• केंद्रीय मंत्रियों द्वारा चुनावी दौरों में संघीय शिष्टाचार का उल्लंघन

    अब प्रधानमंत्री एवं अन्य केन्द्रीय मंत्रियों द्वारा एक नियम सा बना लिया गया है कि जब किसी राज्य में विधानसभा चुनाव आसन्न होते हैं

    Share:

    facebook
    twitter
    google plus

    - डॉ. हनुमन्त यादव

    अब प्रधानमंत्री एवं अन्य केन्द्रीय मंत्रियों द्वारा एक नियम सा बना लिया गया है कि जब किसी राज्य में विधानसभा चुनाव आसन्न होते हैं तो राज्य का दौरा करके नई योजनाओं की घोषणा करते हैं, स्वीकृत योजनाओं का शिलान्यास करते हैं और पूरी हो चुकी योजनाओं का उद्घाटन करते हैं। यह एक प्रकार से राज्य के मतदाताओं को अपने दल के पक्ष में मतदान करने के प्रलोभन समान है।  विरोधी दल भी इसका मतलब समझते हैं।

    भारतीय संविधान के अुनसार भारत में वर्तमान में त्रिस्तरीय संघीय शासन व्यवस्था है । संविधान के अनुसार केन्द्र, राज्य एवं स्थानीय सरकारों  के अधिकार एवं कार्य क्षेत्र विभाजित हैं, इसलिए केन्द्र सरकार  एवं राज्यों की सरकारों के बीच विवाद की गुंजाइश कम ही रहती है। फिर भी यदि कोई विवाद होता है तो उसके लिए न्यायाधिकरण की व्यवस्था होती है। केन्द्रीय वित्त आयोग की अनुशंसा अनुसार पर केन्द्र सरकार के कर राजस्व का एक हिस्सा राज्य सरकारों को और राज्य वित्त आयोग की सिफारिश पर राज्यों के कर राजस्व व केन्द्रीय अनुदान का एक हिस्सा पंचायती राज सस्ंथाओं एवं नगरीय निकायों को मिलता है। विधानमंडल द्वारा स्वीकृत बजट में आबंटित धनराशि का उपयोग मदों के सही उपयोग एवं भौतिक उपलब्धि का परीक्षण महालेखाधिकारी द्वारा की जाती है एवं उसकी सालाना रिपोर्ट विधानमंडल के पटल पर रखी जाती है।

    हमारे देश की बहुदलीय संसदीय शासन व्यवस्था के पहले चरण की शुरूआत लोकसभा, विधानसभा और स्थानीय निकायों के चुनाव से होती है, जिसके अंतर्गत लोकसभा में बहुमत प्राप्त करने वाले दल या गठबंधन का नेता केंद्र में प्रधानमंत्री के रूप में और राज्यों की  विधानसभाओं में बहुमत प्राप्त करने वाले दल या गठबंधन का नेता मुख्यमंत्री के रूप में सरकार बनाता है। उसी प्रकार स्थानीय  ग्रामीण एवं नगरीय निकायों में बहुमत प्राप्त करने वाला व्यक्ति उनका प्रशासन संभालता है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 324 से 329 में चुनाव और चुनाव सुधार की बात कही गई है। स्वच्छ लोकतंत्र एवं स्वच्छ राजनीति को बढ़ावा देने के लिए चुनाव प्रणाली में सुधार जरूरी है इसलिए समय-समय चुनाव सुधार के  प्रयास होते रहे हैं । 1974 से 1998 की अवधि में चार समितियां चुनाव सुधार हेतु गठित की गई थी। चुनाव आयुक्त भी समय-समय पर चुनाव सुधार हेतु प्रयास करते रहे हैं। इस प्रकार चुनाव सुधार एक निरन्तर प्रक्रिया है जो चलती रहनी चाहिए।

    2014 के आम चुनाव में भाजपा ने नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का अपना उम्मीदवार घोषित करते हुए नरेन्द्र मोदी के नाम से चुनाव प्रचार किया गया। नरेन्द्र मोदी ने अपनी प्रभावशाली भाषणकला और वाकपटुता से मतदाताओं को प्रभावित करते हुए भाजपा को जीत दिलाई थी। उसके बाद तो विधानसभा के चुनावों और उपचुनावों में भाजपा की जीत दिलाने के लिए हर स्थान पर चुनावी प्रचार हेतु रैलियां आयोजित की जाती थी। 2014 के लोकसभा चुनाव में जीत के बाद अनेक राज्यों के विधानसभा चुनाव में भाजपा की चुनावी रैलियों में प्रधानमंत्री द्वारा धुआंधार प्रचार के बावजूद दिल्ली, छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश और राजस्थान में भाजपा की हार हुई।

