- सर्वमित्रा सुरजन
सरकार को विचार करना चाहिए कि क्या वह संसद में भी ऐसी आउटसोर्सिंग करवा सकती है। क्योंकि इस मंगलवार 3 जनवरी को आईटी पर संसदीय स्थायी समिति की बैठक थी, जो अंतिम क्षणों में रद्द कर दी गई, क्योंकि कई सांसदों के नए साल के कार्यक्रम खत्म नहीं हुए थे, और बताया जा रहा है कि दिल्ली में अभी कड़ाके की सर्दी थी। समिति के कई सदस्यों ने आने में असमर्थता जतलाई तो अब 6 तारीख को बैठक होगी।
नए साल पर इस बार भी खूब धूम-धड़ाका हुआ। अंग्रेजी अखबारों के परिशिष्टों को देखें तो समझ आएगा कि नए साल के जश्न की कितनी तैयारियां चल रही थीं। चिकने अखबारी पन्नों में पूरे-पूरे पन्नों के विज्ञापन भरे थे कि आप कहां, किस होटल, विला या पब में अपने परिवार और दोस्तों के साथ नए साल का स्वागत कर सकते हैं। घर पर नए साल की पार्टी करना हो, तो उसके लिए भी उपयोगी जानकारी इन परिशिष्टों में दी हुई थी। खाने-पीने के इंतजाम से लेकर फिल्मी सितारों जैसी साज-सज्जा सबके बारे में जानकारी दी गई थी कि आप चाहें तो खुद भी ये सब कर सकते हैं।
प्री न्यू ईयर पार्टी और आफ्टर न्यू ईयर पार्टी के बीच में न जाने कहां से बेरोजगारी के आंकड़ों ने आकर सारा मजा खराब कर दिया। सीएमआईई ने जानकारी दी कि बेरोजगारी दर दिसंबर, 2022 में बढ़कर 8.3 प्रतिशत के उच्चस्तर पर पहुंच गई है। यह 2022 में बेरोजगारी दर का सबसे ऊंचा आंकड़ा है। अब आठ साल पहले आजाद हुए नए भारत को तो हर बात में आगे रहने की आदत सी हो गई है, तभी तो जी-20 की अध्यक्षता भी हमीं को मिली है। जब देश प्रदूषण से लेकर शिक्षा में गिरावट तक हर बात में पहले स्थान पर आ रहा है, तो भला बेरोजगारी में हम पीछे क्यों रहे। अगर ज्यादा रोजगार मिल जाएंगे, तो कुर्सियों पर बोझ बढ़ जाएगा। और हम तो ऐसे आत्मनिर्भर भारत के वासी हैं, जो अपने पैरों पर खड़े रहे-रहे थक जाएंगे, लेकिन कुर्सी पर बोझ डालने का पाप नहीं करेंगे।
अगर बेरोजगारी दर घट जाएगी तो फिर स्टार्ट अप्स और स्टैंड अप्स जैसे जुमले व्यर्थ नहीं हो जाएंगे। गांधीजी तो कागज का एक टुकड़ा भी बेकार नहीं जाने देते थे, जिस लिफाफे में चिठ्ठी आती थी, उसी को पलट पर सादे हिस्से में जवाब लिख देते थे और शब्दों में किफायत बरतते थे। यानी चार-पांच शब्दों में जवाब पूरा हो जाए, तो फिर उतना ही लिखते थे। अभी मोदीजी भी यही करते हैं, चार-पांच मुद्दों के इर्द-गिर्द उनकी मन की बात पूरी हो जाती है, लेकिन आलोचक इस पर भी मीन-मेख निकालते हैं कि रोजगार पर कुछ नहीं कहा, महंगाई पर कुछ नहीं कहा। अरे भाई, बिना बात शब्दों को खर्च क्यों किया जाए। जिन शब्दों के काम चल जाए, बस उतना ही कहा जाए, बाकी चुप लगाने में ही सबका भला है। और रहा सवाल रोजगार का, तो वो कुछ साल पहले बता ही चुके हैं कि टीवी स्टूडियो के नीचे कोई पकौड़ा बेचे, तो वो भी रोजगार है। स्टार्ट अप और स्टैंड अप का ये बेहतरीन उदाहरण था। अब इसी का अनुसरण करते हुए एक और नायाब स्टार्ट अप सामने आया है।
