शकील अख्तर
आप से गठबंधन का अब इस स्टेज में विरोध करने का क्या मतलब? केवल भाजपा को फायदा पहुंचाना। जब एक बार पार्टी ने तय कर लिया फिर चाहे कितना ही बड़ा नेता क्यों न हो और पार्टी भी कांग्रेस के अलावा कोई और भी क्यों न हो तो फिर बवाल करने का क्या मतलब! कांग्रेस को किसी दुश्मन की जरूरत नहीं। अच्छी भली गाड़ी आगे बढ़ रही है।
वह कहते हैं ना कि कांग्रेस को दुश्मनों की जरूरत नहीं! कांग्रेसी यह काम खुद बखूबी करते हैं। उस समय जब दो फेज के मतदान के बाद कांग्रेस और इंडिया गठबंधन एज पर दिख रहा था। उसके हौसले बढ़े हुए थे। अखिलेश यादव ने कन्नौज से नामांकन भर के यूपी में धमाका कर दिया था। अमेठी रायबरेली से राहुल प्रियंका लड़ें की आवाजें तेज हो रहीं थीं तब ही दिल्ली के प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अरविंद सिंह लवली ने ढेर सारे आरोप लगाते हुए अपने पद से इस्तीफा दे दिया। दिल्ली में बन रहे कांग्रेस और आप के माहौल को पलीता लगा दिया।
गलती किसकी? लवली की? बिल्कुल नहीं! आठ महीने पहले उन्हें जब अध्यक्ष बनाया था तो हमने आश्चर्य में सबसे छोटी खबर लिखी थी। एक वाक्य की। लिखा था- 'भाजपा रिटर्न लवली को कांग्रेस ने अपना दिल्ली अध्यक्ष बनाया।' जो आदमी जब पार्टी सत्ता में थी केन्द्र और दिल्ली दोनों जगह तब उसके सारे सुख ले रहा हो। दिल्ली की शीला दीक्षित सरकार में दस साल मंत्री रहे हों। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष भी। वह भाजपा में चला जाए! और जब वहां कुछ नहीं मिले तो वापस कांग्रेस में आकर फिर प्रदेश अध्यक्ष बन जाए तो इसे क्या कहेंगे। लवली की गलती?
यही कांग्रेस है। पिछले दस साल से। जहां परिवार लगातार संघर्ष कर रहा है। उनकी एसपीजी की सिक्योरटी ले ली। राहुल प्रियंका के घर खाली करवा लिए। राहुल की लोकसभा सदस्यता छीऩी। ईडी ने कई-कई दिन सोनिया और राहुल से पूछताछ की। राहुल पर दो दर्जन से ज्यादा मुकदमे लगाए। पार्टी के बैंक खाते सीज किए। मगर फिर भी परिवार लड़ रहा है।
मोदी जी सोचते थे डर जाएंगे। मगर उन्हें नहीं मालूम था कि यह परिवार किसी दूसरी ही मिट्टी से बना हुआ है। डरता नहीं है। दो-दो सदस्य देश के लिए शहीद हो गए। अभी प्रियंका कह रही थीं कि मेरी दादी का सीना गोलियों से छलनी कर दिया। अपने पिता को मैं टुकड़ों में उठा कर लाई हूं। मगर हम किसी 56 इंच सीना कहने वाले से नहीं डरते। उनका सीना 56 इंच का नहीं है। हमारे सीने लोहे के हैं।
परिवार अभी भी लड़ रहा है। लेकिन जिस परिवार की दम पर कांग्रेसी 2004 में सत्ता में वापस आए थे उसके बारे में यह कभी सोचते नहीं हैं। सोचना तो दूर सीधे उसके खिलाफ खड़े हो जाते हैं। जी 23 कोई भूलने वाली घटना नहीं है। राहुल प्रियंका उसे भूलते हैं तो अपने लिए ही खाई खोदते हैं। जी 23 सीधे-सीधे राहुल के खिलाफ था। राहुल के हौसले को तोड़ने की कोशिश।
मगर जैसे मोदी जी यह काम नहीं कर पाए। कांग्रेसी भी नहीं। और कांग्रेसी भी कोई छोटे मोटे नहीं! सबसे सीनियर मोस्ट सबसे ज्यादा मलाई खाने वाले प्रणव मुखर्जी और गुलाम नबी आजाद। प्रणव मुखर्जी को तो सर्वोच्च पद राष्ट्रपति तक पहुंचाया। मगर उन्हें शिकायत रही और अब उनकी बेटी शर्मिष्ठा मुखर्जी कहती है कि प्रधानमंत्री क्यों नहीं बनाया।
अच्छा अगर प्रधानमंत्री बना देते तो आज कौन कह सकता है कि फिर वे आरएसएस मुख्यलय नागपुर नहीं जाते! आजाद के बारे में तो कहना ही क्या। जो अपने राज्य जम्मू-कश्मीर से कभी नहीं जीत पाए उन्हें 1980 में इन्दिरा गांधी ने महाराष्ट्र से लोकसभा चुनाव जिताया था। अभी अनंतनाग से लड़ने की बात कर रहे थे। भाजपा चाहती भी थी। समर्थन तो हर तरह का था ही। मगर डर गए। हिम्मत तो पहले ही अपने गृह निर्वाचन क्षेत्र उधमपुर से लड़ने की नहीं जुटा पाए थे। वहां से एक बार लड़े थे 2014 में। मगर डॉ. जितेन्द्र सिंह ने बुरी तरह हराया था।
