• भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए घातक है युद्ध की आहट

    हमास द्वारा 7 अक्टूबर के आतंकवादी हमले के लिए इज़रायल का प्रतिशोध अब अनुपात से ज्यादा लगता है

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    - डॉ.अजीत रानाडे

    हमास द्वारा 7 अक्टूबर के आतंकवादी हमले के लिए इज़रायल का प्रतिशोध अब अनुपात से ज्यादा लगता है। इज़रायल की बदले की कार्रवाई में अब तक 30,000 से अधिक फिलिस्तीनियों की मौत हो गई है जिनमें ज्यादातर नागरिक हैं। इनमें अनेक महिलाएं एवं बच्चे शामिल हैं। जैसे यूक्रेन में बमबारी का कोई अंत नहीं दिख रहा है उसी तरह इज़रायल द्वारा गाज़ा पर हमलों की समाप्ति के आसार नज़र नहीं आ रहे हैं। युद्ध के बादल बस घने तथा और गहरे होते जा रहे हैं।

    33वर्षों में पहली बार एक विदेशी राष्ट्र ने 13 अप्रैल (शनिवार) को इज़रायल पर हमला किया। आखिरी बार 1991 में इराक ने इज़रायल पर क्रू•ा मिसाइलों से हमला किया था। यह ईरान था जिसने पिछले सप्ताह के अंत में इज़रायल में विभिन्न इलाकों पर 360 से अधिक मिसाइल और ड्रोन प्रक्षेपित किए थे। यह हमला धीमी गति से चलने वाले ड्रोन (जो ईरान से इज़रायल तक जाने में छह घंटे से अधिक समय लेते हैं), तेज क्रू•ा मिसाइलों और बहुत उच्च गति वाली बैलिस्टिक मिसाइलों का एक संयोजन था जो ध्वनि की गति से भी तेज हैं। ईरान के विदेश मंत्री ने इजरायल पर इस सुनियोजित हमले को लेकर पड़ोसी देशों को 72 घंटे की चेतावनी दी थी। उधर इज़रायल लगभग 99 प्रतिशत मिसाइलों और ड्रोन को रोकने में कामयाब रहा और इसलिए उसका बहुत नुकसान नहीं हुआ। यह परिष्कृत मिसाइलरोधी रक्षा प्रणाली- आयरन डोम के कारण संभव हुआ जिसे इज़रायल ने अमेरिकी और ब्रिटिश मदद से बनाया था और इस बार जॉर्डन की धरती पर भी तैनात किया गया था।

    रक्षा के उन कुछ घंटों के लिए अनुमानित खर्च लागत लगभग 1.1 बिलियन डॉलर थी। रक्षा आपूर्तिकर्ताओं, मुख्य रूप से अमेरिकी कंपनियों को इस तरह की तैनाती से लाभ होगा। बेशक, दो साल पहले शुरू हुए यूक्रेन युद्ध के कारण हथियार प्रणालियों के अमेरिकी निर्माताओं को पहले ही काफी फायदा हुआ है। ईरान द्वारा उस रात ड्रोन और मिसाइलों से किए हमले की लागत शायद एक अरब डॉलर के करीब है।

