- डॉ.अजीत रानाडे
जनसंख्या के दबाव के अलावा पानी आपूर्ति के मौजूदा स्रोतों की गुणवत्ता में निरंतर गिरावट भी एक महत्वपूर्ण घटक है। यह अपर्याप्त जल शुद्धिकरण या आर्सेनिक विषाक्तता जैसी घटनाओं के परिणामस्वरूप होता है। संसद में एक लिखित जवाब में केंद्रीय जल शक्ति मंत्री ने कहा कि देश के अधिकांश राज्यों के 230 जिलों में भूजल में आर्सेनिक और 469 जिलों में फ्लोराइड पाया गया। भूजल प्रदूषण एक गंभीर मामला है जो पानी की कमी की समस्या को और अधिक तीव्र बना देती है। इसके अलावा निजी कुंओं से भूजल का नासमझी भरा अतिदोहन इसे और अधिक भयावह बना देता है।
गुजरात में रासायनिक प्रक्रिया में पानी का अत्यधिक उपयोग करने वाले एक कारखाने में पानी की भारी समस्या थी। यह गर्मियों की शुरुआत का समय था। औद्योगिक उपयोग के लिए सुनिश्चित पानी की आपूर्ति नहीं हो रही थी। योग्य उपयोग और रीसाइकलिंग के बावजूद पानी की भारी कमी थी जिससे कारखाने के बंद होने का खतरा था। मैनेजर को करीब 1500 रुपये में 5000 लीटर की दर से खरीदकर टैंकर का पानी भरना पड़ा। वह और भी ऊंची बोली लगाने को तैयार था। उसे प्रतिदिन सैकड़ों ट्रकों की जरूरत थी। कारखाने में पानी की कमी होना पड़ोस के किसानों के लिए अच्छी खबर थी। अधिकांश किसानों के खेतों में बोरवेल थे। ये बोरवेल खेतों में उगा रहे उनकी फसलों के लिए पानी की आपूर्ति के लिए पर्याप्त थे। लेकिन कारखाने को पानी बेचना अधिक आकर्षक था। यह एक अच्छी स्थिति थी जिसके तहत कारखाने ने अपना लाभदायक उत्पादन जारी रखा और किसानों को पानी बेचने से अधिक पैसा मिला।
सामाजिक दृष्टिकोण से देखें तो यह अच्छी बात नहीं है। सबसे पहली बात यह है कि सिर्फ कोई अधिक कीमत चुकाने को तैयार है तो इसका मतलब यह नहीं है कि भूजल को अंधाधुंध तरीके से खत्म किया जाए। निजी लाभ के लिए जल के सामाजिक नुकसान को ताक पर नहीं रखा जा सकता। दूसरे, औद्योगिक रासायनिक उत्पादों का उत्पादन करने के लिए खाद्य फसलों से पानी को मोड़ना निजी दृष्टिकोण से सही हो सकता है लेकिन सामाजिक रूप से बेहतर नहीं है। इस अर्थ में बोरवेल के निजी स्वामित्व के कारण किसानों को भूजल के अत्यधिक दोहन के असीमित अधिकार नहीं मिलते हैं। अत्यधिक सब्सिडी वाली बिजली किसी भी मामले में पानी की पंपिग को कृत्रिम रूप से सस्ता बनाती है।
यह एक सच्ची कहानी है जो विभिन्न रूपों में हजारों तरह से घटित हो रही है। यदि अमीर देश के उपभोक्ता भारत के बासमती चावल के लिए अधिक कीमत देना चाहते हैं तो क्या हम चावल के अपने निर्यात को अंधाधुंध बढ़ा सकते हैं? अगर यह किसानों की आय बढ़ाने में मदद करता है तो आम तौर पर कृषि उत्पादन पर सभी निर्यात प्रतिबंधों में ढील दी जानी चाहिए लेकिन इस मामले में, यह पानी के निर्यात के बराबर है जिसकी भारत में भारी