तो इस तरह वे नेता जिन्हें कांग्रेस ने उंगली पकड़कर आगे बढ़ाया हो उन्होंने भी पिछले दस साल में अपनी औकात दिखा दी। कृतघ्नता की सारी हदें पार कर दीं। और नाम तो अभी यह दो बड़े नेताओं के लिए बाकी लिस्ट तो ज्योतिराजदित्य सिंधिया, जितिन प्रसाद, आरपीएन सिंह, मिलिंद देवड़ा जैसे उन नेताओं की भी है जिनके पिता जितिन की माताजी को भी कांग्रेस ने ऊंचे से ऊंचे पद दिए। और खुद बेटों को दस साल यूपीए के टाइम में मंत्री रखा मगर सत्ता जाते ही सब भाग लिए। भागने वालों की बड़ी लंबी लिस्ट है। लेकिन इसमें लवली का पार्ट आश्चर्यजनक इसलिए है कि उन्हें बीजेपी में जाने के बाद दिल्ली कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया।
अगस्त 2023 में उन्हें जब अध्यक्ष बनाया तो पार्टी के लिए वफादारी के साथ हमेशा काम करते रहे रहने वालों को केवल आश्चर्य ही नहीं दु:ख भी हुआ। कांग्रेस में मलाई खाओ। सत्ता चली जाए तो बीजेपी में चले जाओ। फिर वापस आकर अध्यक्ष बन जाओ। और बीच चुनाव में धोखा दे जाओ।
लवली का धोखा देना मामूली बात नहीं है। दिल्ली देश की राजधानी है। यह पूरे देश की राजनीति का टोन सेट करती है। जो यहां से जीतता है वह केन्द्र में सरकार बनाता है। भाजपा ने 2014 और फिर 2019 दोनों बार दिल्ली की सातों सीटें जीती थीं। इससे पहले 1977 में जनता पार्टी ने सातों सीटें जीती और पहली बार केन्द्र में गैरकांग्रेसी सरकार बनाई। 1980 में इन्दिरा गांधी ने दिल्ली की सातों सीटें जीतकर वापसी की थी।
इस बार दिल्ली में बाद में चुनाव है। 25 मई को। देश भर की हवा यहां आ रही है। कांग्रेस और आप का मजबूत गठबंधन और सालिड होता जा रहा था। भाजपा के एक को छोड़कर सारे उम्मीदवार नए थे। जिनके टिकट काटे थे वे सब अंदर ही अंदर नाराज थे। भाजपा में कोई कांग्रेस की तरह तो अनुशासनहीनता कर नहीं सकता। लेकिन उनका नाराज होना भाजपा के लिए चिंता की बात थी।
और यह लवली का करम कोई अनुशासनहीनता नहीं है। फौज की भाषा में बगावत कोर्ट मार्शल का मामला है। कमांडिग आफिसर ( सीओ) बीच युद्ध में भागने लगे तो क्या करते हैं? कांग्रेस में एक पूर्व सैनिकों का का डिपार्टमेंट भी है। उसमें कई रिटायर्ड सीनियर सेना अधिकारी हैं। उन्हें कांग्रेस को बताना चाहिए कि क्या किया जाता है!
लेकिन यहां कांग्रेस में तो उलटी गंगा बहती है। लवली को तत्काल पार्टी से बाहर किए जाने के बदले उन्हें मनाने की कोशिश हो रही है। कह रहे हैं कांग्रेस अध्यक्ष बात करेंगे। कांग्रेसियों का कोई भरोसा नहीं है कि राहुल को भी बीच में डाल दें।
क्या आरोप लगाए हैं लवली ने कि बाहरी लोगों को टिकट दिए। अच्छा वे भाजपा से होकर आए हैं और दूसरों को बाहरी कह रहे हैं! सच बात यह है कि ये बाहरी ऐसे हैं जिन्होंने दिल्ली में माहौल बना दिया। कन्हैया कुमार का जैसा विरोध भाजपा करती है वैसा ही कांग्रेस के नेता भी करेंगे तो उनमें और भाजपा में क्या फर्क रह जाएगा? उदित राज गए थे भाजपा में मगर पांच साल पहले आ गए और तब से काम कर रहे हैं। तीसरे प्रत्याशी जेपी अग्रवाल अपने आप में दिल्ली की एक पहचान हैं। चांदनी चौक के लिए उनसे अच्छा उम्मीदवार और कौन था कांग्रेस में?
आप से गठबंधन का अब इस स्टेज में विरोध करने का क्या मतलब? केवल भाजपा को फायदा पहुंचाना। जब एक बार पार्टी ने तय कर लिया फिर चाहे कितना ही बड़ा नेता क्यों न हो और पार्टी भी कांग्रेस के अलावा कोई और भी क्यों न हो तो फिर बवाल करने का क्या मतलब!
कांग्रेस को किसी दुश्मन की जरूरत नहीं। अच्छी भली गाड़ी आगे बढ़ रही है। मगर नेता पहियों से लिपटे पड़े हैं। खुद ही उसे बढ़ने से रोक रहे हैं। राहुल और प्रियंका कितना दम लगाएंगे!
मोदी जी से तो लड़ लेंगे इनसे कैसे लड़ें! एक ही रास्ता होता है। निकाल कर बाहर करो। और भूल जाओ।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार है)