• नरेंद्र मोदी के बड़े पैमाने पर प्रचारित मेक इन इंडिया की पोल खुली

    प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जुमलों के सुपर सेल्समैन के रूप में जाने जाते हैं

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    - नित्य चक्रवर्ती

    जी.टी. विश्लेषण में कहा गया है कि 'आगे का रास्ता प्रणालीगत संस्थागत सुधार में निहित है जो भारत की वास्तविकताओं के अनुकूल हो। विनिर्माण शक्तियों की श्रेणी में शामिल होने के लिए, भारत को अपनी औपनिवेशिक विरासत की बेड़ियों को तोड़ना होगा जिसमें शासन संरचनाओं को सुव्यवस्थित करना, स्थानीय सशक्तिकरण को आगे बढ़ाना और शैक्षिक समानता के माध्यम से औद्योगिक कार्यबल को बढ़ावा देना शमिल हो।

    प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जुमलों के सुपर सेल्समैन के रूप में जाने जाते हैं। जनधन खाते से लेकर हर साल युवाओं के लिए दो करोड़ नौकरियां पैदा करने तक, 2014 से भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार के सभी प्रचार-प्रसार एक बड़ी विफलता साबित हुए हैं। पिछले कुछ सालों में भी भाजपा की चुनावी मशीनरी या आधिकारिक एजंसियों ने प्रधानमंत्री के इन दो वायदों का कभी जिक्र नहीं किया। लेकिन उनका सबसे चर्चित और महत्वाकांक्षी कार्यक्रम मेक इन इंडिया था, जिसकी घोषणा केंद्र में उनके कार्यभार संभालने के तुरंत बाद की गयी थी। 23अरब अमेरिकी डॉलर की उत्पादकता से जुड़ी प्रोत्साहन (पीएलआई) योजना, जो 2021 में एमआईआई कार्यक्रम का प्रमुख कार्यक्रम है, के बारे में मोदी ने घोषणा की थी कि मेक इन इंडिया कार्यक्रम के कार्यान्वयन के परिणामस्वरूप 2025 में देश के सकल घरेलू उत्पाद में विनिर्माण की हिस्सेदारी 25 प्रतिशत तक होने के साथ भारत दुनिया का उत्पादन केंद्र बन जायेगा। अब 2025 आ गया है, लेकिन सरकार ने बिना किसी आधिकारिक घोषणा के चुपके से मेक इन इंडिया के लिए बनायी गयी 23अरब डॉलर की पीएलआई योजना को समाप्त कर दिया है।

    इस योजना का विस्तार 14 पायलट क्षेत्रों से आगे नहीं किया जायेगा और उत्पादन की समय सीमा नहीं बढ़ायी जायेगी। सरकार की विफलता बहुत बड़ी थी। मेक इन इंडिया और संबंधित पीएलआई योजना की नीतियों को तैयार करने में पीएमओ द्वारा दिया गया नेतृत्व कंपनियों को प्रेरित करने और नियामक और नौकरशाही बाधाओं को दूर करने में पूरी तरह विफल रहा। इसका एक मुख्य उद्देश्य चीन से आने वाले अमेरिकी और अन्य विदेशी निवेशों में से कुछ को भारत में स्थानांतरित करना था। उद्देश्य न केवल अपूर्ण रहा, बल्कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की घोषणा के अनुसार 2025 तक देश के सकल घरेलू उत्पाद में विनिर्माण का हिस्सा 25 प्रतिशत के वादे के विपरीत अभी 14.3 प्रतिशत पर अटका हुआ है। विरोधाभास यह है कि पीएलआई योजना की शुरुआत के समय सकल घरेलू उत्पाद में विनिर्माण का हिस्सा 15.4 प्रतिशत था। इसलिए नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सकल घरेलू उत्पाद में विनिर्माण क्षेत्र का हिस्सा पीएलआई योजना के पिछले चार वर्षों के मुकाबले कम हो गया।

