- डॉ. हनुमन्त यादव
भारत के अग्रणी शेयर बाजार बाम्बे स्टॉक एक्सचेंज में चोटी के शेयरों की खरीदारी-बिकवाली से शेयर कीमतों में चढ़ाव-उतार को प्रतिबिंबित करने वाला सूचकांक सेंसैक्स कहलाता है। इसे कारपोरेट सेक्टर के स्वास्थ्य का बैरोमीटर भी कहा जाता है। कोरोना संकटकाल में नवंबर 2020 के पहले सप्ताह में सेंसैक्स ने पहली बार 42,000 बिन्दु पार किया था। उसके बाद हर माह हजारों बिन्दु की रफ्तार से उड़ान भरता हुआ सेंसैक्स ने अब 51,000 बिंदु पार कर लिया है।
कोरोनाजनित संकटकाल में भारत का विदेशी मुद्रा भंडार हर माह बढ़ते हुए 29 जनवरी को 590 बिलियन डॉलर तक पहुंचकर नया ऐतिहासिक कीर्तिमान बनाया है। कोरोना लॉकडाउन के बाद 27 मार्च 2020 को विदेशी मुद्रा भंडार 386 बिलियन डॉलर का था, कोरोना संकट के 10 महीनों के साए में इसमें 204 बिलियन डॉलर अर्थात 60 प्रतिशत की बढ़ोतरी होने से यह 590 बिलियन डॉलर तक पहुंच गया है। स्वर्ण का रिजर्व भंडार भी 36.45 बिलियन डॉलर मूल्य का हो गया है।
स्वतंत्रता मिलने के बाद से ही भारत के आयात सदैव ही निर्यात अधिक रहे हैं। चूंकि अधिकांश देश डॉलर में ही भुगतान पसंद करते हैं। भारत को सदैव ही व्यापार घाटा होने के कारण इसको डॉलर में भुगतान करने बाध्य होना पड़ता रहा है। 1990 में जब विदेशी व्यापार घाटा और विदेश कर्ज का भारत बहुत अधिक बढ़ गया तो भारत को अपने रिजर्व स्वर्ण भंडार को बैंक ऑफ इंग्लैंड में रखने की नौबत आ गई थी और अतंरराष्ट्रीय मुद्रा कोष आईएमएफ ने भारत को आर्थिक संकट से उबारने के लिए उसके द्वारा सुझाए गए आर्थिक सुधारों को लागू करने की शर्त पर कर्ज दिया था ।
1991 में भारत में नये आर्थिक सुधार लागू होने के बाद भी बढ़ते खनिज तेल, सैनिक साज-सामान व भारी मशीनों के आयात के फ लस्वरूप विदेशी व्यापार घाटा बढ़ने के कारण विदेशी मुद्रा की कमी महसूस होती रहती थी। नए आर्थिक सुधारों के अंतर्गत विदेशी कर्ज लेने की बजाय विदेशी प्रत्यक्ष निवेश को प्रोत्साहन देने की नीति तथा भारतीय शेयर बाजार अंतरराष्ट्रीय संस्थागत एवं पोर्टफ ोलिया शेयर निवेशकों के लिए खोलने से विदेशी मुद्रा में भुगतान के संकट पर काबू पाया जा सका।
2014 में भाजपा की जीत पर नरेन्द्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद जब भी वे विदेशों के दौरे पर जाते थे मेक इन इंडिया अभियान के तहत वहां के उद्योगपतियों की बैठक आमंत्रित करके उन्हें भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश हेतु वर्ष 2018 तक आमंत्रित करते रहे हैं। जैसे -जैसे प्रत्यक्ष विदेशी निवेश बढ़ता गया विदेशी मुद्रा का भंडार धीरे-धीरे बढ़ने लगा। विदेशी निवेशकों द्वारा भारतीय कारपोरेट शेयरों की जोरदार शुद्ध खरीदारी से भी विदेशी मुद्रा भंडार बढ़ रहा है।
कोरोना संकट के साए में बाम्बे स्टॉक एक्सचेंज के चोटी के सूचकांक सेंसैक्स ने उड़ान भरते हुए 21 जनवरी को अपने इतिहास में पहली बार 50,000 बिन्दु छूने का कीर्तिमान कायम किया था। 22 जनवरी से निवेशकों द्वारा मुनाफ ा बिकवाली किए जाने के कारण सेंसैक्स जनवरी के अंतिम सप्ताह तक फि सलते रहा। 1 फ रवरी से अंतरराष्ट्रीय संस्थागत और पोर्टफ ोलियों निवेशकों की अगुआई में घरेलू निवेशकों की प्रतिदिन होनेवाली लिवाली के कारण सेंसैक्स उड़ान भरते हुए सप्ताह के अंतिम कारोबार दिन 5 फ रवरी को 51,000 बिन्दु को पहली बार पार करने का रिकार्ड बनाया।
नेशनल स्टॉक एक्सचेंज के 50 चोटी की शेयरों के सूचकांक निफ्टी ने भी पहली बार 15,000 बिन्दु पार करने का कीर्तिमान कायम किया। शेयर बाजार के विशेषज्ञों के अनुसार शेयरों में उछाल का प्रमुख कारण वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा 1 फ रवरी को प्रस्तुत विकासोन्मुखी बजट रहा है, बाजार को 5 फ रवरी को रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति से भी बढ़ने का सहारा मिला।
