साल 2021 के पहले मन की बात में प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि हमारी छोटी-छोटी बातें, जो एक-दूसरे को, कुछ, सिखा जाये, जीवन के खट्टे-मीठे अनुभव जो, जी-भर के जीने की प्रेरणा बन जाये - बस यही तो है 'मन की बात।' ये परिभाषा उम्मीदों से भरी लगती है। और मन की बात कार्यक्रम में अक्सर जिन बातों का जिक्र होता है, वे सब चंगा सी का ही विस्तार लगता है। ऐसा लगता है मानो हम किसी स्वप्नलोक में हैं, जहां कोई दर्द, कोई तकलीफ नहीं है। आंखें बंद करें तो बंजर जमीन पर स्ट्राबेरी की सुंदरता और सुगंध फैली दिखती है। गम और खुशी में फर्क न महसूस हो जहां, क्या वाकई देश ऐसे ही किसी मुकाम पर वाकई में आ गया है, या मन की बात उस दर्दनिवारक दवा की तरह है, जो कुछ वक्त के लिए आपको राहत देती है, लेकिन उससे दर्द की वजह खत्म नहीं होती।
जीवन के खट्टे-मीठे अनुभवों से सीखने-सिखाने या जी भर के जीने की बात करने या स्ट्राबेरी का उत्सव मनाने से पहले क्या एक बार हमें अपने आसपास निगाहें डालकर नहीं देखना चाहिए कि देश वाकई किन मुद्दों से जूझ रहा है। क्या उन मुद्दों से आंखें मूंदकर हम अपना भविष्य या देश का भविष्य सुरक्षित रख सकते हैं। इस वक्त देश में एक साथ कई बड़ी समस्याएं हैं। कोरोना खत्म नहीं हुआ है, अलबत्ता वैक्सीनेशन का काम तेजी से हो रहा है, लेकिन अब भी सावधान रहने की जरूरत है।
महंगाई किसी तरह काबू में नहीं आ रही है। पेट्रोल-डीजल के दाम बढ़ने से आम जनता लाचार महसूस कर रही है। बेरोजगारी पहले की तरह युवाओं को परेशान कर रही है और आत्मनिर्भर भारत अभियान से कोई खास राहत मिलती नहीं दिख रही है। देश की राजधानी की तीन सीमाओं पर दो महीने से हजारों किसान डटे हुए हैं और रोजाना इस आंदोलन की पेचीदगियां बढ़ती जा रही हैं। अब तो कश्मीर की तरह सरकार को बार-बार इंटरनेट पर पाबंदी की जरूरत पड़ रही है। इसे किसी लिहाज से सामान्य स्थिति नहीं कहा जा सकता।
26 जनवरी को लालकिले पर जो घटना घटी, उसमें भी सच्ची-झूठी खबरों और दावों की बाढ़ आ गई है। एक बार आग लग जाए और भड़क जाए, तो फिर यह पता करना कठिन होता है कि आग में किसने कितना घी डाला और कितना उसे भड़काया। हमारी प्राथमिकता आग बुझाने की होनी चाहिए, लेकिन अभी वैसा होता नहीं दिख रहा है।
लाल किला देश के लिए मात्र एक ऐतिहासिक धरोहर ही नहीं है, हमारी आजादी, धर्मनिरपेक्षता, संप्रभुता का प्रतीक भी है और उस पर लहराता तिरंगा हमारी आन-बान-शान है। इसलिए इनके साथ किसी भी किस्म की बेअदबी स्वीकार्य नहीं होनी चाहिए। 26 जनवरी को जिन लोगों ने इस सम्मान को ठेस पहुंचाने की कोशिश की, उन पर जरूर कानूनी कार्रवाई होनी चाहिए। लेकिन इस कार्रवाई के नाम पर अगर निर्दोषों को निशाना बनाने की कोशिश हो, तो यह भी देश के लिए ठीक नहीं है।
फिलहाल देश में बहुत से लोग इस घटना के लिए सीधे आंदोलन कर रहे किसानों को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं और इस बहाने वे चाहते हैं कि आंदोलन खत्म हो जाए। लेकिन किसान आंदोलन के कई बड़े नेताओं ने भी इस घटना की निंदा की है और वे चाहते हैं कि इसके दोषियों पर कार्रवाई हो। दरअसल तिरंगा किसी एक पार्टी, धर्म या जाति का नहीं है, ये पूरे देश का है और स्वाभाविक है कि हर देशवासी की भावनाएं इससे जुड़ी हैं। बीते वक्त में राष्ट्रवाद और देशभक्ति के नाम पर बहुत से विवाद खड़े हो चुके हैं, कम से कम इस विवाद से तिरंगे को दूर रखना चाहिए।