• एक कॉमेडियन से सरकार का डरना अपने आप में कॉमेडी है

    यह विधिसम्मत है। अब यह भी सोचें कि जो भाजपा, शिंदे की शिवसेना तथा अजित पवार कह रहे हैं या कर रहे हैं वह संविधानसम्मत या कानून के अंतर्गत है

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    - डॉ. दीपक पाचपोर

    यह विधिसम्मत है। अब यह भी सोचें कि जो भाजपा, शिंदे की शिवसेना तथा अजित पवार कह रहे हैं या कर रहे हैं वह संविधानसम्मत या कानून के अंतर्गत है? बिलकुल नहीं! आयोजनस्थल की तोड़-फोड़ करना कानूनी तौर पर सही नहीं है क्योंकि मामले की अभी तक पुलिस जांच भी प्रारम्भ नहीं हुई है। यदि न्यायालय कुणाल कामरा की कॉमेडी में कुछ भी आपत्तिजनक नहीं पाता और कॉमेडियन को क्लीन चिट देता है तो क्या सरकार या महानगरपालिका उस होटल व स्टूडियो को मुआवजा देगी?

    ठाणे की रिक्शा, चेहरे पे दाढ़ी, आंखों में चश्मा हाय...
    ठाणे की रिक्शा, चेहरे पे दाढ़ी, आंखों में चश्मा हाय...
    एक झलक दिखलाए कभी गुवाहाटी में छिप जाए...
    मेरी नजर से तुम देखो गद्दार नजर वो आए।
    ठाणे की रिक्शा, चेहरे पे दाढ़ी, आंखों में चश्मा हाय।

    मंत्री नहीं वो दलबदलू है और कहा क्या जाए...
    जिस थाली में खाए उसमें ही छेद कर जाए...
    मंत्रालय से ज्यादा फडणवीस की गोदी में मिल जाए...
    तीर कमान मिला है इसको बाप मेरा ये चाहे...
    ठाणे की रिक्शा...ठाणे की रिक्शा, चेहरे पे दाढ़ी, आंखों में चश्मा हाय...।

    मनोरंजन करके गुजारा करने वाले एक अदने से स्टैंडअप कॉमेडियन ने मुम्बई में एक शो के दौरान प्रसिद्ध हिन्दी मूवी 'दिल तो पागल है' के एक गीत की केवल 10 पंक्तियों की पैरोडी क्या सुना दी, महाराष्ट्र सरकार मानों सुलग उठी है। इस सरकार को चलाने वाली भारतीय जनता पार्टी, अजित पवार गुट की राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी और एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना बौखलाई हुई हैं। पुलिस एफआईआर दज़र् कर कामरा के खिलाफ एक्शन ले रही है, मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडणवीस ने बयान दिया है कि 'स्टैंडअप कॉमेडी की आजादी है लेकिन कोई भी जो चाहे वह नहीं बोल सकता।' उनके अनुसार 'कुणाल को माफी मांगनी चाहिये।' इसे बर्दाश्त नहीं किया जा सकता। एक उप मुख्यमंत्री अजित पवार कहते हैं कि 'किसी को भी कानून व संविधान से बाहर नहीं जाना चाहिये', तो दूसरे उप मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे, जिन पर यह पैरोडी रची गयी है, का कहना है- 'किसी पर हास्य-व्यंग्य करना, कटाक्ष करना गलत नहीं है, लेकिन इसकी एक मर्यादा होती है। कुणाल कामरा ने जो किया, लगता है कि उन्होंने सुपारी लेकर किया है। कटाक्ष करते समय एक शिष्टाचार बनाए रखा जाना चाहिए, वर्ना 'एक्शन का रिएक्शन' भी होता है।' पहले तो शिंदे को पता करना चाहिये कि सुपारी किसने दी है। खैर...

