ओवैसी की सुपारी राजनीति

दुनिया की चाहे जितनी बड़ी डिग्रियां आपके पास हों लेकिन अगर आप नफरत की प्रैक्टिस करते हैं तो नफरत ही आपके चेहरे से हावभाव से झलकेगी। आप अच्छे भले आदमी से जोकर नजर आने लगेंगे।

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ओवैसी की सुपारी राजनीति
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शकील अख्तर
Updated on : 2023-01-16 12:02:53

शकील अख्तरअभी देश के सबसे बड़े राज्य यूपी और देश की राजधानी दिल्ली में हुए विधानसभा और एमसीडी के चुनाव में मुसलमानों ने ओवैसी और उनके मुसलमानों के नेता मुसलमान ही हों, के भड़काऊ विचार की हवा निकाल दी। उत्तर भारत का मुसलमान अब अच्छी तरह समझ गया है कि ओवैसी केवल वोट कटवा रहे हैं। वे भाजपा को जिताने के लिए मुसलमानों के वोट बंटवाते हैं।

सच है कि नफरत वह चीज है कि अगर आप चिमटे से भी छू दोगे तो वह आपके सिर पर चढ़ जाएगी। नफरत, झूठ की राजनीति करके आप सोचो कि वह आप पर असर नहीं करेगी तो यह संभव नहीं है। दुनिया की चाहे जितनी बड़ी डिग्रियां आपके पास हों लेकिन अगर आप नफरत की प्रैक्टिस करते हैं तो नफरत ही आपके चेहरे से हावभाव से झलकेगी। आप अच्छे भले आदमी से जोकर नजर आने लगेंगे।

यही बैरिस्टर असदउद्दीन ओवैसी के साथ हुआ। इनके पिता सलाहउद्दीन ओवैसी गंभीर नेता थे। जिन्होंने मुसलमानों के आर्थिक विकास और शिक्षा के लिए बहुत काम किया। आंध्र प्रदेश में मेडिकल कालेज, इन्जीनियरिंग कालेज, तमाम दूसरे प्रोफेशनल कालेज, अस्पताल वगैरह बनवाए। छह बार लोकसभा सदस्य और कई बार विधानसभा सदस्य रहे। हमेशा अपने उसूलों की, पार्टी की और क्षेत्र के विकास की राजनीति की। लेकिन बेटे असदउद्दीन ओवैसी राजनीति के सबसे खराब फार्म सुपारी की राजनीति करने लगे।

वैसे तो इसे प्रधानमंत्री मोदी की सफलता माना जा सकता है कि उन्होंने सिर्फ ओवैसी ही नहीं, मायावती को भी अपना मददगार बना लिया है। यह दोनों भी जब भाजपा को जरूरत होती है तत्काल हाजिर हो जाते हैं। और तन मन से भाजपा की मदद करते हैं। लेकिन मायावती की एक बात माननी पड़ेगी कि उन्होंने मन से चाहे जितनी मदद की हो अपनी पार्टी को विधानसभा में जीरो कर दिया हो मगर हावभाव से खुद को कभी नहीं गिराया।

लेकिन बैरिस्टर ओवैसी साहब ने तो अभी अपने गृह नगर हैदराबाद में जो घटिया एक्टिंग करते हुए राहुल गांधी का मजाक उड़ाने की कोशिश की है उसे वकालत में कहते हैं कि जब वकील के पास तथ्य और तर्क नहीं होते तो वह अपनी आवाज ऊंची करने की कोशिश करते हंै। अदालत में पहले तो ऐसे नाटकीय वकीलों को चेतावनी दे दी जाती थी। आज का पता नहीं। मगर जनता की अदालत में तो अभी भी ऐसे नाटक करने वालों को सज़ा दी जाती है। जनता शब्दों में भी एक हद से ज्यादा अभद्रता पसंद नहीं करते हैं और मुंह बनाने और हाथ नचाने वालों को तो बिल्कुल नहीं।

ओवैसी कुंठित दिख रहे हैं। उत्तर भारत के मुसलमानों ने उन्हें पूरी तरह नकार दिया है। आमतौर पर कहा जाता है कि मुसलमान राजनैतिक समझ के मामले में बाकी समुदायों से कमजोर है। जो काफी हद तक सही भी है। देश में दलित, यादव, दूसरे हाशिए के समुदायों के मुकाबले मुसलमान अपने वास्तविक मुद्दों शिक्षा, नौकरी, रोजगार की जगह भावनात्मक मुद्दों से ज्यादा प्रभावित हो जाता है। मगर उसका राजनीतिक विवेक इतना भी सोया हुआ नहीं है कि वह बिल्कुल हवा हवाई मुस्लिम कयादत (नेतृत्व) के मुद्दे पर ओवैसी के साथ जाए। मुसलमान का हिन्दुस्तान में कभी अपना नेता नहीं रहा। न अपनी पार्टी।

वह सबके साथ ही उन्हीं मुद्दों पर वोट करता रहा। सारे दलों के साथ रहा। भाजपा के भी। जो अब खुलकर हिन्दू-मुसलमान के विभाजन की राजनीति करने लगी है। मगर जब तक कब्रिस्तान और श्मशान को राजनीति में नहीं लाया गया था। कपड़ों से पहचानने की बात नहीं कही गई थी मुसलमान भाजपा को भी वोट देता था। और आज भी भाजपा के कई उम्मीदवार अपनी व्यक्तिगत छवि के आधार पर मुसलमानों का वोट और समर्थन पाते हैं।

