- सर्वमित्रा सुरजन
गरीबी अभिशाप है, यह वाक्य कहने के लिए ठीक है, मगर हकीकत है कि गरीबी मानवनिर्मित त्रासदी है। इंसानी सभ्यता के शुरुआती दौर में सर्वाइवल ऑफ द फिटेस्ट यानी जो सर्वाधिक योग्य रहेगा, वो बचेगा, पनपेगा, ऐसी धारणा मानी जा सकती थी, भारत की आदि संस्कृति में इसी बात को दूसरे तरीके से कहा गया है कि -'दैवो दुर्बलघातक:' यानी भगवान भी दुर्बल को ही मारते हैं।
मुसीबत थी हमारे ही लिए क्यूं।
ये माना हम जिए लेकिन जिए क्यूं।।
19 वीं सदी में मिज़ार् मोहम्मद हादी अज़ीज़ लखनवी के लिखे इस शेर को पढ़कर 20वीं सदी में लिखे शकील बदायूंनी के अमर गीत की पंक्तियां याद आ गईं- दुनिया में हम आए हैं तो जीना ही पड़ेगा, जीवन है अगर जहर तो पीना ही पड़ेगा। फिल्म मदर इंडिया का यह गीत जैसे आज भी करोड़ों भारतीयों की हकीकत ही है। गुलामी के लंबे दौर के बाद हम आजाद हो गए, और अब तो आजादी के अमृत महोत्सव को मनाकर आगे भी निकल चुके हैं, लेकिन जीवन के प्याले में जहर खत्म होने की जगह बढ़ता ही जा रहा है।
गरीबी अभिशाप है, यह वाक्य कहने के लिए ठीक है, मगर हकीकत है कि गरीबी मानवनिर्मित त्रासदी है। इंसानी सभ्यता के शुरुआती दौर में सर्वाइवल ऑफ द फिटेस्ट यानी जो सर्वाधिक योग्य रहेगा, वो बचेगा, पनपेगा, ऐसी धारणा मानी जा सकती थी, भारत की आदि संस्कृति में इसी बात को दूसरे तरीके से कहा गया है कि -'दैवो दुर्बलघातक:' यानी भगवान भी दुर्बल को ही मारते हैं। लेकिन आज के युग में ऐसी बातें कतई स्वीकार्य नहीं होनी चाहिए। खासकर भारत के संदर्भ में बात करें तो यहां आजादी के बाद लोकतांत्रिक शासन प्रणाली को अपनाया गया, जिसमें राज्य पर लोककल्याणकारी होने की जिम्मेदारी तय की गई। अगर इस जिम्मेदारी को पूरी ईमानदारी के साथ निभाया जाए तो फिर न किस्मत को दोष देने की नौबत आएगी, न गरीबी को पिछले जन्म के कर्मों का परिणाम समझकर उसे अभिशाप कहा जाएगा।
आज भारत में अगर 80 करोड़ लोग गरीबी के कारण पांच किलो अनाज लेने पर मजबूर हैं तो यह सवाल सरकार से बनता है कि आखिर पांच सालों से चल रही इस योजना को और कितने साल चलाया जाएगा। कब हालात ऐसे बनेंगे कि हर हाथ को काम होगा ताकि आत्मसम्मान के साथ अपने भोजन-पानी का इंतजाम नागरिक खुद करें। अफसोस की बात है कि इस बुनियादी सवाल पर लगभग शून्य चर्चा होती है। अगर कहीं सवाल उठे तो मोदी महामानव हैं, अवतारी हैं, ऐसे कसीदे गढ़कर उन जवाबों को खारिज किया जाता है। हाल ही में भाजपा सांसद कंगना रानौत ने नरेन्द्र मोदी को अवतारी कहा है और ये अकेला या पहला उदाहरण नहीं है। जब से नरेन्द्र मोदी प्रधानमंत्री बने हैं, उन्हें प्रात:स्मरणीय बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी गई है। हालांकि ऐसी प्रशस्तियों से कोई इंसान वाकई भगवान का अवतार नहीं बन जाता, नरेन्द्र मोदी इंसान हैं और वहीं रहेंगे। और इंसान नरेन्द्र मोदी प्रधानमंत्री की कुर्सी पर जब बैठे हैं तो स्वाभाविक तौर पर उनसे ही सवाल किए जाएंगे कि अगर उनके शासन में लोगों को किसी भी किस्म का कष्ट है तो उन्हें दूर करने के लिए वे क्या उपाय कर रहे हैं।
