- वर्षा भम्भाणी मिर्जां
फ़ोन जासूसी के बाद ही एप्पल ने अपने सुरक्षा तंत्र को और मज़बूत किया। करीब 150 देशों में ऐसी जासूसी गतिविधियों के लिए वह उपभोक्ताओं को तुरंत नोटिफिकेशन भेजता है। वह निजता के साथ समझौता नहीं करना चाहता लेकिन ऐसा हो रहा है। इससे इंकार की कोई ठोस वजह भी नहीं मिलती। मामले की क्रोनोलॉजी पर गौर करें।
एक समय था जब राजा-महाराजा प्रजा का हाल जानने के लिए भेस बदलकर उनके बीच जाया करते थे क्योंकि वे जानना चाहते थे कि उनके ख़िलाफ़ कोई नाराज़गी या उन्माद तो नहीं है। जो काम वे कर रहे हैं उन्हें जनता पसंद कर रही है या हाहाकार मचा है। उत्तर रामायण में तो वर्णन है कि भगवान राम को उनके गुप्तचरों ने ही सूचना दी थी कि प्रजा माता सीता के बारे में अलग सोच रही है। इसके बाद जो हुआ वह आज तक बहस में है कि राम को सीता का त्याग करना चाहिए था या नहीं। अपनी सबसे प्रिय सीता का जिन्हें पहली बार पुष्प वाटिका में देख उन्हें खयाल आया था कि वे इतनी सुन्दर हैं कि सुंदरता भी उनसे ही सुन्दर होती है, फिर भी उन्होंने प्रजा के लिए यह कठोर निर्णय लिया। सीता के वनगमन का हृदय विदारक निर्णय। राम वे राजा थे जो प्रजा की सोच पर खरा उतरने के लिए किसी भी हद तक जा सकते थे। अपने सबसे प्रिय का त्याग भी कर सकते थे।
कालांतर में बादशाह अकबर के नाम भी किस्से दज़र् हैं कि वे रूप बदल कर जनता के बीच दाखिल हो जाते थे। दरअसल ये उस दौर के तरीके थे जब राजा जनप्रिय बने रहने के लिए निज प्रयास करते थे। एक आज का दौर है जहां निजता हरने का कारोबार जारी है। मीडिया चैनल्स जनता को रोज़ नफरत के मुद्दों की पुड़िया बांट देते हैं और निज़ाम अलग सोच रखने वाले यानी विपक्ष के नेता, पत्रकार, सामजिक कार्यकर्ताओं आदि की जासूसी करा कर अपने लिए सत्ता का रास्ता साफ कर देना चाहता है। कहते हैं कि सरकार चाणक्य से प्रेरित है जिन्होंने गुप्तचरी को राजनीति का हिस्सा ही बना दिया था ताकि विद्रोहियों का काम तमाम किया जा सके।
बीते मंगलवार को विपक्ष के कुछ नेताओं और पत्रकारों ने सरकार से जवाब मांगा कि उनके एप्पल फ़ोन पर कंपनी की तरफ़ से मैसेज आया है कि उनके फ़ोन की सूचनाएं हैक करने की कोशिशें की जा रही हैं और यह 'स्टेट स्पॉसर्ड अटैक' यानी कि राज्य प्रायोजित हमला हो सकता है। ऐसा कहने के पीछे एप्पल ने वजह दी थी कि यह जासूसी तंत्र बहुत महंगा और ताकतवर है जिसे केवल बड़ी सरकारें और देश ही वहन कर सकते हैं। यह सच है कि एप्पल द्वारा जारी नोटिफिकेशन में किसी सरकार का नाम नहीं लिया गया है, इसलिए भारत सरकार को सीधे-सीधे दोषी ठहराना सही नहीं होगा, लेकिन सवाल उठता है कि विपक्ष के आरोप के बाद सबसे पहली सफाई सरकार की ओर से क्यों आई कि यह कोई गंभीर मसला नहीं है और यह एप्पल का ऑटोमेटेड अर्थात खुद ब खुद जेनरेट हुआ नोटिफिकेशन है।
