चीन की अतिक्रमणकारी नीति के शिकंजे में भारत बुरी तरह फंस चुका है, लेकिन हैरानी की बात ये है कि सरकार इस पर न खुलकर कुछ बोलती है, न बताती है। पिछले साल लद्दाख में चीन के सैनिक भारत की सीमा में काफी आगे तक आ गए थे और उन्हें रोकने में कम से कम 20 भारतीय जवानों की शहादत भी हुई है। इस शहादत का लाभ लेने की कोशिश प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बिहार चुनाव में की। लद्दाख जाकर बिना नाम लिए वे चीन को ललकार भी आए, लेकिन इस ललकार का कुछ खास असर हुआ नहीं। चीन के साथ कई दौर की वार्ताएं भारत की हुईं, लेकिन अब भी कोई ठोस हल नहीं निकल पाया। और अब ऐसा लग रहा है कि समस्या कुछ औऱ गंभीर होती जा रही है। खबर है कि चीन ने अरुणाचल प्रदेश में एक गांव भी बसा लिया है।
सुबनसिरी जिले के त्सारी चू नदी के किनारे बसे इस गांव में 101 घर हैं, जिसमें चीनी लोग रह रहे हैं और यह भारतीय सीमा के 4.5 किमी. अंदर है। सैटेलाइट तस्वीरों में नजर आ रहा है कि इस चीनी गांव में चौड़ी सड़कें और बहुमंजिला इमारतें बनाई गई हैं। घरों के ऊपर चीनी झंडा भी लगाया गया है। गौरतलब है कि त्सारी चू नदी में भारत और चीन के सैनिकों के बीच 1959 के बाद से कई बार झड़प हो चुकी है। 1959 में असम राइफल्स को हटाकर चीन ने इस इलाके पर कब्जा कर लिया था। यह इला$का भारत और चीन के बीच लंबे वक़्त से विवादित और सैन्य संघर्ष वाला क्षेत्र रहा है।
1990 के दशक के अंतिम वर्षों में चीन ने इस इलाके में सड़कों का जाल बिछाया था। अभी जो ताजा सैटेलाइट तस्वीरें मिली हैं, वे 1 नवंबर, 2020 की हैं जबकि इससे पहले की तस्वीरें 26 अगस्त, 2019 की हैं और उसमें किसी तरह का निर्माण नहीं दिख रहा है। मतलब यह गांव पिछले साल बसाया गया है। और जिस वक़्त लद्दाख की सीमा पर भारतीय सैनिक चीनी सैनिकों को पीछे धकेल रहे थे, उस वक्त चीन दूसरी सीमा पर भारतीय जमीन पर कब्जा जमा रहा था। लद्दाख से लेकर सुबनसिरी तक चीन चोरी-चोरी, चुपके-चुपके भारत की जमीन हड़पने में लगा रहा और भारत सरकार कुछ चीनी ऐप्स पर प्रतिबंध लगाकर मुंहतोड़ जवाब देने का दावा करती रही। याद रहे कि इससे पहले 2017 में डोकलाम में भारत-चीन के बीच उत्पन्न हुए गतिरोध में भारतीय सेना के हाथों चीन को मात मिली थी।
उस के बाद राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने तिब्बत में 'बॉर्डर डिफेंस विलेज' बनाने की शुरुआत की। तिब्बती संगठनों का कहना है कि चीनी राष्ट्रपति का गांव बसाने का मकसद तिब्बत और बाकी दुनिया के बीच एक ऐसा 'सुरक्षा बैरियर' बनाना था जो अभेद्य हो। माना जा रहा है कि अरुणाचल प्रदेश में बसाया गया गांव भी चीनी राष्ट्रपति के इसी अजेंडे का हिस्सा है। पिछले साल अक्टूबर में चीन ने सीमा पर गांवों के निर्माण को तेज करने का ऐलान किया था। चीन ने ज्यादातर ऐसे गांवों को अरुणाचल प्रदेश की सीमा पर स्थित अपने नागरी और शिगत्से इलाकों में बसाना शुरू किया है। ताकि वह तिब्बतियों पर नजर रख सके, और भारत तक उसकी पहुंच भी आसान हो जाए। अरुणाचल प्रदेश में चीन के कारण उपजे इस ताजा विवाद पर विदेश मंत्रालय का कहना है कि चीन ने पिछले कई वर्षों में ऐसी अवसंरचना निर्माण गतिविधियां संचालित की हैं, बदले में सरकार ने भी सड़कों, पुलों आदि के निर्माण समेत सीमा पर बुनियादी संरचना का निर्माण तेज कर दिया है, जिससे सीमावर्ती
क्षेत्रों में रहने वाली स्थानीय आबादी को अति आवश्यक संपर्क सुविधा मिली है।
गौरतलब है कि भारत और चीन के बीच 3,488 किलोमीटर लंबी वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) को लेकर विवाद है। चीन अरुणाचल प्रदेश को दक्षिणी तिब्बत का हिस्सा बताता है, वहीं भारत इस दावे को खारिज करता रहा है। और अब ये नजर आ रहा है कि चीन के दावे को महज खारिज करने या उसे जुबानी चेतावनी देने से समस्या सुलझेगी नहीं। इसके लिए सोची-समझी रणनीति बनाने की जरूरत है, जिसमें राजनैतिक विरोधों को दरकिनार कर खुले मन से विशेषज्ञों से सलाह-मशविरा किया जाए। खेद की बात है कि मौजूदा सरकार में देश की रक्षा से जुड़ा मसला भी राजनैतिक लाभ-हानि को ध्यान में रखकर विश्लेषित किया जाता है। इसका ताजा उदाहरण कुछ दिनों पहले संसदीय परामर्श समिति की बैठक में विदेश मंत्री एस जयशंकर द्वारा दिया गया प्रस्तुतिकरण है। दरअसल इस बैठक में विदेश मंत्री ने चीन के साथ चल रहे गतिरोध पर एक घंटे का प्रजेंटेशन दिया। जिस पर राहुल गांधी ने कहा कि सरकार थकाऊ लिस्ट देने की बजाय चीनी खतरों को लेकर ठोस रणनीति बताए।
राहुल गांधी ने कहा कि चीन दुनिया को दो-ध्रुवीय बना रहा है। लेकिन जयशंकर ने कहा कि रूस और जापान के उभार की उपेक्षा नहीं की जा सकती। बहुध्रुवीय दुनिया में कोई सीधा और सरल दृष्टिकोण नहीं अपनाया जा सकता। उन्होंने यह भी कहा कि राहुल गांधी से बहस अंतहीन हो सकती है क्योंकि दोनों के पास अपने-अपने तर्क हैं। गनीमत है कि विदेश मंत्री ने यह तो माना कि राहुल गांधी के पास तर्क हैं, अन्यथा नेहरूजी को दोषी ठहरा देना ही भाजपा सरकार के पास सबसे आसान जवाब होता है। वैसे बहस लंबी खिंचे, तब भी कोई हर्ज नहीं, कम से कम उसमें विचारों और सूचनाओं का आदान-प्रदान तो होगा। लेकिन इस वक्त तो यही समझ नहीं आता कि मोदी सरकार किस विषय पर कौन सी नीति अपना लेगी। गोपनीयता के नाम पर बढ़ रही ऐसी संवादहीनता के कारण ही शायद चीन को बढ़ावा मिल रहा है।