• प्रवीण" पाठक क्यूँ रहे "नगण्य", चुनाव में हार की बड़ी वजह यह रहीं!

    इतिहास कि गलतियों से सबक लेने के बजाए उन्हें दोहराना प्रवीण पाठक के लिए आत्मघाती रहा। छोटे छोटे सुधार हार के छोटे अंतर को पाट सकते थे

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    ग्वालियर : लोकसभा चुनाव 2024 में मध्यप्रदेश मे भाजपा ने क्लीन स्वीप करते हुए शानदार प्रदर्शन किया। भाजपा को अप्रत्याशीत रूप से पूरी 29 सीटों पर विजय मिली। जबकि कुछ सीटें ऐसी थी जहां कांग्रेस काफ़ी मज़बूत स्थिति में मानी जा रही थी। उन्ही में से एक सीट ग्वालियर लोकसभा की है जहां से कांग्रेस ने प्रवीण पाठक को टिकिट देकर लोकसभा चुनाव के रण में उतारा था। लेकिन प्रवीण पाठक अपने विरोधी भाजपा प्रत्याशी के विरुद्ध जीत दर्ज नहीं कर सके। तमाम चर्चाएं प्रवीण पाठक के पक्ष में लहर बता रही थी और राजनितिक विश्लेषक भी प्रवीण के जीत कि सम्भावनाये बता रहे थे। लेकिन अंत में प्रवीण पाठक मात्र 70 हजार 210 मतों से हार गए।
     
    लोकसभा प्रत्याशी के रूप में ज़ब प्रवीण पाठक को टिकिट मिला तो उनकी जीत के प्रबल दवे किये जा रहे थे। राजनितिक पंडित उनकी साफ छवि, ब्राह्मण मतदाता की बहूलता, राजपूतों का समर्थन जैसे कई कारण गिना प्रवीण की जीत की संभावना बता रहे थे। लेकिन कहीं न कहीं प्रवीण पाठक चुनाव की रणनीति बनाने मे फेल हो गए और परिणाम मे जो हालात सामने आये उसको देखकर चर्चा होने लगी कि हाथी निकल गया पूँछ रह गयी। लोकसभा चुनाव में 70,210 मतों से हार कोई बड़ा अंतर नहीं मानी जाती। भाजपा से विजय प्रत्याशी भारत सिंह कुशवाहा को 6 लाख 71 हजार 535 मत मिले तो प्रवीण पाठक को 6 लाख 1 हजार 325 मत मिले।
     
    यदि प्रवीण पाठक कुछ छोटी छोटी गलतियाँ नहीं करते तो वह हार के इस छोटे से अंतर को आसानी से कवर कर लेते। अपना विधानसभा चुनाव भी वह बहुत छोटे अंतर से हारे थे और अपना पहला विधानसभा सभा चुनाव तो मात्र 121 मतों से जीते थे। इतिहास हम इसलिए पढ़ते हैं क्यूंकि वह हमें पिछली गलतियों से सीख ले उन्हें सुधार कर आगे बढ़ने में मदद करता है। लेकिन शिक्षित प्रवीण इस बेसिक प्रिंसिपल को नहीं समझ पाए।
     
    जनता पर कांग्रेस नेताओं से चर्चा ओ दौरान ऐसे कई अहम कारण निकल कर आये जिनको प्रवीण ने नजर अंदाज किया और यही प्रवीण के लिए आत्मघाती हुआ। ग्वालियर लोकसभा में 8 विधानसभा ग्वालियर, ग्वालियर पूर्व, ग्वालियर दक्षिण, ग्वालियर ग्रामीण, डबरा, भीतरवार, करेरा और पोहरी आती हैं। ग्वालियर दक्षिण से ही प्रवीण का प्रदर्शन निराशा जनक रहा, यहाँ प्रवीण को मात्र 69797 मत मिले जबकि भारत सिंह कुशवाहा ने 88250 मत हांसिल किये। डबरा में भारत सिंह के 70524 के मुकाबले 83672 और भीतरवार में 70000 के मुकाबले 75898 मतों से बढ़त लेकर इन दोनों विधानसभा मे प्रवीण का प्रदर्शन शानदार रहा. ग्वालियर ग्रामीण मे भी प्रवीण मात्र 444 मतों से पिछड़े। लेकिन शहर क्षेत्र में जो कयास लगाए जा रहे थे प्रवीण वैसा परिणाम न ला सके। पोहरी करेरा मे तो प्रवीण कही भी बहुत ज्यादा मज़बूत नहीं दिखे। 

