• क्या चुनावी मैदान जीतेंगे राहुल

    राहुल गांधी, जो निश्चित तौर पर चांदी की नहीं बल्कि सोने की चम्मच लेकर के पैदा हुए हैं। जिसके परिवार में एक नहीं तीन-तीन प्रधानमंत्री हुए, जिसने अपने पिता और अपनी दादी को खोया, जिसने अपनी मां को प्रधानमंत्री नहीं बनने के लिए प्रेरित किया, जो सत्ता नहीं बल्कि देश बनाने के लिए राजनीति में आया।

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    - प्रो. रविकान्त
    राहुल गांधी, जो निश्चित तौर पर चांदी की नहीं बल्कि सोने की चम्मच लेकर के पैदा हुए हैं। जिसके परिवार में एक नहीं तीन-तीन प्रधानमंत्री हुए, जिसने अपने पिता और अपनी दादी को खोया, जिसने अपनी मां को प्रधानमंत्री नहीं बनने के लिए प्रेरित किया, जो सत्ता नहीं बल्कि देश बनाने के लिए राजनीति में आया। वह व्यक्ति पिछले दो दशक से लोगों के लिए और लोगों के साथ पूरी शिद्दत के चल रहा है।

    पूरब से पश्चिम को जोड़ने वाली राहुल गांधी की न्याय यात्रा बीजेपी और संघ के सबसे मजबूत गढ़ में प्रवेश कर चुकी है। 14 जनवरी को मणिपुर से शुरू हुई मुम्बई तक 6700 किलोमीटर की होने वाली इस यात्रा में राहुल गांधी नागालैंड, असम, अरुणाचल प्रदेश, मेघालय, पश्चिम बंगाल, झारखंड, उड़ीसा, छत्तीसगढ़ और बिहार होते हुए सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक न्याय के लिए संकल्पबद्ध राहुल गांधी मान्यवर कांशीराम की कर्मभूमि उत्तर प्रदेश पहुंच चुके हैं। उत्तर प्रदेश देश का सबसे बड़ा सूबा है, जो देश की तकदीर लिखता है। 80 लोकसभा सीटों वाले उत्तरप्रदेश में जो पार्टी चुनाव जीतती है, वही देश पर राज करती है। भारतीय जनता पार्टी के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष और वर्तमान गृहमंत्री अमित शाह का कहना है कि बीजेपी अगले 50 साल तक देश में राज करेगी। यानी भारतीय जनता पार्टी और आरएसएस की राजनीति, नितांत राज करने की नीति है। लोगों के साथ न्याय करना, उन्हें अधिकार सम्पन्न और आत्मनिर्भर बनाना, भारत को समृद्ध और सशक्त करना नरेंद्र मोदी एंड कंपनी का कोई उद्देश्य नहीं है। यही वजह है कि मोदी को कोई फर्क नहीं पड़ता, जब नीरव मोदी, मेहुल चौकसी और विजय माल्या जैसे धनकुबेर देश का करोड़ों रुपया लेकर फरार हो जाते हैं। नरेंद्र मोदी को नहीं फर्क पड़ता, जब किसान आंदोलन में साढ़े सात सौ किसानों की मौत हो जाती है।


