- डॉ. हनुमन्त यादव
ललितजी की सलाह मानकर मैं मध्यप्रदेश में आयेाजित प्रशासन संस्थान की वार्षिक बैठक में हिस्सा लेने भोपाल गया। वार्षिक सभा के एजेंडे के अंत में पदाधिकारियों का चुनाव था। चुनाव में मोहनलाल सिंघल के पैनल के सभी प्रत्याशियों की भारी बहुमत से जीत हुई। सिंघल साहब अध्यक्ष और भोपाल के एडवोकेट बृजमोहन श्रीवास्तव महासचिव चुने गए। दो उपाध्यक्ष के पदों में से एक मैं चुना गया, मुझे दूसरे उपाध्यक्ष का नाम याद नहीं रहा है।
इसे संयोग ही कहना चाहिए कि ललितजी ने अनेक ऐसे प्रतिष्ठित व्यक्तियों से परिचय करवाया जिन्होंने मुझ पर विश्वास व्यक्त करते हुए अपना सहयोगी बनाया बनाया। उनमें से कुछ लोगों का जिक्र मैं पहले ही कर चुका हूं। ऐसे ही महानुभावों में मुझे महू के मोहनलाल सिंघल एडवोकेट का नाम स्मरण में आ रहा है। सिंघल साहब को मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री प्रकाशचन्द्र सेठी ने मध्यप्रदेश राज्य योजना आयोग अपने मुख्य मंत्रीत्वकाल में मध्यप्रदेश राज्य योजना मंडल का उपाध्यक्ष नियुक्त करके उन्हें मंत्री पद का दर्जा भी दिया था।
सितंबर 1995 के पहले सप्ताह में एक दिन प्रात: सिंघल साहब ने ललितजी द्वारा करवाए गए परिचय का संदर्भ देते हुए मुझसे फोन पर कहा वे रायपुर आए हुए हंै और वे सर्किट हाउस में मुझसे मिलना चाहते हैं। सर्किट हाउस में मिलने पर उन्होंने मुझसे कहा कि वे भारतीय लोक प्रशासन संस्थान ईपा की मध्यप्रदेश शाखा के अध्यक्ष पद हेतु चुनाव लड़ने पर विचार कर रहे हैं और वे चाहते हैं कि मैं 1996-98 दो वर्ष की अवधि के लिए उनकी टीम का सदस्य बनंू, इसलिए शाखा की अगले माह होने वाली बैठक में हिस्सा लेने के लिए भोपाल हर हालत में आना होगा।
भारतीय लोक प्रशासन संस्थान ईपा दिल्ली के इन्द्रप्रस्थ एस्टेट में स्थित है। जैसा कि इस संस्थान के नाम से ही स्पष्ट है कि इस संस्थान में लोक प्रशासन का शिक्षण एवं प्रशिक्षण होता है। भारतीय लोक प्रशासन संस्थान की हर एक राज्य में शाखाएं हैं। भारतीय लोक प्रशासन संस्थान दिल्ली के आजीवन सदस्यों को उनके गृह राज्य में अपने आप सदस्यता मिल जाती है, उन्हें अलग से सदस्य नहीं बनना पड़ता है। उसी प्रकार यदि किसी राज्य के किसी नगर में दहाई अंकों में सदस्य हैं तो नगर में भी शाखा स्थापित की जा सकती है। दक्षिण भारत के हर बड़े नगर में संस्थान की शाखाएं हैं। मध्यप्रदेश में केवल इन्दौर और जबलपुर में ही नगर शाखाएं हैं। मुझे 1984 में भारतीय लोक प्रशासन में अर्थशास्त्र के प्राध्यापक के पद पर कार्यरत मेरे एक मित्र ने सदस्य बनवाया था। इस संस्थान की सदस्यता मेरे लिए बहुत उपयोगी इस रूप में साबित हुई कि जब भी मैं किसी भी काम से दिल्ली जाता था तो इसी के होस्टल में ठहरता था।
जब सिंघल साहब ने मेरे सामने संस्थान की मध्यप्रदेश शाखा के पदाधिकारी बनने का प्रस्ताव रखा तो मेरा यही कहना था कि भारतीय प्रशासन सेवा आई.ए.एस. अधिकारी ही इसके सदस्य हो सकते हैं। सिंघल साहब ने कहा कि जब इस संस्थान के आप सदस्य बन सकते हैं और हर साल राष्ट्रीय कार्यकारिणी समिति के सदस्यों के लिए डाक द्वारा मतदान कर सकते हैं, तो शाखा के पदाधिकारी क्यों नहीं बन सकते। सिंघल साहब ने तमिलनाडु का उदाहरण देते हुए कहा कि संस्थान की तमिलनाडु शाखा के और राष्ट्रीय कार्यकारिणी समिति के सदस्य अध्यक्ष प्रो. वी शनमुगासुंर्द्रम अर्थशास्त्र के प्रोफेसर हैं।
