- पुष्परंजन
इसमें कोई शक नहीं, औरों को नसीहत खुद मियां फजीहत वाली मोदी सरकार मुंबई के मंच पर एक्सपोज़ हुई है। मुश्किल यह है कि कंवल सिब्बल जैसे रिटायर्ड विदेश सचिव से बचाव कराया जाता है, जो ख़़ुद के अतीत को नहीं देखते। 1999 में वो जब फ्रांस के राजदूत थे, तब एक बड़ा कांड उन्हीं के दूतावास में तैनात फर्स्ट सेक्रेट्री अमृत लुगुन के हाथों हुआ था।
पूर्व विदेश सचिव कंवल सिब्बल, कांग्रेस के ज़माने के बहुचर्चित मंत्री कपिल सिब्बल के बड़े भाई हैं। 2017 में विदेश सचिव पद से रिटायर हुए, तब से खाली बैठे हैं। अब चूंकि विदेश सचिव रह चुके हैं, तो उनके बयान को कोई भी गंभीरता से लेगा। कंवल सिब्बल संयुक्त राष्ट्र के महासचिव अंटोनियो गुटेरस द्वारा मुंबई में दिये बयान से खफा हैं। 19 अक्टूबर को कंवल सिब्बल ने ट्वीट किया, 'संयुक्त राष्ट्र महासचिव भारत में मानवाधिकार पर सार्वजनिक रूप से लेक्चर देते हैं, जो बिलकुल अनुचित है। वो मानवाधिकार के मुद्दे पर संयुक्तराष्ट्र के तंत्र और एनजीओ को भारत के विरूद्ध उकसाने वाला कृत्य कर रहे हैं। यह हमारे लोकतंत्र का अपमान है। इसके उलट वो उईगुर के मामले में सार्वजनिक रूप से चुप्पी साधे रहते हैं। संयुक्त राष्ट्र महासचिव को इस दोहरे मापदंड से बाज़ आना चाहिए।' कंवल सिब्बल पांच लाइनों के ट्वीट से प्रधानमंत्री को मरहम लगाने और अपना नंबर बनाने में कितने कामयाब हुए, वह आने वाला वक्त बतायेगा।
आईआईटी बॉम्बे में 'इंडिया एट 75-यूएन इंडिया पार्टनरशिप साउथ-साउथ कोऑपरेशन' विषय पर बुधवार को गुटेरस ने कहा अंटोनियो गुटेरस ने कहा, 'भारत मानवाधिकार परिषद में निर्वाचित सदस्य हैं और उसकी यह ज़िम्मेदारी है कि वह वैश्विक मानवाधिकार को दिशा दे। अल्पसंख्यक समेत सभी व्यक्तियों के मानवाधिकारों की रक्षा करे। भारत में बहुलतावाद का मॉडल बहुत सरल है, लेकिन इसकी समझ बहुत गहरी है. विविधता एक तरह की संपन्नता है और इससे आपका देश मजबूत होता है। जन्मसिद्ध अधिकार सभी भारतीयों के पास है, गांधी के मूल्यों पर चलते हुए सभी के अधिकारों और मानवीय गरिमा का सम्मान होना चाहिए, ख़ुसूसन उनका जो मुश्किल स्थिति में रह रहे हैं। समावेशी, बहुसांस्कृतिक, बहुधार्मिक और बहुनस्ली समाज को सुरक्षा देनी चाहिए।'
आज़ादी के अमृतकाल में संयुक्त राष्ट्र महासचिव का यह बयान गुब्बारे में पिन चुभोने जैसा है। हालांकि यूएन प्रमुख ने पिछले 75 वर्षों में कई उपलब्धियों के लिए भारत की प्रशंसा भी की थी। उन्होंने कोविड महामारी में दुनिया भर में मोदी सरकार की ओर से वैक्सीन पहुंचाने की नीति की भी तारीफ़ की। मगर, समालोचना क्यों? सरकार तो यह चाहती है कि जो भी उसके मंच पर आये, केवल प्रशंसा के पुष्प बरसाये। इस कालखंड की मुश्किल यह है कि देश के सबसे प्रबुद्ध नौकरशाहों ने पढ़ना-लिखना कम कर दिया है, या फिर कुछ पाने की लालसा में आंखों पर पट्टी बांध रखी है।
जिस साल कंवल सिब्बल विदेश सचिव पद से रिटायर हुए, उसी साल पहली जनवरी को अंटोनियो गुटेरस ने संयुक्त राष्ट्र महासचिव का पदभार संभाला था। उसके बाद से अब तक अंटोनियो गुटेरस ने कितनी बार उईगुर आबादी पर ज़ुल्मों-सितम की चिंता की है, इसे कम से कम कंवल सिब्बल को वेरिफाई कर लेना चाहिए था। 4 फरवरी 2022 को विंटर ओलंपिक के अवसर पर अंटोनियो गुटेरस ने चीन के राष्ट्रपति शी चिनपिंग व विदेश मंत्री वांग यी से मुलाक़ात के दौरान कहा था कि वो संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार प्रमुख मिशेल बाचेलेट को शिन्चियांग जाने देें। मानवाधिकार प्रमुख के चीन आने और शिन्चियांग जाने से विश्वसनीयता बढ़ेगी।
