• भीड़तंत्र की चिंता

    लोकतंत्र पर जब भीड़तंत्र हावी होने लगे, तो उसके दुष्परिणाम दिखने में देर नहीं लगती

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    लोकतंत्र पर जब भीड़तंत्र हावी होने लगे, तो उसके दुष्परिणाम दिखने में देर नहीं लगती। किसी भी लोकतांत्रिक देश के लिए यह चिंता का विषय है और भारत में ऐसी ही चिंता का प्रदर्शन बुधवार को दिल्ली के जंतर-मंतर में नागरिक समाज ने किया। मीडिया, विशेषकर सोशल मीडिया पर भीड़तंत्र के कारण बढ़ती अराजकता के खिलाफ एकजुट होने का आह्वान किया गया, जिसका व्यापक असर देखने मिला। दिल्ली में लोग स्वत:स्फूर्त एकत्र हुए ही, मुंबई, कोलकाता आदि शहरों में लोगों ने नाट इन माई नेम अभियान में अपनी भागीदारी दिखाई।

    सोशल मीडिया पर है शटैग नाट इन माइ नेम लगातार ट्रेंड करता रहा, जो इस बात का परिचायक है कि हिंदुस्तान की बहुसंख्यक जनता मिल-जुलकर, शांति से रहने में ही भरोसा रखती है। वह किसी भी कारण से कानून हाथ में लेने की विरोधी है और अपने नाम पर तो, बिल्कुल नहीं। यानी धर्म, संस्कृति, सभ्यता के स्वघोषित ठेकेदारों को वह नकारती है, यह अच्छी बात है। दरअसल बीते कुछ समय में एक के बाद एक ऐसी विडंबनापूर्ण घटनाएं हुई हैं कि इंसानियत पर भरोसा हिलने लगा था। पिछले हफ्ते वल्लभगढ़ में जुनैद की हत्या के बाद दो दिन पहले झारखंड में मोहम्मद उस्मान के साथ उन्मादी भीड़ ने मार-पीट की, उन्हें जान से मारने की कोशिश की।

    गिरिडीह जिले के बारवाबाड़ गांव के मोहम्मद उस्मान पर यह हमला इसलिए हुआ क्योंकि उनके घर के बाहर एक मरी हुई गाय पाई गई। भीड़ ने उस्मान के घर के एक हिस्से में आग लगा दी। कुछ उन्मादियों ने उस्मान को आग में फेंकने की कोशिश भी की। गांव के ही एक निवासी के मुताबिक गांव में केवल उस्मान ही गाय पालते हैं। उनके पास आठ गायें हैं। उनका परिवार बारवाबाड़ और पड़ोस के मांद्राव गांव में दूध बेचता है।

    गाय की लाश मिलने से नाराज भीड़ ने पहले उस्मान से पूछा कि क्या मरी हुई गाय उनकी है। उस्मान ने माना कि गाय उन्हीं की है। इसके बाद भीड़ उस्मान को मरी हुई गाय के पास ले गई और उनसे कुबुलवाया कि गाय को उन्होंने नहीं मारा। उस्मान ने ये भी किया। लेकिन फिर भी उनके साथ मारपीट की गई। उस्मान की पत्नी के मुताबिक उनकी गाय बीमार थी और इलाज के बावजूद नहीं बची। उसकी लाश उठाने के लिए जिन लोगों से संपर्क किया गया, वे दूसरे गांव गए हुए थे, इसलिए मृत गाय को उन लोगों ने घर के बाहर कुछ दूरी पर रख दिया, जिसके बाद सारा बवाल हुआ। यह तस्वीर का एक पहलू है, जो दुखद है। दूसरा पहलू थोड़ी राहत देता है, उम्मीद बंधाता है। लगभग हजार लोग उस्मान के घर को घेरे हुए थे और शायद वे उसे मारने में सफल भी हो जाते, अगर उस बेकाबू भीड़ के सामने 15 पुलिस वाले मोर्चा न संभाले होते। पुलिस को जैसे ही सूचना मिली कि उस्मान के घर इस तरह की हिंसा हो रही है, वह तुरंत हरकत में आई। इस पुलिस टीम के सब-डिविजनल पुलिस अफसर प्रभात रंजन बरवाड़ ने बताया कि हम केवल 15 लोग थे।