मगर ऐसे सवाल करने की जगह हिंदू-मुस्लिम विमर्शों में वक्त जाया किया जा रहा है, या फिर ऐसी खबरें प्रसारित-प्रचारित हो रही हैं, जिनका जनसामान्य से कोई लेना-देना नहीं है। अभी पिछले साल मुकेश अंबानी के बेटे अनंत अंबानी की शादी के पहले के भव्य जलसे और बाद में शादी की धूमधाम कितने वक्त तक मीडिया में छाई रहीं ये पाठकों को याद होगा। फिर उन्हीं अनंत अंबानी के निजी जंगल वनतारा पर ऐसी खबरें बनने लगीं, हालंकि यहां भी जो सवाल उठाया जाना चाहिए था कि कैसे किसी व्यक्ति को जंगल बनाकर उसमें जंगली जानवरों को पालतुओं की तरह रखने की छूट दी गई, वो लगभग गुम ही रहा। अब अनंत अंबानी की एक और खबर कई दिनों तक दिखाई जाती रही। जामनगर से द्वारकाधीश तक की पदयात्रा उन्होंने की। रोजाना लगभग 20 किमी की यात्रा अनंत अंबानी 5-6 घंटे में करते थे।
एक व्यक्ति की निजी उद्देश्यों के लिए गई पदयात्रा किस तरह बाकी समाज का सरोकार बन सकती है, ये समझ से परे है। मगर पत्रकारिता के नाम पर चाटुकारों की मंडली ने इसमें कई किस्म की खबरें ढूंढ निकाली। जैसे अनंत अंबानी रोजाना हनुमान चालीसा और सुंदरकांड पढ़ते हुए चलते थे। अच्छी बात है, लेकिन इस देश में करोड़ों हिंदू रोजाना ऐसे ही पाठ करते हैं, तो क्या ये खबर बन गई। फिर बताया गया कि अनंत अंबानी कुशिंग सिंड्रोम नामक एक दुर्लभ हार्मोनल बीमारी से जूझते हैं, उन्हें मोटापा, अस्थमा जैसे कई रोगों की दिक्कत है। उनके अच्छे स्वास्थ्य लाभ की कामना है, लेकिन एक व्यक्ति किसी बीमारी से पीड़ित है और वो भक्ति और आस्था के साथ पदयात्रा कर रहा है, इसमें भी कौन सी खबर है। क्योंकि इस देश में करोड़ों लोग ऐसे हैं जो टीबी, अस्थमा, कैंसर, हेपेटाइटिस बी जैसी घातक बीमारियों के साथ-साथ बुखार, जुकाम आदि साधारण समझी जाने बीमारियों से भी जूझते हुए रोजाना काम करते हैं, ताकि जीवनयापन हो सके। ये काम लाव लश्कर के साथ की जाने वाली पदयात्रा से कहीं ज्यादा कठिन है। अगर घर में झाडू पोंछा, बर्तन करने वाली महिलाएं खुद की या बच्चों की बीमारी के कारण एक से दूसरे दिन की छुट्टी कर लें, तो लाखों कमाने वाले लोग उनके 2-3 हजार मासिक वेतन में से सौ-पचास रूपए काट लेते हैं। इस पर क्या कभी कोई खबर बनी है। पांच साल पहले लॉकडाउन के वक्त श्री मोदी ने मजबूरी में कितने लोगों को सैकड़ों किमी की पदयात्रा करने पर मजबूर कर दिया था, क्या उसे भूला जा सकता है। असली खबरें तो वहां थीं, लेकिन मीडिया में अनंत अंबानी अचानक ध्यानाकर्षण का नया किरदार बन गए हैं। इसकी असली वजह शायद आने वाले वक्त में सामने आए।
