- सर्वमित्रा सुरजन
ये दोनों अंतरिक्ष यात्री 9 महीने 14 दिन अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन आईएसएस में बिताने के बाद धरती पर वापस लौटे हैं। धरती पर कदम रखा इसलिए नहीं कह सकते कि इतना लंबा वक्त अंतरिक्ष में बिताने के बाद अभी उनके शरीर को धरती पर सामान्य तरीके चलने-फिरने का अभ्यस्त होने में वक्त लगेगा।
कल्पना, सुनीता ये नाम सुंदर हैं और आम भारतीय घरों में प्रचलित भी। इन सामान्य से लगने वाले वाले नामों की दो लड़कियों ने भारत सहित पूरी दुनिया पर अनूठी छाप छोड़ी है। कल्पना चावला और सुनीता विलियम्स इन दोनों की अंतरिक्ष यात्राएं समूचे अंतरिक्ष विज्ञान के लिए याद, सबक और मिसाल बन गईं। इनकी यात्राओं पर चर्चा करुंगी, लेकिन नाम का जिक्र इसलिए याद आया क्योंकि इस सदी में अनूठेपन के नाम पर अब काफी नए-नए तरह के नाम सुनने मिलते हैं, लोग अब अपने बच्चों का नाम रखने के लिए गूगल की मदद भी लेते हैं और ज्योतिष की सलाह भी। हालांकि शेक्सपियर तो सदियों पहले कह गए हैं कि नाम में क्या रखा है। गुलाब, गुलाब ही रहेगा, चाहे उसे किसी भी नाम से पुकारो। लेकिन भारतीय इस मामले में शेक्सपियर की बिल्कुल नहीं सुनते।
बच्चों के नामों में नयापन और इतिहास के नामों में धर्म के मुताबिक बदलाव, यही इस वक्त का चलन है। आश्चर्य होता है यह देखकर कि दुनिया में कितने तरह के काम, प्रयोग, शोध हो रहे हैं। विज्ञान, चिकित्सा, खेल, कला, व्यापार जीवन के हर पहलू में बड़ी तेजी से बदलाव हो रहे हैं। कारखानों, होटलों से लेकर आपरेशन थियेटर तक में रोबो से काम लिया जा रहा है। डीएनए का परीक्षण कर उसके बूते इंसान की आयु बढ़ाने, अपनी ही तरह का दूसरा इंसान पैदा करने, पैदा होने से पहले ही बीमारी का पता लगने पर इलाज करने जैसे कई आश्चर्यजनक काम किए जा रहे हैं। मानव अंगों के प्रत्यर्पण से एक इंसान की मौत के बाद उसे दूसरे इंसान में जिंदा रखा जा रहा है। छपी हुई मुद्रा के साथ आभासी मुद्रा का व्यापार हो रहा है। धरती, आकाश, पाताल हर जगह पहले इंसान की जिज्ञासा पहुंची, फिर इंसान ने खुद पहुंचने का रास्ता बना लिया। बुधवार सुबह ऐसे ही एक नए रास्ते को धरती के इंसानों ने देखा। जिसके दो राही खास थे बुच विल्मर और सुनीता विलियम्स।
ये दोनों अंतरिक्ष यात्री 9 महीने 14 दिन अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन आईएसएस में बिताने के बाद धरती पर वापस लौटे हैं। धरती पर कदम रखा इसलिए नहीं कह सकते कि इतना लंबा वक्त अंतरिक्ष में बिताने के बाद अभी उनके शरीर को धरती पर सामान्य तरीके चलने-फिरने का अभ्यस्त होने में वक्त लगेगा। जैसे 9 महीने मां की कोख में रहने के बाद जब बच्चा जन्म लेता है, तो धीरे-धीरे कदम संभालना सीखता है। अनोखा संयोग है कि सुनीता विलियम्स और बुच विल्मर 9 महीने उस धरती से दूर रहे, जो इंसानी जीवन की जननी है। बुधवार सुबह भारतीय समय के मुताबिक 3 बजकर 27 मिनट पर जब इन दो अंतरिक्ष यात्रियों के साथ अमेरिका के निक हेग और रूस के अलेक्सांद्र गोरबुनोव, यानी कुल चार यात्रियों को लेकर अंतरिक्ष यान ने फ्लोरिडा के समुद्र में डुबकी लगाई तो विज्ञान और मानवता दोनों ने नयी प्राणवायु पाई।
पाठक जानते हैं कि केवल आठ दिनों के अंतरिक्ष सफर पर निकले सुनीता विलियम्स और बुच विल्मर को तकनीकी खराबी के कारण 9 महीने से ज्यादा का वक्त अंतरिक्ष में बिताना पड़ा। इस दौरान उन्हें लाने की कोशिशें होती रहीं। आखिरकार उन्हें लेने एक दूसरा यान भेजा गया और फिर उनकी सकुशल वापसी हुई। भारत में इस दौरान सुनीता विलियम्स के रिश्तेदारों के घरों से लेकर देश में जगह-जगह पूजा पाठ हुए, उनकी सुरक्षित वापसी के लिए हवन किए गए। भारतीय मूल की होने के कारण इतना लगाव स्वाभाविक है। इसी तरह जब कल्पना चावला भी अंतरिक्ष में गई थीं, तो उनके अमेरिकी नागरिक होने के बावजूद भारतीय इस बात को गर्व से कहते थे कि वे हरियाणा की हैं, यहीं पली बढ़ी, हालांकि बाद में वे उच्च शिक्षा के लिए अमेरिका गईं और फिर वहीं की नागरिक हो गईं। कल्पना चावला के अंतरिक्ष सफर का अंत दर्दनाक था, अंतिम क्षणों में उनका यान आग के गोले में तब्दील हो गया। हालांकि उनके असाधारण काम आज भी याद किए जाते हैं।