    मार्च 2017 से पहले केन्द्र सरकार की राज्यों के आगे आने वाले पांच साल में केन्द्र सरकार द्वारा 100 प्रतिशत अनुदान से पोषित कौन-कौन सी योजनाएं चलाई जाएंगी व केन्द्र सरकार राज्य सरकार की कौन-कौन सी योजना को 30 प्रतिशत अनुदान देगा, इसकी सहमति केन्द्र सरकार के योजना आयोग व राज्यों के  मुख्यमंत्रियों की बैठक में आम सहमति से तय होता था तथा योजना आयोग उन योजनाओं की प्रगति की समय-समय पर समीक्षा करता था।

    2014 में नरेन्द्र मोदी ने प्रधानमंत्री बनने के बाद सबसे महत्वपूर्ण इकतरफा घोषणा केन्द्रीय योजना आयोग को समाप्त करने की, यह इसलिए संभव हो सका 60 साल के योजना आयोग के कार्यकाल के बावजूद केंद्र में सत्तारूढ़ किसी भी सरकार ने योजना आयोग को संवैधानिक दर्जा देने की जरूरत नहीं समझी थी। योजना आयोग के भंग होने के बाद राज्यों के लिए केन्द्र पोषित योजनाओं को स्वीकृत करना वित्त मंत्रालय के माध्यम से प्रधानमंत्री के अधिकार क्षेत्र में आ गया है। अब प्रधानमंत्री एवं अन्य केन्द्रीय मंत्रियों द्वारा एक नियम सा बना लिया गया है कि जब किसी राज्य में विधानसभा चुनाव आसन्न होते हैं तो राज्य का दौरा करके नई योजनाओं की घोषणा करते हैं, स्वीकृत योजनाओं का शिलान्यास करते हैं और पूरी हो चुकी योजनाओं का उद्घाटन करते हैं। यह एक प्रकार से राज्य के मतदाताओं को अपने दल के पक्ष में मतदान करने के प्रलोभन समान है।  

    विरोधी दल भी इसका मतलब समझते हैं किंतु विरोधी दलों द्वारा चुनाव आयोग से इस प्रकार के कार्यक्रमों का न तो विरोध किया जाता है न ही वे इनको चुनाव सुधारों में शामिल करने की मांग करते हैं। 30 अप्रैल से पहले असम, केरल, पुडुचेरी, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल में चुनाव होने हैं इसलिए चुनाव आयोग द्वारा चुनाव आचार सहिंता मार्च माह में कभी भी लगाई जा सकती है। इसलिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा चुनावी घोषणा, शिलान्यास और पूर्ण योजनाओं को राष्ट्र को समर्पित करने हेतु दौरे 28 फरवरी 2021 तक पूरे कर लेना चाहते हैं।

    जिन पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं उनमें भाजपा के लिए पश्चिम बंगाल सबसे महत्वपूर्ण चुनाव बन गया है। चुनाव में राजनीतिक दलों के संगठनों द्वारा अपने कार्यकर्ताओं के माध्यम से चुनाव प्रचार किया जाता है। पश्चिम बंगाल के चुनाव में भाजपा अध्यक्ष की अगुवाई में परिवर्तन यात्राओं को आयोजित करके चुनाव प्रचार किया जा रहा है। किंतु गृहमंत्री अमित शाह द्वारा चुनावी रैलियों को संबंोधित करते हुए जिस प्रकार से राज्य की कानून व्यवस्था, भ्रष्टाचार व केन्द्रीय योजनाओं को लागू नहीं किए जाने के आरोप लगाए जा रहे हैं। केन्द्रीय गृहमंत्री द्वारा मुख्यमंत्री का नाम लेते हुए आलोचना  भारतीय संविधान की संघीय शिष्टाचार व्यवस्था के प्रतिकूल है। प्रधानमंत्री पश्चिम बंगाल का दौरा योजनाओं के शिलान्यास व उद्घाटन हेतु कर रहे हैं किंतु मेरा अभिमत है कि गृहमंत्री अमित शाह का पश्चिम बंगाल दौरा सत्ता का दुरूपयोग है। यदि गृहमंत्री अमित शाह भारत के महालेखाधिकारी या  केन्द्रीय सतर्कता आयोग की रिपोर्ट का हवाला देते हुए मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पर आरोप लगाते तो बेहतर होता।

    आश्चर्य की बात यह है कि टीएमसी, कांग्रेस व वामपंथी दलों द्वारा चुनाव आयोग से इसकी शिकायत से परहेज किया गया है।  इसलिए मैं समझता हूं कि सबसे बेहतर यह है कि  प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह स्वयं ही अपनी आचार संहिता बना कर घोषणा करें कि वे विधानसभा चुनावों में चुनावी रैलियों को संबोधित करने नहीं जाएंगे, ऐसा करके वे स्वस्थ परम्परा प्रारंभ करेंगे। 

     

    Share:

    facebook
    twitter
    google plus

बड़ी ख़बरें

अपनी राय दें