बाबा नागार्जुन ने लिखा कि-
किसकी है जनवरी, किसका अगस्त है?
कौन यहां सुखी है, कौन यहां मस्त है?
इसी तरह रघुवीर सहाय अधिनायक कविता में लिखते हैं -
कौन-कौन है वह जन-गण-मन-
अधिनायक वह महाबली
डरा हुआ मन बेमन जिसका, बाजा रोज बजाता है।
इन महान कवियों ने सत्ता और प्रशासन में व्याप्त भ्रष्टाचार से निराश होकर ये पंक्तियां लिखी थीं। सत्तातंत्र में तो तब से अब तक कोई सकारात्मक बदलाव नहीं हुआ है, बल्कि हालात बिगड़े ही हैं, लेकिन गणतंत्र ने इस निराशा से लड़ने का जो जज्बा अब दिखाया है, उसे देखकर कहा जा सकता है कि जनवरी और अगस्त दोनों भारत की जनता के हैं। अब महाबली के आगे बाजा बजाने की जगह जनता अपनी आवाज बुलंद करने का साहस दिखा रही है और यही आजादी की, हमारे संविधान की सबसे बड़ी उपलब्धि कही जा सकती है। यह संयोग नहीं है, बल्कि विडंबना है कि संविधान दिवस यानी 26 नवंबर को देश के अन्नदाता दिल्ली की सीमाओं पर रोक दिए गए और अब गणतंत्र दिवस यानी 26 जनवरी पर भी हजारों किसान दिल्ली के बाहर ही धरने पर हैं। लोकतांत्रिक तरीके से निर्वाचित सरकार के लिए अपनी जिद, लोक के प्रति जिम्मेदारियों से कहीं अधिक बड़ी है।
इसलिए दो महीने से आंदोलनरत किसानों की मांग मानने की जगह वह अपने बनाए कानूनों को सही ठहराने के सारे उपक्रम कर रही है। लेकिन इस देश के किसानों का जज्बा बेमिसाल है, जो 60 दिनों का वक्त निकल जाने के बावजूद अपार धैर्य और साहस के साथ शांतिपूर्ण तरीके से अपनी मांगों को सरकार के सामने रख रहे हैं। किसानों ने देश को लोकतांत्रिक अधिकारों के लिए जूझने का नया पाठ पढ़ाया और अब वो गणतंत्र दिवस को नया आयाम देने जा रहे हैं। 26 जनवरी को मनाया जाने वाला गणतंत्र दिवस बीते कई सालों में सैन्य परेड और रंगारंग झांकियों का प्रदर्शन बन गया है। लेकिन इस बार गणतंत्र दिवस तंत्र के साथ गण की परेड का भी साक्षी बनेगा। राजपथ पर जब सरकारी आयोजन के तहत परेड निकलेगी, तो देशी-विदेशी मेहमानों के सामने सरकारी योजनाओं का बखान करती झांकियां सजेंगी।
सरकार बताएगी कि देश ने अंतरिक्ष, विज्ञान, रक्षा इन तमाम क्षेत्रों में कैसे नई ऊंचाइयां हासिल की हैं। परेड में महिला सशक्तिकरण का प्रदर्शन भी होगा और गणतंत्र के इस वैभव प्रदर्शन में गण हमेशा की तरह गुम रहेगा। लेकिन देश के गणतंत्र की नई ताकत दिल्ली के उन मार्गों पर देखने मिलेगी, जहां किसान ट्रैक्टर परेड निकालेंगे। इस परेड में बेशक तीनों सेनाओं के सर्वोच्च कमांडर नहीं होंगे, कोई विदेश अतिथि नहीं होगा, जनता के धन पर बनी राज्यों की झांकियां भी नहीं रहेंगी, लेकिन फिर भी ये परेड अनूठी होगी। क्योंकि उसमें उस जनशक्ति का वैभव दिखेगा, जो भारत का असल निर्माता है।
किसानों की इस ट्रैक्टर परेड को लेकर सरकार परेशान थी, क्योंकि इसमें कहीं न कहीं उसकी हार झलक रही है। बीते दो महीनों में वार्ताओं के जरिए सरकार ने पर्याप्त समय बिताया कि किसानों की हिम्मत टूट जाए। सुप्रीम कोर्ट का सहारा लिया। झूठे आरोप लगाए। और आखिर में डेढ़ साल के लिए कानून निलंबित करने का दांव भी खेल दिया, ताकि किसान किसी तरह आंदोलन खत्म कर दें और सरकार की जनहितैषी छवि बन जाए।
हालांकि किसानों ने सरकार के इस चतुराई भरे कदम को समझते हुए निलंबन के प्रस्ताव को ठुकरा दिया। देशद्रोह जैसे इल्जाम, सर्द मौसम, सरकार का सर्द रवैया इन सबको किसान धीरज के साथ सहते रहे और अपनी मांगों से डिगे नहीं। उन्होंने ट्रैक्टर परेड निकालने का ऐलान किया और यह भी बता दिया कि उनका इरादा नेक है, वे किसी भी तरह गणतंत्र दिवस की परेड में व्यवधान नहीं पहुंचाएंगे। अब देश 26 जनवरी को असली गणतंत्र की परेड देखेगा। सरकार समर्थित चैनलों पर तो शायद ही इस परेड का लाइव प्रसारण देखने मिले। लेकिन किसान इन सबके मोहताज भी नहीं हैं। अपनी परेड में वे इस आंदोलन में शहीद हुए किसानों को याद करेंगे। और ट्रैक्टरों पर भारत की कृषि संस्कृति के महत्व को जनता के सामने रखेंगे।
जनता जितने जल्दी कृषि और किसानों के महत्व को समझेगी, उतना अच्छा होगा। देश का पेट भरने वाले अन्नदाता अब जनता को मानसिक खुराक भी दे रहे हैं। ये सिखला रहे हैं कि संविधान की प्रस्तावना में लिखी शुरुआती पंक्ति हम भारत के लोग का सही अर्थ क्या है। गणतंत्र दिवस संविधान के बारे में रटे-रटाए भाषण देने, सलामी लेने और इसके बाद दिन भर की छुट्टी मनाने का अवसर नहीं होता। ये लोकतंत्र को सत्ताजनित बुराइयों से बचाने का दिन होता है। उम्मीद करना चाहिए इस बार जनता गणतंत्र दिवस का सही अर्थ समझेगी और समझाएगी।