अभी देश के सबसे बड़े राज्य यूपी और देश की राजधानी दिल्ली में हुए विधानसभा और एमसीडी के चुनाव में मुसलमानों ने ओवैसी और उनके मुसलमानों के नेता मुसलमान ही हों, के भड़काऊ विचार की हवा निकाल दी। उत्तर भारत का मुसलमान अब अच्छी तरह समझ गया है कि ओवैसी केवल वोट कटवा रहे हैं। वे भाजपा को जिताने के लिए मुसलमानों के वोट बंटवाते हैं। और गैर जरूरी जज्बाती मुद्दे उठाकर हिन्दुओं के वोटों के ध्रुवीकरण में भाजपा की मदद करते हैं। जैसा वे हिजाबी प्रधानमंत्री बनेगी और मुसलमानों का नेता मुसलमान ही हो सकता है, कहकर एक और नई पिच बनाते हैं ताकि भाजपा को बेटिंग में और आसानी हो।

भारत में मुसलमान के प्रधानमंत्री बनने का कोई मुद्दा ही नहीं है। यहां राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, चीफ जस्टिस, एयर चीफ मार्शल, आईबी चीफ हर संवैधानिक और बड़े पद पर मुसलमान रहे हैं। प्रधानमंत्री किसी के अजेंडे में नहीं है। मगर जैसे भाजपा और संघ मुसलमान का नाम लेकर डराती है। उसे ही ओवैसी एक दिन देश में हिजाबी प्रधानमंत्री बनेगी कहकर और हवा देते हैं।

भारत में पहले मुसलमानों ने नेहरू को अपना नेता माना और फिर उनके बाद लालू, मुलायम, वाजपेयी को भी अपना नेता मानते रहे। किसी भी मुसलमान नेता के मुकाबले मुसलमानों ने इन पर ज्यादा यकीन किया।

आज नफरत, विभाजन और झूठ के खिलाफ राहुल गांधी की यात्रा ने जैसे देश के दूसरे लोगों का दिल जीता है वैसे ही मुसलमानों का भी। इसी से ओवैसी भड़के हुए हैं। हैदराबाद में जिस तरह उन्होंने आवाजें निकालीं, मुंह बनाए और भाषा प्रयुक्त की उससे पता चलता है कि वे घबराए हुए हैं। क्या है डर? कहीं ऐसा तो नहीं कि इसी साल होने वाले तेलंगाना विधानसभा चुनावों में इस बार उनकी पार्टी एआईएमआईएम को कांग्रेस से खतरा नजर आ रहा है। उनकी राजनीति तेलंगाना में हैदराबाद के पुराने इलाके की केवल आठ विधानसभा सीटों पर है। जिनमें से सात पर वे पिछली बार चुनाव जीते थे। वहां मुख्य चुनौती इस बार उन्हें कांग्रेस से ही है। राहुल की यात्रा का देशव्यापी असर हुआ है। तेलंगाना और खासतौर से हैदराबाद में तो यात्रा का जबर्दस्त स्वागत हुआ। राहुल ने वहां चारमीनार पर राष्ट्रीय ध्वज फहराया। ओवैसी को अब यहीं खतरा है। अभी विधानसभा का और अगले साल खुद की लोकसभा का।

पिछले चार, साढ़े चार साल से वे देश भर में घूम-घूम कर वोट काट रहे थे। विधानसभा तो छोड़िए, दिल्ली में फिर भी नगर निगम चुनाव लड़ा।. मध्य प्रदेश में वे नगरपालिकाओं में चुनाव रहे थे। कई मुस्लिम बहुल इलाकों में उन्होंने कांग्रेस के वोट काटकर भाजपा को जिताया। अब उनके सिर पड़ी है। भाजपा वहां उनकी मदद करेगी। केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह इसी महीने तेलंगाना के दौरे पर जा रहे हैं। भाजपा वहां बड़े स्तर पर चुनाव लड़ने का प्रोग्राम बना रही है। उसने वहां ग्यारह हजार रैलियां करने कार्यक्रम बनाया है। दरअसल दो साल पहले हुए हैदराबाद नगर निगम के चुनावों में भाजपा ने ओवैसी की मदद से टीआरएस को नाकों चने चबवा दिए थे। हालांकि नुकसान ओवैसी की पार्टी को भी हुआ था मगर उसने हैदराबाद में शानदार भाजपा की डुगडुगी बजवा दी थी। नगर निगम में चन्द्रशेखर राव की टीआरएस 99 से 55 पर आ गई थी और भाजपा 4 से 48 सीटों पर पहुंच गई थी। ओवैसी भाजपा से पीछे तीसरे नंबर पर आ गए थे। उन्हें 44 सीटें मिली थीं।

ओवैसी नगर निगम में भाजपा को नूरा कुश्ती खेलते हुए लाए थे। यह सोचकर कि धु्रवीकरण होगा और उससे टीआरएस का नुकसान होगा और उनका फायदा हो जाएगा। टीआरएस का नुकसान तो हुआ मगर फायदा उनके बदले भाजपा को हो गया।

अब विधानसभा चुनाव में क्या होता है देखना दिलचस्प होगा। ओवैसी वहां भाजपा की पूरी मदद करेंगे। उनका दांव तो खाली पुराने हैदराबाद की आठ सीटों पर है मगर सरकार बनाने के बड़े दांव टीआरएस और कांग्रेस के हैं। ओवैसी की भाजपा को मदद किसे ज्यादा नुकसान करेगी कांग्रेस को या टीआरएस को यह भविष्य बताएगा। मगर फिलहाल तो हैदराबाद में जिस तरह ओवैसी ने राहुल की भद्दी नकल करने की कोशिश की है उससे लगता है कि उन्हें सुपारी कांग्रेस को कमजोर करने की दी गई है। कांग्रेस वहां काफी मजबूत हुई है।

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