कमी है। पिछले साल भारत ने 2.2 करोड़ टन चावल का निर्यात किया था जिससे करीब 90,000 करोड़ रुपये की विदेशी मुद्रा अर्जित हुई थी। लेकिन यह कम से कम 880खरब लीटर पानी के निर्यात की भी राशि थी। हमारे देश के लिए उस जल की कमी की लागत विदेशी मुद्रा में अर्जित की गई राशि से बहुत अधिक है। चीनी निर्यात का भी यही सच है। अपने डॉलर के लिए उच्चतम बोली लगाने वाले को अत्यधिक पानी लगने वाली फसलों को बेचने का तर्क, उद्योग द्वारा निजी बोरवेल से पानी खरीदने के समान है, वह पानी जो खेती के लिए है।
सिर्फ 22 मार्च को विश्व जल दिवस पर नहीं बल्कि हमें हर दिन पानी की कमी पर विचार करने की आवश्यकता है। भारत में दुनिया की ताजे पानी की आपूर्ति का केवल 2 प्रतिशत है लेकिन विश्व की आबादी के 17 प्रतिशत लोग यहां रहते हैं। बेंगलुरु में कामकाज छोड़कर पानी की एक बाल्टी के लिए लंबी कतारों में खड़े होना लोगों की वर्तमान दुर्दशा की गंभीर याद दिलाता है। कुछ साल पहले हमने महाराष्ट्र के लातूर जिले तक पानी की ट्रेनें चलाई थीं। हरेक ट्रेन में 5 लाख लीटर पानी ले जाया गया था। इन ट्रेनों ने 100 से अधिक फेरियां की थीं। पानी की कमी के कारण थर्मल पावर प्लांट भी बंद हो गए क्योंकि ठंडा करने के लिए पर्याप्त पानी नहीं था। 2017 और 2021 के बीच इस बिजली कटौती का 8.2 टेरावाट घंटे ( एक टेरावाट-घंटा (टीडब्ल्यूएच) ऊर्जा की एक इकाई है जो 10 से 12 वाट-घंटे की शक्ति के बराबर होती है)। ऊर्जा या 15 लाख घरों को बिजली आपूर्ति के बराबर होने का अनुमान लगाया गया था। विश्व संसाधन संस्थान का कहना है कि खराब जल प्रबंधन के कारण भारत और चीन जैसे देशों में जीडीपी का नुकसान 7 से 12 प्रतिशत तक हो सकता है।
यदि किसी देश में प्रति व्यक्ति उपयोग करने योग्य 1700 क्यूबिक मीटर से कम पानी है तो उस देश को पानी की कमी वाला देश कहा जाता है। भारत में प्रति व्यक्ति उपयोग 1000 क्यूबिक मीटर से बहुत नीचे है। तुलनात्मक रूप से देखें तो संयुक्त राज्य अमेरिका में पानी का उपयोग प्रति व्यक्ति 8000 क्यूबिक मीटर से अधिक है। 1951 में भारत में प्रति व्यक्ति पानी का उपयोग 3000 क्यूबिक मीटर से अधिक था। तो स्पष्ट रूप से बढ़ती आबादी पानी के दबाव का एक कारण है।
जनसंख्या के दबाव के अलावा पानी आपूर्ति के मौजूदा स्रोतों की गुणवत्ता में निरंतर गिरावट भी एक महत्वपूर्ण घटक है। यह अपर्याप्त जल शुद्धिकरण या आर्सेनिक विषाक्तता जैसी घटनाओं के परिणामस्वरूप होता है। संसद में एक लिखित जवाब में केंद्रीय जल शक्ति मंत्री ने कहा कि देश के अधिकांश राज्यों के 230 जिलों में भूजल में आर्सेनिक और 469 जिलों में फ्लोराइड पाया गया। भूजल प्रदूषण एक गंभीर मामला है जो पानी की कमी की समस्या को और अधिक तीव्र बना देती है। इसके अलावा निजी कुंओं से