- सर्वमित्रा सुरजनदेश को भूलना नहीं चाहिए कि नेहरूजी ने ही आराम हराम है का नारा भी दिया था। आजादी तो देश को मिल चुकी थी, लेकिन गुलामी के दौर में अशिक्षा, कुपोषण, बीमारियों, रूढ़िवादी प्रथाओं, विज्ञान, कृषि और उद्योग में पिछड़ेपन के जो निशान गहरे बन चुके थे, उन्हें मिटाने के लिए पहले से ज्यादा मेहनत की दरकार थी और नेहरूजी इसी ओर देश का ध्यान दिला रहे थे।
जब-जब ऐसा लगता है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अपने विरोधियों और राजनैतिक प्रतिद्वंद्वियों के लिए इससे निकृष्टतम बयान नहीं दे सकते, इससे ज्यादा बड़ा झूठ नहीं बोल सकते, तब-तब इस धारणा को झुठलाते हुए श्री मोदी निकृष्टता का नया पैमाना स्थापित कर देते हैं। आम तौर पर राजनैतिक प्रतिद्वंद्वी उन्हें ही माना जाता है, जिनके सामने आपको चुनाव लड़ना होता है, या पद के लिए मुकाबला करना होता है। जैसे मौजूदा वक्तमें इंडिया गठबंधन के नेताओं जैसे शरद पवार, लालू प्रसाद, मल्लिकार्जुन खड़गे, सीताराम येचुरी, डी राजा, उद्धव ठाकरे, ममता बनर्जी, राहुल गांधी, अरविंद केजरीवाल, एम के स्टालिन, अखिलेश यादव, तेजस्वी यादव, हेमंत सोरेन आदि को श्री मोदी अपना प्रतिद्वंदी मान सकते हैं, हालांकि इनमें प्रधानमंत्री पद के लिए किसका नाम आगे बढ़ेगा, यह कोई नहीं जानता। मगर नरेन्द्र मोदी इन सबको समेकित तौर पर अपना राजनैतिक प्रतिद्वंद्वी मानते हैं, जिसमें कई बार स्पर्द्धा से अधिक शत्रुता का भाव झलक जाता है। यह भाव केवल यहीं तक सीमित नहीं रहता। श्री मोदी के लिए सोनिया गांधी और डा.मनमोहन सिंह भी राजनैतिक शत्रु ही हैं। हालांकि सोनिया गांधी दो बार प्रधानमंत्री बनने के मौके को ठुकरा चुकी हैं और डा.मनमोहन सिंह भी राजनैतिक तौर पर सक्रिय नहीं हैं। लेकिन इनके दस बरसों के शासन का खौफ ही नरेन्द्र मोदी की शत्रुता की भावना को पोषित करने के लिए पर्याप्त है। इसलिए सोनिया गांधी के लिए वे कांग्रेस की विधवा जैसे शब्द बोल चुके हैं तो डा.मनमोहन सिंह के लिए रेनकोट पहन कर नहाने जैसी घृणित उपमा संसद में दे चुके हैं।
राहुल गांधी ने संसद के भीतर श्री मोदी को गले लगाकर उनके भीतर की नफरत को खत्म करने की कोशिश भी की, ताकि वहां विरोधियों के लिए सदाशयता रखने की थोड़ी गुंजाइश बने। लेकिन नरेन्द्र मोदी ने शत्रुता का भाव इतना बड़ा कर दिया है कि सद्भावना की कहीं कोई जगह नहीं बन सकती है। बल्कि अब यह बैरभाव उन लोगों के लिए भी दिखाने से परहेज नहीं किया जा रहा, जो इस दुनिया में ही नहीं हैं। राजीव गांधी, इंदिरा गांधी और पं.जवाहरलाल नेहरू इन तीन पूर्व प्रधानमंत्रियों पर मौजूदा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के हमले लोकतंत्र में विरोध और शत्रुता की नयी व्याख्या कर रहे हैं। अपने हमले में श्री मोदी धड़ल्ले से अर्द्धसत्य का इस्तेमाल कर रहे हैं, जो देश के लिए किसी महामारी के समान घातक साबित हो रहा है। क्योंकि भाजपा का सोशल मीडिया प्रभाग, उसके नेता और उनके साथ मीडिया का बड़ा तबका इस अर्द्धसत्य को बढ़ावा दे रहे हैं।
