- प्रो. रविकांत
राहुल गांधी ने दो यात्राएं की हैं। पहले वे कन्याकुमारी से कश्मीर तक भारत जोड़ो यात्रा पर निकले। इस यात्रा में राहुल गांधी ने किसान, दलित, आदिवासी , महिलाओं. पिछड़ों, अल्पसंख्यकों में विश्वास पैदा किया। भाजपा और हिन्दुत्ववादी संगठनों ने हमले करके भय पैदा किया। डरो मत नारे के साथ राहुल गांधी ने पैदल यात्रा का नया कीर्तिमान स्थापित किया। इस यात्रा में राहुल गांधी ने देश को बखूबी समझा।
दिल्ली के संसद भवन के सामने बाबा साहेब की आदमकद प्रतिमा में उनके दाएं हाथ की उंगली उठी हुई है। मानो वह चेतावनी दे रही है कि इस देश की सामाजिक और आर्थिक विषमता का अंत करना है, वरना असमानता की चक्की में पिसने वाले लोग इस व्यवस्था को ही मिट्टी में मिला देंगे।'
मार्च 2024 में आए विश्व असमानता डाटाबेस पेपर के अनुसार, भारत का मोदी राज 'अरबपति राज' बन गया है। एक तरफ 81 करोड़ गरीब लोगों को मुफ्त राशन उपलब्ध कराया जा रहा है तो दूसरी तरफ 2022-23 में शीर्ष एक फ़ीसदी लोगों के पास 22.6प्रतिशत आय और 40.1प्रतिशत संपत्ति पर कब्जा है। रिपोर्ट कहती है कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में आजादी के अमृत काल में आर्थिक असमानता अब ब्रिटिश राज से भी ज्यादा बढ़ गई है। क्रॉनी कैपिटलिज्म का प्रभाव यह है कि एक फ़ीसदी लोगों की आय और धन की हिस्सेदारी (क्रमश: 22.6, 40.1प्रतिशत) ऐतिहासिक तौर पर सबसे ऊंचे स्तर पर है। भारत की शीर्ष एक फ़ीसदी आबादी के पास आय की हिस्सेदारी दुनिया में सबसे अधिक है, यहां तक कि दक्षिण अफ्रीका, ब्राजील और अमेरिका से भी अधिक है।
इस रिपोर्ट के आने के बाद कांग्रेस पार्टी और खासकर राहुल गांधी ने इसे चुनावी मुद्दा बनाया। राहुल गांधी पिछले 7 साल से देश को चेतावनी देते रहे हैं। भारत में ही नहीं बल्कि विदेश के तमाम संस्थानों में भाषण देते हुए राहुल गांधी ने देश में बढ़ती विषमता और गरीबी पर मोदी सरकार को आगाह किया। मोदी और उनके समर्थकों ने राहुल गांधी की इस चेतावनी का हमेशा मजाक उड़ाया। लेकिन वे भूल गए कि शुतुरमुर्ग की तरह गर्दन रेत में गड़ा देने से तूफान नहीं रुकते। राहुल गांधी लगातार और कई बार बहुत गुस्से में भी मोदी सरकार की आलोचना करते रहे। क्रोनी कैपिटलिज्म की आलोचना करते हुए उन्होंने हम दो हमारे दो की सरकार बताया। मोदी सरकार के एक दशक में पूंजीवाद का बहुत एकांगी विकास हुआ है। अम्बानी और अडानी की संपत्ति लगातार बढ़ती रही और इसके अनुपात में ही देश में गरीबों की संख्या भी बढ़ती जा रही है। किसान, नौजवान, दलित, पिछड़े और आदिवासियों पर सामन्तवादी ही नहीं बल्कि सांस्थानिक हमले हुए। उनकी आर्थिक स्थिति ही कमजोर नहीं हुई बल्कि सामाजिक सुरक्षा और प्रतिष्ठा भी हीन बनाने की कोशिश की जा रही है।
इस दरम्यान राहुल गांधी ने दो यात्राएं की हैं। पहले वे कन्याकुमारी से कश्मीर तक भारत जोड़ो यात्रा पर निकले। इस यात्रा में राहुल गांधी ने किसान, दलित, आदिवासी , महिलाओं. पिछड़ों, अल्पसंख्यकों में विश्वास पैदा किया। भाजपा और हिन्दुत्ववादी संगठनों ने हमले करके भय पैदा किया। डरो मत नारे के साथ राहुल गांधी ने पैदल यात्रा का नया कीर्तिमान स्थापित किया। इस यात्रा में राहुल गांधी ने देश को बखूबी समझा और ये पाया कि कमजोर वंचित मेहनतकश समाज के साथ मोदी सरकार बहुत अन्याय कर रही है। इसके लिए उन्होने अपनी दूसरी यात्रा की। भारत जोड़ो न्याय यात्रा राहुल गांधी ने मणिपुर से मुम्बई तक की। जलता हुआ मणिपुर सरकार के निकम्मेपन ही नहीं बल्कि उसकी विभाजनकारी नीति को भी दर्शाता है। समूचे देश को ऐसे ही विभाजन और वैमनस्य की आग में झोंक दिया गया। कहीं आदिवासियों के जल, जंगल और जमीन के अधिकार छीने जा रहे थे तो कहीं उनके मुंह पर पेशाब की जा रही थी।