    बहरहाल, रिएक्शन होता दिख रहा है। शो का आयोजन खार के जिस यूनिकांटिनेंटल क्लब में हुआ था उस आयोजन स्थल पर शिंदे गुट के कार्यकर्ताओं ने तोड़-फोड़ कर दी, मुम्बई महानगरपालिका ने वहां हथौड़ा चला दिया, कार्यकर्ता पहले ही धमकी दे चुके हैं कि वे महाराष्ट्र तो क्या देश भर में कामरा को घूमने-फिरने तथा शो नहीं करने देंगे। पार्टी प्रवक्ता साफ कर चुके हैं कि 'कॉमेडियन से शिवसेना स्टाइल में निपटा जायेगा।' इतना ही नहीं, कामरा के साथ कुछ कार्यकर्ता फोन पर गाली-गलौज कर रहे हैं। मार्के की बात यह है कि मर्यादा व कानून में रहकर कॉमेडी करने की सलाह सरकार के तीनों ही धड़े निहायत ही अमर्यादित ढंग से और कानून को हाथ में लेकर दे रहे हैं। यही अपने आप में कॉमेडी है जो ऐसी ही सरकार कर सकती है जिसका बनना और चलना साक्षात कॉमेडी सर्कस है।

    देखना यह है कि 'भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है', 'लोकतंत्र भारत के डीएनए में है' और 'आलोचना लोकतंत्र का हिस्सा है' जैसे संवाद बार-बार राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्र्रीय मंचों पर कहने वाले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की भाजपा के नेतृत्व वाली महाराष्ट्र सरकार कॉमेडियन कुणाल कामरा के साथ क्या करती है। जो भी करे, वह भविष्य की बात होगी लेकिन मुम्बई के खार पुलिस स्टेशन का सम्मन कुणाल को भिजवा दिया गया है। कामरा ने साफ कर दिया है कि 'वे माफी नहीं मांगेंगे और न ही भीड़ से डरकर बिस्तर के नीचे छिपकर माहौल शांत होने का इंतज़ार करेंगे।' उनका यह दावा तो सही है कि वे जो कर रहे हैं वह सब कुछ संविधान के दायरे में रहकर ही कर रहे हैं। वैसे भी जिस शो को लेकर यह सारा बखेड़ा खड़ा हुआ है, उसे देखें तो शो के अंत में तालियों की गड़गड़ाहट के बीच कामरा संविधान की प्रति दिखला रहे हैं और कह रहे हैं कि 'वे जो कुछ कह रहे हैं वह इसके अनुकूल है।'

    यानी यह विधिसम्मत है। अब यह भी सोचें कि जो भाजपा, शिंदे की शिवसेना तथा अजित पवार कह रहे हैं या कर रहे हैं वह संविधानसम्मत या कानून के अंतर्गत है? बिलकुल नहीं! आयोजनस्थल की तोड़-फोड़ करना कानूनी तौर पर सही नहीं है क्योंकि मामले की अभी तक पुलिस जांच भी प्रारम्भ नहीं हुई है। यदि न्यायालय कुणाल कामरा की कॉमेडी में कुछ भी आपत्तिजनक नहीं पाता और कॉमेडियन को क्लीन चिट देता है तो क्या सरकार या महानगरपालिका उस होटल व स्टूडियो को मुआवजा देगी? वैसे सुप्रीम कोर्ट ऐसी कार्रवाई के प्रति नाराज़गी जता चुका है। दूसरे, शिंदे द्वारा यह कहना, जो खुद भी मुख्यमंत्री रह चुके हैं, कि 'एक्शन का रिएक्शन होता ही है', अपने कार्यकर्ताओं को उकसाना ही कहलायेगा। फिर, शिवसेना (शिंदे गुट) के प्रवक्ता तथा कई नेताओं द्वारा कामरा से 'शिवसेना स्टाइल' में निपटने की बात कहना तो सीधे-सीधे कानून अपने हाथों में लेना ही है। हिन्दुस्तान भर में कामरा को घूमने-फिरने नहीं देने की धमकी भी हिंसात्मक उपाय अपनाने की चेतावनी है। सरकार को क्या इसका संज्ञान लेकर उन कार्यकर्ताओं के खिलाफ कार्रवाई नहीं करनी चाहिये?

