• अस्पताल में गरबा

    गुजरात पर्यटन के एक विज्ञापन में अमिताभ बच्चन थिरकते हुए कहते हैं- बहुत नाच लिए बारात में, कुछ दिन तो नाचो गुजरात में। शारदीय नवरात्र के प्रारंभ होते ही गुजरात में गरबा की धूम मच जाती है। नौ दिनों तक जगह-जगह गरबा, डांडिए के आयोजन होते हैं। देश भर से लोग गुजरात के इस रंगारंग उत्सव को देखने पहुंचते हैं। पहले प.बंगाल की दुर्गापूजा और देश के कई हिस्सों में होने वाली रामलीला की ही चर्चा नवरात्र पर होती थी, अब गरबा के बिना बात पूरी नहींहोती।

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    गुजरात पर्यटन के एक विज्ञापन में अमिताभ बच्चन थिरकते हुए कहते हैं- बहुत नाच लिए बारात में, कुछ दिन तो नाचो गुजरात में। शारदीय नवरात्र के प्रारंभ होते ही गुजरात में गरबा की धूम मच जाती है। नौ दिनों तक जगह-जगह गरबा, डांडिए के आयोजन होते हैं। देश भर से लोग गुजरात के इस रंगारंग उत्सव को देखने पहुंचते हैं। पहले प.बंगाल की दुर्गापूजा और देश के कई हिस्सों में होने वाली रामलीला की ही चर्चा नवरात्र पर होती थी, अब गरबा के बिना बात पूरी नहींहोती। गुजरात ही नहीं देश के अनेक राज्यों में अब गरबा के आयोजन होने लगे हैं और ग्लैमर का आस्वाद भी इसमें भरपूर भरा जाता है। नौ दिनों की इस धूमधाम और बेफिक्र होकर नाचने के उत्साह को देखकर आनंद आता है। लेकिन गुजरात में पिछले दिनों एक सरकारी अस्पताल का जो नजारा देखने मिला, उसके बाद यह सवाल उठना जायज है कि ऐसा भी क्या नृत्य, जिसमें मरीजों की तकलीफ का ध्यान भी नहींरहा। अहमदाबाद के सरकारी सोला सिविल हास्पीटल में आईसीयू में नए वार्ड के उद्घाटन अवसर पर नर्स, डाक्टर व अन्य अस्पतालकर्मियों ने तेज संगीत पर जम कर गरबा किया। इस अस्पताल में राज्य के स्वास्थ्य मंत्री नितिन भाई पटेल उद्घाटन के लिए पधारे थे और उनके जाने के बाद अस्पताल के लोगों ने गरबा किया। इस गरबा आयोजन का बाकायदा वीडियो भी बना है, जो सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर उपलब्ध है। वीडियो में साफ नजर आ रहा है कि एक ओर आईसीयू में मरीज लेटे हैं और उनके इर्द-गिर्द चिकित्साकर्मी नृत्य कर रहे हैं। अस्पताल प्रबंधन से यह पूछा जाना चाहिए कि क्या मरीजों का इलाज संगीत पद्धति से किया जा रहा था? अगर नहींतो क्या अस्पताल के कर्मचारी आईसीयू का अर्थ नहीं जानते। आईसीयू यानी इंटेसिव केयर यूनिट में उन मरीजों को रखा जाता है, जो गंभीर रूप से बीमार होते हैं और जिन्हें गहन चिकित्सीय सहायता व देखभाल की आïवश्यकता होती है। अस्पताल के इस इलाके में अमूमन मरीज के परिजनों को भी नहींजाने दिया जाता। उन्हें दूर से ही मरीज को देखना होता है। यहां धीमी आवाज में बात होती है, ताकि शोर से मरीजों के आराम में खलल न पड़े। उस आईसीयू में तेज बजते संगीत पर गरबा न केवल अस्पाल और चिकिस्ता के नियमों का उल्लंघन है, बल्कि मरीजों की जिंदगी के साथ खिलवाड़ भी है। शारीरिक तकलीफों से गुजर रहे मरीजों को क्या नाच-गाने से मानसिक कषट नहींपहुंचा होगा? हैरत की बात है कि आईसीयू में गरबा किसी बाहरी ने या अस्पताल के नियमों से अनजान लोगों ने नहींकिया, बल्कि अस्पताल के कर्मचारी, डाक्टर, नर्सें सब इसमें शामिल थे। यह सही है कि चिकित्सा के पेशे में त्यौहारों का आनंद उठाने का अवसर उस तरह नहींमिल पाता, जैसा आम जनों को मिलता है। लेकिन यह बात पुलिसकर्मियों, सैनिकों, सार्वजनिक यातायात में ड्यूटी पर तैनात लोगों, टेलीफोन, दमकल ऐसे अनेक विभाग के लोगों पर लागू होती है। इन पेशों को अपनाने का अर्थ ही है कि आप निजी जीवन को बाद में और कत्र्तव्य को पहले रखते हैं। पिछले साल होली पर ऐसा ही वाकया हुआ था जब स्पाइस जेट की उड़ान में होली का आनंद लेने के लिए केबिन क्रू ने नृत्य किया और एक पायलट भी इसमें शामिल हुआ। होली की मौज के लिए यात्रियों की सुरक्षा के साथ यह खुला खिलवाड़ था, जिस पर समय से कार्रवाई की गई। अब देखना है कि अहमदाबाद के इस सरकारी अस्पताल में गरबा के आयोजन पर सरकार क्या रूख अपनाती है। स्वास्थ्य मंत्री ने मामले का संज्ञान तो लिया है, लेकिन इसमें कठोर संदेश देने की आवश्यकता है। हिंदुस्तान में सरकारी अस्पतालों में सुविधाएं पहले से खस्ताहाल हैं और अब ऐसी घटनाओं से यह प्रतीत होता है कि सामान्य मरीजों के लिए संवेदनहीनता पूरी तरह छीज चुकी है।

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