• विक्रम-वेताल की नयी कहानी

    हर बार की तरह पेड़ पर लटके वेताल को पकड़ने में राजा विक्रम को सफलता मिल गई

    - सर्वमित्रा सुरजन

    मीडिया की कोमलता उसकी आत्मा में बसती है। तथ्यों के साथ खिलवाड़ से उसकी आत्मा को कष्ट पहुंचता है। लेकिन दोहरे चरित्र वाली, खोखलेपन के आवरण में लिपटी मीडिया तो आत्महीन है। उसे केवल इस बात से कष्ट होता है, कि कोई उसके आका की आलोचना न करे। आका जिस धर्म की रस्सी के सहारे सिंहासन तक पहुंचा है, उस रस्सी की गांठें कोई खोल न दे।

    हर बार की तरह पेड़ पर लटके वेताल को पकड़ने में राजा विक्रम को सफलता मिल गई। विक्रम ने वेताल को कं धे पर डाला और चल पड़ा। हमेशा की तरह इस बार भी वेताल ने राजा को कहानी सुनाना तय किया, क्योंकि सफर लंबा था और कहानी सुनते-सुनाते रास्ता आराम से कट जाता। वेताल ने फिर वही शर्त रखी कि राजन, केवल मैं बोलूंगा, तुम केवल सुनोगे। अगर तुमने मुंह खोला तो मैं फिर उड़ कर पेड़ पर चला जाऊंगा। तो कहानी शुरु हुई। इस बार एक पुरानी कहानी को नए रूप और संदर्भों के साथ वेताल ने सुनाना शुरु किया। पुरानी कहानी में एक राजा की तीन राजकुमारियां थीं। तीनों एक से बढ़कर एक कोमल। बड़ी बेटी के शरीर पर चांद के प्रकाश से ही छाले पड़ जाते थे। दूसरी बेटी को गुलाब के फूल जैसी नाजुक चीज के टकराने पर भी चोट लग जाती और खून बहने लगता था। और तीसरी बेटी के कानों में किसी के चलने या कुछ कूटने की आवाज पहुंचते ही उसके हाथ-पांव पर छाले पड़ जाते थे। लेकिन नयी कहानी में राजकुमारियों की जगह दूसरे किरदार आ गए।

    वेताल ने कहानी सुनाते हुए कहा कि एक देश में राजा इस बात पर घमंड करता था कि उसकी आंखें लाल हैं, सीना 56 इंच का है और जब दुश्मन उसकी आंखों को देखेगा, उसकी बातों को सुनेगा तो वो डर जाएगा। राजा अपने आपको बलवान के साथ-साथ दयावान भी मानता था, इसलिए दुश्मन का डर कम करने के लिए कभी खुद ही उससे हाथ मिला लेता और मौका मिले तो गले भी लग जाता। साथ झूला झूलकर, गाने सुनकर भी दुश्मन को थोड़ी राहत देने की कोशिश राजा की रहती। राजा के सेवकों का कहना है कि राजा जो चाहे कर सकता है।

    मुमकिन शब्द राजा का समानार्थी बन चुका है। इसलिए उसके देश में बच्चों को पढ़ने मिले या न मिले, देश विश्वगुरु बन जाएगा। युवाओं को रोजगार मिले न मिले, देश आत्मनिर्भर बन जाएगा। राजा के सेवक-चारण उसे आईने से बचाने की भरपूर कोशिश करते। क्योंकि ऊपर से बलवान और बहादुर दिखने वाला राजा भीतर से इतना नाजुक था कि सच का अक्स देखते ही उसे पीड़ा होने लगती थी। प्रजा ने भी देखा था कि राजा कैसे कभी अपने दरबार में, कभी विदेशी राजा के दरबार में, कभी मन की बात करते हुए, कभी किसी कुत्ते के बच्चे को पीड़ित देखकर रो पड़ते हैं। प्रजा अपने राजा के इस कोमल स्वरूप पर कई बार द्रवित भी हुई।

    इसलिए जब कभी राजा के विरोधियों ने कोई कटाक्ष किया तो प्रजा ने राजा को फिर से सिंहासन पर चढ़ा दिया। राजा और उनके चारण-भाट प्रजा की इस दरियादिली को खूब पहचानते। इसलिए कई बार राजा पर कटाक्ष न भी हुआ हो, किसी ने उनके सामने आईना न भी रखा हो, तब भी वे राजा के लिए सहानुभूति बटोरने में जुट जाते। जैसे राजा के प्रतिद्वंद्वी ने सवाल कर लिया कि आप हर चुनाव में बार-बार क्यों आते हो। हर चुनाव में केवल आपका ही चेहरा क्यों दिखाई देता है। क्या आपके पास रावण की तरह सौ सिर हैं। सच के प्रकाश से भरे इस सवाल से राजा को पीड़ा हो सकती है, ऐसा उनके दरबारियों ने मान लिया। उन्होंने ये भी ध्यान नहीं दिया कि रावण के दस सिर थे, सौ नहीं।

    दरबारी चाहते तो प्रतिद्वंद्वी को इसी बात पर घेर लेते कि उन्हें पौराणिक कहानियों का ज्ञान नहीं है। मगर उन्होंने रोना-गाना शुरु कर दिया कि हमारे राजा का अपमान हुआ। उन्हें सच का आईना दिखाकर उन्हें पीड़ा पहुंचाने की कोशिश की गई। दरबारियों ने सोचा कि इस तरह राजा को फिर से सिंहासन प्राप्त हो जाएगा। लेकिन दरबारियों ने ये ध्यान ही नहीं दिया कि राजा खुद अतीत में दूसरे लोगों का ऐसा अपमान कर चुके हैं। कभी वे किसी स्त्री की हंसी की तुलना शूर्पनखा से कर चुके हैं, कभी स्त्री के विधवा होने का मखौल उड़ा चुके हैं। वेताल ने विक्रम को इस राजा की कोमलता का विवरण कई प्रसंगों के साथ सुनाया। फिर अगले किरदार की ओर बढ़ा, जो खुद को कलाकार बताता था।