हरिद्वार में गंगा में डुबकी लगाने के लिए आउट सोर्सिंग होने लगी है। एक वीडियो सोशल मीडिया पर खूब चला, जिसमें एक युवक चिल्ला-चिल्ला कर श्रद्धालुओं को बुला रहा है कि भाइयों औऱ बहनों, आइए आपने नाम की डुबकी हम लगाएंगे, इस सर्दी भरे मौसम में। अगर आप डुबकी नहीं लगाना चाहते। अगर आप नहाना नहीं चाहते हैं, तो अपना नाम बताइए, 10 रुपए की रसीद कटाइए, आपके नाम की डुबकी हम लगाएंगे। आपने नाम के पुण्य आपको मिलेंगे, लेकिन जो 10 रुपए आप देंगे, वो हमको मिलेंगे। तो इस तरह मात्र 10 रुपए में यह युवक इहलोक और परलोक दोनों को साधने का अनूठा तरीका बता रहा है। इतने होनहार लोगों के कारण ही भारत विश्वगुरु बना हुआ है। अपनी अगली विदेश यात्रा में मोदीजी चाहें तो इस युवक को साथ ले जाएं, जो दूसरे देशों के बेरोजगारों को बताएगा कि कैसे आपदा में अवसर तलाशा जाता है, कैसे आत्मनिर्भर बना जाता है। अगर पीएमओ इसके लिए राजी नहीं होता, तो कम से कम जनवरी की मन की बात में तो इस युवक का जिक्र प्रधानमंत्री को कर ही लेना चाहिए। नए साल के पहले मन की बात में कुछ नयापन होना ही चाहिए।
वैसे भी राहुल गांधी ने भारत जोड़ो यात्रा निकालकर इन दिनों सुर्खियों में जबरन अपनी जगह बना ली है। पहले केवल मोदीजी की चर्चा होती थी कि आज उन्होंने क्या पहना, कहां हरी झंडी दिखाई, कहां काले झंडे से परहेज किया, कब मास्क पहना, कब उतारा। लेकिन पिछले कुछ दिनों से केवल यही सुनाई और दिखाई दे रहा है कि राहुल गांधी हाफ टीशर्ट में घूम रहे हैं। लोग हैरान-परेशान हैं कि उन्हें ठंड क्यों नहीं लगती।
ट्रोल आर्मी के एक मुस्तैद सैनिक ने इसका संबंध कोकीन से जोड़ना चाहा। इससे एक पंथ दो काज सध जाते। एक तो राहुल गांधी को ठंड न लगने का सच सामने आ जाता, दूसरा उनकी छवि खराब करने की कोशिश में थोड़ी कामयाबी मिल जाती। लेकिन शायद ट्रोल आर्मी के अभी अच्छे दिन नहीं चल रहे हैं। कोकीन वाला झूठ पहले ही कदम पर पकड़ा गया और वो राहुल गांधी का कोई नुकसान नहीं कर पाया। अब उनकी छोटी बहन प्रियंका गांधी ने बता दिया है कि मेरा भाई सच का कवच पहन कर चलता है, इसलिए ठंड नहीं लगती। भाजपा चाहे तो इस बात पर अब कांग्रेस को घेर सकती है कि राहुल गांधी सच का कवच पहनकर चल रहे थे और कांग्रेसी प्रचार कर रहे थे कि वे केवल हाफ टी शर्ट में हैं।
