• दिल्ली में चुनाव प्रचार के आखिरी सप्ताह में बाजी पलटने के संकेत

    दिल्ली चुनाव प्रचार 5 फरवरी को होने वाले मतदान से पहले 3 फरवरी को समाप्त होने वाले अंतिम सप्ताह में प्रवेश कर गया है।

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    — डॉ. ज्ञान पाठक
    मुफ्त में दी जाने वाली चीजों पर भाजपा का रुख तब और हास्यास्पद हो गया, जब अरविंद केजरीवाल ने अपना नया अभियान शुरू करते हुए दावा किया कि अगर भाजपा सत्ता में आई तो वह लोगों के लिए आप सरकार द्वारा शुरू की गयी सभी कल्याणकारी योजनाओं को बंद कर देगी। भाजपा के शासन में मुफ्त बिजली, पानी, शिक्षा या स्वास्थ्य सेवा बंद कर दी जायेगी।

    दिल्ली चुनाव प्रचार 5 फरवरी को होने वाले मतदान से पहले 3 फरवरी को समाप्त होने वाले अंतिम सप्ताह में प्रवेश कर गया है। चुनाव प्रचार की शुरुआत में भाजपा आक्रामक और आप के राजनीतिक कथानक पर हावी दिख रही थी, लेकिन अब जब चुनाव प्रचार अपने चरम पर पहुंच रहा है, तो भाजपा रक्षात्मक हो गई है और अनजाने में अपने ही राजनीतिक जाल में फंस गयी है। चुनाव प्रचार की शुरुआत में भाजपा ने दो खास रणनीतियों पर ध्यान केंद्रित किया - पहला, भ्रष्टाचार के लिए आप नेतृत्व को निशाना बनाना और दिल्ली के विकास पर प्रतिकूल प्रभाव डालने वाले मुफ्तखोरी में सरकारी खजाने को भारी नुकसान पहुंचाना; और दूसरा, कांग्रेस पर इस बात पर जोर देकर निशाना साधना कि इंडिया ब्लॉक टूट रहा है।

    कांग्रेस और आप ने इंडिया ब्लॉक का हिस्सा होने के बावजूद दिल्ली चुनाव अपने दम पर लड़ने का फैसला किया, जिससे भाजपा को उम्मीद थी कि उनके अलग होने से भाजपा विरोधी वोट बंट जायेंगे, जिसका फायदा भाजपा को होगा। उनका ऐसा सोचना सही था, लेकिन कांग्रेस को निशाना बनाने की उनकी रणनीति गलत साबित हुई, क्योंकि कांग्रेस को कमजोर करने के प्रयासों ने भाजपा विरोधी वोटों को और अधिक विभाजित करने की कांग्रेस की क्षमता को कम कर दिया। कांग्रेस पर निशाना साधते हुए भाजपा ने इस बात पर जोर दिया कि इंडिया ब्लॉक टूट रहा है। उसने हमेशा ब्लॉक के अन्य राजनीतिक दलों का हवाला देते हुए ऐसा कहा। भाजपा के इस तरह के अभियान ने हालांकि कांग्रेस की संभावनाओं को नुकसान पहुंचाया, लेकिन इसने उसके विरोधी आप को मजबूत किया। इंडिया ब्लॉक के भीतर जो कुछ हुआ, जैसे कि कांग्रेस और आप का अलग होना, शुरू में दोनों इंडिया ब्लॉक पार्टियों की चुनावी संभावनाओं को नुकसान पहुंचाने वाला माना गया। इसलिए भाजपा ने ब्लॉक में हुए विभाजन के लिए आप और कांग्रेस दोनों को ही खराब रोशनी में पेश करने की पूरी कोशिश की। हालांकि, जब तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी), समाजवादी पार्टी (एसपी) जैसे अन्य राजनीतिक दल खुलकर आप के पक्ष में आ गये, तो स्थिति बदल गयी। कांग्रेस और भी कमजोर हो गयी, एक तो इसलिए क्योंकि वह भाजपा के निशाने पर थी, और दूसरा इसलिए क्योंकि दिल्ली के मतदाताओं को यह स्पष्ट संकेत मिल गया कि कांग्रेस दिल्ली चुनाव में इंडिया ब्लॉक सहयोगियों के बीच भी अलग-थलग पड़ गयी है। यह आप से सत्ता छीनकर दिल्ली चुनाव जीतने की भाजपा की राजनीतिक संभावनाओं के खिलाफ गया, क्योंकि भाजपा नेतृत्व भाजपा विरोधी मतों के विभाजन की उम्मीद कर रहा था।

