• किसान आंदोलन समाप्ति के कोई आसार नहीं

    अब यह बात स्पष्ट हो चुकी है कि किसान नेताओं ने आंदोलन को लंबे समय तक चलाने के लिए एक दीर्घकालीन योजना और उसके अनुरूप रणनीति बनाकर आंदोलन प्रारंभ किया था

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    - डॉ. हनुमन्त यादव

    अब यह बात स्पष्ट हो चुकी है कि किसान नेताओं ने आंदोलन को लंबे समय तक चलाने के लिए एक दीर्घकालीन योजना और उसके अनुरूप रणनीति बनाकर आंदोलन प्रारंभ किया था। यही कारण है कि वे कृषि मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर द्वारा आमंत्रित बैठक में हिस्सा भी लेकर कृषि सुधार कानूनोंं को वापस लेने की एक सूत्री मांग करते रहे किन्तु सरकार के साथ बैठक से इंकार नहीं किया।

    किसान आंदोलन के 89 दिन पूरे हो चुके हैं। दिल्ली में 26 जनवरी को हुई हिंसक घटनाओं के बाद लगभग एक सप्ताह तक किसानों के दिल्ली सीमाओं पर धरने पर बैठे किसानों की संख्या कम होती देखकर ऐसा लगा था कि धरना धीरे-धीरे कमजोर हो जाएगा। किसान नेता राकेश टिकैत द्वारा किसानों से की गई भावनात्मक अपील के बाद पश्चिम उत्तरप्रदेश और हरियाणा की जाट खाप पंचायतों द्वारा राकेश टिकैत की अगुवाई में चल रहे किसान आंदोलन को जोरदार समर्थन करने के फैसले से आन्दोलन में पुन: स्फूर्ति आ गई है।  पूरे देश में किसानों का रेल रोको आंदोलन शांतिपूर्ण सफल रहा। यद्यपि किसानों का यह आंदोलन पंजाब की 32 किसान यूनियनों और हरियाणा उत्तरप्रदेश की 8 किसान यूनियनों द्वारा चलाया जा रहा है किंतु ऐसा लगता है कि अब इस आंदोलन की बागडोर राकेश टिकैत के हाथंों में आ चुकी है। सारे पत्रकार किसान आंदोलन के बारे में जानकारी लेने के लिए राकेश टिकैत से ही मिलते हैं और उनसे बातचीत करके कोई भी पत्रकार निराश नही होता  हैं,  क्योंकि उसको कुछ न कुछ नया मसाला प्रकाशन हेतु राकेश टिकैत से मिल ही जाता है। 

    अब यह बात स्पष्ट हो चुकी है कि किसान नेताओं ने आंदोलन को लंबे समय तक चलाने के लिए एक दीर्घकालीन योजना और उसके अनुरूप रणनीति बनाकर आंदोलन प्रारंभ किया था। यही कारण है कि वे कृषि मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर द्वारा आमंत्रित बैठक में हिस्सा भी लेकर कृषि सुधार कानूनोंं को वापस लेने की एक सूत्री मांग करते रहे किन्तु सरकार के साथ बैठक से इंकार नहीं किया। सरकार भी कृषि सुधार कानूनों को वापस लेने पर अडिग रही। यदि केवल कृषि सुधार कानूनों को वापस लेेेने की अकेली एक ही मांग होती तो संभवत: सरकार उनको वापस लेने पर तैयार हो जाती। किंतु 2019 आम चुनाव के बाद भाजपा सरकार ने तीन संवैधानिक फैसले लेकर क्रियान्वयन भी कर दिया था किंतु कृषि सुधार कानूनों की वापसी से वे आंदोलन पुन: प्रारंभ हो जाते जिनमें धारा 370 और 35 ए की वापसी, लद्दाख को जम्मू-कश्मीर राज्य से अलग कर स्वतंत्र राज्य का गठन, नागरिकता संशोधन अधिनियम, आदि प्रमुख हैं।

    बताया जाता है कि पंजाब में सिख किसान संगठनों ने सितंबर महीने से ही आंदोलन के लिए हर किसान परिवार के लिए मासिक चन्दा तय करके वसूली प्रारंभ कर दी थी। भारत में पंजाब के किसान सबसे अधिक संपन्न माने जाते हैं, उसके तीन कारण हैं: पहला, सभी महीनों में सिंचाई की सुविधा उपलब्ध होने के कारण वे साल में तीन फसलें लेते हैं। दूसरा, अंग्रेजों के समय से ही अधिकांश परिवारों का कोई न कोई सदस्य फौज में रहा है, जिसके कारण उन्हें अनेक सुविधाओं के साथ अच्छी पेंशन मिलती रही हैं। पारिवारिक संपन्नता के कारण वे अपने बच्चों को इंग्लैंंड, अमेरिका, कनाडा आदि देशों में उच्च शिक्षा हेतु भेजते रहे हैं, जिनमें से अधिकांश को वहीं आकर्षक वेतन की नौकरियां मिल जाने के कारण वहीं की नागरिकता प्राप्त करके प्रवासी भारतीय बन जाते हैं, किंतु वे पंजाब स्थित परिवार के वरिष्ठ सदस्यों के लिए समुचित धनराशि भेजते रहते हैं। किसान परिवार के अन्य सदस्य लघु उद्योग प्रारंभ करके आज बड़े व्यवसायी हों चुके हैं। आज पंजाब के अधिकांश किसानों के घर पर टै्रक्टर और नए मॉडल की कार खड़ी देखी जा सकती है। 