शेयर बाजार की महिमा निराली कही जा सकती है। वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा 2019 और 2020 में प्रस्तुत केन्द्रीय बजट की जब सभी वर्गों द्वारा प्रशंसा की जा रही थी, तो शेयर बाजार बजट से निराश था, फलस्वरूप शेयरों की बिकवाली के कारण सेंसैक्स में भारी गिरावट आई थी। वर्तमान बजट को अधिकांश वर्गों एवं समीक्षकों द्वारा निराशाजनक बताया गया, किंतु निवेशकों में उत्साह दिखा इस कारण उनके द्वारा की गई भारी लिवाली से सेंसैक्स ने 5 फरवरी को 51,000 बिन्दु पार करने का रिकार्ड कायम किया। उल्लेखनीय है कि भारत के अग्रणी शेयर बाजार बाम्बे स्टॉक एक्सचेंज में चोटी के शेयरों की खरीदारी-बिकवाली से शेयर कीमतों में चढ़ाव-उतार को प्रतिबिंबित करने वाला सूचकांक सेंसैक्स कहलाता है। इसे कारपोरेट सेक्टर के स्वास्थ्य का बैरोमीटर भी कहा जाता है। कोरोना संकटकाल में नवंबर 2020 के पहले सप्ताह में सेंसैक्स ने पहली बार 42,000 बिन्दु पार किया था। उसके बाद हर माह हजारों बिन्दु की रफ्तार से उड़ान भरता हुआ सेंसैक्स ने अब 51,000 बिंदु पार कर लिया है।
तीसरा ऐतिहासिक कीर्तिमान कंपनियों के बाजार पूंजीकरण क्षेत्र में स्थापित हुआ है। 5 फरवरी को बाम्बे स्टॉक एक्सचेंज में सूचीकृत कंपनियों का बाजार पूंजीकरण 2 लाख करोड़ रुपये को पार कर गया है। यद्यपि बाजार पूंजीकरण कंपनियों की शेयरों की संख्या और उनके प्रचलित भाव से प्रत्यक्ष संबंधित होता है। 5 फरवरी को बाजार पूंजीकरण में पहले स्थान पर 12.2 लाख रुपए पूंजीकरण के साथ रिलायंस इंडस्ट्रीज, दूसरे स्थान पर 11.7 लाख रुपए पूंजीकरण के साथ टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज, तीसरे स्थान पर 8.8 लाख रुपए पूंजीकरण के साथ एचडीएफ सी बैंक, चौथे स्थान पर 5.4 लाख रुपए पूंजीकरण के साथ इंफ ोसिस, पांचवें स्थान पर 5.3 लाख रुपए पूंजीकरण के साथ हिन्द यूनीलीवर, छठवें स्थान पर 4.9 लाख रुपए पूंजीकरण के साथ एच.डी.एफ.सी., सातवें स्थान पर 4.2 लाख रुपए बाजार पूंजीकरण के साथ आईसीआईसीआई बैंक, आठवें स्थान पर 3.9 लाख रुपए बाजार पूंजीकरण के साथ कोटक महिन्द्रा बैंक, नौवें स्थान पर 3.5 लाख रुपए बाजार पूंजीकरण के साथ स्टेट बैंक ऑफ इंडिया और दसवें स्थान पर 3.3 लाख रुपए बाजार पूंजीकरण के साथ बजाज फायनेंस थी।
फरवरी के प्रथम सप्ताह में विदेशी मुद्रा भंडार, सेंसैक्स के 50 हजार बिन्दु पार करने एवं बाजार पूंजीकरण के समाचारों को टीवी चैनलों की हेडलाइंस व हिन्दी व अन्य भाषाई समाचार पत्रों के प्रथम पेज पर स्थान नहीं मिल पाया। समाचार पत्रों और टीवी चैनलों में किसान आन्दोलन प्रमुखता से छाया रहा।
कृषि सुधार कानूनों के वापस लिए जाने की मांग को लेकर आंदोलनरत किसान संगठनों ने पूर्व घोषित कार्यक्रम के अनुसार 6 फरवरी को दिल्ली, उत्तराखंड और उत्तरप्रदेश इन तीन राज्यों को छोड़कर अन्य राज्यों में अनेक स्थानों पर दोपहर को 12 से 3 बजे तक का चक्काजाम किया। पिछले तीन दिनों से एक बात देखने को आई है कि जहां पर 1 फरवरी से पूर्व तक किसान आन्दोलन की अगुवाई पंजाब के सिख संगठनों द्वारा की जा रही थी, अब धीरे-धीरे आन्दोलन की कमान राकेश टिकैत की अगुवाई में पश्चिम उत्तरप्रदेश और हरियाणा के जाट संगठनों के पास आती दिख रही है, इसलिए वे मीडिया के आर्कषण के केन्द्र बन गए हैं। मुझे ऐसा लगता है कि शेयर निवेशकों एवं किसान संगठनों की दो अलग-अलग दुनिया है।