• सवाल दिशा और उजाले का है

    जो इंसान प्रकृति को बचाने की लड़ाई लड़ता है, जो पर्यावरण से प्यार करता है, क्या वह मानवता से नफरत कर सकता है। यह सवाल पर्यावरण कार्यकर्ता दिशा रवि की गिरफ्तारी के बाद जेहन में उठता है

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    जो इंसान प्रकृति को बचाने की लड़ाई लड़ता है, जो पर्यावरण से प्यार करता है, क्या वह मानवता से नफरत कर सकता है। यह सवाल पर्यावरण कार्यकर्ता दिशा रवि की गिरफ्तारी के बाद जेहन में उठता है। दिशा पर भारतीय दंड संहिता के अंतर्गत राजद्रोह, समाज में समुदायों के बीच नफरत फैलाने और आपराधिक षड्यंत्र के मामले दर्ज किए गए हैं और उन्हें पुलिस हिरासत में रखा गया है। 22 साल की दिशा बेंगलुरू में रहती हैं और फ्राइडे फॉर फ्यूचर नामक मुहिम के संस्थापकों में से एक हैं। दिशा रवि पर आरोप है कि उन्होंने किसान आंदोलन के समर्थन में बनाई गई टूलकिट को एडिट किया है और उसे सोशल मीडिया पर शेयर किया है। यह वही टूलकिट है, जिसे स्वीडिश जलवायु कार्यकर्ता ग्रेटा थनबर्ग ने शेयर किया था। पुलिस ने आरोप लगाया है कि टूलकिट मामला खालिस्तानी समूह को दोबारा खड़ा करने और भारत सरकार के खिलाफ एक बड़ी साजिश है। पुलिस ने 26 जनवरी की हिंसा में भी टूलकिट की साजिश के संकेत दिए हैं।

    देश के खिलाफ षड्यंत्र का एक और आरोप, एक और युवा इस आरोप की जद में। पिछले कुछ सालों में पुलिस न जाने कितने ऐसे युवाओं को गिरफ्तार करने में कामयाब रही है, जिन पर आतंकवाद के, दंगे भड़काने के, देश तोड़ने के आरोप लगे हैं। यह शायद संयोग ही है कि इनमें से अधिकतर युवा किसी प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय में पढ़ते हैं, या कोई ऐसा काम करते हैं, जो अमूमन मां-बाप की कमाई पर ऐश करने वाले नौजवान नहीं करते हैं। कोई दलितों के हक में आवाज उठाता है, कोई मजदूरों-किसानों-आदिवासियों पर शोध करता है, कोई महिलाओं के अधिकारों की लड़ाई लड़ता है या कोई पर्यावरण की रक्षा के लिए उन नीतियों-कानूनों का विरोध करता है, जिनसे पूंजीपतियों को लाभ मिलता है, लेकिन प्रकृति को नुकसान होता है। एक संयोग और है कि पुलिस की गिरफ्त में आए अधिकतर युवा सरकार के खिलाफ समय-समय पर आवाज उठाते रहे हैं। तो क्या इन दोनों संयोगों के कारण उन्हें अपराधी साबित करने की कोशिश की जा रही है। इन सबसे बढ़कर संयोग ये है कि देशद्रोह या आतंकवाद जैसे आरोप लगाए तो गए, लेकिन उन्हें साबित होते नहीं देखा गया। तो फिर किसलिए इन युवाओं का भविष्य बर्बाद किया जा रहा है। क्या सिर्फ इसलिए कि ये कुछ शक्तिसंपन्न लोगों के लिए असुविधा पैदा करने लग गए हैं।

    भारत की युवा शक्ति पर अक्सर गर्व किया जाता है। और देश को ये देखकर तसल्ली भी होना चाहिए कि हमारे युवाओं में इतनी राजनैतिक-सामाजिक चेतना है कि वे गलत और सही का फर्क समझ कर, अपनी आवाज उठाने का साहस रखते हैं। लेकिन क्या हमें ये देखकर अफसोस नहीं होना चाहिए कि कैसे हमारे नौजवानों को खलनायकों की तरह पेश किया जा रहा है। और क्या हमें ये सवाल खुद से नहीं करना चाहिए कि हमारी व्यवस्था में इतनी कमजोरियां क्यों आ गईं कि हमें हर छोटी-बड़ी बात से देश टूटने का डर सताने लगा है।

    सरकार के खिलाफ आवाज उठाने वाले नौजवानों पर जिस तरह कानून की सख्ती बरती जा रही है, उसके बाद संदेश यही प्रसारित होगा कि देश में जो कुछ हो रहा है, उसे देख कर अनदेखा किया जाए, सुन कर अनसुना किया जाए। गलत को गलत और सही को सही न कहा जाए। मां-बाप यही चाहते हैं कि उनकी संतानें ढंग से पढ़-लिखकर, अच्छे पैकेज वाली नौकरी पाएं और चैन का जीवन बिताएं। इसलिए उन्हें सिर झुकाकर, चुपचाप रहने की सलाह दी जाएगी, ताकि उन्हें किसी भी वजह से कानून की सख्ती न झेलनी पड़ी। इस तरह देश में कोई भगत सिंह, कोई खुदीराम, कोई चंद्रशेखर आजाद न बने, यह सुनिश्चित कर लिया जाएगा। इन नौजवानों ने अंग्रेजी हुकूमत के लिए बहुत सी परेशानियां खड़ी की थीं, इसलिए उन्हें मार दिया गया। अंग्रेजों के लिए ये किसी आतंकवादी से कम नहीं थे, लेकिन आजाद भारत में इन्हें युवाओं के आदर्शों के रूप में देखा जाता रहा। पर अब हमें शायद न युवाओं का जोश चाहिए, न उनकी हिम्मत, न उनकी आवाज। हमें केवल ऐसे अच्छे बच्चे चाहिए, जो सिर झुका कर यस सर कहते रहें।

    रहा सवाल दिशा रवि की गिरफ्तारी का, तो उस पर कानून के दायरे में कुछ आपत्तियां उठी हैं, मसलन, बेंगलुरू की कोर्ट के ट्रांजिट रिमान्ड के बिना उन्हें दिल्ली के कोर्ट में पेश किया गया। कोर्ट में वकील की मौजूदगी सुनिश्चित किए बिना उन्हें पांच दिन की पुलिस कस्टडी में भेजने का आदेश दिया गया। दिशा रवि की गिरफ्तारी पर पर्यावरण संरक्षण से जुड़े लोगों के साथ-साथ कांग्रेस नेताओं प्रियंका गांधी, राहुल गांधी, जयराम रमेश, पी.चिदम्बरम आदि ने आलोचना की है। सोशल मीडिया पर उनकी रिहाई के लिए आवाज उठ रही है, साथ ही दिल्ली पुलिस की कार्यशैली पर एक बार फिर सवाल खड़े हो रहे हैं। कृषि कानूनों के मसले पर किसानों के हक में आवाज उठाने की बात जिस तरह अब एक युवा कार्यकर्ता के हक की आवाज में मिल गई है, यह वैसा ही है कि दीए की एक लौ से, दूसरी लौ जलाई जा रही है। इससे फैलने वाला उजाला ही शायद मौजूदा अंधकार का जवाब बन सके।

     

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