संसद में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने एक बार गांधी परिवार को निशाने पर लेने के लिए व्यक्तिगत हमला करते हुए पूछा था कि नेहरू सरनेम रखने में शर्मिंदगी क्यों होती है। संसद में देश के प्रधानमंत्री ने बेरोजगारी, महंगाई, महिला असुरक्षा, शिक्षा और स्वास्थ्य की बिगड़ती स्थिति, सीमाओं की रक्षा, कृषि की समस्याओं इन तमाम जरूरी मुद्दों पर सवाल-जवाब की जगह एक ओछी मानसिकता के सवाल को उछाला, लेकिन सभ्य समाज ने उस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी और कांग्रेस के चंद नेताओं पर गांधी परिवार की ओर से जवाब देने का जिम्मा छोड़ दिया। निम्नता का जो स्तर देश के प्रधानमंत्री ने दिखाया, समाज ने भी उसकी बराबरी करते हुए अपनी कृतघ्नता उस परिवार के लिए जतला दी, जिसके सदस्यों ने देश के लिए अपने प्राण दे दिए, अपनी संपत्ति दे दी और अपने जीवन के अनमोल वर्ष अंग्रेजी हुकूमत का विरोध करते हुए जेल में गुजार दिए। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भाजपा ने परिवारवाद का मुद्दा खड़ा करके केवल गांधी परिवार को निशाने पर लेने का जो खेल रचा था, समाज खुशी-खुशी उसका मोहरा बन गया और इस देश के लिए नेहरू-गांधी परिवार के लोगों के योगदान को भूल गया। लोगों ने यह देख कर भी आंखें मूंद लीं कि भाजपा में भी यह परिवारवाद बखूबी फल-फूल रहा है।
परिवारवाद का अर्द्धसत्य समाज ने कभी समझने की कोशिश नहीं की। इस तरह के और बहुत से आधे सच भाजपा ने फैलाए हैं। राहुल गांधी का आलू से सोना निकालने वाला बयान, आतंकी कसाब को जेल में बिरयानी, बाटला हाउस मुठभेड़ के बाद सोनिया गांधी का रोना, नेहरूजी के कपड़े पेरिस में धुलने भेजना, सरदार पटेल के परिवार के साथ अन्याय करना या कश्मीर फाइल्स और द केरला स्टोरी जैसी फिल्में, ऐसे कई सफेद झूठ अर्द्धसत्य का चोगा पहनाकर फैलाए गए, जिनका एक ही मकसद था कि किसी तरह गांधी परिवार और कांग्रेस के शासन को देश के लिए श्राप की तरह साबित किया जा सके। दरअसल संघ और भाजपा ने भारत को जिस संकीर्ण सोच वाले हिंदू राष्ट्र में तब्दील करने का खेल रचा है, उसमें नेहरू-गांधी परिवार की उदार, लोकतांत्रिक और धर्मनिरपेक्ष सोच ही सबसे ज्यादा बाधक नजर आती है। भाजपा इस सोच का मुकाबला नहीं कर पा रही, इसलिए श्री मोदी ने देश के लोगों की सोच को एक बार फिर नेहरू के खिलाफ करने की कोशिश की है। इस बार उन्होंने संसद में बताया कि नेहरूजी भारतीयों के लिए अच्छे विचार नहीं रखते थे, उन्हें आलसी और कम अक्ल वाला समझते थे।