कई बार यूजर किसी नए उपकरण से अपने अकाउंट को खोलते हैं तो गूगल की ओर एक अलर्ट मैसेज का मेल आता है कि किसी अज्ञात व्यक्ति ने आपका अकाउंट खोलने की कोशिश की है। आप सावधान हो जाइये। गूगल आपको दोबारा खाता खोलने देने से पहले यह सुनिश्चित करता है कि यह आप ही हैं। सरकार अपनी पहली प्रतिक्रिया में इस जासूसी को इसी दायरे में रखती है। बेशक डेटा सुरक्षा, और निजता को लेकर फ़ोन कंपनियां बहुत संवेदनशील हैं या यही उनके व्यापार की यूएसपी भी है। एप्पल के आई फ़ोन इसी सुविधा के लिए ही जाने जाते हैं। दुनिया भर की सरकारें, नेता, व्यापारी इसी के 'गुनगाहक' हैं ताकि कोई उनकी गुप्त बातचीत या सौदों में सेंधमारी न कर सके। एप्पल कंपनी उन्हें यह आश्वासन देती है लेकिन तमाम हैकर्स उसके इस तिलस्म को तोड़ने में जुटे रहते हैं ताकि धंधे की दुनिया में वे आगे आ सकें और किसी का एकाधिकार खत्म हो जाए।
डेटा को सुरक्षित रखने और ग्राहक की निजता की रक्षा करने वाली कंपनियों और हैकर्स के बीच तू डाल-डाल तो मैं पात-पात का संघर्ष चलता रहता है। दो साल पहले भी इज़रायली कंपनी पैगसस के जासूसी तंत्र की पोल खुली थी। 2021 के मानसून सत्र से पहले इस जासूसी का भांडाफोड़ हुआ था। सत्ता पक्ष के चेहरे तब फक्क पड़ गए थे। दुनिया के खोजी पत्रकारों ने एक साथ खुलासा किया था कि इज़रायल की कंपनी का यह ऐसा स्पायवेयर है जो फ़ोन में दाखिल कर दिया जाता है, जिसकी भनक भी यूजर को नहीं लगती और वह बड़े आराम से डेटा ट्रांसफर कर देता है। यह बड़ी फ़ोन कंपनियों के लिए बड़ी चेतावनी थी। खोज में भारत के कई पत्रकार भी शामिल थे।
पत्रकारों ने अपने खुलासे में यह भी कहा था कि भारत में करीब तीन सौ व्यक्तियों के फ़ोन में पैगसस का यह जासूसी तंत्र डाला गया था । यूं पैगसस स्पायवेयर 2016 से काम कर रहा है जो पहली बार 2019 में वाट्सऐप और एप्पल की जानकारी में आया। निजता के इस उल्लंघन को तत्काल अदालत में चुनौती दी गई। मामला गंभीर था इसलिए खूब हंगामा मचा। सुप्रीम कोर्ट ने जांच के लिए एक कमिटी का गठन किया। 29 फ़ोन उपकरणों को जांचा गया लेकिन जासूसी वायरस होने के पुख्ता प्रमाण नहीं मिल सके। मामला खारिज हो गया लेकिन सर्वोच्च न्यायालय की महत्पूर्ण टिप्पणी आज भी यथावत है कि सरकार ने जांच में सहयोग नहीं किया। अगर किया होता तो आज एक बार फिर चुनाव से ठीक पहले यह स्पायवेयर विपक्षी फ़ोन में घुसकर जासूसी की हिमाकत (बेवकूफ़ी) न करता। यह वही रवैया था जो अब तक कायम है कि चुनावी बॉन्ड में कौन कितना पैसा किस पार्टी को देता है, इसे बताने की सरकार को कोई ज़रूरत नहीं है। अमेरिका के सातवें राष्ट्रपति एंड्रयू जैक्सन का कथन है कि संविधान से मिले नागरिक अधिकारों की हैसियत कभी भी उस बुलबुले से ज़्यादा नहीं होगी जब तक कि उसे एक स्वतन्त्र न्यायपालिका से संरक्षित न किया गया हो।