31 अगस्त, 2022 को संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट प्रकाशित हुई, जिसमें शिन्चियांग में उईगुर और तुरिक मूल के लोगों पर ज़ुल्मों-सितम का ब्योरा दिया गया था। अंटोनियो गुटेरस ने उसके हवाले से कहा था कि चीन उस रिपोर्ट को देखे, और संज़ीदगी से पेश आये। अप्रैल और सितंबर 2019 में भी शिन्चियांग में दमन के सवाल पर चीन को भला-बुरा कहा था। कंवल सिब्बल को ट्वीट करने से पहले उन संदर्भों को देख लेना चाहिए था।
मुश्किल यह है कि कंवल सिब्बल ख़ुद के अतीत को नहीं देखते। 1999 में वो फ्रांस के राजदूत थे, तब एक बड़ा कांड उन्हीं के दूतावास में तैनात फर्स्ट सेक्रेट्री अमृत लुगुन के हाथों हुआ था। अमृत लुुगुन एक हाउस हेल्पर ललिता ओरांव को रांची से पेरिस ले आये थे, जिसे वहां की सड़क पर एक दिन घायल अवस्था में कुछ लोगों ने देखा। ललिता ओरांव को एंटी स्लेवरी एनजीओ के लोग पैरिस स्थित हॉस्पिटल कोचिन ले गये। उस हाउस हेल्पर ने लगातार पिटाई किये जाने और यौन यातना देने का आरोप अपने नियोक्ता पर लगाया था। अखबार 'ला मोंदे' ने अस्पताल के हवाले से ख़बर बनाई कि ललिता के प्राइवेट पाटर््स पर तीन से छह सेंटीमीटर के गहरे धाव पाये गये थे, और शरीर पर भी चोट के निशान मिले हैं। ला मोंदे की इस ख़बर से भारतीय मीडिया में भी हलचल मची।
फर्स्ट सेक्रेट्री अमृत लुगुन झारखंड में कांग्रेस की एमएलए रह चुकीं सुशीला केरकेटा के दामाद हैं। इसे लेकर भी राजनीति शुरू हुई। इस मामले की जांच के वास्ते एक एडीशनल सेक्रेट्री स्तर के अधिकारी को भेजने की तैयारी होने लगी, तो एंबेसडर कंवल सिब्बल उसके आड़े आ गये। एडीशनल सेक्रेट्री का पैरिस आना रूकवा दिया गया। दूतावास की ओर से बयान जारी करवाया कि एंटी स्लेवरी एनजीओ के लोग निर्लज्जता से झूठ बोल रहे हैं, भारत को बदनाम कर रहे हैं। लड़की ने दीवार फांदी थी, उसके कंटीले तारों से खरोंच आ गई होगी। इस मामले को कुछ महीनों में रफा-दफा कर दिया गया। आईएफएस अमृत लुगुन फिलहाल ग्रीस में बतौर भारतीय राजदूत तैनात हैं। इस संदर्भ की चर्चा इसलिए ज़रूरी है, क्योंकि जो कुछ पेरिस में हुआ वो भी मानवाधिकार, और एक आदिवासी लड़की के मान-सम्मान का मामला था, जिसे एंबेसडर कंवल सिब्बल ने अपनी पहुंच के बल पर दबा दिया। जिसका छोटा भाई देश का नामी-गिरामी वकील और तत्कालीन कांग्रेस सरकार में ताक़तवर मंत्री हो, उससे कौन उलझे?
इसमें कोई शक नहीं, औरों को नसीहत खुद मियां फजीहत वाली मोदी सरकार मुंबई के मंच पर एक्सपोज़ हुई है। इसे संयोग कहिए कि अंटोनियो गुटेरस के बयान से ठीक एक दिन पहले मंगलवार को कश्मीरी फोटो जर्नलिस्ट सना इरशाद मट्टू ने ट्वीट कर कहा था, 'मैं पुलित्जर अवॉर्ड लेने न्यूयॉर्क जा रही थी, मुझे नई दिल्ली एयरपोर्ट पर इमिग्रेशन वालों ने रोक लिया है।' उससे पहले बिलकिस बानो का मामला वैसे ही गरमाया हुआ था। अब जिस बर्तन में बहत्तर छेद हो रखें हों, उसे कहां-कहां ढंकेंगे?