सोमवार 5 जनवरी को लोकसभा में अपने भाषण में प्रधानमंत्री मोदी ने पं. नेहरू के 1959 में लालकिले से दिए गए 15 अगस्त के भाषण के कुछ अंश सुनाए, जिसमें पं.नेहरू ने कहा था कि 'आमतौर पर भारतीयों को बहुत कड़ी मेहनत करने की आदत नहीं होती है, हम यूरोप या जापान या चीन या रूस या अमेरिका के लोगों जितना काम नहीं करते हैं।' पं.नेहरू के लगभग 40 मिनट के भाषण की चार-छह पंक्तियां पढ़कर संसद में मौजूदा प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि- 'इसका मतलब है कि नेहरू जी सोचते थे कि भारतीय आलसी और कम बुद्धिमान हैं।' इस तरह एक और अर्द्भसत्य के साथ श्री मोदी ने नेहरूजी के साथ अपनी शत्रुता जाहिर कर दी। श्री मोदी ने जब नेहरूजी का भाषण निकाला होगा, तो उनके सामने पूरा भाषण आया होगा, जिसमें इन्हीं पंक्तियों के बाद नेहरूजी ने यह भी कहा है कि 'यह न समझिए कि वह कौमें कोई जादू से खुशहाल हो गईं, मेहनत से हुई हैं और अक्ल से हुई हैं। तो हम भी मेहनत और अक्ल से आगे बढ़ सकते हैं, कोई और चारा नहीं हैं। हम कोई जादू से नहीं बढ़ सकते, क्योंकि दुनिया इंसान के काम से चलती है और इंसान की मेहनत से सारी दुनिया की दौलत पैदा होती है। चाहे जमीन पर किसान काम करता है, या कारखाने में, या दुकान में या कारीगर, उससे काम चलता है। कुछ बड़े अफसर दफ्तरों में बैठ के इंतजाम करते हैं, वह दौलत नहीं पैदा करते हैं। दौलत पैदा करता है किसान अपनी मेहनत से, या कारीगर। तो हमें अपने काम, अपनी मेहनत को आगे बढ़ाना है।'
साफ तौर पर नेहरूजी भारतीयों को अपनी मेधा और मेहनत से आगे बढ़ने के लिए प्रेरित कर रहे थे। देश को भूलना नहीं चाहिए कि नेहरूजी ने ही आराम हराम है का नारा भी दिया था। आजादी तो देश को मिल चुकी थी, लेकिन गुलामी के दौर में अशिक्षा, कुपोषण, बीमारियों, रूढ़िवादी प्रथाओं, विज्ञान, कृषि और उद्योग में पिछड़ेपन के जो निशान गहरे बन चुके थे, उन्हें मिटाने के लिए पहले से ज्यादा मेहनत की दरकार थी और नेहरूजी इसी ओर देश का ध्यान दिला रहे थे। नेहरूजी के लिए विकास आज की सरकार की तरह जुमला नहीं था, जिसकी जुगाली वे अपने भाषणों में करते रहते, बल्कि उनके लिए विकास एक जज़्बा था, जिससे वो देश को आत्मनिर्भर बनाने में लगे थे। आज जिस भारत को हम विकासशील कहते हैं, वो असल में नेहरूजी की व्यापक सोच और दूरदृष्टि का ही परिणाम है। उनके इस प्रगतिशील और उदार नजरिए में धार्मिक संकीर्णताओं के लिए कोई जगह नहीं है। बस इसी वजह से भाजपा और श्री मोदी अब भी नेहरू से खौफ खाते हैं। उनकी बातों को आधे सच के साथ ऑन रिकार्ड देश के सामने रखकर गुमराह करने का काम कर रहे हैं। ये कोई मासूम गलती नहीं है, सोची-समझी साजिश है। अब देश खुद सोचे कि वह ऐसी साजिश का शिकार बनना चाहता है या सच की पूरी पड़ताल कर अपने विवेक से फैसला लेना चाहता है।परवीन शाकिर ने कहा है-मैं सच कहूंगी मगर फिर भी हार जाऊंगी,वो झूठ बोलेगा और ला-जवाब कर देगा।लेकिन अबकी हम किसी के झूठ पर ला-जवाब हुए तो फिर शायद ही कभी मुंह खोल पाएं।