    रॉयटर्स समाचार एजेंसी ने पिछले सप्ताह शुक्रवार को भारतीय उद्योग के लिए भयानक खबर जारी की, जिसके कारण विदेशी निवेशकों और प्रतिस्पर्धियों, खासकर चीन की ओर से तत्काल प्रतिक्रिया आई। बुधवार तक, सरकार द्वारा आधिकारिक तौर पर पीएलआई योजना की समाप्ति पर कोई बयान जारी नहीं किया गया है, हालांकि पूरे भारतीय उद्योग के लोग इसके प्रभाव का आकलन कर रहे हैं। पीएलआई योजना में भाग लेने वाले कई लोगों ने कार्यक्रमों को फिर से शुरू करने पर काम करना शुरू कर दिया है। रॉयटर्स ने सरकारी दस्तावेज के हवाले से बताया कि कार्यक्रम में भाग लेने वाली कई फर्में उत्पादन शुरू करने में विफल रहीं, जबकि विनिर्माण लक्ष्य को पूरा करने वाली अन्य फर्मों ने पाया कि भारत सब्सिडी का भुगतान करने में धीमा है। वाणिज्य मंत्रालय द्वारा संकलित कार्यक्रम के विश्लेषण के अनुसार, अक्टूबर 2024 तक, भाग लेने वाली फर्मों ने कार्यक्रम के तहत $151.93अरब मूल्य के सामान का उत्पादन किया था, जो मोदी सरकार द्वारा निर्धारित लक्ष्य का 37 प्रतिशत था। दस्तावेज़ में कहा गया है कि भारत ने केवल $1.73 बिलियन का प्रोत्साहन जारी किया था-जो आवंटित धन का 8 प्रतिशत से भी कम है।

    भारतीय व्यापार विशेषज्ञों का मानना है कि अत्यधिक लालफीताशाही और नौकरशाही की सावधानी ने पीएलआई योजना की प्रभावशीलता को बाधित करना जारी रखा है। एक विकल्प के रूप में, भारत संयंत्र स्थापित करने के लिए किये गये निवेश की आंशिक रूप से प्रतिपूर्ति करके कुछ क्षेत्रों का समर्थन करने पर विचार कर रहा है, जिससे फर्मों को दूसरे के उत्पादन और बिक्री की प्रतीक्षा करने की तुलना में लागत को तेज़ी से वसूलने की अनुमति मिलेगी। नवीनतम निर्णय भारत और अमेरिका के बीच नई दिल्ली में व्यापार वार्ता के संदर्भ में हुआ है, जो भारतीय वस्तुओं पर पारस्परिक शुल्क लगाने की ट्रम्प की धमकी की छाया में है। पीएलआई योजना की जगह लेने वाली वैकल्पिक योजना को वैश्विक स्तर पर नये व्यापार युद्ध की स्थिति को ध्यान में रखना होगा।

    विदेश व्यापार के एक प्रमुख विशेषज्ञ बिस्वजीत धर का मानना है कि पीएलआई योजना भारत के पास देश के विनिर्माण क्षेत्र को पुनर्जीवित करने का संभवत: आखिरी मौका था। उनके अनुसार, यदि इस तरह की बड़ी योजना विफल हो जाती है, तो हम कैसे उम्मीद कर सकते हैं कि कुछ भी सफल होने वाला है?

    दिलचस्प बात यह है कि चीन पहला देश था जिसने अंग्रेजी दैनिक ग्लोबल टाइम्स में एक विश्लेषण के माध्यम से उसी दिन प्रतिक्रिया व्यक्त की, जिस दिन रॉयटर की 23अरब डॉलर की पीएलआई योजना की समाप्ति के बारे में रिपोर्ट जारी की गयी थी। पीएलआई योजना की विफलता के कारणों पर एक विश्लेषण में, ग्लोबल टाइम्स लिखता है, 'चीन के विनिर्माण प्रभुत्व को चुनौती देने के उद्देश्य से अपनी 23अरब डॉलर की उत्पादन-लिंक्ड प्रोत्साहन (पीएलआई) योजना शुरू करने के चार साल बाद, भारत की प्रमुख 'मेक इन इंडिया' पहल संस्थागत जड़ता का एक चेतावनीपूर्ण उदाहरण बन गयी है। जैसा कि शुक्रवार को रॉयटर्स ने खुलासा किया, यह एक बार बहुप्रतीक्षित और महत्वाकांक्षी कार्यक्रम अपने रास्ते से भटक गया है।