    इज़रायल द्वारा 1 अप्रैल को सीरिया के दमिश्क में ईरानी दूतावास पर किए हमले के प्रतिशोध में ईरान ने यह हमला किया था। इस हमले में ईरान के दो वरिष्ठ जनरलों की मौत हो गई थी। बिना किसी उकसावे के किए इस हमले को इज़रायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने अधिकृत क्यों किया, वह भी एक राजनयिक लक्ष्य पर? क्या इज़रायल हमास के साथ संघर्ष के दायरे को और विस्तारित करने की कोशिश कर रहा था तथा एक बढ़ते युद्ध में अन्य देशों को खींच रहा था? क्या उसे यह पता नहीं था कि ईरान के दूतावास पर उसकी कार्रवाई किसी जवाबी कार्रवाई को आमंत्रित करेगी? या इसने ईरान द्वारा कड़ी प्रतिक्रिया को गलत समझा? इज़रायल के साथ सहानुभूति रखने वालों का तर्क होगा कि इज़रायल की कार्रवाई अकारण नहीं थी। यह इज़रायल के क्षेत्र के भीतर हमास का समर्थन करने वालों को दंडित करना था। सभी लोग जानते हैं कि इज़रायल के भीतर हमास, लेबनान में हिजबुल्लाह और यमन में हौथिस को ईरान का मौन समर्थन है। ईरान के परमाणु कार्यक्रम को विफल करने और हमास तथा हिजबुल्लाह के समर्थन का बदला लेने के लिए इज़राइल ने पहले भी ईरान के बुनियादी ढांचे और सैन्य स्थलों पर हमले किये हैं। ईरान ने भी अपनी परमाणु हथियार क्षमता के निर्माण की गति को बनाए रखा है। इज़रायल निश्चित रूप से एक परमाणु सशस्त्र राष्ट्र है जिसने परमाणु अप्रसार संधि पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं।

    ईरान द्वारा इज़रायल पर ड्रोन और मिसाइल के असफल हमले को कुछ टेलीविजन और सोशल मीडिया चैनलों ने तृतीय विश्व युद्ध की शुरुआत बताया। शेयर बाजारों में हड़बड़ाहट दिखाई दी। ईरान की जवाबी कार्रवाई की आशंका में शुक्रवार को ही न्यूयॉर्क का डाउ इंडेक्स 2.4 फीसदी गिर गया था। दुनिया भर में शेयरों में और गिरावट की आशंका है। सोने की कीमत अब तक के उच्चतम स्तर पर पहुंच गई है और 2400 डॉलर प्रति औंस के करीब है। भारत में जल्द ही दस ग्राम सोने का मूल्य 80,000 रुपये को पार कर सकता है। जोखिम से बचने वाले उन निवेशकों द्वारा सोने की उच्च मांग की सहज प्रतिक्रिया है, जिन्हें डर है कि अन्य सभी संपत्तियों की कीमतों में भारी गिरावट आएगी। यह संघर्ष मध्य पूर्व से तेल आपूर्ति को बाधित करेगा इसलिए तेल की कीमतें निश्चित रूप से बढ़ेंगी। माल ढुलाई दरों और हवाई कार्गो के लिए जोखिम प्रीमियम में भी बढ़ेगा जिसके कारण अंतरराष्ट्रीय व्यापार की लागत में वृद्धि होगी। इस सारे घटनाक्रम का भारत पर तिहरा दबाव पड़ता है। यह हमारे विदेशी मुद्रा भंडार को कम करता है, विनिमय दर पर दबाव डालते हुए व्यापार घाटे को बढ़ाता है और चूंकि पेट्रोल व डीजल की कीमतें प्रभावित होंगी इसलिए मुद्रास्फीति में वृद्धि का कारण बन सकता है। मार्च में समाप्त होने वाली चौथी तिमाही में मंदी देखी गई थी तथा उस तिमाही के लिए जीडीपी विकास दर 6 प्रतिशत के करीब हो सकती है।

    निवेशकों का बिगड़ता मिज़ाज जीडीपी वृद्धि को और भी धीमा कर सकता है हालांकि चुनाव खर्च आम तौर पर जीडीपी को ऊपर उठाए रखता है। यदि वैश्विक आर्थिक मिज़ाज का अंदाजा लगाया जाए तो व्यापारिक वस्तुओं के निर्यात पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। ठीक उसी तरह जैसे हौथियों के हमलों के कारण लाल सागर के व्यापार मार्ग में व्यवधान ने समुद्री व्यापार की लागत में वृद्धि की है। यह स्थिति भी अंतरराष्ट्रीय व्यापार के लिए नकारात्मक है। खुदरा महंगाई में वृद्धि की खबर भी राहत देने वाली नहीं है तथा तेल की कीमतों में बढ़ोतरी के कारण और खराब हो सकती है। यही कारण है कि भारतीय रिजर्व बैंक ब्याज दरों में कटौती नहीं कर सकता है जिससे आवास और वाहन ऋ ण में मदद मिल सकती थी।