    किसान आंदोलन को चंदे और उद्योगपतियों से प्राप्त प्रायोजित सुविधाओं के कारण दिसंबर और जनवरी की भयंकर सर्दी के बावजूद उनको धरने देने में किसी प्रकार की असुविधा महसूस नहीं हुई। यही कारण है कि बुजुर्ग किसानों के साथ-साथ महिलाएं और बच्चे भी धरने पर नजर आते रहे। सभी के टेंट में कंबल गद्दों के साथ-साथ हीटर भी लगा दिए गए थे। इन सुविधाओं को देखकर अनेक दिल्लीवासी मजाक में कहने लगे थे कि ऐसा लगता है कि किसान लोग ख्ेाती-बारी की थकान मिटाने के लिए अपने गांवों से बारी-बारी में धरने के नाम पर कुछ दिन पिकनिक मनाने चले आया करते हैं। किसान नेता राकेश टिकैत का कहना है कि अप्रैल से जून तक की गर्मियों से निबटने के लिए अभी से  ही एअर कंडीशनर और कूलर का इंतजाम करना प्रारंभ कर दिया गया है। अन्य राज्यों के किसान संगठनों के बीच हरियाणा और पश्चिम उत्तर प्रदेश की महाग्राम पचंायतों की बैठक इतनी अधिक लोकप्रिय  हों गई हैं कि उन्हें भारत के अन्य राज्यों से भी महाग्राम पंचायतों में संबोधन हेतु आमंत्रण प्राप्त हो रहे हैं। वे वहां जाने की योजना भी बना रहे हैं।

    भाजपा नेताओं द्वारा किसान आंदोलन के संबंध में कहा जाता रहा है कि खालिस्तानी और साम्यवादी दलों के संगठनों द्वारा किसानों को गुमराह करते हुए यह आंदोलन चलाया जा रहा है जिसे कांग्रेस पार्टी द्वारा समर्थन किया जा रहा है।  भारतीय किसान यूनियन के संस्थापक महेन्द्र सिंह टिकैत और उनके उत्तराधिकारी पुत्रों राकेश और नरेश टिकैत के संबंध में इस प्रकार के आरोप बेबुनियाद है। 2007 के उत्तरप्रदेश विधान सभा चुनाव में वे निर्दलीय चुनाव लड़े, वे हार गए और उनकी जमानत जब्त हो गई।  2014 के लोकसभा चुनाव में वे चौधरी अजीत सिंह के राष्ट्रीय लोकदल के उम्मीदवार के रूप में अमरोहा से चुनाव लड़े और हार गए।  2019 के चुनाव में भारतीय किसान यूनियन ने राष्ट्रीय लोकदल की बजाय भाजपा का समर्थन किया था और भाजपा विजयी हुई। राकेश टिकैत ने अगले कुछ महीनों का अपना राजनैतिक एजेंडा स्पष्ट करते हुए बताया है कि उनका लक्ष्य अगले दो-तीन सालों में राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों और पंचायत चुनावों  में किसान विरोधी पार्टी भाजपा को पराजित करना है इसके लिए वे उन राज्यों में जाकर किसानों से भाजपा उम्मीदवारों को हराने के लिए अपील करेंगे। 

    चार माह पूर्व राकेश टिकैत ने एक नहीं तीन बार बयान दिए थे कि यदि सरकार एम.एस.पी. को कायम रखने की गारंटी दे दे तो किसान अपने आन्दोलन को स्थगित कर सकते हैं।  अब सभी किसान नेता एकमत हैं कि वे तीनों कृषि सुधार कानूनों की वापसी तक अपना आंदोलन जारी रखेंगे। किसान नेता राजेश टिकैत का कहना है कि 2 अक्टूबर 2021 को मोदी के अधिनायक राजतंत्र के विरोध में पूरे देश भर में 44 लाख टै्रक्टरों की किसान रैली निकालने की उनकी योजना है। निम्न एवं मध्यम आमदनी वाले व्यक्ति भले ही पेट्रोल डीजल की बढ़ती कीमतों से संतप्त नजर आ रहा हो किंतु किसानों को रैली निकालने के लिए डीजल की बढ़ती कीमतों से कोई परेशानी नहीं होती है।  कुल मिलाकर किसान नेता यह मानकर चल रहे हैं कि सरकार कृषि सुधार कानूनों को बनाए रखने के अपने अड़ियल रूख पर सरकार कायम रहने वाली है इसलिए किसान आंदोलन के समाप्त होने के आसार न•ार नहीं आ रहे हैं।

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