• एक तिहाई स्कूलों की ग्रेडिंग खराब

    स्कूली शिक्षा में सुधार के लिए सरकार ने एक नई मुहिम शुरू की है। इसमें जन सहभागिता बढ़ाने की भी कोशिश की गई है। इसके जो प्रारंभिक नतीजे आए हंै उनमें व्यवस्था की खामी भी सामने आई है। इस मुहिम में सरकार ने तय किया था कि स्कूल में उपलब्ध सुविधाओं और अध्ययन-अध्यापन की स्थितियों पर स्कूलों की ग्रेडिंग की जाए।

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    स्कूली शिक्षा में सुधार के लिए सरकार ने एक नई मुहिम शुरू की है। इसमें जन सहभागिता बढ़ाने की भी कोशिश की गई है। इसके जो प्रारंभिक नतीजे आए हंै उनमें व्यवस्था की खामी भी सामने आई है। इस मुहिम में सरकार ने तय किया था कि स्कूल में उपलब्ध सुविधाओं और अध्ययन-अध्यापन की स्थितियों पर स्कूलों की ग्रेडिंग की जाए। इसके लिए ग्राम सभा और वार्ड सभाओं में लोगों का मत लिया गया और उसके अनुसार स्कूलों को ग्रेड दिया गया। इस ग्रेडिंग में राज्य के एक तिहाई स्कूलों को सी और डी ग्रेड मिला है। छत्तीसगढ़ में प्राइमरी से लेकर हायर सेकेण्डरी स्तर के 43 हजार से अधिक स्कूल हैं। करीब 15 हजार स्कूल ऐसे पाए गए हैं जहां व्यवस्था में सुधार लाने के विशेष प्रयास करने होंगे। सरकार ने क्षेत्रीय जनप्रतिनिधियों और अधिकारियों को इसकी जिम्मेदारी सौंपी है। उनसे कहा गया है कि वे ऐसे स्कूलों में जाएं और देखें की व्यवस्था में सुधार लाने के लिए क्या किया जाना जरुरी है। दो साल पहले राज्य शिक्षा बोर्ड की दसवीं की परीक्षा के खराब नतीजों को सरकार ने गंभीरता से लिया था और तब से सरकार स्कूली शिक्षा में सुधार लाने के लिए प्रयासरत है। इस परीक्षा में करीब आधे बच्चे फेल हो गए थे। अब सुधार के लिए चल रहे प्रयासों में एक तिहाई स्कूल ही ग्रेडिंग में फेल हो जाएं तो समझा जा सकता है कि व्यवस्था में सुधार के लिए सरकार को कहां से शुरुआत करने की जरुरत होगी। पिछला वर्ष शिक्षा गुणवत्ता वर्ष के रुप में मनाया गया था। यह व्यवस्था लागू की गई थी कि हर तीन महीने में बच्चों के बौद्धिक विकास का मूल्यांकन कर उनका रिपोर्ट कार्ड तैयार किया जाए। यह रिपोर्ट कार्ड ऐसे पब्लिक स्कूलों के रिपोर्ट कार्ड से प्रभावित है जो बच्चों के समग्र विकास पर ध्यान देने का दावा करते हैं और इसे रिपोर्ट कार्ड में दर्ज भी करते हैं। पहली बार सरकारी स्कूलों के शिक्षकों को भी लगा कि एक बच्चे पर कितना काम करने की जरुरत है, लेकिन एक कार्ड के प्रोफार्मा में सब कुछ दर्ज कर देने मात्र से बच्चों के शैक्षिक विकास के प्रयास पूरे नहीं हो जाते। सरकार ने अपनी नई मुहिम में इसी पर ध्यान केन्द्रित किया है। पांचवी-आठवीं कक्षा के बच्चे ठीक से किताबें न पढ़ पाएं, गणित इतना कमजोर कि दो अंकों को जोड़-घटा न सकें तो दोष सिर्फ बच्चों का ही नहीं है, उस शिक्षा व्यवस्था का भी है, जिसमें सभी बच्चों को पढ़ा-लिखाकर सफल नागरिक बनाने की परिकल्पना की गई है। लेकिन इसका उद्देश्य तभी पूरा होगा जब सरकारी स्कूलों में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा उपलब्ध हो। सरकार ने शिक्षकों को प्रशिक्षण देने से लेकर व्यवस्था में सुधार की जो कोशिश शुरू की गई है, उससे एक उम्मीद बंधी है कि सरकारी स्कूलों का माहौल बदलेगा और यहां के बच्चे भी आत्मविश्वास से भरे होंगे।

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