भ्रष्टाचार की तूती कर्नाटक में मोदी की मजबूरी क्यों?

भ्रष्टाचार, भ्रष्टाचार, भ्रष्टाचार। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आजकल भ्रष्टाचार शब्द ही सबसे ज्यादा जप रहे हैं

facebook
twitter
whatsapp
भ्रष्टाचार की तूती कर्नाटक में मोदी की मजबूरी क्यों
File Photo
अनन्त मित्तल
Updated on : 2023-04-08 03:46:27

- अनन्त मित्तल

मोदी दरअसल अडानी कांड में खुद पर लगे आरोपों को झुठलाने के लिए भी विपक्ष पर हमलावर हंै। अडानी से जुड़े आरोप खुद पर चिपकने की प्रधानमंत्री और बीजेपी की चिंता साफ दिख रही है। दक्षिण भारत में सत्ता दिलाने वाले नेता बी एस येदियुरप्पा को पहले मुख्यमंत्री पद से हटाने और फिर उनकी बगावत के डर से उन्हें सर पर बैठाने से भी राज्य में मोदी की चिंता जाहिर है।

भ्रष्टाचार, भ्रष्टाचार, भ्रष्टाचार। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आजकल भ्रष्टाचार शब्द ही सबसे ज्यादा जप रहे हैं। क्या यह उद्योगपति गौतम अडानी और प्रधानमंत्री पर उनके व्यवसाय को बढ़ावा देने के आरोप विपक्ष द्वारा मढ़ने का जवाबी हमला भर है? क्या यह प्रधानमंत्री द्वारा अपनी छवि बचाने को साधी गई हमले का जवाब और बड़े हमले से देने की रणनीति मात्र है अथवा इसके और गहरे निहितार्थ हैं? जाहिर है कि यह रणनीति अडानी से ज्यादा कर्नाटक विधानसभा चुनाव के मद्देनजर अपनाई गई है। कर्नाटक में सत्तारूढ़ दल बीजेपी ही है और उसके नेताओं पर 40 फीसद दलाली उगाहने के आरोप जनता के मन में पैठ चुके हैं।

हालिया चुनावी सर्वेक्षण भी पुष्टि कर रहे हैं कि राज्य के वोटर बड़ी तादाद में बीजेपी के स्थानीय नेताओं को भ्रष्ट मान रहे हैं। राज्य में सत्ता के प्रमुख दावेदार विपक्षी दल कांग्रेस ने 'पे सीएम और 40 परसेंट गवर्नमेंट' अभियान चलाकर जनमानस में बीजेपी की बसवराज बोम्मई नीत सरकार के भ्रष्टाचारी होने का अहसास और गहरा कर दिया है। बीजेपी के विधायक विरूपाक्ष के बेटे को लोकायुक्त पुलिस द्वारा रंगे हाथों 49 लाख रुपए की रिश्वत लेते पकड़े जाने और उनके ठिकानों से बेहिसाब करीब आठ करोड़ रुपए नकदी की बरामदगी से बीजेपी की नीयत पर जनता का संदेह उपजना स्वाभाविक है। इसके पहले बीजेपी के कार्यकर्ता एवं ठेकेदार संतोष पाटिल द्वारा बोम्मई सरकार के ग्रामीण विकास मंत्री के एस ईश्वरप्पा पर कमीशनखोरी का आरोप लगाकर आत्महत्या करने की घटना जनता को झकझोर ही चुकी है। अपनी साख बचाने के लिए बीजेपी को ईश्वरप्पा को मंत्री पद से हटाना पड़ा।

इसके अलावा राज्य की पीडब्लूडी ठेकेदार एसोसिएशन द्वारा राज्य में सरकारी ठेकों में कमीशन वसूलने की शिकायत सीधे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भी की जा चुकी। उनकी शिकायत पर कार्रवाई संबंधी कांग्रेसियों के सवालों पर नरेंद्र मोदी एवं गृहमंत्री अमित शाह लाजवाब ही रहते हैं। विपक्ष को जवाब मोदी और शाह उनके नेताओं पर ईडी, सीबीआई और आयकर छापों के रूप में दे रहे हैं। इससे कर्नाटक में बीजेपी की दुबारा सरकार बनवा पाने का मंसूबा बांधे मोदी पता नहीं क्यों ये भूल जाते हैं कि ईंट का जवाब पत्थर से देने की रणनीति हमेशा कामयाब नहीं होती! इसके बजाय यदि वे ठेकेदारों की शिकायत पर सीबीआई जांच करवाते तो भ्रष्टाचार के बोझ से दबी कर्नाटक की जनता शायद उनके ताजा चुनावी वायदों और बयानों पर गौर भी करती।