    विश्व बैंक के आंकड़ों के अनुसार, भारत के सकल घरेलू उत्पाद में विनिर्माण का योगदान केवल 13 प्रतिशत है - जो चीन के 26 प्रतिशत और वियतनाम के 24 प्रतिशत से काफी कम है। ग्लोबल टाइम्स विश्लेषण बताता है कि ये आंकड़े एक गहरी प्रणालीगत अस्वस्थता को दर्शाते हैं। भारत के विनिर्माण विकास की वास्तविकता यह दर्शाती है कि मानवीय कारक निर्णायक बना हुआ है, जिसके लिए औपनिवेशिक संस्थाओं और वैचारिक ढांचों से प्रस्थान की आवश्यकता है, जिसमें संस्थागत समायोजन और नवाचार भी शामिल है।

    जी.टी. विश्लेषण में कहा गया है कि 'आगे का रास्ता प्रणालीगत संस्थागत सुधार में निहित है जो भारत की वास्तविकताओं के अनुकूल हो। विनिर्माण शक्तियों की श्रेणी में शामिल होने के लिए, भारत को अपनी औपनिवेशिक विरासत की बेड़ियों को तोड़ना होगा जिसमें शासन संरचनाओं को सुव्यवस्थित करना, स्थानीय सशक्तिकरण को आगे बढ़ाना और शैक्षिक समानता के माध्यम से औद्योगिक कार्यबल को बढ़ावा देना शमिल हो। इसके लिए राज्य की मशीनरी और आधुनिक उद्योग की मांगों के बीच एक व्यापक संरेखण की ओर पीएलआई योजना के 'वित्तीय बैंड-एड' दृष्टिकोण से आगे बढ़ना आवश्यक है।'

    ग्लोबल टाइम्स चीनी कम्युनिस्ट पार्टी द्वारा संचालित पीपुल्स डेली समूह का अंग्रेजी दैनिक है। इसलिए इसके विचार चीनी सरकार के विचारों को दर्शाते हैं। समय महत्वपूर्ण है। 22 अक्टूबर को रूसी शहर कज़ान में ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के दौरान नरेंद्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच हुई बातचीत के बाद से भारत-चीन संबंधों में सुधार हुआ है। अमेरिकी पत्रकार लेक्सफ्र्रिडमैन को दिये गये अपने साक्षात्कार में भारतीय प्रधानमंत्री ने चीन के साथ संघर्ष नहीं, बल्कि प्रतिस्पर्धा और सहयोग पर जोर दिया है। इससे यह संकेत मिला कि भारत चीन के साथ मुद्दों को मित्रवत तरीके से सुलझायेगा। आर्थिक सहयोग उनमें से एक था।

    मोदी सरकार के पिछले आर्थिक सर्वेक्षण में भारत में चीनी निवेश के माध्यम से भारतीय उद्योग के लिए अवसरों का उल्लेख किया गया था। चीनी आयात जारी है, लेकिन निवेश पर प्रतिबंध है। ऐसे संकेत हैं कि विनिर्माण क्षेत्र में एफडीआई प्रवाह बढ़ाने की वैकल्पिक योजना के हिस्से के रूप में, चीनी निवेश का स्वागत किया जा सकता है - वर्तमान बाधाओं में से कुछ को हटाकर। भारतीय निर्माता इसमें रुचि रखते हैं। यह सही समय है कि प्रधानमंत्री अर्थव्यवस्था के मूल सिद्धांतों पर आधारित टिकाऊ विनिर्माण कार्यक्रम का विकल्प चुनें, न कि महत्वाकांक्षी दिखावटी वायदे करें जो हासिल नहीं किये जा सकते।

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