वैसे मुकेश अंबानी ने हाल ही में एक अवार्ड समारोह में कहा कि अब जमाना सर्वाइवल ऑफ द काइंडेस्ट का है, ये बात उन्होंने अपनी बेटी ईशा अंबानी को इंगित करके कही, ईशा को भी इस समारोह में अवार्ड मिला था। उनके मुताबिक दुनिया अब ज्यादा उदारता, सहानुभूति और सहृदयता की तरफ बढ़ रही है, इसलिए जमाना सबसे भले लोगों का है। अब पाठक खुद सोचें कि क्या वाकई ऐसा है। इजरायल गज़ा पर जो कहर बरपाया जा रहा है, उसकी खबरें यहां तक भी पहुंच रही हैं, मान लिया कि दूर होने के कारण लोग वहां के कष्ट को महसूस नहीं कर पा रहे। लेकिन क्या मणिपुर भी हमसे दूर है, क्या बिलकिस बानो भी हमसे दूर हैं, क्या गरीबों, अल्पसंख्यकों, महिलाओं, आदिवासियों पर रोजाना जो अत्याचार हो रहे हैं, वो भी किसी दूसरे ग्रह पर हो रहे हैं। लेकिन समाज को इन खबरों से अब पीड़ा कहां होती नजर आ रही है, क्योंकि समाज इन खबरों पर जब तक विचार करे, उसका ध्यान भटकाने के लिए नए मुद्दे खड़े कर दिए जाते हैं।
इसलिए हत्या, बलात्कार जैसे अपराधों में बंद गुरमीत राम रहीम जैसे अपराधी को बार-बार जेल से बाहर आने की इजाज़त मिल जाती है और उमर खालिद जैसे लोग बिना अपराध साबित हुए लंबे वक्त तक सलाखों के पीछे रखे जाते हैं। अभी 29 अप्रैल को डेरा सच्चा सौदा का स्थापना दिवस है, और मजे की बात है कि 13 बार फरलो पर बाहर आ चुका गुरमीत राम रहीम फिर 21 दिन के लिए बाहर है। कहने को उसे 20 साल की सजा मिली है, लेकिन असल में ये सजा के नाम पर मजाक बना कर रख दिया गया है। मीडिया में सवाल इस पर भी होने चाहिए, मगर पूरा यकीन है कि इसे दबाने के लिए फिर कोई कब्र खोदने, मजार तोड़ने जैसी धमकियों वाली खबर आ जाएगी। या फिर खड़गे जी को कांग्रेस अधिवेशन में अलग कुर्सी पर क्यों बिठाया गया और क्यों राहुल गांधी, सोनिया गांधी सोफे पर बैठे, ऐसे अनावश्यक मुद्दों पर माथापच्ची की जाएगी।
भारत के आम लोग जी तो रहे हैं, लेकिन जिंदा रहना जरूरी है, केवल इसलिए जी रहे हैं, इस जीने में सम्मान, खुशी, आराम, चैन ये सिरे से गायब है। बाकी लोगों को इन भावनाओं का अहसास कराने का एक और खेल सामने आया है, मुकेश अंबानी के जियो फाइनेंस लिमिटेड ने एक नई सुविधा शुरू की है, जिसके तहत डीमैट खाते में रखे शेयर और म्यूचुअल फंड को गिरवी रखकर कर्ज लिया जा सकता है। बताया गया है कि 10 मिनट में एक करोड़ का कर्ज मिल जाएगा। तो आभासी करोड़पति होने का जश्न मनाइए और जीते जाइए।