिन्नता में एकता ही हमारी पहचान है। इसे चलने दे कोई खलल न डालें। सभ्यता के चलते हमारी औकात, वजूद, हैसियत और इात बनी हुई है। ईश्वर भी यही चाहता है तो आइए उसका आनन्द लें। बस यही मेरा संदेश है।

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