सुनीता और कल्पना, अगर केवल इन दो नामों का जिक्र करें तो अभी बेशक अंतरिक्ष यात्री की पोशाक में सज्जित दो महिलाओं की शक्ल हमारी आंखों के सामने आएगी, लेकिन इसके साथ एक कड़वी सच्चाई यह है कि इन दो नामों के साथ-साथ, ऐसी सैकड़ों, लाखों लड़कियां हैं, जो ऐसे ही असाधारण काम करके अपने नामों को हमेशा के लिए यादगार बना सकती हैं, लेकिन उनके सपनों की उड़ान के लिए कोई आकाश ही बचने नहीं दिया जाता। अगर किसी ने हिम्मत दिखाई भी तो सपने उसी तरह राख कर दिए जाते हैं, जैसे कल्पना चावला का यान राख बन गया था। सुनीता विलियम्स तो पहले से अमेरिका में थीं और कल्पना चावला बाद में वहां गईं, लेकिन भारत में रहकर क्या इन्हें ऐसे मौके मिल पाते, इस सवाल का जवाब सब जानते हैं।
अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में भारत में भी खूब काम हो रहा है, कई वैज्ञानिक इसरो में काम करती हैं, जिनके बारे में बताने के लिए अलग से महिला वैज्ञानिक लिखना पड़ता है। क्या कभी किसी पुरुष वैज्ञानिक का जिक्र हम इस तरह से करते हैं, यह भी सोचना चाहिए। बहरहाल, अलग-अलग क्षेत्रों में योग्यता और श्रेष्ठता के पैमाने पर बार-बार खुद को साबित करने के बावजूद महिलाओं को बड़ी मुश्किल से अवसर मिलते हैं और वह भी अपवाद के तौर पर। वर्ना समाज का आलम तो ऐसा है कि अब भी लड़की अपने पिता, भाई, पति या किसी पुरुष रिश्तेदार के साथ घर से बाहर निकले तभी सुरक्षित मानी जाती है। जो लड़कियां सारी चुनौतियों को पार करके घर से बाहर निकल चुकी हैं, अपना कार्यक्षेत्र तय कर चुकी हैं, वहां उन्हें कितने तरह के भेदभाव का सामना करना पड़ता है, इस पर लिखने बैठें तो अलग पोथी तैयार हो जाएगी।
फिलहाल खुशी का दिन है कि सुनीता विलियम्स इतिहास रच कर वापस लौटीं, उन्हें लेने जो यात्री अंतरिक्ष में गए थे, उनमें रूस, जापान, अमेरिका के नागरिक थे। अपने अमेरिकी सहयोगी के साथ जब सुनीता लौटीं तो केवल भारत और अमेरिका नहीं पूरी दुनिया ने इस ऐतिहासिक क्षण की खुशियां मनाईं। धरती पर रहकर छोटी-छोटी बातों और स्वार्थों में इंसान उलझ कर पूरा जीवन व्यर्थ बिता देता है। उस वक्त ऐसी घटनाएं सोचने पर मजबूर कर देती हैं कि कितना कुछ कर गुजरने की ताकत इंसान को हासिल है। जब अंतरिक्ष में इंसान पहुंचता है तो धरती की सीमाओं के साथ, उन बंधनों से भी मुक्त होता है, जो खुद इंसान ने अपने लिए बना लिए हैं। वहां पासपोर्ट की पहचान से परे सब केवल इंसान होते हैं, जो भविष्य को बेहतर बनाने के लिए प्रयोग करते हैं, नयी संभावनाओं को खटखटाते हैं।
सुनीता विलियम्स और बुच विल्मर की सकुशल वापसी के लिए उन्हें लेने गए यात्रियों के अलावा एलन मस्क भी बधाई के पात्र हैं, जिन्होंने इस काम में अपना खास योगदान दिया और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इसमें उनका साथ दिया। हालांकि कुछ दिनों पहले जिस अंदाज में ट्रंप ने इन यात्रियों की वापसी का जिक्र किया था, उसकी काफी आलोचना हुई थी। खैर राजनीति से परे, यह काम उन्हें तारीफ का हकदार बनाता है। इधर भारत में भी तमाम दलों ने इस पर बधाई दी है। प्रधानमंत्री मोदी ने इस वापसी का स्वागत किया है। भाजपा के कुछ नेता भारत की बेटी सुनीता विलियम्स की वापसी पर खुशी जता रहे हैं। हालांकि कुछ दिनों पहले भारत की एक और बेटी रंजनी श्रीनिवासन खुद निर्वासित होकर अमेरिका से भारत लौट आईं। कोलंबिया विवि में पीएचडी कर रही रंजनी श्रीनिवासन का वीज़ा अमेरिका ने इसलिए रद्द कर दिया, क्योंकि उन्होंने फिलीस्तीन के हक में आवाज़ उठाई थी। क्या भाजपा सरकार कभी रंजनी जैसी किसी बेटी के हक में भी कोई बात कहेगी।