    और अंत में, बेरोजगारी के बारे में आई रिपोर्ट चिंता बढ़ाने वाली है। अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन और मानव विकास संस्थान द्वारा संयुक्त रूप से प्रकाशित हालिया रिपोर्ट ने युवा बेरोजगारी, कौशल असंतुलन और श्रम शक्ति में अभी भी महिलाओं की कम भागीदारी की एक गंभीर तस्वीर चित्रित की है। भारत में वर्ष 2005 से श्रम बल की भागीदारी तथा पुरुषों और महिलाओं की मजदूरी दर में अंतर के संदर्भ में लैंगिक अंतर बढ़ता जा रहा है। यह अंतर कम नहीं हो रहा है, जैसा कि दुनिया के अन्य हिस्सों में देखा जा रहा है। इसके अलावा अनुमान है कि कोविड के बाद करीब 5 करोड़ श्रमिक कृषि क्षेत्र में वापस चले गए हैं जो कम उत्पादकता, कम गुणवत्ता वाली नौकरियों के साथ-साथ अल्प-रोजगार भी प्रदान करता है। रोजगार परिदृश्य में सुधार के लिए बड़े पैमाने पर रोजगार सृजन की आवश्यकता है जो मुख्य रूप से निजी क्षेत्र से आएगा। इसके लिए निवेशकों के विश्वास और नए उद्यमों, व्यवसायों और उद्यमों में बड़े पैमाने पर फंड प्रवाह की आवश्यकता होती है। अकेले सरकार बड़े पैमाने पर रोजगार सृजन नहीं कर सकती है।

    मध्य-पूर्व में तनाव के कारण बढ़ी अनिश्चितता सिर्फ रक्षा आपूर्ति निर्माताओं के लिए अच्छी खबर है। अधिकांश लोगों के लिए यह बुरा आर्थिक समाचार है। सुरक्षा परिषद के दोनों सदस्यों-चीन या रूस ने ईरान के हमले की निंदा नहीं की है। इज़रायल को गाज़ा पर बमबारी बंद करने के लिए संयुक्त राष्ट्र में रखे प्रस्ताव को एकमात्र असहमत देश संयुक्त राज्य अमेरिका ने बार-बार वीटो किया है।

    हमास द्वारा 7 अक्टूबर के आतंकवादी हमले के लिए इज़रायल का प्रतिशोध अब अनुपात से ज्यादा लगता है। इज़रायल की बदले की कार्रवाई में अब तक 30,000 से अधिक फिलिस्तीनियों की मौत हो गई है जिनमें ज्यादातर नागरिक हैं। इनमें अनेक महिलाएं एवं बच्चे शामिल हैं। जैसे यूक्रेन में बमबारी का कोई अंत नहीं दिख रहा है उसी तरह इज़रायल द्वारा गाज़ा पर हमलों की समाप्ति के आसार नज़र नहीं आ रहे हैं। युद्ध के बादल बस घने तथा और गहरे होते जा रहे हैं। शांति की गुहार लगाने वालों को युद्धोन्मादी लोगों ने बाहर कर दिया है। संघर्ष विराम या शांति वार्ता तो दूर की बात है, नेता कोई समझदारी का माहौल बनाने में नाकाम रहे हैं। यह सब भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए अच्छा नहीं है जो पहले से ही महंगाई, स्थिर निजी निवेश, उच्च युवा बेरोजगारी दर और व्यापक असमानता की चुनौतियों से जूझ रही है।
    (लेखक प्रसिद्ध अर्थशास्त्री हैं। सिंडिकेट: द बिलियन प्रेस)

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