खुद को पिछड़ा कहकर सत्ता में आये मोदी जाति जनगणना से मुकर गए। उन्हें न तो सम्मान मिल रहा है और ना ही संसाधनों में हिस्सेदारी। दलितों की स्थिति तो और भी बदतर बना दी गई। उनके आरक्षण पर डाका डाला गया। कहीं ऊना तो कही हाथरस दोहराया गया। किसानों पर लाठियां और गोलियां चलाईं गईं। किसान आंदोलन में 750 किसानों की शहादत हुई। कोरोना आपदा में लाखों लोग बिना दवा और ऑक्सीजन के मर गए। गंगा में तैरती लाशें और तेज लौ में जलती हुई चिताएं सरकार की बदनीयती को दिखाती हैं। कोरोना काल में बाबा रामदेव जैसे दवा व्यापारी मालामाल हो गए। महिला पहलवानों की अपनी अस्मत लूटने वाला पिशाच संसद में अट्टहास करता रहा। ऐसे असंख्य अन्याय मोदी की मनुवादी सोच का नमूना है।
राहुल गांधी लोगों को न्याय दिलाने के लिए सड़कों पर ही नहीं निकले बल्कि चुनाव मैदान में जाने से पहले उन्होंने एक विजन डॉक्युमेंट के रूप में अपना घोषणापत्र पेश किया। कांग्रेस पार्टी के घोषणा पत्र में सामाजिक न्याय के साथ-साथ आर्थिक न्याय की भी बात की गई है। एक तरफ दलित, आदिवासी, ओबीसी और महिलाओं को सामाजिक न्याय और सामाजिक सुरक्षा का संकल्प कांग्रेस के घोषणा पत्र में है। दूसरी तरफ किसानों और नौजवानों के लिए लंबे समय से चली आ रही मांगों को पूरा करने की गारंटी प्रदान की गई है। किसानों को एमएसपी लागू करने की गारंटी से लेकर ऋ ण माफी तक की योजनाएं घोषणापत्र में मौजूद हैं। केंद्रीय सेवाओं में नौजवानों को 30 लाख सरकारी नौकरियों के अलावा 1 वर्ष की अप्रेंटिसशिप का भी प्रोग्राम इसमें है। इस कार्यक्रम के जरिए एक लाख रुपये नौजवानों को मिलेंगे। इसी तरह प्रत्येक गरीब परिवार की एक महिला को प्रतिवर्ष 1 लाख रुपया बैंक खाते में ट्रांसफर करने की गारंटी दी गई है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि यह योजनाएं बहुत कैलकुलेटिव और व्यवहारिक हैं। ये 15 लाख खाते में आने और 2 करोड़ प्रति वर्ष रोजगार देने की तरह जुमले नहीं हैं।
जिस दिन कांग्रेस का यह घोषणा पत्र आया, भाजपा के खेमे में बेचैनी बढ़ गई। अभी यह घोषणा पत्र लोगों के सामने ठीक से आया भी नहीं था कि नरेंद्र मोदी ने इस पर सांप्रदायिक हमला बोल दिया। उन्होंने कहा कि कांग्रेस के घोषणा पत्र पर मुस्लिम लीग की छाप है। इतना सुनते ही कांग्रेस के समर्थकों ने ही नहीं बीजेपी के समर्थकों और नौजवानों ने भी इसका अध्ययन किया। इससे कांग्रेस को नुकसान होने के बजाय उल्टा उसके घोषणा पत्र का प्रचार हो गया। कांग्रेस का घोषणा पत्र एक तरह बीजेपी की पराजय का घोषणा पत्र भी बन गया। रातोंरात नौजवानों, किसानों, दलितों, पिछड़ों ने इस घोषणा पत्र को पढ़ा। इससे कांग्रेस के जनाधार के जनाधार में स्वत: इजाफा हुआ। जो कांग्रेस उत्तर भारत में चुनाव मैदान में ठहरी हुई नजर आ रही थी, घोषणा पत्र आने के बाद उसकी सक्रियता और चर्चा बढ़ गई। जो मीडिया कांग्रेस को दरकिनार कर रही थी, मोदी के हमले के बाद उसके मेनिफेस्टो पर चर्चा करने लगी। पूरे देश में कांग्रेस की उम्मीदों को पंख लग गए। भाजपा के समर्थक भी राहुल गांधी के दृष्टिकोण के मुरीद हो गए। लोकसभा के इस चुनाव में कांग्रेस के घोषणा पत्र ने एक मजबूत प्रभाव स्थापित कर दिया है। मतदान पर इस घोषणा पत्र की एक छाप दिखाई दे रही है।