फिर भी मेरे द्वारा अनिच्छा जाहिर करने पर उन्होंने कहा कि क्या इसके लिए मुझे ललितजी से आपको कहलवाना पड़ेगा। इस वाक्य को सुनने के बाद मेरे पास कोई तर्क नहीं बचा था मैंने उनके द्वारा दिए गए उपाध्यक्ष पद के नामांकन पत्र पर हस्ताक्षर कर दिए। उनके जाने के बाद जब एक दिन ललितजी से मुलाकात हुई तो उन्होंने स्वयं बात निकालते हुए मुझसे कहा कि सिंघल साहब जब स्वयं रायपुर आकर आपको उपाध्यक्ष पद के लिए आमंत्रित कर गए हैं तो आपको हर स्थिति में भोपाल जाना चाहिए।
ललितजी की सलाह मानकर मैं मध्यप्रदेश में आयेाजित प्रशासन संस्थान की वार्षिक बैठक में हिस्सा लेने भोपाल गया। वार्षिक सभा के एजेंडे के अंत में पदाधिकारियों का चुनाव था। चुनाव में मोहनलाल सिंघल के पैनल के सभी प्रत्याशियों की भारी बहुमत से जीत हुई। सिंघल साहब अध्यक्ष और भोपाल के एडवोकेट बृजमोहन श्रीवास्तव महासचिव चुने गए। दो उपाध्यक्ष के पदों में से एक मैं चुना गया, मुझे दूसरे उपाध्यक्ष का नाम याद नहीं रहा है। चुनाव के बाद अगले दिन रायपुर पहुंचने पर जब मैंने देशबन्धु देखा तो मैंने संस्थान के उपाध्यक्ष पद पर अपने चित्र सहित निर्वाचन का समाचार पाया।
दरअसल निर्वाचन सिंघल साहब ने मेरे उपाध्यक्ष चुने जाने की सूचना ललितजी को फोन पर दे दी थी। इस चुनाव की खास बात यह रही कि संस्थान की मध्यप्रदेश शाखा के इतिहास के चुनाव में पहली बार सभी गैर-आई.ए.एस. अधिकारी चुने गए अन्यथा मुख्य सचिव पद के कैडर का पदाधिकारी के अध्यक्ष बनने की परंपरा रही थी। उपाध्यक्ष चुने जाने के बाद मैंने प्रदेश शाखा की कार्यसमिति और वार्षिक सभा की बैठक में नियमित रूप से हिस्सा लेना प्रारंभ कर दिया था। सितंबर 1997 की वार्षिक सभा की बैठक हिस्सा लेने भोपाल गया तो चुनावी माहौल बदला हुआ पाया।
भारतीय प्रशासन सेवा के अधिकारी हार को पचा नहीं पाए थे। उन्होंने सिंघल साहब के दाहिने हाथ महासचिव बृजमोहन श्रीवास्तव की आजीवन सदस्यता पर दिल्ली मुख्यालय को आपत्ति दर्ज करा दी थी और श्रीवास्तवजी की सदस्यता अस्थायी रूप से स्थगित कर उनके किसी भी पद के लिए चुनाव में खड़ा होने पर रोक लगा दी थी। अध्यक्ष पद के लिए के.के. सेठी का नाम प्रस्तावित था, जो ट्रिब्यूनल की सेवा अवधि करके इलाहाबाद से वापस भोपाल लौट आए थे। माहौल विपरीत देखकर सिंघल साहब ने अपना नामांकन वापस ले लिया था किंतु उन्होंने मुझे सलाह दी थी कि मैं अपना नामांकन वापस न लूं। मैंने नामांकन वापस नहीं लिया। चुनाव की नौबत ही नहीं आई और मैं उपाध्यक्ष पद पर दो साल के लिए निर्विरोध निर्वाचित हो गया तथा सेठी साहब की टीम का सदस्य बन गया।
1999 वर्ष की वार्षिक सभा के लिए सिंघल साहब का फोन नहीं आने से मैं भोपाल नहीं गया। लोक प्रशासन संस्थान म.प्र. शाखा का चार वर्ष उपाध्यक्ष रहना मेरे लिए उपलब्धि इस रूप में थी कि मुझे लोक प्रशासन का एक दिन का भी व्यवहारिक अनुभव नहीं था। यह सब ललितजी की सिंघल साहब से जान पहचान और उनकी सलाह के कारण ही संभव हुआ। संस्मरण आलेख की तीन श्रृंखला प्रकाशित होने के बाद कुछ पाठकों के फोन आए कि मुझे आलेख का शीर्ष श्रद्धेय ललितजी की सुनहरी यादें रखना चाहिए था, किंतु मैंने शीर्ष बदलना उचिन नहीं समझा। मैंने वर्तमान श्रृंखला में वर्ष 1999 तक अपने संस्मरण प्रस्तुत किए। कुछ माह के बाद जब 2000 से 2020 तक के संस्मरण प्रस्तुत करूंगा तो उसका शीर्ष ललितजी की सुनहरी यादें रखना चाहूंगा।