इस फ़ोन जासूसी के बाद ही एप्पल ने अपने सुरक्षा तंत्र को और मज़बूत किया। करीब 150 देशों में ऐसी जासूसी गतिविधियों के लिए वह उपभोक्ताओं को तुरंत नोटिफिकेशन भेजता है। वह निजता के साथ समझौता नहीं करना चाहता लेकिन ऐसा हो रहा है। इससे इंकार की कोई ठोस वजह भी नहीं मिलती। मामले की क्रोनोलॉजी पर गौर करें तो पहले एक्टिविस्टों, पत्रकारों के कंप्यूटर की हैकिंग, उन पर देशद्रोह के मुकदमे, फिर दो साल पहले पैगसस का प्रोजेक्ट जासूसी और अब एप्पल का नोटिफिकेशन। कहते हैं कि हर सत्ता जासूसी करती है। तब क्या इसे वैध कर दिया जाए? हर नागरिक की निजता छीन ली जाए? निजता का अधिकार हमें संविधान से मिला हुआ सर्वोच्च अधिकार है। अब हमारी सरकारों को इसे छीनना चाहिए या इसकी रक्षा करनी चाहिए? मानव अधिकार कार्यकर्ता फादर स्टैन स्वामी का कम्प्यूटर किसने हैक किया? एक बीमार बुजुर्ग से कौन खौफ खा रहा था? आखिर क्यों वे ज़मानत के इंतज़ार में मौत की नींद सो गए? जो जासूसी इतनी ही उचित है तब कर दीजिये एक और संशोधन! खैर अच्छी बात यह रही कि विपक्ष के प्रमाण देने के बाद सूचना तकनीकी (आईटी) मंत्री ने जांच का आश्वासन देते हुए कहा है कि मामला सीईआरटी (कंप्यूटर इमरजेंसी रेस्पॉन्स टीम ) जो कि कंप्यूटर सुरक्षा और तकनीक से जुड़ी सरकारी संस्था है, उसे सौंप दिया गया है। यह संस्था एप्पल के साथ टीम बनाकर जांच करेगी।
गौरतलब है कि मंगलवार को ही विपक्ष के तमाम नेता मल्लिकार्जुन खड़गे, शशि थरूर, तृणमूल कांग्रेस से महुआ मोइत्रा, समाजवादी पार्टी के अखिलेश यादव, उद्धव ठाकरे, शिवसेना की प्रियंका चतुर्वेदी, आम आदमी पार्टी के राघव चड्ढा को एप्पल से चेतावनी वाला सन्देश मिला था। इससे पहले केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल कह चुके थे कि किसी ने इन नेताओं के साथ मज़ाक किया है; और यूं भी विपक्ष एक ख़राब वक्त से गुज़र रहा है इसलिए उन्हें हर बात में साज़िश नज़र आती है। इस बयान से अलग सरकार इसकी जांच पूरी पारदर्शिता और ज़िम्मेदारी से कराए तो ही जासूसी जैसी अवैध कार्यप्रणाली का सच सामने आ सकता है। ऐसा केवल तभी संभव है जब 'स्टेट स्पॉंसर्ड अटैक' नोटिफिकेशन में भारत सरकार एक पार्टी न हो। वह स्टेट चीन और पाकिस्तान हो। मामला इस ओर ही जाता हुआ लगता यदि भारत सरकार ने सुप्रीम कोर्ट की जांच में सहयोग किया होता। जांच का यह सेब पूरा होना चाहिए, काटा हुआ नहीं। संभव है कि इस बार पारदर्शिता और ईमनदारी से यह जांच हो तभी ही लोकतंत्र की शक्ति बनी रह पाएगी। जिसकी लाठी उसी की ही भैंस भी रही तो फिर सरकार तो रहेगी, लेकिन नैतिकता नहीं।
(लेखिका स्वतंत्र पत्रकार हैं?)