    कांग्रेस के ही एक पुराने कार्यकर्ता ने प्रवीण पाठक के हार के कुछ कारण बताये जिन पर प्रवीण ने समय रहते अमल किया होता तो आज जीत उनकी झोली में होती। कांग्रेस कार्यकर्ता भारत सिंह भदौरिया ने सोशल मिडिया पर लिखा... 

     
    1.  शहर जिला कांग्रेस कमेटी के जिलाध्यक्ष को विश्वास में न लेकर लोकसभा का टिकट लाना ।

    2.  शहर जिला कांग्रेस के किसी भी कार्यक्रम में शामिल न होना।

    3.  विधानसभा चुनाव में जीते और हारे हुए विधायकों को चुनाव की कमान देना तथा कांग्रेस के अन्य कार्यकत्ताओं से दूरी बनाए रखना। 

    4.  जातीय समीकरण के आधार पर चुनाव का प्रचार पर बल देना। जाति विशेष पर भद्दी टिप्पणियां कुछ नेताओं को देना।

    5.  वरिष्ठ एवं रूठे हुए कांग्रेस के नेताओं को एक बार भी बात नहीं करना।

    6.  मध्यप्रदेश में कांग्रेस संगठन कमजोर होना और ग्वालियर में किसी भी बड़े नेता का नहीं आना या रैली करना!

    7.  कांग्रेस पार्टी के अंदर प्रदेश एवं शहर के भीतर की गुटबाजी तथा महल के कांग्रेसी कार्यकर्ताओं पर जरुरत से ज्यादा विश्वास।

     
    बाकी हारने वाले शिक्षित और समझदार युवा हैं 
     
     
    प्रवीण पाठक के हार का अंतर जितना छोटा रहा उसकी वजह भी उतनी ही छोटी थी लेकिन समय के साथ उन्हें खत्म करने के बजाए प्रवीण उन्हें बड़ा बनाते गए। लोकसभा प्रत्याशी चुने जाने पर पूर्व सांसद रामसेवक गुर्जर ने खुलकर नाराजगी जाहिर की लेकिन प्रवीण ने उन्हें मनाने के बजाए नजर अंदाज किया। कई वरिष्ठ कांग्रेसी के के समाधिया, वासुदेव शर्मा, बालेंन्दु शुक्ला, भगवान सिंह यादव से प्रवीण पाठक कि हमेशा दूरी रही। वरिष्ठ कोंग्रेसियों का आशीर्वाद लेने की जगह उनकी उपेक्षा की। यह वही वरिष्ठ कोंग्रेसी हैं जिनका सम्मान प्रियंका गांधी ने ग्वालियर दौरे के दौरान इनसे व्यक्तिगत मिलकर किया था।
     
    प्रवीण पाठक पर कांग्रेस कार्यकर्ता हमेशा उपेक्षा का आरोप लगाते रहे। अलबेल घुरैया आनंद शर्मा जैसे कई खाटी कोंग्रेसियों को तो अपनी पार्टी तक छोड़नी पड़ी। शहर जिला कांग्रेस अध्यक्ष से प्रवीण के संबंध कभी अच्छे नहीं रहे। टिकिट मिलने के बाद भी प्रवीण ने इन्हे सुधरने का कोई प्रयास नहीं किया।
     
    कांग्रेस हमेशा से प्रवीण पर भरोसा जताती आई है। फिर भी प्रवीण पाठक कांग्रेस के कार्यक्रम में कभी सक्रिय नजर नहीं आये। कार्यकर्ताओं का यह तक कहना है कि इंदिरा गाँधी, जवाहरलाल नेहरू, जैसे नेताओं की पुण्यतिथि में तक प्रवीण पाठक उपस्थित नहीं होते थे। अंत में फिर हम इतिहास क्यूँ पढ़ते हैं? शायद प्रवीण पाठक अपनेइतिहास से सबक लें और आगामी समय में पार्टी के भरोसे पर खरे उतरें.....

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