    शुरू में, भाजपा को उम्मीद थी कि कांग्रेस 2020 के विधानसभा चुनावों में मिले 5 प्रतिशत से भी कम वोट शेयर को बढ़ाकर लगभग 15 प्रतिशत करने में सक्षम होगी, जिससे भाजपा की जीत का मार्ग प्रशस्त हो सकता है। हालांकि, दिल्ली में तेजी से बदलते राजनीतिक परिदृश्य में, कांग्रेस की चुनावी संभावना उस स्तर तक नहीं बढ़ सकी, जिसकी भाजपा को उम्मीद थी, जिसके लिए भाजपा की अपनी रणनीतिक गलतियां भी जिम्मेदार हैं। दूसरे शब्दों में, भाजपा ने अपनी संभावनाओं को खुद ही नुकसान पहुंचाया।

    दूसरी ओर, टीएमसी और एसपी द्वारा दिल्ली में न केवल आप का समर्थन करने, बल्कि उसके उम्मीदवारों के लिए प्रचार करने के फैसले ने भाजपा विरोधी वोटों में विभाजन की संभावना को काफी हद तक कम कर दिया है, जिनमें से अधिकांश अभी भी आप के साथ हैं, और केवल एक छोटे से हिस्से के कांग्रेस की ओर जाने की संभावना है। आप के पक्ष में इंडिया ब्लॉक सहयोगियों का कदम वास्तव में कांग्रेस के खिलाफ नहीं है, बल्कि भाजपा के खिलाफ लक्षित है, वह भी एकजुट होकर। इसलिए, जमीनी स्तर पर राजनीतिक स्थिति से पता चलता है कि चुनावी लड़ाई मुख्य रूप से आप और भाजपा के बीच लड़ी जा रही है, और कांग्रेस राजनीतिक लड़ाई के किनारे पर है। आप और उसके सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल के खिलाफ भाजपा की राजनीतिक रणनीति शुरू में भ्रष्टाचार के आरोपों के इर्द-गिर्द घूमती थी। चुनाव के दौरान भी, केंद्र सरकार ने अरविंद केजरीवाल के खिलाफ अभियोजन को मंजूरी दी थी। दिल्ली शराब मामले में भ्रष्टाचार के सभी आरोपी पहले ही जमानत पर हैं, ऊपर से सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई और प्रवर्तन निदेशालय के खिलाफ प्रतिकूल टिप्पणी भी की है। इस प्रकार, नयी मंजूरी को आम मतदाताओं ने भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार द्वारा अरविंद केजरीवाल और उनकी पार्टी को प्रताड़ित करने के रूप में देखा।

    भाजपा नेतृत्व, खास तौर पर भारत के प्रधानमंत्री ने विपक्षी राजनीतिक दलों द्वारा आम लोगों के लिए शुरू की गयी कल्याणकारी योजनाओं के तहत मुफ्त में दी जाने वाली चीजों को 'रेवाड़ियांÓ करार दिया है। भाजपा नेतृत्व ने दावा किया कि मुफ्त में दी जाने वाली चीजों से सरकारी खजाने और देश के विकास को भारी नुकसान हो रहा है। इसके बाद आप सुप्रीमो केजरीवाल ने 'रेवड़ी पर चर्चाÓ नामक राजनीतिक अभियान शुरू किया। उनके अभियान को लोगों से बहुत अच्छी प्रतिक्रिया मिली, जिसके कारण भाजपा को भी सत्ता में आने पर कई मुफ्त चीजें देने का वायदा करना पड़ा।

    हालांकि, भाजपा के मुफ्त में दी जाने वाली चीजों के वायदे सतही तौर पर मतदाताओं को लुभाने वाले थे, लेकिन अरविंद केजरीवाल के हाथों में एक नया हथियार आ गया, जिन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अब यह स्वीकार करना चाहिए कि आप द्वारा मुफ्त में दी जाने वाली चीजें राष्ट्रीय विकास के लिए बुरी नहीं हैं, क्योंकि वे भी मुफ्त में देने का वायदा कर रहे हैं।