मोदीजी अपने मन की बात में गंगा में डुबकी लगाने वाले युवक को ले आएं, तो इसके दो फायदे उन्हें मिलेंगे। पहला, वे बता सकेंगे कि ठंड बर्दाश्त करने में वंशवाद नहीं चलेगा। इस देश का आम युवा भी ठंड में बिना गरम कपड़ों के रह कर दिखा रहा है। दूसरा, इस युवक को अब वे आत्मनिर्भर भारत के ब्रांड एंबेसडर के तौर पर पेश कर सकते हैं। ये युवक कांग्रेस के लोगों की तरह बेरोजगारी का रोना लेकर नहीं बैठ गया, न ही इसके लिए देश को पैदल नापने निकल गया। उसने सरकार से नौकरी मांगकर अपनी खुद्दारी को ठेस नहीं पहुंचाई। मां गंगा उसके सामने हैं, चारों ओर बर्फीली हवा है, पाप धोने के इच्छुक लोगों का रेला है, इन सबमें उसे स्वरोजगार का अवसर दिखा। यह युवक प्राच्य और पश्चिमी संस्कृति दोनों से प्रेरित होकर काम कर रहा है। परोपकार सनातन धर्म का हिस्सा है, आउट सोर्सिंग पश्चिमी जगत की पहचान है। उसने दोनों को एक साथ साधा है। लोगों के पाप धोने, उनके खाते में पुण्य लिखवाने के लिए वह बार-बार गंगाजी में डुबकी लगाएगा। लोग 10 रुपए में परलोक साधने के लिए उसे आउटसोर्स करेंगे।
सरकार को विचार करना चाहिए कि क्या वह संसद में भी ऐसी आउटसोर्सिंग करवा सकती है। क्योंकि इस मंगलवार 3 जनवरी को आईटी पर संसदीय स्थायी समिति की बैठक थी, जो अंतिम क्षणों में रद्द कर दी गई, क्योंकि कई सांसदों के नए साल के कार्यक्रम खत्म नहीं हुए थे, और बताया जा रहा है कि दिल्ली में अभी कड़ाके की सर्दी थी। समिति के कई सदस्यों ने आने में असमर्थता जतलाई तो अब 6 तारीख को बैठक होगी। अगर आउटसोर्स जैसी कोई व्यवस्था होती तो जिन लोगों को ठंड से फर्क नहीं पड़ता, या जो नए साल के जश्न निपटा चुके हैं, वो लोग बैठक कर लेते। बैठक के नतीजे संबंधित लोगों को वैसे ही सूचित कर दिए जाते, जैसे नोटबंदी की सूचना प्रधानमंत्री ने देश को दी थी।
अब तो अदालत ने भी कह दिया है कि इसमें कुछ गलत नहीं था। बेवजह छह साल तक नोटबंदी के नुकसान का रोना रोया गया। मान लो कोई नुकसान हुआ भी, तो उसकी भरपाई तो फिर भी नहीं होनी थी। इसलिए अब सरकार के फैसलों पर सवाल उठाकर वक्त बर्बाद नहीं करना चाहिए। देर-अबेर उन्हें सही ही कहा जाएगा। जैसे कर्नाटक भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष और सांसद नलिन कुमार कतील ने अगले चार महीनों में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले अपनी पार्टी के कार्यकर्ताओं से कहा कि वो रोड, नाली की बजाय लव जिहाद पर फोकस करें।
भाजपा सांसद को पता है कि वोट किस तरह मिलने हैं, तो क्यों विकास जैसे मुद्दों पर लोगों का ध्यान भटकाया जाए, सीधे मुद्दे की बात की जाए। आम लोग नए साल पर ऐसी बातों से सीख लेने का संकल्प ले लें, तो फिर महंगाई और बेरोजगारी जैसी बातें परेशान नहीं करेंगी। गंगा में दूसरों से डुबकी लगवाइए और अपने खाते में पुण्य जोड़कर आराम से सोइए। बाकी भारत को जोड़ने के लिए राहुल गांधी तो मेहनत कर ही रहे हैं।