    नरेंद्र मोदी को तब भी फर्क नहीं पड़ता, जब देश का मान ऊंचा करने और तिरंगे को सम्मान दिलाने वाली महिला पहलवान न्याय की गुहार लगाते हुए दिल्ली की छाती पर धरना देती हैं। जब गुजरात के ऊना में दलित नौजवानों को नंगा करके पीटा जाता है, नरेंद्र मोदी को तब भी फर्क नहीं पड़ता। जब मणिपुर में पागल नफरती भीड़ दो महिलाओं को नंगा करके हांककर ले जाती है और सामूहिक बलात्कार करके हत्या कर देती है, नरेंद्र मोदी को तब भी फर्क नहीं पड़ता। जब चीन गलवान घाटी में घुसपैठ करता है, अरूणाचल प्रदेश में बस्तियां बसा लेता है, नरेंद्र मोदी को तब भी फर्क नहीं पड़ता। नोटबन्दी में सैकड़ों लोग लाइन में लगकर मर जाते हैं, कोरोना में लाखों लोग बेमौत मारे जाते हैं तब भी नरेंद्र मोदी को कोई फर्क नहीं पड़ता। नरेंद्र मोदी को तब भी फर्क नहीं पड़ता जब तालाबंदी में करोङ़ों लोगों के पैर लहूलुहान हो जाते हैं, और हजारों गरीब मजदूर रास्ते में दम तोड़ देते हैं। नरेंद्र मोदी को तब भी फर्क नहीं पड़ता, जब आंध्र प्रदेश से लेकर विदर्भ, बुंदेलखंड में आर्थिक तंगी और कर्ज के बोझ से दबा हुआ किसान आत्महत्या करता है और बेरोजगारी की मार से बदहाल नौजवान सड़क पर बदहवास घूमता है।

    नरेंद्र मोदी ने देश को हिंदुत्ववादी उपनिवेश में तब्दील कर दिया है। '50 साल तक राज' करने के लिए लोकतंत्र का गला घौंटा जा रहा है। मीडिया को सरकारी भोंपू बना दिया गया है। चुनाव आयोग रीढ़विहीन केंचुआ बन गया। रिजर्व बैंक, नरेंद्र मोदी की पोशाक वाले रंगों के नोट छापने की मशीन हो गया। सरकारी एजेंसियां विपक्ष को ठिकाने लगाने का हथियार बन गईं। आज देश चुनाव के मुहाने पर खड़ा है। देश बदलाव की बाट जोह रहा है, न्याय की पुकार लगा रहा है। ऐसे समय में राहुल गांधी भारत जोड़ो न्याय यात्रा पर निकले हैं।

    राहुल गांधी, जो निश्चित तौर पर चांदी की नहीं बल्कि सोने की चम्मच लेकर के पैदा हुए हैं। जिसके परिवार में एक नहीं तीन-तीन प्रधानमंत्री हुए, जिसने अपने पिता और अपनी दादी को खोया, जिसने अपनी मां को प्रधानमंत्री नहीं बनने के लिए प्रेरित किया, जो सत्ता नहीं बल्कि देश बनाने के लिए राजनीति में आया। वह व्यक्ति पिछले दो दशक से लोगों के लिए और लोगों के साथ पूरी शिद्दत के चल रहा है। इसी उत्तर प्रदेश की जमीन पर राहुल गांधी ने किसानों को न्याय दिलाने के लिए भट्टा पारसौल में संघर्ष किया था। इसी तरह राहुल गांधी 2021-22 में दिल्ली की सरहदों पर हुए किसान आंदोलन के समर्थन में खड़े रहे। जब हाथरस में एक दलित बेटी के बलात्कार और उसकी मौत के अपराधियों को भाजपा का सत्ता तंत्र बचाने की कोशिश करता है तो राहुल गांधी वहां भी पहुंचते हैं। पुलिस वालों के धक्के और अपमान सहते हुए भी राहुल गांधी और प्रियंका गांधी हाथरस की उस बेटी के न्याय के लिए अड़े रहे। राहुल गांधी ने कभी किसी पद और प्रतिष्ठा के लिए राजनीति नहीं की। उन्होंने संसद और सरकार का उपयोग कभी अपनी छवि चमकाने के लिए नहीं किया। राहुल गांधी सत्ता में रहते हुए भी निर्लिप्त और अहंकार मुक्त रहे।