इसके बावजूद प्रधानमंत्री विपक्षी भ्रष्टाचार का राग ही आलापे हुए हैं। इसकी शुरूआत उन्होंने मशहूर मीडिया घराने के कॉन्क्लेव से की। उसमें नरेंद्र मोदी ने पहले तो साल 2023 के 75 दिन की उपलब्धियां गिनवाईं। उसके बाद उन्होंने मीडिया को न्योता दिया कि वे भ्रष्टाचार पर कार्रवाई की खबरें दिखाकर अपनी टीआरपी बढ़ाएं! इस संदर्भ में उन्होंने साल 2012-13 का उल्लेख किया कि कैसे तत्कालीन सरकार के कथित भ्रष्टाचार की खबरें दिखाकर न्यूज चैनलों ने टीआपी बटोर कर धन कूटा था। ताज्जुब ये कि 2जी से लेकर खनन और सीडब्लूजी के कथित घोटाले में मोदी सरकार के नौ साल में कोई सजा क्यों नहीं हुई? बल्कि 2जी घोटाले की सुनवाई करने वाले अदालत के जज को तो साफ कहना पड़ा कि वे सुबह से शाम तक अदालत लगाए बैठे रहे मगर सीबीआई किसी के खिलाफ कोई सबूत ही नहीं लाई तो सजा किसे दें!! विडम्बना ये कि सीधे अपने अधीन सीबीआई की ऐसी निपट कोताही के बावजूद मोदी अब भी कांग्रेस पर 2जी घोटाले का आरोप लगा रहे हैं।

इसके बाद प्रधानमंत्री ने ईडी और सीबीआई के अफसरों की सभा में भी भ्रष्टाचार के सफाए का आह्वान ऐसे किया मानो पूरी दुनिया को सुना रहे हों। सवाल ये है कि जिन एजेंसियों का काम ही अपराध की जांच करना है उन्हें निडरता से भ्रष्टाचार उन्मूलन का ज्ञान देना और फिर अपने भाषण के वीडियो बनवाकर पालतू ट्रोलों से वायरल करवाना गवर्नेंस की शैली है या प्रचार की? सीबीआई तो प्रत्यक्ष ही प्रधानमंत्री कार्यालय के अंतर्गत है सो उसके अफसरों को तो उनकी कार्यशैली से ही समझ लेना चाहिए कि उनकी मंशा क्या है! फिर ये भी है कि यदि न सुनाते तो फिर कर्नाटक के वोटरों के मन से राज्य की बीजेपी सरकार के भ्रष्टाचार की धारणा को तोड़ने की कोशिश कैसे सिरे चढ़ती? इसके अलावा संसद में और बीजेपी के स्थापना दिवस पर नरेंद्र मोदी ने जो भाषण किए उनमें मतदाताओं और अपने कार्यकर्ताओं को यही संदेश दिया कि विपक्षी भ्रष्टाचारी और बीजेपी की सरकार सदाचारी है।

अपने भाषणों में प्रधानमंत्री आजादी की शताब्दि यानी 2047 तक बीजेपी के ही सत्तारूढ़ रहने का संदेश देकर मतदाताओं को ये भी समझा रहे हैं कि बीजेपी के विरूद्ध वोट देने का उन्हें कोई फायदा नहीं होगा। मतलब चुनाव हारने के बाद भी आपरेशन लोटस को अंजाम देकर बीजेपी की सरकार बन ही जाएगी। बस यहीं बीजेपी और प्रधानमंत्री गलत सिद्ध हो सकते हैं क्योंकि वे मतदाता के विवेक की ताकत को गलत आंक रहे हैं। इमरजेंसी के बाद चुनाव कराते समय तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और कांग्रेसियों को भी यही गलतफहमी थी। आखिरकार जनता ने इंदिरा और संजय गांधी को हराकर उन्हें सत्ता से बाहर करके अपने वोट और लोकतंत्र की ताकत का अहसास करा दिया। ये दीगर है कि जनता पार्टी के नेताओं के आपसी झगड़ों ने मतदाता को 1980 में ही इंदिरा गांधी को वापस चुन कर उनमें विश्वास जताने को मजबूर कर दिया।