कायदे से 'इंडिया एट 75-यूएन इंडिया पार्टनरशिप' के आयोजकों को सोचना चाहिए था कि बुला किसे रहे हैं। जो बाबू लोग विदेश मंत्रालय संभाल रहे हैं, उन्होंने अंटोनियो गुटेरस का बैकग्राउंड शायद नहीं देखा। गुटेरस 1995 से 2002 तक पुर्तगाल के प्रधानमंत्री रह चुके हैं। पुर्तगाल के स्थानीय चुनाव में अपनी पार्टी की हार के बाद उन्होंने इस्तीफा दे दिया था। गुटेरस 1999 से 2005 तक सोशलिस्ट इंटरनेशनल के प्रेसिडेंट रह चुके हैं। 2005 से 2015 तक संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी उच्चायुक्त भी रह चुके हैं। जो व्यक्ति जेनेवा स्थित यूएनएचसीआर मुख्यालय का एक दशक तक प्रमुख रहा हो, वो भारत में मानवाधिकार की गतिविधियों से अनजान कैसे रह सकता है? अंटोनियो गुटेरस वैसे भी मानवाधिकार के मुद्दे पर कभी चुप नहीं रहे। पूरा यूरोप उनके स्वभाव को जानता है। वैसी शख्सियत को अपने मंच पर बुलाना नहीं चाहिए था, जिसकी बातें कड़वी लगे। फिर शाहे वक्त को सलाम करनेवाले सिब्बल जैसे डिप्लोमेट जिस तरह अखाड़े में उतरते हैं, उससे यूएन और भारत के संबंधों में खटास ही पैदा होगी।
भारत इस समय शंघाई कारपोरेशन आर्गेनाइजेशन (एससीओ) की अध्यक्षता संभाल रहा है। सितंबर 2023 तक एससीओ शिखर बैठक भारत में होनी है। 1 दिसंबर 2022 से भारत जी-20 का भी अघ्यक्ष देश बन जाएगा। यह बादशाहत 30 नवंबर, 2023 तक बनी रहेगी। सितंबर 2023 में जी-20 की शिखर बैठक का आयोजन भी भारत को करना है। सोचिए, दो-दो अंतरराष्ट्रीय संगठनों का अध्यक्ष देश भारत से जब लोग सवाल करेंगे कि आपका मानवाधिकार ट्रैक रिकार्ड दिनों-दिनों गिरता क्यों गया है? उसे ही तो दुरूस्त करने की सलाह दे रहे थे, संयुक्त राष्ट्र महासचिव। आप हैं कि बुरा मान गये। कश्मीर से कन्याकुमारी ही नहीं, अरूणाचल से दमन तक मानवाधिकार हनन की सूची बने, तो हज़ार पेज की किताब भी कम पड़ जाएगी।
दुनिया के 162 देशों में नागरिक अधिकारों की क्या स्थिति है, उसका आकलन 12 बिंदुओं के आधार पर होता है। क़ानून-व्यवस्था, सुरक्षा, मूवमेंट, धार्मिक अधिकार, सभा-सम्मेलन, सूचना-अभिव्यक्ति का अधिकार, व्यक्तिगत अस्तित्व, संपत्ति का अधिकार व लीगल सिस्टम, अंतरराष्ट्रीय व्यापार की सुविधाएं, अधिनियम। इन सबों मेें सरकार का सिस्टम कितना कारगर है, उसके आधार पर रेटिंग की जाती है। 2021 में जब ग्लोबल रैंकिंग हुई दुनिया के 10 देश इनमें बेहतर पाये गये। पहले स्थान पर स्विट्ज़रलैंड, दूसरे पर न्यूज़ीलैंड, तीसरे पर डेनमार्क, चौथे पर स्तोनिया, पांचवें पर आयरलैंड, छठे पर कनाडा, सातवें पर फिनलैंड, आठवें स्थान पर ऑस्ट्रेलिया, और स्वीडेन व लक्ज़मबर्ग नौवें तथा दसवें स्थान पर हैं। भारत ह्यूमन फ्रीडम इंडेक्स की ग्लोबल रैंकिंग में 111 वें स्थान पर है। प्रेस की आज़ादी के मामले में पूरी दुनिया में 142वें पोजिशन पर है भारत। 2014 से पहले हम वहां तो नहीं थे?
देश से बाहर का मीडिया या कोई संगठन ब्योरा देता है, तो उन आंकड़ों पर सवाल किये जाते हैं। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के आंकड़ों को कैसे झूठला देंगे, जिसके अनुसार 2020-21 में भारत में 74 हज़ार 968 मानवाधिकार हनन के मामले दज़र् किये गये थे। पहली अप्रैल 2021 से 28 फरवरी 2022 तक ये 28-30 फीसद बढ़कर 1 लाख 2539 हो गये। इन्हीं को आधार बनाकर सूचकांक तैयार किये जाते हैं। आज़ादी के अमृतवर्ष में नागरिकों के अधिकार का सम्मान होना चाहिए, यहां तो उल्टा हो रहा है। सरकार के बचाव में भक्त बोलेंगे, 'चीन से तुलना कर लो जो 129वें स्थान पर है। बांग्लादेश 139 और पाकिस्तान 140 स्थान पर है।' यह तो लगभग स्पष्ट हो गया है कि ज़ुल्मों-सितम के बढ़ते मामलों पर सरकार संज़ीदा नहीं है, बल्कि उसपर पर्दा डालने के वास्ते कंवल सिब्बल जैसे रिटायर्ड नौकरशाहों को आगे कर दिया जाता है।
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