    मुफ्त में दी जाने वाली चीजों पर भाजपा का रुख तब और हास्यास्पद हो गया, जब अरविंद केजरीवाल ने अपना नया अभियान शुरू करते हुए दावा किया कि अगर भाजपा सत्ता में आई तो वह लोगों के लिए आप सरकार द्वारा शुरू की गयी सभी कल्याणकारी योजनाओं को बंद कर देगी। भाजपा के शासन में मुफ्त बिजली, पानी, शिक्षा या स्वास्थ्य सेवा बंद कर दी जायेगी।

    इससे भाजपा फिर से रक्षात्मक हो गयी है और पार्टी चुनाव प्रचार के अंतिम चरण में कह रही है कि अगर वह सत्ता में आती है तो केजरीवाल सरकार द्वारा शुरू की गयी किसी भी कल्याणकारी योजना को बंद नहीं करेगी। इसके अलावा, भाजपा नेता कह रहे हैं कि वे कई नये कल्याणकारी कार्यक्रम शुरू करेंगे और पार्टी ने अपने घोषणापत्र में इसका वायदा किया है। इस तरह भाजपा अप्रत्यक्ष रूप से केजरीवाल और आप सरकार के लिए प्रचार कर रही है।

    दिल्ली के चुनाव प्रचार में भाजपा की ओर से अधिकारियों की प्रत्यक्ष भागीदारी भी स्पष्ट रूप से देखी गयी है, जो लोकतंत्र में बहुत बुरी बात है, क्योंकि दिल्ली में अधिकारी निर्वाचित आप सरकार के सीधे नियंत्रण में नहीं हैं, बल्कि कानून के तहत उपराज्यपाल के नियंत्रण में हैं, जो भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार के निर्देश पर काम करते हैं। चुनाव प्रचार के दौरान जब आप ने महिलाओं को अधिक वित्तीय मदद और अन्य लोगों को मुफ्त चिकित्सा सुविधाओं का वायदा किया, तो सरकारी अधिकारियों ने सार्वजनिक नोटिस जारी किया कि वायदे धोखाधड़ी हैं। आप के खिलाफ राजनीति करने वाले अधिकारियों का ताजा उदाहरण दिल्ली जल बोर्ड के सीईओ द्वारा अरविंद केजरीवाल के इस आरोप का खंडन है कि हरियाणा यमुना नदी के पानी को जहरीला बना रहा है। डीजेबी के सीईओ ने दिल्ली के मुख्य सचिव को एक लिखित पत्र भेजा है और कहा है कि हरियाणा के खिलाफ केजरीवाल का आरोप 'तथ्यात्मक रूप से गलत और आधारहीनÓ है। उन्होंने पत्र को उपराज्यपाल को भेजने का अनुरोध किया है। यह पत्र मीडिया में लीक हो गया है और व्यापक रूप से प्रकाशित हुआ है। यह सर्वविदित है कि यमुना अपने प्रवाह के हर हिस्से में प्रदूषित हो रही है, जिसमें हरियाणा भी शामिल है, जहां अनुपचारित पानी और औद्योगिक अपशिष्टों का निर्वहन किया जा रहा है।

    हरियाणा पर अरविंद केजरीवाल का आरोप पूरी तरह से गलत नहीं है। उनके आरोप का राजनीतिक महत्व है, क्योंकि पानी की आपूर्ति की गुणवत्ता और यमुना का गंदा पानी हाल ही में प्रमुख राजनीतिक मुद्दा बन गये हैं। हरियाणा में भाजपा का शासन है, जबकि दिल्ली में आप का शासन है। दिल्ली के अधिकारियों द्वारा आप और दिल्ली के उसके नेतृत्व के विरुद्ध काम करने तथा भाजपा शासित हरियाणा का बचाव करने को अधिकारियों की अपनी ही चुनी हुई सरकार के खिलाफ राजनीतिक भागीदारी के रूप में देखा जा रहा है।
    दिल्ली में राजनीतिक अभियान में अब बड़ा बदलाव देखने को मिला है, और 3 फरवरी को समाप्त होने से पहले यह विश्लेषकों को और अधिक आश्चर्यचकित कर सकता है।

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