मोदी दरअसल अडानी कांड में खुद पर लगे आरोपों को झुठलाने के लिए भी विपक्ष पर हमलावर हंै। अडानी से जुड़े आरोप खुद पर चिपकने की प्रधानमंत्री और बीजेपी की चिंता साफ दिख रही है। दक्षिण भारत में सत्ता दिलाने वाले नेता बी एस येदियुरप्पा को पहले मुख्यमंत्री पद से हटाने और फिर उनकी बगावत के डर से उन्हें सर पर बैठाने से भी राज्य में मोदी की चिंता जाहिर है। आधा दर्जन मंत्रियों का चुनाव लडऩे से इंकार, विधायकों का बीजेपी छोड़कर कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लडऩा, उम्मीदवारों की सूची जारी करने में देर आदि बानक भी चुनाव में बीजेपी की कमजोरी जता रहे हैं। इसकी काट हालांकि बीजेपी अजान, हिजाब और सरकारी नौकरियों में पिछड़े मुसलमानों का चार फीसद आरक्षण खत्म करके वोट बांटने का पुराना दांव दोहरा के कर रही है।

इसके बावजूद आर्थिक पिछड़ों के दस फीसद आरक्षण में मुसलमानों को शामिल करने की सवर्णों में कड़ी विपरीत प्रतिक्रिया हो रही है। इसके अलावा लिंगायत एवं वोक्कलिग्गा के आरक्षण का प्रतिशत बढ़ाने से बाकी पिछड़ी जातियां बीजेेपी के खिलाफ लामबंद हो रही हैं। गौरतलब है कि राज्य में करीब 35 फीसद वोटर दीगर पिछड़ी जातियों के हैं। उनके नेता कुरूबा जाति के कांग्रेस नेता और पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धारमैया हैं। कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष डी के शिवकुमार खुद वोक्कलिगा समुदाय के बड़े नेता हैं। उनसे पहले कांग्रेस से मुख्यमंत्री और विदेश मंत्री रहे एस एम कृष्णा और जेडीएस नेता एवं पूर्व प्रधानमंत्री एच डी देवेगौड़ा वोक्कलिगा के निर्विवाद नेता रहे हैं। कृष्णा अब बीजेपी में हैं और उन्हें देश का दूसरा सर्वोच्च सम्मान पद्म विभूषण मोदी सरकार ने वोक्कलिगा वोटों के समर्थन के मद्देनजर ही दिया है।

कर्नाटका में पौने चार साल सरकार चलाने और बीजेपी के इतने सारे टोटकों के बावजूद प्रधानमंत्री मोदी का सारे विपक्षी दलों और उनके नेताओं को भ्रष्टाचारी बताना क्या हताशा का प्रतीक नहीं है? साफ है कि मोदी और बीजेपी अपने विरूद्ध विपक्ष के चौतरफा प्रचार से विचलित है। विपक्ष के चार प्रमुख मुद्दों ने उन्हें सुरक्षात्मक बना रखा है। ये मुद्दे हैं-विपक्षियों पर केंद्रीय जांच एजेंसियां छोड़कर उनकी आवाज दबाने का षड्यंत्र, राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा और कथित अडानी-मोदी रिश्तों पर उनके बेबाक सवाल, हिंडनबर्ग रिपोर्ट से अडानी समूह का भांडा फू टने तथा प्रधानमंत्री दफ्तर से उन्हें प्रश्रय मिलने संबंधी विपक्ष के आरोप और करीब 18 विपक्षी दलों में बनती एकता। इनसे मोदी और बीजेपी में घबराहट है। अब देखना यही है कि कर्नाटक के चुनाव नतीजे अपने पक्ष अथवा विपक्ष में आने पर बाकी विधानसभा चुनावों में भी प्रधानमंत्री मोदी विपक्षियों को भ्रष्टाचारी बताने की रणनीति बरकरार रखेंगे अथवा किसी और मुद्दे को उछालेंगे?

संबंधित समाचार :