- डॉ. हनुमन्त यादव
बजट में कोरोना से बुरी तरह से प्रभावित क्षेत्रों को पटरी पर लाने के लिए भारी राशि के आबंटन की संभावना है। सरकार के पास संसाधन सीमित है और सरकार के पास विकल्प भी सीमित हैं। वह एक सीमा तक ही कर एवं उपकर में बढ़ोतरी कर सकती है। इसलिए सरकार बुनियादी ढांचे को मजबूत करने वाली योजनाओं, स्वास्थ्य, शिक्षा आदि की योजनाओं पर पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप को बढ़ावा देगी।
इस वर्ष देशवासियों को टीवी चैनलों पर दिल्ली में दो परेड देखने को मिलेगी। पहली परेड, राजपथ पर होने वाली 72वें गणतंत्र दिवस की समारोह की परेड जिसमें रक्षा मंत्रालय द्वारा राफेल विमान एवं अन्य आधुनिक आयुधों के साथ सैन्य शक्ति राज्यों द्वारा अपने राज्यों की सांस्कृतिक झांकियों के प्रदर्शन के रूप में देखने को मिलेगी। दूसरी, 3 बाहरी मार्गों पर लाख टै्रक्टरों की किसान रैली, जो दिल्लीवासियों को संध्या तक देखने को मिलती रहेगी। किसान नेताओं के मुताबिक इस रैली में अलग-अलग राज्यों के किसान अपने राज्य की सांस्कृतिक झांकियों का प्रदर्शन करेंगे।
किसान नेता योगेन्द्र यादव के मुताबिक इस गणतंत्र दिवस के अवसर पर एक किसानों की ट्रैक्टर परेड होगी जिसमें जनता की झांकिया रहेंगी तथा दूसरी राजपथ पर होने वाली तंत्र की परेड होगी। किसान नेताओं का दावा है कि उनकी रैली को चैनलों में कवरेज राजपथ की सरकारी परेड से अधिक व रेंज मिलने की संभावना है। कुल मिलाकर किसान सरकार के सामने अपनी शक्ति का प्रदर्शन करना चाहते हैं, किंतु इसके बावजूद मोदी सरकार द्वारा कृषि सुधार कानूनों के वापस लिए जाने की कोई संभावना नहीं है।
वित्तमंत्री निर्मला सीतारमन एक फरवरी को केन्द्रीय बजट प्रस्तुत करने जा रहीं हैं। उन्होंने चुनिंदा अर्थशास्त्रियों, व्यवसायियों, किसानों एवं कर्मचारी संगठनों के प्रतिनिधियों साथ बजट संबंधी चर्चा पूरी कर ली है। इसके पहले 5 जनवरी को वित्त मंत्रालय द्वारा एक सार्वजनिक अधिसूचना जारी करके आम जनता से बजट के संबंध में 20 जनवरी तक सुझाव आमंत्रित किए गए थे। 7 जनवरी को कलकत्ता के कर सलाहकार फोरम द्वारा आयकर से संबधित 11 सुझाव भेजे गए हैं। लगभग ऐसे ही सुझाव दिल्ली के चार्टर्ड एकाउंटेंट फोरम द्वारा दिए गए हैं। यह बजट कोविड-19 के साए में प्रस्तुत किया जा रहा है। अप्रैल-जून 1920 की तिमाही भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए सबसे खराब तिमाही साबित हुई जब जीडीपी 23 प्रतिशत गिर चुकी थी और बेरोजगारी दर बढ़ चुकी थी। यद्यपि बाद के महीनों में स्थिति में सुधार हुआ है। फिर भी 2020-21 की जीडीपी 2019-21 की धनात्मक 5 प्रतिशत से उलटकर ऋणात्मक 9 प्रतिशत हो चुकी है। बेरोजगारी दर बढ़ी हुई है। सरकार के राजस्व में भारी गिरावट आई है।
बजट में कोरोना से बुरी तरह से प्रभावित क्षेत्रों को पटरी पर लाने के लिए भारी राशि के आबंटन की संभावना है। सरकार के पास संसाधन सीमित है और सरकार के पास विकल्प भी सीमित हैं। वह एक सीमा तक ही कर एवं उपकर में बढ़ोतरी कर सकती है। इसलिए सरकार बुनियादी ढांचे को मजबूत करने वाली योजनाओं, स्वास्थ्य, शिक्षा आदि की योजनाओं पर पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप को बढ़ावा देगी। कमजोर वर्ग और सामान्य आजीविका योजनाओं पर बजट आबंटन में बढ़ोतरी होगी। कोरोना उपकर लगाए जाने की पूरी संभावना है। कुल मिलाकर इस बजट से मध्यमवर्गीय सीमित आमदनीवाले वर्ग पर जनता पर महंगाई का भार पड़ सकता है। कोरोना कोविड-19 के साए में यह बजट बनाना वित्तमंत्री के लिए बहुत चुनौतीपूर्ण था। एक फरवरी को बजट पेश किए जाने के बाद किस मद पर कितना खर्च किया गया है और खर्च की पूर्ति के लिए राजस्व किस प्रकार जुटाया गया पूरी जानकारी हो सकेगी।