    भाजपा, शिंदे की शिवसेना और अजित की एनसीपी तीनों की नाराज़गी इसलिये स्वाभाविक है क्योंकि कामरा ने अपनी कॉमेडी में तीनों को एक हमाम में नहला दिया है- चाहे पैरोडी मुख्यत: शिंदे पर रची गयी हो। इस सरकार के बनने का इतिहास जो जानते हैं उन्हें उनकी बौखलाहट पर कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिये। अवमानना मामले में सत्य ही बचाव है। यह सच है कि पिछली वाली महाराष्ट्र सरकार अनैतिक तरीकों का इस्तेमाल करके बनाई गयी थी। शिंदे व अजित पवार की धोखेबाजी से उद्धव ठाकरे की सरकार गिरी थी। पहले शिंदे सीएम थे और फडणवीस डिप्टी सीएम। यह भी कॉमेडी से कुछ कम नहीं कि पहले पांच साल मुख्यमंत्री रहे फडणवीस शिंदे के तहत उप मुख्यमंत्री रहे, फिर दोनों के स्थान परस्पर बदल गये। सत्ता के लिये ऐसी अपमानजनक व हास्यास्पद स्थिति से कोई और राज्य या राजनेता स्वतंत्र भारत में कभी नहीं गुजरे। ऐसे में यह सरकार और उसके कार्यकलाप किसी कॉमेडियन के प्रहसन के ही विषय हो सकते हैं। इसी कार्यक्रम में, जिसके वीडियो जमकर वायरल, लाइक और शेयर हो रहे हैं, मोदी को कामरा ने 'तानाशाह' कहा है। साथ ही इटली की उनकी हाल की यात्रा का जिक्र भी था जिसकी कामरा ने खिल्ली उड़ाई है। यह भाजपा की नाराजगी का कारण हो सकता है। वैसे मोदी व भाजपा को याद रखना चाहिये कि संसद के जारी सत्र में मोदी ने यह कहकर एक तरह से नेहरू को 'तानाशाह' बतलाया था कि, 'एक तरह से नेहरू का अपना ही संविधान था।'

    दरअसल मोदी का पिछला 11 वर्षों का कार्यकाल निहायत अकर्मण्यता भरा व उपलब्धिविहीन रहा है। विपक्ष को गरियाने, अतीत को कोसने, भविष्य के सब्ज़बाग दिखाने, खुद की छवि बनाने, अनैतिक तरीकों से सरकारें गिराने-बनाने तथा अपने कारोबारी मित्रों को लाभ पहुंचाने मात्र का उनका राजनीतिक कैरियर होने से वे मामूली सी आलोचना से भी डरते हैं। उन्हें जानना चाहिये कि सत्ता व शोहरत के शिखर पर बैठे जवाहरलाल नेहरू भी अपने विरोधियों को अपनी आलोचना करने हेतु आमंत्रित करते थे। कार्टूनिस्ट शंकर ने उन्हें जब गधे के रूप में चित्रित किया तो नेहरूजी ने उन्हें यह कहकर आमंत्रित किया था कि 'क्या वे एक गधे के साथ चाय पीना पसंद करेंगे?'

    आरके लक्ष्मण को इंदिरा गांधी ने स्वयं पर बनाये कार्टून पर कहा था- 'बाकी तो ठीक है पर तुमने मेरी नाक कुछ ज्यादा ही लम्बी कर दी है।' विपक्षियों पर अश्लील व भद्दे मज़ाक करने वाली पूरी बिरादरी आज एक सामान्य से कॉमेडियन से थरथरा रही है। 56 इंच की छाती का दावा करने वाले इस डरे हुए समूह का नेतृत्व करते हैं- यह सबसे बड़ी कॉमेडी है।

    (लेखक देशबन्धु के राजनीतिक सम्पादक हैं)

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