- डॉ. ज्ञान पाठक
राष्ट्रीय सम्मेलन ने कहा कि श्रम संहिताओं को लागू करने का निर्णय कॉर्पोरेट वर्ग की चल रही परियोजना का अभिन्न अंग है, जो आम लोगों के बुनियादी लोकतांत्रिक और संवैधानिक अधिकारों पर भारी अंकुश लगाने के लिए हैं, जिसमें अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और असहमति के अधिकार शामिल हैं। भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) के नवीनतम संस्करण सहित यूएपीए, पीएमएलए जैसे कई अधिनियमों के माध्यम से सामूहिक असहमति पर अंकुश भी इसी का अंग है।
10 केंद्रीय ट्रेड यूनियनों और स्वतंत्र क्षेत्रीय संघों और संगठनों के संयुक्त मंच द्वारा आयोजित राष्ट्रीय श्रमिक सम्मेलन में विवादास्पद चार श्रम संहिताओं के खिलाफ घोषणा को अपनाने के बाद श्रमिकों इसके विरोध में अभियान फिर से शुरु हो गया है जो दो महीनों तक चलेगा तथा जिसके समापन के दिन 20 मई को श्रमिकों की राष्ट्रव्यापी आम हड़ताल होगी।
उधर केंद्र सरकार, जो 1 अप्रैल, 2025 से श्रम संहिताओं को लागू करने की संभावना का आकलन करने के लिए पहले से ही उच्च स्तरीय बैठकें कर रही थी, अब यह जानने के लिए जमीनी स्तर की स्थिति का पुनर्मूल्यांकन कर रही है कि क्या वित्तीय वर्ष 2025-26 की शुरुआत से श्रम संहिताओं को लागू करना अभी भी संभव है?
18 मार्च, 2025 को नई दिल्ली में आयोजित श्रमिकों के राष्ट्रीय सम्मेलन द्वारा अपनायी गयी घोषणा में कहा गया है कि पीएम नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार श्रम संहिताओं को लागू करने में अत्यधिक सक्रिय हो गये है। ये संहिताएं उनके कार्यस्थलों पर श्रमिकों के लगभग सभी अधिकारों और हकों को छीन लेंगी।
सीटीयू/फेडरेशन इसे काम के घंटे, न्यूनतम मजदूरी, सामाजिक सुरक्षा आदि सहित परिभाषित कार्य स्थितियों से संबंधित श्रमिकों के सभी बुनियादी अधिकारों के लिए एक गंभीर चुनौती के रूप में लेते हैं, और साथ ही मानते हैं कि इस तरह उनके संघीकरण, मान्यता, सामूहिक सौदेबाजी, आंदोलन/संघर्ष और हड़ताल आदि के अधिकार सहित विरोध के किसी भी रूप की सामूहिक अभिव्यक्ति को छीनने की कोशिश की जा रही है। उनके अनुसार श्रमिकों द्वारा किसी भी सामूहिक असहमति के खिलाफ क्रूर और प्रतिशोधात्मक दंडात्मक उपाय किये जा रहे हैं। संक्षेप में, श्रम संहिताएं कॉर्पोरेट/नियोक्ता वर्ग के हितों में कामकाजी लोगों पर आभासी गुलामी की स्थिति थोपने का खाका हैं।
घोषणापत्र में कहा गया है, 'गठबंधन व्यवस्था के माध्यम से तीसरी बार केंद्र में सत्ता में आने के बाद सरकार मेहनतकश आबादी के भारी बहुमत के जीवन और आजीविका पर अपनी कॉर्पोरेट गुलामी नीति को लागू करने के लिए बेहद बेताब हो गयी है। इसके परिणामस्वरूप गरीबी बढ़ती जा रही है, भुखमरी और कुपोषण का प्रसार गरीबी के स्तर से नीचे हो रहा है,बेरोज़गारी में बेतहाशा वृद्धि हो रही है और साथ ही नौकरियों की गुणवत्ता में भारी गिरावट अमानवीय स्तर तक पहुंच गयी है।'
घोषणापत्र में कहा गया है कि इसके साथ ही कॉर्पोरेट और बड़े-व्यापारियों का मुनाफ़ा अब तक के उच्चतम स्तर पर पहुंच गया है। नवीनतम आधिकारिक आर्थिक सर्वेक्षण का हवाला देते हुए इसमें कहा गया है कि अनौपचारिक अर्थव्यवस्था के श्रमिकों का वेतन वर्ष 2017-2018 के स्तर से 2023-2024 में गिर गया है। इसके विपरीत रोजगार में वृद्धि केवल 1.5 प्रतिशत थी। आकस्मिक पुरुष श्रमिक प्रतिदिन 203 रुपये से 242 रुपये के बीच कमा रहे थे, जबकि महिलाओं को प्रतिदिन 128 से 159 रुपये के बीच मेहनताना मिल रहा था। इसी सर्वेक्षण रिपोर्ट में यह भी दर्शाया गया है कि कॉर्पोरेट क्षेत्र के मुनाफे में 22.3 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।
