ईडब्ल्यूएस संशोधन पर फैसले के निहितार्थ क्या हैं?

जनवरी 2019 में संसद ने सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश के लिए 103 वां संविधान संशोधन पारित कर आरक्षित कोटा की एक नई श्रेणी बनाई थी

facebook
twitter
whatsapp
ईडब्ल्यूएस संशोधन पर फैसले के निहितार्थ क्या हैं
File Photo
देशबन्धु
Updated on : 2022-11-19 03:45:30

- डॉ. अजीत रानाडे

अच्छे वेतन, स्थिर और उच्च गुणवत्ता वाली नौकरियों की कमी के कारण ईडब्ल्यूएस आरक्षण में बहुत राजनीतिक स्वार्थ है। वैसे भी अधिकांश नौकरियां निजी क्षेत्र में पैदा होने जा रही हैं जिसमें कोटा लागू नहीं होता है। इसलिए सामाजिक या आर्थिक अन्याय को ठीक करने का सबसे विश्वसनीय तरीका अर्थव्यवस्था में नौकरियों और आजीविका का उच्च, निरंतर व समावेशी विकास है।

जनवरी 2019 में संसद ने सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश के लिए 103 वां संविधान संशोधन पारित कर आरक्षित कोटा की एक नई श्रेणी बनाई थी। यह आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (इकॉनामिकली वीकर सेक्शन- ईडब्ल्यूएस) के व्यक्तियों के लिए 10 प्रतिशत का एक नया कोटा था। इस संशोधन की संवैधानिकता को चुनौती देने वाली कई याचिकाएं दायर की गईं थीं। बड़ी बात यह है कि संसद में बिना किसी बहस के यह महत्वपूर्ण संशोधन पारित किया गया था। इसका कारण यह था कि सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी के पास निचले सदन, लोकसभा में पूर्ण बहुमत है। तमिलनाडु से सांसद सुश्री कनिमोई ने इस संशोधन के खिलाफ कुछ आपत्तियां उठाई थीं लेकिन संशोधन काफी हद तक बिना किसी चर्चा के पारित हो गया।

सुप्रीम कोर्ट ने पिछले हफ्ते अपने फैसले में ईडब्ल्यूएस कोटा की संवैधानिकता को बरकरार रखा और इसे चुनौती देने वाली सभी याचिकाओं को खारिज कर दिया। पांच सदस्यीय पीठ के फैसले में सर्वसम्मति से इस बात की पुष्टि की गई कि आरक्षण के लिए आर्थिक मानदंडों को आधार के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है।

याचिकाकर्ताओं ने इसी बात को चुनौती दी थी। पीठ अपने निष्कर्ष में भी एकमत थी कि इस नई श्रेणी के कारण अब संवैधानिक रूप से अनिवार्य आरक्षण (अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग और अब ईडब्ल्यूएस) का कुल हिस्सा 50 प्रतिशत से अधिक हो जाएगा और यह संविधान के खिलाफ नहीं है।

याचिकाकर्ताओं ने अपनी दलीलों में इस मुद्दे को भी रखा था। पीठ में एकमात्र मुद्दे पर 3-2 से मतभेद था कि क्या एससी, एसटी व ओबीसी समूहों को ईडब्ल्यूएस की नई बनाई गई श्रेणी से बाहर रखा जा सकता है। बहुमत का विचार है कि उन्हें बाहर रखना ठीक था।

इस संशोधन तथा देश की सुप्रीम कोर्ट द्वारा इसे प्रदान की गई वैधता के कई परिणाम हैं जिनमें से कुछ पर नीचे चर्चा की जाएगी। क्या इस फैसले ने संविधान के मूल ढांचे की रक्षा के सिद्धांत को झटका दिया है? सुप्रीम कोर्ट के 1973 के ऐतिहासिक फैसले के बाद से इसका अनुपालन किया जा रहा था। इस बहुचर्चित निर्णय ने स्पष्ट रूप से परिभाषित नहीं किया कि मूल संरचना का क्या अर्थ है। इसने संविधान में संशोधन पारित करने की संसद की शक्ति को भी प्रतिबंधित नहीं किया लेकिन यह जरूर कहा कि इतने अतिवादी संशोधन पारित नहीं किये जा सकते कि वे हमारे संविधान के मूल सिद्धांतों को विकृत कर दें। संसद सर्वोच्च है किन्तु संविधान की भावना सर्वोपरि है।

आर्थिक मानदंडों के आधार पर विशेष उपचार (आरक्षण) देकर एक नई श्रेणी बनाकर क्या हमने समानता के अधिकार (अनुच्छेद 14) का उल्लंघन किया है? या अनुच्छेद 14 और 15 को अनदेखा कर एससी, एसटी और ओबीसी समूहों को इस नई श्रेणी से बाहर करके गैर-भेदभाव के सिद्धांत का उल्लंघन किया गया है?