    साप्ताहिक बाजार की वजह से वहां काफी लोग थे। करीब हजार लोग इकट्ठा हो गए थे। हमारी पहली कोशिश थी उस्मान को अपनी निगरानी में लेना। हम इसमें कामयाब रहे लेकिन हम उसे गांव से बाहर नहीं निकाल पा रह थे। फिर हमें खबर मिली कि उसके परिवार के लोग घर के अंदर हैं। हम घर के पीछे की सीढ़ी से घुसकर अंदर जाने में कामयाब रहे और उसके परिजनों को बाहर निकाल लाए। हमलावरों ने उस्मान को दो बार पुलिस जीप से खींचने की कोशिश की। बाद में सीआरपीएफ की टीम ने पहुंच कर मामले को संभाला।

    घायल उस्मान का इलाज फिलहाल अस्पताल में चल रहा है। पुलिस की इस सक्रियता और कर्तव्यपरायणता ने एक निर्दोष की जान बचाई, कुछ लोगों को हत्यारा होने से बचाया और सबसे बढ़कर पुलिस पर लोगों के भरोसे को बचाया है। अगर देश में पुलिस इसी मुस्तैदी और दिलेरी से काम करे, तो जनरक्षक होने का उसका दावा सच साबित होगा। पुलिस ने अपनी जिम्मेदारी निभाई है, अब सरकारों को भी अराजक भीड़तंत्र पर अंकुश लगाने के उपाय करने चाहिए और राजनैतिकदलों, सामाजिक संगठनों को इसमें सक्रियता दिखानी चाहिए। हिंदुस्तान जैसी बड़ी आबादी और बहुविध संस्कृति वाले देश में लोगों को उकसाना आसान होता है। इसे तभी रोका जा सकता है, जब समाज का हर तबका उदारता का प्रदर्शन करे। हैशटैग नाट इन माइ नेम जैसे प्रयास लोगों में थोड़ी बहुत जागरूकता ला सकते हैं, लेकिन दीर्घकालिक समाधान निकालने के लिए आरोप-प्रत्यारोप से ऊपर उठकर लोकशिक्षण जैसे गंभीर कदम उठाना ही बेहतर होगा।

    फिलहाल एक खबर यह है किदेश के अलग-अलग हिस्सों से पीटकर मार डालने की घटनाएं सामने के बावजूद केंद्रीय गृह मंत्रालय ने इस पर दखल देने से इनकार किया है। मंत्रालय ने पहले की तरह हरियाणा और झारखंड से कोई रिपोर्ट नहीं मांगा है. जबकि, इन दोनों राज्यों से भीड़ द्वारा हिंसा की खबरें आई हैं।

    गृह मंत्रालय के प्रवक्ता अशोक प्रसाद ने कहा कि राज्यों से रिपोर्ट तभी मांगा जाती है जब घटना के बड़े पैमाने पर फैलने या फिर आतंरिक सुरक्षा के लिए खतरा पैदा होने और फोर्स तैनात करने की बात हो। ये घटनाएं कानून और व्यवस्था से जुड़ी हुई हैं जिन्हें देखना राज्य सरकार का काम है। हालांकि अक्टूबर, 2015 में केंद्रीय गृह मंत्रालय ने दादरी में मोहम्मद अखलाख की पीटकर हुई हत्या मामले में उत्तर प्रदेश सरकार से विस्तृत रिपोर्ट देने को कहा था। मंत्रालय ने तत्कालीन सपा सरकार से यह सुनिश्चित करने को कहा था कि भविष्य में ऐसी घटनाएं फिर न हों। बेशक राज्य सरकार की जिम्मेदारियां अधिक हैं, लेकिन लोगों ने अगर केेंद्र सरकार से उम्मीदें बांधी हैं, तो उन्हें पूरा करने के लिए सरकार को कोई पहल करनी चाहिए।

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