    जब नरेंद्र मोदी की तानाशाही सत्ता देश की गरिमा और लोकतंत्र का गला घोंटने पर उतारू हो गई तो निर्द्वन्द्व और निर्भीक होकर राहुल गांधी निकल पड़ते हैं डगर-डगर भारत जोड़ो यात्रा पर। 2023 में दक्षिण के रामेश्वरम से लेकर के उत्तर के कश्मीर तक करीब 4000 किलोमीटर पैदल चलते हुए राहुल गांधी देश की धड़कन सुनते हैं। देश में बढ़ती नफरत और हिंसा को रोकने के लिए राहुल गांधी मुहब्बत की दुकान खोलने की बात करते हैं। 'डरो मत' नारे के साथ राहुल गांधी जैसे-जैसे आगे बढ़ते हैं देश का जनमानस उनके साथ बढ़ चलता है। महात्मा गांधी के जनसंघर्ष की यादें ताज़ा हो जाती हैं। गांधी जी विदेशी गोरों के खिलाफ सत्याग्रह कर रहे थे तो राहुल गांधी देशी संघी सत्ता के खिलाफ सड़क पर संघर्ष कर रहे हैं। भारत जोड़ो यात्रा ने संविधान और लोकतंत्र के प्रति लोगों के विश्वास को मजबूत किया। स्मरणीय है कि 'भारत के विचार' पर हमेशा से संघियों की टेढ़ी नजर रही है। दलितों-वंचितों को सम्मान और अधिकार सुनिश्चित करने वाले समावेशी राष्ट्र की जगह वे भारत को हिन्दू राष्ट्र बनाने का सपना देखते रहे हैं। नागपुर कार्यालय पर आज़ादी के बाद चार दशक तक तिरंगा नहीं फहराने वाले संघी आज भी संविधान से बेपनाह नफरत करते हैं! समता, न्याय, बंधुत्व, समाजवाद और धर्मनिरपेक्षता आदि संवैधानिक मूल्यों के प्रति आरएसएस का कोई विश्वास नहीं रहा है। संघी और उनसे जुड़े अन्य हिंदुत्ववादी संविधान के इन बुनियादी मूल्यों को चिन्दी-चिन्दी करके ध्वस्त करना चाहते हैं। इन्हीं मूल्यों को बचाने के लिए राहुल गांधी एक बार फिर सड़क पर हैं।

    राम मनोहर लोहिया ने कहा था कि 'अगर सड़कें सूनी हो जाएगी तो संसद आवारा हो जाएगी।' आज संसद को बंधक बना लिया गया है। विपक्षी सांसदों के माइक बन्द करना आम बात है। उनका उपहास उड़ाया जाता है और अपमान किया जाता है। संसद में धार्मिक नारेबाजी की जाती है। बिना बहस के कानून पारित होते हैं। धार्मिक कर्मकांड के जरिए उनके विवेक पर हमला किया जा रहा है। आज जब उनकी उम्मीदों, सपनों और स्वाभिमान को छलनी किया जा रहा तब राहुल गांधी सड़क पर आकर इन वर्गों के अधिकारों और सम्मान की रक्षा की बात कर रहे हैं। देश के पहले मालिक आदिवासियों के जंगल और जमीन के अधिकार के साथ आर्थिक न्याय दिलाने की बात राहुल गांधी कर रहे हैं। सदियों से वंचना और प्रताड़ना का शिकार रहे दलितों को सम्मान, शिक्षा और सरकारी नौकरी चाहिए। ओबीसी के हक और न्याय के लिए जातिगत जनगणना जरूरी है। किसानों को एमएसपी और मजदूरों को सम्मानजनक रोजगार मिले तभी उनके साथ आर्थिक न्याय होगा। देश के संसाधनों में सबकी हिस्सेदारी हो। राजनीति में सबको प्रतिनिधित्व मिले। गरीबी रेखा ही क्यों तय हो , अमीरी की रेखा भी तय होनी चाहिए। असमानता, अपमान और अन्याय की इस व्यवस्था को बदलने के लिए अम्बेडकर के तेबर और नेहरू की समझ के साथ गांधी की डगर पर निकले राहुल गांधी को देश का दलित वंचित और अल्पसंख्यक तबका बहुत उम्मीद की निगाह से देख रहा है। लोगों का दिल जीतने वाले राहुल गांधी क्या चुनावी मैदान पर भी जीत हासिल करेंगे?

     

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