• भीमा-कोरेगांव में नया मोड़

    महाराष्ट्र के पुणे में 2018 में भीमा कोरेगांव युद्ध की 200वीं वर्षगांठ पर हुई हिंसा में अब एक नया मोड़ आ गया है

    Share:

    facebook
    twitter
    google plus

    महाराष्ट्र के पुणे में 2018 में भीमा कोरेगांव युद्ध की 200वीं वर्षगांठ पर हुई हिंसा में अब एक नया मोड़ आ गया है। भीमा कोरेगांव में पेशवा की सेना के सामने अंग्रेजों ने महार रेजीमेंट को खड़ा किया था, जिसमें पेशवा को हार का सामना करना पड़ा था। लेकिन इस जीत को अंग्रेजों से अधिक सवर्ण पेशवा के मुकाबले खड़े दलितों की जीत माना गया था। 1 जनवरी, 2018 को भीमा कोरेगांव में युद्ध स्मारक के पास हजारों दलित इस ऐतिहासिक जीत के जश्न के लिए जमा हुए थे।

    लेकिन इस दौरान पथराव और हिंसा की घटना हो गई। पुलिस ने पहले संभाजी भिड़े, मिलिंद एकबोटे जैसे हिंदुत्ववादी नेताओं को इसके लिए गिरफ्तार किया। लेकिन बाद में एल्गार परिषद के सदस्यों के भाषणों को हिंसा भड़कने के लिए जिम्मेदार माना गया। इस संबंध में पुलिस ने प्राथमिकी दर्ज की और अगले कुछ दिनों में देश भर में कई राजनैतिक, सामाजिक, दलित और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी हुई। घटना के तार सत्ता पलटने और प्रधानमंत्री की हत्या की साजिश से भी जोड़े गए।

    पुणे पुलिस ने कई वामपंथी कार्यकर्ताओं और बुद्धिजीवियों के घरों और दफ़्तरों पर छापे मारे थे। पुलिस ने उनके लैपटॉप, हार्ड डिस्क और दूसरे दस्तावेज जब्त किए थे। इनसे मिले दस्तावेजों को अदालतों में सबूत के तौर पर पेश करते हुए पुलिस ने दावा किया था कि इसके पीछे प्रतिबंधित माओवादी संगठनों का हाथ था। 15 से अधिक सामाजिक कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार किया गया, जिसमें रोना विल्सन, सुधा भारद्वाज, वरवरा राव, गौतम नवलखा, प्रो. आनंद तेलतुम्बड़े जैसे नाम शामिल हैं। दो साल से अधिक वक्त बीत गया, और अब तक इस मामले में किसी ठोस नतीजे पर पहुंचा नहीं जा सका है। लेकिन अब यह मामला अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चर्चा में है। दरअसल प्रतिष्ठित अखबार वाशिंगटन पोस्ट ने एक रिपोर्ट प्रकाशित की है, जिसके मुताबिक रोना विल्सन के कम्प्यूटर में सेंधमारी कर साजिशों वाले मेल डाले गए और इस तरह वे एक गंभीर आरोप का शिकार हुए।

    आपको बता दें कि अभियुक्तों से पुलिस द्वारा जब्त सामग्री को अदालत के आदेश के बाद उनकी कॉपी उनके कानूनी प्रतिनिधि को मिली। इसमें रोना विल्सन से जब्त हार्ड डिस्क भी शामिल है। इस हार्ड डिस्क की फोरेंसिक जांच अमेरिकी बार एसोसिएशन की मदद से आर्सनल कंसल्टिंग नामक कंपनी से करवाई गई, जो बीस सालों से $फोरेंसिक जांच से जुड़ी है और दुनिया भर की जांच एजेंसियों के साथ मिलकर काम करती है। आर्सनल ने अपनी जांच में पाया कि नेटवायर नाम के वायरस के जरिए रोना विल्सन के कम्प्यूटर की पहले जासूसी की गई और फिर बाद में मैलवेयर के जरिए दूर से ही कई फाइलें डाली गईं, इनमें पुलिस द्वारा सबूत के तौर पर पेश किए गए 10 दस्तावेज भी शामिल हैं।

    इन्हें एक फोल्डर में रखा गया था जिसे हिडन मोड यानी छिपा कर रखा गया था और 22 महीनों के दौरान, समय-समय पर,  विल्सन के लैपटॉप पर, बिना उनकी जानकारी के उन्हें प्लांट किया गया। जबकि एनआईए का कहना है कि विल्सन के लैपटॉप की जो फ़ोरेंसिक जांच एजेंसी ने करवाई है उसमें किसी वायरस के होने के सबूत नहीं मिले हैं। एनआईए को अपने सबूतों और उनकी सत्यता पर यकीन है, यह अच्छी बात है, लेकिन अगर कोई नया एंगल इस जांच में निकल रहा है, तो फिर उसकी पुष्टि भी होना चाहिए। जिस तरह न्याय में देरी, अन्याय के समान है, उसी तरह तथ्य या सबूत सामने होने के बाद उसकी अनदेखी भी अन्याय के समान ही है। 

    वैसे भी वाशिंगटन पोस्ट का दावा है कि उसने इस रिपोर्ट की जांच तीन स्वतंत्र जांच एजेंसियों से करवाई और सबने इसे सही माना है। जिस सर्वर और आईपी एड्रेस से विल्सन पर साइबर हमले की बात की जा रही है, उसी से कुछ और लोग भी साइबर हमले का शिकार हुए हैं। मानवाधिकार संगठन एमनेस्टी इंटरनेशनल ने बीते साल कहा था कि नौ लोगों को नेटवायर ने इस तरह के ई-मेल भेजे थे। 'वाशिंगटन पोस्ट' के मुताबिक, साइबर सुरक्षा के क्षेत्र में काम कर रही कंपनी क्राउडस्ट्राइक के वरिष्ठ उपाध्यक्ष एडम मेयर्स ने कहा कि यह संयोग नहीं है कि एक ही सर्वर और आईपी अड्रेस आर्सनल और एमनेस्टी दोनों की जांच में पाया गया है। बहरहाल, रोना विल्सन के वकीलों ने बाम्बे हाईकोर्ट में अर्जी दे कर उनकी रिहाई की और नए सिरे से पूरे मामले की जांच की मांग की है।

    मुमकिन है नए सिरे, नए दृष्टिकोण से, नए तथ्यों और सबूतों के आधार पर जांच हो, तो कुछ और खुलासे हों। यह मामला देश की और प्रधानमंत्री की सुरक्षा से जुड़ा है, इसलिए इसमें सारी सावधानी बरतनी चाहिए, ताकि कोई निर्दोष जेल में न रहे और कोई साजिशकर्ता आजाद न घूमता रहे।

    Share:

    facebook
    twitter
    google plus

बड़ी ख़बरें

अपनी राय दें