जहां तक असमानता का सवाल है, घोषणापत्र में कहा गया है, 'हमारे देश में असमानताएं बढ़ रही हैं। 5 प्रतिशत शीर्ष आबादी के पास 70 प्रतिशत संपत्ति है, जबकि नीचे से 50 प्रतिशत लोगों के पास संपत्ति में केवल 3 प्रतिशत हिस्सा है। सबसे अमीर भारतीय यूरोपीय अरबपतियों से भी अधिक अमीर हैं, जबकि सबसे गरीब भारतीय मेडागास्कर से भी अधिक गरीब हैं, जहां वर्तमान शासन के दस वर्षों से अधिक के दौरान गरीबी में 17 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। प्रतिष्ठित संस्थानों द्वारा किये गये अंतरराष्ट्रीय अध्ययनों के अनुसार 2018 में 90 प्रतिशत परिवारों को अंतररार्ष्ट्रीय मानकों से भी अधिक गरीब माना गया।'
राष्ट्रीय सम्मेलन ने कहा कि श्रम संहिताओं को लागू करने का निर्णय कॉर्पोरेट वर्ग की चल रही परियोजना का अभिन्न अंग है, जो आम लोगों के बुनियादी लोकतांत्रिक और संवैधानिक अधिकारों पर भारी अंकुश लगाने के लिए हैं, जिसमें अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और असहमति के अधिकार शामिल हैं। भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) के नवीनतम संस्करण सहित यूएपीए, पीएमएलए जैसे कई अधिनियमों के माध्यम से सामूहिक असहमति पर अंकुश भी इसी का अंग है। लगभग सभी प्रकार के शासन को फासीवादी इरादे से उग्र रूप से अधिनायकवादी बनाने के उद्देश्य से कई प्रशासनिक और कार्यकारी उपाय किये जा रहे हैं। इनका उद्देश्य राष्ट्रीय हित के खिलाफ कॉर्पोरेट समर्थक नीतियों के सभी लोकतांत्रिक और सामूहिक विरोध को कुचलना है। घोषणा में कहा गया है कि सामूहिक कार्रवाई, यहां तक कि श्रमिकों और उनके यूनियनों द्वारा सामूहिक शिकायत दर्ज करने को बीएनएस की धारा 111 के अनुसार 'संगठित अपराध' के रूप में व्याख्या करने की कोशिश की जा रही है, जिसके परिणामस्वरूप श्रमिकों और उनके यूनियन नेताओं की गैर-जमानती कारावास सहित कठोर पुलिस कार्रवाई हो रही है। कई राज्यों में प्रबंधन या श्रम विभाग के समक्ष अपनी शिकायत सामूहिक रूप से प्रस्तुत करने पर श्रमिकों और यूनियन नेताओं के विरुद्ध आपराधिक कार्रवाई की ऐसी घटनाएं पहले ही शुरू हो चुकी हैं, जिनमें ट्रेड यूनियन नेताओं और कार्यकर्ताओं को अनेक मामलों में फंसाया गया है।
इन मांगों को ध्यान में रखते हुए, घोषणापत्र में कहा गया कि श्रम संहिताओं के क्रियान्वयन को राष्ट्रीय स्तर पर एकजुट कार्रवाई और साथ ही एकजुट क्षेत्रीय प्रतिरोध के माध्यम से मजदूर वर्ग द्वारा देशव्यापी एकजुट विरोध और प्रतिरोध के माध्यम से रोका जाना चाहिए और निर्णायक रूप से पराजित किया जाना चाहिए। यह मजदूर वर्ग के आंदोलन के साथ-साथ देश के शासन के संवैधानिक और लोकतांत्रिक ढांचे की रक्षा के लिए जीवन-मरण का प्रश्न है।
10 केंद्रीय ट्रेड यूनियनों-इंटक, एटक, एचएमएस, सीटू, एआईयूटीयूसी, टीयूसीसी, सेवा, एआईसीसीटीयू, एलपीएफ, और यूटीयूसी - और स्वतंत्र राष्ट्रीय क्षेत्रीय महासंघों और संघों द्वारा तैयार किये गये श्रमिक अभियान में अप्रैल 2025 के मध्य तक राज्य, जिला और क्षेत्रीय सम्मेलनों का आयोजन शामिल है। श्रम संहिताओं के कार्यान्वयन की घोषणा के अगले दिन ही प्रतिरोध प्रदर्शन आयोजित किये जायेंगे और उसके बाद 20 मई, 2025 को आम हड़ताल तक व्यापक अभियान चलाया जायेगा। अप्रैल और मई 2025 के दौरान पूरे देश में पैदल, साइकिल और मोटर वाहन मार्च का आयोजन किया जायेगा। राष्ट्रीय, राज्य, जिला और स्थानीय स्तर के अलावा कार्यशालाओं में भी विरोध प्रदर्शनों की योजना बनायी गयी है।
अधिकांश राज्यों ने पहले ही चार श्रम संहिताओं के तहत नियम बना लिये हैं, लेकिन कई केंद्रीय और राज्य नियमों में अंतर बना हुआ है। मतभेदों के साथ, एक बार में श्रम संहिता को सुचारू रूप से लागू करना असंभव है। श्रम संहिताओं को लागू करने के खिलाफ श्रमिकों के आंदोलन ने अब केंद्र को अपनी मौजूदा रणनीति पर पुनर्विचार करने के लिए मजबूर कर दिया है, हालांकि उसने पहले ही श्रम संहिताओं के कुछ प्रावधानों को अधिसूचित कर दिया है। इसलिए आने वाले दो महीने देश में औद्योगिक संबंधों के लिए महत्वपूर्ण हैं।