    वेताल ने कहा कि जिस देश का राजा सच का आईना देख कर पीड़ित हो जाता था, उसी के राज में एक कलाकार था, जो चलचित्र बनाता था। इस कलाकार ने राज्य में सच की आवाज़ उठाने वालों को अर्बन नक्सल नाम दिया था। इस नाम से राजा विद्रोह की बू महसूस कर लेता था और उस हिसाब से अपनी रणनीतियां तैयार करता था।

    कलाकार तो स्वभाव से ही कोमल होता है, लेकिन इस कलाकार की खासियत ये थी कि उसे आधे-अधूरे सच को पूरे सच की तरह दिखाने की कला आती थी। और अगर कोई उसके बताए सच पर सवाल करे तो वह बेचैन हो जाता था। चलचित्र कलाकार ने अतीत की कुछ घटनाओं पर फाइल्स तैयार की थीं। चलचित्र की शक्ल में तैयार ये फाइल्स अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचे, इसके लिए राजा ने उसकी पूरी मदद की।

    राज्य के कई स्थानों पर चलचित्र को सस्ती दरों पर दिखाया गया, ताकि महंगाई के बोझ तले दबी जनता सस्ते के लालच में चलचित्र को देखे और कलाकार के बताए सच को ही पूरा सच मान ले। लेकिन कलाकार और राजा का ये दांव राज्य की सीमाओं से बाहर काम नहीं आया। एक दूसरे राज्य के कलाकार ने इस चलचित्र की असलियत पूरी दुनिया के सामने रख दी। खुले मंच से ऐलान कर दिया कि इसमें जो बताया गया है वो सच नहीं है, प्रचार है। और ये प्रचार भी स्तरीय नहीं है, बल्कि अश्लील है। अपनी बनाई फाइल्स की ऐसी आलोचना चलचित्र कलाकार को बर्दाश्त नहीं हुई। वो बेचैन हो उठा। राजा की मदद से इस चलचित्र से पहले उसने खूब धन कमाया था।

    उससे विदेशों में पार्टी की, देश में आलीशान बंगला लिया। मगर पूरी दुनिया के सामने उसकी कलाकृति की धज्जी उड़ गई, तो अब कोमल कलाकार कराह रहा है। कह रहा है कि सच खतरनाक होता है। अपनी बेचैनी में वो ऐलान कर रहा है कि अगर मेरी कलाकृति में कुछ झूठ निकला तो चलचित्र बनाना छोड़ दूंगा। विक्रम ने कहा, हे राजन, गनीमत है कि कलाकार ने अपनी बेचैनी में दूसरे राज्य के कलाकार को ग्लोबल नक्सल नहीं कहा। तुमने अब तक तो दो कोमल किरदारों के प्रसंग संदर्भों सहित सुने, अब तीसरे किरदार पर आते हैं। इस किरदार की आत्मा तभी तक उसके साथ रहती है, जब तक वो सच के साथ खड़े रहता है। लेकिन मीडिया कहलाने वाले इस किरदार ने आत्मा पर दूसरा चोगा डालकर खोखलेपन के साथ जीना सीख लिया है।

    मीडिया की कोमलता उसकी आत्मा में बसती है। तथ्यों के साथ खिलवाड़ से उसकी आत्मा को कष्ट पहुंचता है। लेकिन दोहरे चरित्र वाली, खोखलेपन के आवरण में लिपटी मीडिया तो आत्महीन है। उसे केवल इस बात से कष्ट होता है, कि कोई उसके आका की आलोचना न करे। आका जिस धर्म की रस्सी के सहारे सिंहासन तक पहुंचा है, उस रस्सी की गांठें कोई खोल न दे। वेताल ने कहा कि हे राजन, सच से पीड़ित होने वाले राजा की गोदी में बैठा मीडिया कई बरस अठखेलियां करता, मौज में रहा। मगर अब उसके खोखलेपन का आवरण एक सिरफिरा नेता बार-बार खींच रहा है।

    ये नेता विशाल देश को पैदल नापने निकल पड़ा है। उसे भरोसा है कि उसके पैदल चलने से एकता की डोर मजबूत होगी। इस नेता ने पिछले दिनों में कई बार आत्महीन हो चुकी मीडिया से अघोषित आह्वान किया है कि वे गोद से उतर जाने की हिम्मत दिखाएं। अपने ऊपर लगी लगाम को तोड़ने का साहस दिखाएं। इस नेता ने मीडिया को भगवान तक बता दिया है। इसके बाद मीडिया के लिए धर्मसंकट खड़ा हो गया है कि वह अपनी आत्मा को फिर से अपना ले या खोखलेपन के साथ राजा की सरपरस्ती में मुर्दों की तरह जिंदा रहे।

    तीन किरदारों की कथा सुनाकर वेताल ने सवाल किया कि बताओ राजन, तुम्हें किसकी कोमलता ने सबसे अधिक प्रभावित किया और क्यों किया। विक्रम ने कहा कि मुझे तीसरे किरदार की कोमलता में उम्मीद नजर आ रही है। क्योंकि अपनी कोमलता को ताकत बना लेना उसके बस में है। बाकी दोनों की कोमलता तो स्वार्थ से लिप्त है, जिससे प्रजा को कोई लाभ नहीं होना है। विक्रम ने इधर जवाब दिया और उधर वेताल फिर उड़ कर पेड़ पर चढ़ बैठा।

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