न्यायशास्त्र के विद्वानों को इस पर विचार करना चाहिए। इस विषय पर पहले ही बहुत कुछ लिखा जा चुका है और आगे भी लिखा जाएगा। अयान गुप्ता ने इस विषय पर एक गंभीर विश्लेषण किया है जिसे indconlawphil.wordpress.com ब्लॉग पर पढ़ा जा सकता है। इस बात की बहुत संभावना है कि आने वाले दिनों में शीर्ष अदालत के इस फैसले की समीक्षा एक बड़ी पीठ द्वारा की जा सकती है। वैसे अभी के लिए हम संशोधन और निर्णय के अन्य पहलुओं पर विचार करें। सबसे पहले तो यह स्पष्ट है कि संशोधन अपने आप में राजनीति से प्रेरित था। भारतीय राजनीति में 'कोटा' शब्द रेडियोधर्मी तत्व की तरह असर करता है और एक धारणा है कि संशोधन उच्च जाति के मतदाताओं के वोट बैंक को लाभ पहुंचाने के लिए पारित किया गया था, परन्तु अब मुस्लिम और ईसाई भी ईडब्ल्यूएस कोटा के लिए पात्र हो गए हैं। दूसरे, हमारे संविधान में जाति के आधार पर 'कोटा' लंबे समय से चले आ रहे और ऐतिहासिक अन्याय को ठीक करने के लिए था। 'कोटा' उन लोगों की मदद के लिए है जो पीढ़ियों से सामाजिक पिछड़ेपन से पीड़ित हैं।

आखिर आर्थिक पिछड़ेपन को ऐतिहासिक अन्याय और सामाजिक पिछड़ेपन से उपजे सामाजिक पिछड़ेपन की श्रेणी में कैसे रखा जा सकता है? एक व्यक्ति जिसकी आर्थिक स्थिति कमजोर है वह उसे प्रयास या भाग्य या दोनों के साथ बदल सकता है। यहां तक कि किसी व्यक्ति का धर्म भी उसकी पसंद का विषय हो सकता है, पर जाति जन्म से ही एक अपरिवर्तनीय निशानी है। इसलिए जाति आधारित भेदभाव आर्थिक अभाव के समान नहीं है। तीसरा, ईडब्ल्यूएस कोटा की पात्रता के लिए तय की गई कट ऑफ सीमा 8 लाख रुपये की वार्षिक आय है जो एक बहुत ही उदार सीमा लगती है। यह गरीबी रेखा से बहुत ऊपर है। एक अनुमान के मुताबिक भारत में 95 प्रतिशत से अधिक परिवार इस सीमा के अंतर्गत आएंगे। तो क्या यह गरीबों को कोटा आधारित अवसर प्रदान करने का उपाय है या यह सभी को मौका देने का प्रयत्न है?

चौथा, यदि वास्तव में ईडब्ल्यूएस कोटा गरीब परिवारों के लोगों की मदद करने के लिए है तो आइए, हम गरीबी रेखा से नीचे के लोगों की प्रोफाइल देखें! सरकार के सिन्हो आयोग के अनुसार गरीबी रेखा से नीचे के लगभग 82 प्रतिशत लोग अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग के हैं। (मेजर जनरल (रिटायर्ड) एस. आर. सिन्हो के नेतृत्व में तीन सदस्यीय आयोग का गठन यूपीए सरकार के समय में किया गया था।) गरीबी और सामाजिक पिछड़ेपन के बीच गहरा संबंध है लेकिन ईडब्ल्यूएस कोटा में उन श्रेणियों को अवसरों से वंचित कर दिया है। इसी मुद्दे पर दो न्यायाधीशों ने संवैधानिक सिद्धांत के रूप में असहमति व्यक्त की है।

बहरहाल, गरीबी के बारे में व्यावहारिक दृष्टिकोण से भी क्या यह गरीबों की मदद करने के लिए बनाई गई नीति के रूप में संदिग्ध नहीं लगता है? यह कुछ इस तरह कहना है कि हम गरीबी हटाओ कार्यक्रम शुरू करेंगे लेकिन इसमें ग्रामीण क्षेत्रों और कृषि से संबंधित उन लोगों को बाहर रखा जाएगा जो अन्य सब्सिडी द्वारा कवर किए जाते हैं। पांचवां, आर्थिक पिछड़ेपन की स्थिति अस्थिर है। इसे सकारात्मक कार्रवाई से हल किया जाना चाहिए न कि कोटा प्रणाली द्वारा। उदाहरण के लिए गरीब परिवारों के छात्रों को शिक्षा ऋण प्रदान करना गरीबों के लिए कोटा प्रणाली से बेहतर है।

छठा, इस ईडब्ल्यूएस नीति के कारण आय प्रमाण पत्र के लिए होड़ शुरू होगी। एक ऐसी अर्थव्यवस्था में जहां 92 प्रतिशत लोग असंगठित, अपंजीकृत या अनौपचारिक क्षेत्र में काम करते हैं वहां प्रामाणिक आय डेटा प्राप्त करना बहुत मुश्किल है। केवल पांच प्रतिशत आबादी ही आयकर का भुगतान करती है तो जिसके आधार पर यह ईडब्ल्यूएस नीति लागू होने जा रही है उसके लिए हम प्रामाणिक आय डेटा कहां से प्राप्त कर सकते हैं? क्या हम अधिक भ्रष्टाचार, किराया मांगने या नकली प्रमाणपत्र व और अधिक मुकदमेबाजी के लिए द्वार खोल रहे हैं?

अंत में, यह स्पष्ट है कि अच्छे वेतन, स्थिर और उच्च गुणवत्ता वाली नौकरियों की कमी के कारण ईडब्ल्यूएस आरक्षण में बहुत राजनीतिक स्वार्थ है। वैसे भी अधिकांश नौकरियां निजी क्षेत्र में पैदा होने जा रही हैं जिसमें कोटा लागू नहीं होता है। इसलिए सामाजिक या आर्थिक अन्याय को ठीक करने का सबसे विश्वसनीय तरीका अर्थव्यवस्था में नौकरियों और आजीविका का उच्च, निरंतर व समावेशी विकास है। हमेशा की तरह यही असली व मुख्य एजेंडा है।

संबंधित समाचार :