पंचायती राज में अफसरशाही
गांवों में विकास कार्यों के निर्णय पंचायत प्रतिनिधि नहीं अफसर ले रहे हैं। अफसरों को जो उचित लगता है वे सरपंच से कहकर प्रस्ताव मंगा लेते हैं और उस कार्य को मंजूरी दे दी जाती है।
Deshbandhu
Updated on : 2015-09-29 03:58:38
गांवों में विकास कार्यों के निर्णय पंचायत प्रतिनिधि नहीं अफसर ले रहे हैं। अफसरों को जो उचित लगता है वे सरपंच से कहकर प्रस्ताव मंगा लेते हैं और उस कार्य को मंजूरी दे दी जाती है। ग्रामीण विकास सरकार की प्राथमिकता है पर गांवों में हर साल एक बड़ी, धनराशि खर्च होने के बाद भी विकास की वह रफ्तार दिखाई नहीं देती। इसकी वजह यही है कि विकास की योजनाएं तैयार करने में पंचायतों को महत्व नहीं मिल रहा है। यह देखना हो तो किसी एक गांव में दस-पांच साल में व्यय राशि और मौजूदा स्थिति का परीक्षण कराकर हकीकत से अवगत हुआ जा सकता है। अफसरों की सीधी भूमिका के कारण इन कार्यों में भ्रष्टाचार भी बहुत हो रहा है। किसी गांव के लिए राशि मंजूर होने से पहले ही कार्य की लागत की कुछ राशि भेंट-पूजा मेें निकल जाती है। गांवों में काम वही होते रहे हैं, जिनमें कमाई की गुंजाइश ज्यादा हो। मसलन, सड़कों पर मिट्टी डालने का काम, ऐसे मार्गों पर पुलिया निर्माण जिस पर आवागमन अधिक नहीं होता, डल्ब्यूबीएम सड़कों का निर्माण और तालाबों के गहरीकरण के कार्य शामिल हैं। इन कार्यों में हर साल होने वाली पैसे की बर्बादी को देखते हुए अब मिट्टी के कार्यों पर बंदिश लगाई गई है और क्रांकीट की सड़कें बनाई जा रही हैं। जहां डामरीकृत सड़कें बनने हैं वहां डब्ल्यूबीएम के कार्य हो सकते हैं, लेकिन बाकी संपर्क मार्ग अब गांवों में कं्राकीट के ही बनाए जा रहे हैं। ऐसी सड़कों को टिकाऊ बनाने के लिए जरुरी है कि दोनों ओर नालियां भी बनाई जाएं ताकि सड़कों पर पानी का जमाव न हो। यह स्वच्छता बनाए रखने के लिए भी जरुरी है पर पक्की नालियों का निर्माण प्राथमिकता सूची में नहीं है। सड़कें जल्दी टूट जा रही है, पानी के बहाव से कट जा रही है और एक ही सड़क बार-बार बनाई जा रही है। कुछ गांवों में जहां सरपंच खुद निर्णय लेने की क्षमता रखते हैं, वहां स्थितियां कुछ अलग जरुर दिखाई देती पर अधिकतर पंचायतों में गांवों को आगे बढ़ाने का काम नहीं हो पा रहा है। बिजली, पानी जैसी समस्या से भीे गांवों को मुक्ति नहीं मिल पा रही है। सरकार यह दावा करती है कि पीने के पानी का एक स्वच्छ स्त्रोत उपलब्ध कराने के मामले में छत्तीसगढ़ राष्ट्रीय औसत से भी अच्छी स्थिति में है। देश में ढाई सौ से अधिक आबादी में एक नलकूप है जबकि प्रदेश में दो सौ से कम ही आबादी पर एक नलकूप की सुविधा उपलब्ध कराई जा चुकी है। अगर पेयजल उपलब्धता की वास्तविक स्थिति का पता लगाया जाए तो यह दावा ठहर भी पाएगा या नहीं कहना मुश्किल है। यहंा तो कई गांवों में नल-जल योजनाएं तक असफल हो चुकी हैं। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि योजनाएं तैयार करते समय भूमिगत जल की स्थिति ठीक से जांची नहीं गई और न ही यह देखा गया कि पानी आएगा कहां से। गांव के संसाधनों के बारे में जितनी जानकारी गांव के लोगों को हो सकती है, उतनी जानकारी थोड़े समय में एक अफसर के लिए हासिल करना कठिन है। इसलिए जरुरी है कि गांव के विकास की योजनाएं अफसरों के कक्ष में नहीं बल्कि गांव में बैठकर बनाई जाएं और उन्हें लागू भी इस तरह किया जाए जिसमें गांव का प्रत्येक व्यक्ति यह महसूस कर सके कि उसे इन योजनाओं का लाभ मिलेगा।