भूजल का नासमझी भरा अतिदोहन इसे और अधिक भयावह बना देता है। अधिक पैसा मिलने के आकर्षण के कारण औद्योगिक उपयोग के लिए बेचे जाने वाले पानी के उदाहरण से यह स्पष्ट है। सस्ती या मुफ्त बिजली से भूजल का अतिदोहन और बढ़ जाता है। विडंबना यह है कि इसी वजह से थर्मल पावर प्लांटों को ठंडा करने के लिए पानी की कमी होती है जिसके कारण बिजली कटौती की समस्या भी खड़ी हो जाती है।
पानी की कमी से निपटना हमारी सर्वोच्च राष्ट्रीय प्राथमिकताओं में से एक होना चाहिए जिसके लिए नीतिगत, सरकार के सभी स्तरों पर, नागरिकों से लेकर सामूहिक रूप से प्रत्येक घर के स्तर पर कार्रवाई की जरूरत है। इस कार्रवाई में इन पहलुओं को शामिल किया जाना चाहिए। सबसे पहले, वर्षा जल संचयन (रेन वॉटर हार्वेस्टिंग) को बढ़ावा देते हुए जल संरक्षण।
दूसरा पानी के उपयोग के कौशल में सुधार करना और ज्यादा पानी लगने वाली फसलों को उगाने से दूर जाना या कम से कम उनके उत्पादन की विधि को बदलना। तीसरा, पानी के पुन: उपयोग और रीसायकलिंग को प्रोत्साहित करना। पीने, खाना पकाने और स्नान को छोड़कर लगभग नब्बे प्रतिशत कामों में पुनर्नवीनीकरण पानी का उपयोग किया जा सकता है। पुणे शहर में कई रीसाइकलिंग प्लांट शुरू किए गए हैं और नागरिक एक ऐप का उपयोग करके रीसाइकल्ड पानी के टैंकर मुफ्त में बुला सकते हैं। चौथे, हमें जल प्रबंधन के लिए एक व्यापक नीति और विनियमन की आवश्यकता है। क्या हम निजी भूमि पर असीमित भूजल दोहन की अनुमति दे सकते हैं?
पांचवां, जल निकायों के उपयोग पर निगरानी का प्रबंध करने, पता लगाने, रिसाव को कम करने और रोकने या उपग्रह इमेजरी का उपयोग करने के लिए प्रौद्योगिकी अपनाने की शुरूआत करना है। इसमें जलाशयों और टैंकों का पुनरूद्धार भी शामिल है। सामाजिक संस्थाओं ने तमिलनाडु जैसे राज्यों में ऐसे उपक्रम किए हैं। छठवां कदम जन जागरुकता बढ़ाना है। सबसे आशाजनक तरीका है युवा स्कूली छात्रों को प्रकृति के संरक्षण के लिए प्रेरित करना है? चाहे वह प्लास्टिक का उपयोग कम करना हो या पटाखे जलाना हो या पानी का संरक्षण करना हो। उनके माध्यम से यह किया जा सकता है।
बालवाड़ी स्तर से शुरू करने पर बच्चों के बीच जल संकट के प्रति जागरूकता बढ़ाने के व्यापक अभियान का लंबे समय में अधिकतम प्रभाव पड़ेगा। हाल ही में टाटा का एक विज्ञापन जिसमें बच्चों को नर्सरी राइम्स गाते हुए दिखाया गया था (जैक और जिल एक बाल्टी पानी लाने के लिए पहाड़ी पर गए थे, लेकिन वहां पानी नहीं था) जल संकट की जागरूकता की वकालात करने के लिए एक बहुत प्रभावी अभियान का एक उदाहरण था। विश्व जल दिवस पर अपने सबसे कीमती संसाधन के संरक्षण के लिए अपनी प्रतिबद्धता दोहराने के लिए यह हमारे लिए सबसे अच्छा अवसर है।
(लेखक प्रसिद्ध अर्थशास्त्री हैं। सिंडिकेट: द बिलियन प्रेस)