अर्थव्यवस्था के निराशाजनक माहौल तथा किसान आन्दोलन से दूर भारतीय शेयर बाजार में सेंसैक्स के 50,000 का बिन्दु प्राप्त करने की उपलब्धि में 22 जनवरी को शेयरों में गिरावट के बावजूद गणतंत्र दिवस को उत्साह का माहौल बना हुआ है। भारतीय शेयर बाजार की स्थिति का सूचक बीएसई सूचकांक ने अपने इतिहास में पहली बार 4 जनवरी, 2021 को 48,000 का बिन्दु पार किया। भारतीय वैक्सीन के अनुमोदन तथा जीएसटी के उच्च संग्रह के समाचार से निवेशकों द्वारा शेयरों की लिवाली की जाने से सेंसैक्स ने उड़ते हुए आसमान में पहुंचा था।
तीन दिन बाद 11 जनवरी को सेंसैक्स उड़ते हुए 49,000 बिन्दु को पार किया। विदेशी संस्थागत निवेशकों को पोर्टफोलयों निवेशकों इस भरोसे के साथ कि अमेरिकी राष्ट्रपति जॉ. बाइडेन के कार्यकाल में भारत अमेरिकी संबंध अधिक मजबूत होंगे 21 जनवरी को भारतीय शेयरों की ताबड़तोड़ खरीदी किए जाने से सेंसैक्स 21 जनवरी को 50,000 के पार खुलने के बाद दोपहर के कारोबार में 50,184 का बिन्दु पार कर गया। सेंसैक्स के साथ ही सेक्टरल शेयरों, मिडकैप और स्मालकैप शेयर भी उड़ान भरते नजर आए।
21 जनवरी को बम्बई शेयर बाजार के चोटी के 30 शेयरों वाला सेंसैक्स लगातार 11 सप्ताह तक बढ़ते-बढ़ते 50,000 तक पहुंचा था। गुरुवार 21 जनवरी को दलाल स्ट्रीट स्थित बाम्बे स्टॉक एक्सचेंज में प्रात: से ही खुशी का माहौल था। चारों ओर सेंसैक्स 50,000 के बैनर बनाकर लगाए गए एवं पोस्टर चिपकाए गए। व्यवसायियों का समूह का एक समूह सेंसैक्स 50,000 की तख्तियां लेकर नाच-गा रहा था तो दूसरा समूह में सामाजिक दूरी भूल एक दूसरे से गर्मजोशी के साथ हाथ मिला रहा था। दलाल स्ट्रीट का यह माहौल दिल्ली के किसान आन्दोलन में उस दिन किसानों और महिलाओं द्वारा किए जाने वाले उपवास, धरने और उत्तेजक नारेबाजी से बिल्कुल उल्टा था। 21 जनवरी को विदेशी संस्थागत निवेशकों द्वारा 1644.66 करोड़ रुपए के शेयरों की शुद्ध खरीदी की गई थी। 22 जनवरी और 25 जनवरी को शेयरों की भारी बिकवाली के कारण सेंसैक्स 49,000 से भी नीचे फिसल चुका है।
2014 के आम चुनाव में मोदी की अगुवाई में भाजपा की जीत के बाद से ही विदेशी संस्थागत निवेशकों और कारपोरेट सेक्टर द्वारा भारतीय शेयरों की जोरदार लिवाली प्रारंभ कर दी गई थी। इस कारण सेंसैक्स 25,000 बिंदु पर पहुंचकर आगे बढ़ता ही चला गया। नरेन्द्र मोदी के दूसरे कार्यकाल के प्रारंभ होते ही सेंसैक्स 2019 में 40,000 पर पहुंच गया था। कोरोनाकाल में अर्थव्यवस्था के डगमगाने के बावजूद सेंसैक्स ने 21 जनवरी को 50,000 बिंन्दु पर पहुंच कर पचास हजारी बन चुका है।
भारतीय शेयर बाजारों सबसे अधिक खरीद करने वाले अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों और पोर्टफोलियो निवेशकों को भरोसा है कि नरेन्द्र मोदी के कार्यकाल में सीमाओं की सुरक्षा के साथ-साथ बेहतर कानून व्यवस्था बनी रहेगी, इसलिए वे शेयरों की भारी खरीदारी कर रहे हैं जिससे कंपनियों के बाजार पूंजीकरण में बढ़ोतरी हुई। इस विदेशी मुद्रा डॉलर के आवक के कारण भारत का विदेशी मुद्रा भंडार ने भी लबालब भरे जाने का कीर्तिमान कायम किया है। अब आगे आनेवाले दिनों में सेंसैक्स 60,000 बिंदु की ओर बढ़ना तो निश्चित है किंतु वहां कब तक पहुंचेगा यह कहना कठिन है।